Monday 10 April 2023

 👌 *श्रीलंका में आयोजित १४ मई २०२३ के आंतरराष्ट्रिय बौध्द साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षता में प्रा. दिपक खोब्रागडे की बौध्द साहित्यविध पात्रता ...?*

    *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर १७

अध्यक्ष, जागतिक बौध्द परिषद २००६ नागपुर (भारत)

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल 

माजी मानद प्राध्यापक, डॉ. आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ, महु (भारत)

मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२


      प्रा.‌ दिपक खोब्रागडे नामक व्यक्ति तथा उसके साथ जुडे हुये, उन समस्त (?) चांडाल चौकडी का *"जागतिक आंबेडकरवादी साहित्य महामंडल"* हो या, *"आंतरराष्ट्रिय बौध्द महासंघ"* हो, वे लोग (?) जागतिक / आंतरराष्ट्रिय नाम लगाकर, एक प्रकार से बौध्द - आंबेडकरी लोगों से ठगी करते आये है.‌ अब उन समस्त चांडाल चौकडी की, आंबेडकरी तथा बौध्द साहित्य पर, *"पाच विचारविधों की समिती"* बनाकर मौखिक तथा लेखी परीक्षा लेना अनिवार्य हो गया है. सबसे पहले विद्वत (?) दीपक खोब्रागडे की *"आंबेडकरवाद विषय की परिक्षा"* लेनी होगी.‌ तथा पांच विद्वत बौध्द भिक्खु की एक समिती बनाकर *"त्रिपिटिक / धम्मपद / विशुध्दीमग्ग / जातक कथाएं / बुध्द और उनका धम्म"* इन प्रमुख बौध्द ग्रंथ के ज्ञान का आकलन करना होगा. फिर अन्य बौध्द साहित्य पर परिक्षा ठिक होगी. अगर दीपक खोब्रागडे उन परिक्षा में पास होता है, तो वो उन *"आंतरराष्ट्रिय बौध्द साहित्य परिषद की अध्यक्षता"* के पात्र होगा. अन्यथा उसे क्या दंडित करना है ? उसका निर्णय भी वह समिती ही करेगी. मै भारत के भिक्खु संघ को आवाहन करता हुं कि, वह पाच विद्वत भिक्खुओं की समिती बनाकर, अपना बौध्द साहित्य प्रति दायित्व पुरा करे. उसके बाद *"श्रीलंका के अनुराधापुर स्थित बौध्द भिक्खु विद्यापीठ के कुलपती के प्रमुख अध्यक्षता में, चार विभिन्न विभागाध्यक्षों की समिती"* द्वारा, प्रा. दिपक खोब्रागडे के बौध्द साहित्य के ज्ञान की परिक्षा ले. ता कि, भविष्य में इस प्रकार के *"गुरु घंटालों की मजाकगिरी"* को रोक लगे !

   *प्रा. दिपक खोब्रागडे* और उसका बहन जावई *सुजित मुरमाडे* इन दो प्रमुख लोगों‌ का विदेश सफर करने का बिझनेस रहा है. हमे उनके बिझनेस से कोई लेना देना नही है. *अगर वे अपना बिझनेस बौध्द धर्म / आंबेडकरी मिशन को जोडकर करते हो तो, यह हमारे लिए चिंता का विषय है.* हमे यह समझना जरुरी है कि, जागतिक स्तर पर विभिन्न देशों में, बहुत से नामांकित *आंतरराष्ट्रिय बौध्द संघटन"* कार्यरत है. जैसे की - *"Sakyadhita International Association of Buddhist Women (USA) / Buddhist Peace Fellowship (Thailand) / Dharma Realm Buddhists Association (Malaysia) / Zen Peacemakers (Japan) / TZU Chi (Taiwan) / Soka Gakkai International (Japan) / Shambhala International (USA) / Istituto Lama Khapa (Italy) / World Fellowship of Buddhists (Thailand) / World Buddhist Sangh Council (Srilanka) / Fo Guang Shan (Taiwan) / International Buddhist Society (China)// World Buddhists Forum (China) / World Buddhist Association (USA) / World Buddhist Association in Bangla Desh / World Alliance of Buddhists (Thailand) / Buddha Light International Association (Taiwan) / The Buddhist Society of India"* इन आंतरराष्ट्रिय बौध्द संघटन का काम विश्व स्तर का रहा है. मुझे स्वयं भी, उन कुछ बौध्द संगठनों के मान्यवरों से मिलने का, बहुत बार अवसर मिला है. मेरी उनसे बौध्द धर्म पर चर्चा हुयी है. दिपक खोब्रागडे / सुजित मुरमाडे चौकडी की उतनी भी बडी औकात नही की, वो उन नामांकित आंतरराष्ट्रिय संघटन के समकक्ष काम करे. क्यौं कि, *सुजित मुरमाडे* कई बार मुझे मिलने, मेरे ऑफिस आया करता था. हमारे अमेरिका के मित्र *स्मृतिशेष राजु कांबले* का वह एक प्रकार का, भारत में बाबु का काम किया करता था. करोना के पहले, राजु कांबले और मेरी आंबेडकरी मुव्हमेंट पर चर्चा, नागपुर हुयी थी. और करोना काल में, राजु कांबले हमारे बिच नही रहा. वही फायदा सुजित मुरमाडे ने दिपक खोब्रागडे को पकडे ले रहा है. सुजित मुरमाडे की लायकी केवल प्रकाशक की है, अन्य कुछ नही. और दिपक खोब्रागडे द्वारा लिखित किताबों मुल्यमापन (?) यह बडा ही संशोधन का विषय दिखाई देता है. और उन विद्वत महाशयों द्वारा स्थापित तथाकथित संघटन ????

     बौध्द साहित्य इतना विशाल है कि, उसे समझना / उमगना उतना सहज विषय नही है. *"त्रिपिटक / विशुध्दीमग्ग / धम्मपद"* इन विशाल बौध्द धम्म ग्रंथ को समझना तो, साधारण व्यक्ति के आकलन का विषय नही है. बोधिसत्व *डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर* उन्होंने, इन बौध्द ग्रंथों के अध्ययन के बाद, वे समझ गये थे कि, बौध्द धम्म की ग्रंथ संपदा बहुत विशाल है. और सामान्य व्यक्ति को समझने के लिए, *डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जी ने "Gospel of Buddha"* लिखने की बात कही थी. डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर द्वारा लिखित *"Buddha and His Dhamma"* यह बहुत मुल्यवान ग्रंथ *"गॉस्पेल ऑफ बुध्दा"* ही तो है. क्या वह ग्रंथ भी समझना / उमगना, इतना सरल है ? बाबासाहेब का रंगुन (बर्मा) की आंतरराष्ट्रिय बौध्द परिषद भाषण, क्या हम समझ पाये है क्या ? जब कि, वह भाषण हमारे लिए एक *"Blue Print"* है. और दिपक खोब्रागडे महाराज *"आंतरराष्ट्रिय बौध्द साहित्य परिषद"* अध्यक्ष बनने जा रहा है. सवाल है कि, दिपक खोब्रागडे ने कितने अंतरराष्ट्रीय विषयों पर लेखन किया है.*"आंतरराष्ट्रिय बौध्द साहित्य"* यह क्या मजाक का विषय है ? कोई हमारे बौध्द साहित्य का मजाक बनायें, और हम क्या केवल खामोश बैठना चाहिये ? जरा सोंचो...!!! क्या हमारा कोई विरोध करने का दायित्व नही है ?

      खैर छोडो, हम मान लेते है कि, दिपक खोब्रागडे ने *" त्रिपिटिक / विशुध्दीमग्ग / धम्मपद / जातक कथाएं / बुध्द और उनका धम्म"* आदी सभी बौध्द धर्म ग्रंथ को बहुत अच्छे से समझा है. क्या हमे दिपक खोब्रागडे *"बौध्द साहित्य में सौंदर्यशास्त्र / बौध्द नीतिशास्त्र / बौध्द साहित्य में दर्शन / बौध्द साहित्य में प्रेम - राष्ट्रवाद - निसर्गवाद"* आदी विषयों पर, हमे समझा कर बता सकता है. वही सवाल *प्रा. डॉ. यशवंत मनोहर* इन्हे भी है. जो जलगाव में २ - ३ अप्रैल २०२३ में हुये *"बौध्द साहित्य परिषद"* की अध्यक्षता करके आये है.‌ हम तो, बौध्द साहित्य / आंबेडकरी साहित्य के अभ्यासक है. हम उन विद्वत मान्यवरों से, यह निश्चित रूप से पहले सिखना चाहेंगे - *भारत का बौध्द साहित्य / आंबेडकरी साहित्य ...! फिर आंतरराष्ट्रिय...!!!*


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(नागपुर दिनांक ११ अप्रैल २०२३)

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