Friday 19 April 2024

 🇮🇳 *संघवाद के डॉ. मोहन भागवत का हिंदु राष्ट्रवाद में / भारतवाद के राजकिय दलों का भारत राष्ट्रवाद‌ (?) और आंबेडकरी दलों की बुध्दीहिन राजनीति ???* (बिन अकल कांग्रेसी राजकुमार राहुल गांधी का हिंदुस्तान (भारत नहीं) अनैतिक - असंविधानिक जप !)

  *डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर ४४००१७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल 

एक्स व्हिजिटिंग प्रोफेसर, डॉ बी आर आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ महु म.प्र.

मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२


       राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ (RSS) के प्रमुख *डॉ मोहन भागवत* का, चुनाव के पहिले चरण मतदान दिन - १९ अप्रैल २०२४ को, एक बडा बयाण आया है कि, *"हमारे देश में, कोई ना कोई शासक आते रहा और हमें सहजता से गुलाम बनाते गया. हमारे घरभेदीओं ने ही, परकिय शासकों के आक्रमण को, बढावा दिया और हम गुलाम बन गये. यह गलतीयां बार बार होती गयी और हम बहुत सालों तक उनके गुलाम बने रहे."* मोहन भागवत जी का यह बयाण, रेशीमबाग नागपुर स्थित उनके ही डॉ हेडगेवार सभागृह में, *"हिंदु राष्ट्र के जीवन उद्देश की क्रमबध्द अभिव्यक्ती"* इस साप्ताहिक विवेक (?) ग्रंथ के, प्रकाशन पर्व पर रहा है. और आगे भागवत जी कहते हैं कि, *"कोई भी संस्था के, अहंकार पोषण करने के लिये, संघ नहीं है. ये काम हम ने किया, ये बताने के लिये भी संघ नहीं है. संघ की शताब्दी मनायी जा रही है, यह संघ के सामने चिंता का विषय है."* यह दोनो बयाण पढने के पश्चात, मैं बडे सोच में ही रहा. और कुछ क्षण पश्चात, मेरी अंतर्मन कलम ने, अपने विचारों को लिखना शुरु किया. तब कांग्रेसी राजकुमार बिन अकल - *राहुल गांधी* के भाषण शब्द बोल, *"हिंदुस्तान"* (विश्व का अस्तित्वहीन - अनैतिक - असंविधानिक देश !) पर भी, मुझे  लिखने के लिये प्रेरीत किया. अगर प्रधानमंत्री *नरेंद्र मोदी* के प्रति, *"एंटी इनकंबंसी"* (Anti Incumbency) नहीं होती तो, *राहुल गांधी* के *"भारत यात्रा"* को, कभी सफलता ही नहीं मिलती. राहुल गांधी की, वो औकात ही नहीं कि, *"वो कांग्रेस का हो या, भारत देश का वो नेतृत्व करे."* अगर गांधी - नेहरू परिवार का, राहुल गांधी यदी घटक ना होता तो, राहुल का नाम, कभी चर्चा में ही ना होता. वही बातें डॉ बाबासाहेब आंबेडकर साहाब के पोते, *एड. प्रकाश आंबेडकर* को भी लागु है. बसपा सुप्रीमो - *मायावती* को भी वह बातें लागु है. *कांशीराम जी* का वो आशिर्वाद ना होता तो, मायावती ना नेता होती. *"अत: मायावती हो या, प्रकाश आंबेडकर की राजनीति ???"* एक बडे संशोधन का विषय है. और अन्य परिवार-वादी नेताओं के लिये भी...!!! यही बातें पुर्णतः लागु है. यह नेता लोग सहजता से मिले, *"मिठे फल को"* खा रहे है.‌ उन्हे उनके आकाओं के कठिण परिश्रम की - आवाम के भावनांओं की, अनुभुती ही नहीं है. इसलिए मनमाना रवैया को, वे परिवार वादी सभी नेता लोग अपना रहे है .

      संघवाद (RSS) के नायक *डॉ. मोहन भागवत* इनके भाषण पर चर्चा करने के पहले, *"प्राचिन भारत के इतिहास"* को जानना बहुत ही जरुरी है. प्राचिन भारत की संस्कृति यह मुलत:  *"सिंध संस्कृति या हडप्पा संस्कृति"* रही हैं. इस सिंध संस्कृति को, हमें तिन भागों में विभक्त करना होगा. *"पुर्व हडप्पा संस्कृति* (कालखंड इ.पु. ७५०० - ३३००) / *हडप्पा संस्कृति या पहिला नागरीकरण* (कालखंड इ.पु. ३३०० - १५००) / *परिपक्व हडप्पा संस्कृति* (कालखंड इ. पु. २६०० - १९००)." और सिंध संस्कृति यह बहुत ही उन्नत संस्कृति थी. इसके प्रमाण हमें उत्खनन में दिखाई देते है. प्राचिन भारत पर *"पहिला आक्रमण,"* ये विदेशी नागरिक *"वैदिक ब्राह्मणों"* द्वारा किया गया. और प्राचिन भारत में, विदेशी ब्राह्मणों द्वारा, *"वैदिक संस्कृती / सभ्यता"* (?) की नीवं रची गयी. *(वैदिक कालखंड  इ. पु. १५०० - ६००).* ब्राह्मण ये विदेशी होने का प्रमाण, गंगाधर तिलक से लेकर जनार्धन भट तक, तथा बहुत सें ब्राह्मण मान्यवरों ने दिया है. अत: उस विषय पर सविस्तर चर्चा, हम फिर कभी करेंगे. और ब्राह्मणों द्वारा भारत के मुल प्राचिन संस्कृति को, नष्ट किया गया. फिर *वैदिक काल* में, कर्मकांड / अंधश्रद्धा / भोगवाद / अनैतिक वाद / गद्दारी युग का बोलबाला शुरु हुआ. वह प्राचिन भारत पर, *"पहिली विदेश गुलामी"* थी. संघ वादी *डॉ मोहन भागवत* उनके ही तो वारिस है.

       वैदिक सभ्यता (इ. पु. १५०० - ६००) के बाद, *"बुध्द /जैन सभ्यता"* (कालखंड इ.‌ पु.‌ ६०० से ४००) का उदय होता है. *बुध्द का कालखंड इ .पु. ५६३ - ४८३* दिखाई देता है. *बौध्द सम्राट का कालखंड इ. पु. ५४४ - १८५* रहा है. हमें यह भी समझना होगा कि, सिंध संस्कृति में *"पहिला नागरीकरण"* इ. पु. ३३०० - १५०० का है. प्राचिन भारत में *"दुसरा नागरीकरण"* इ. पु. ६०० - २०० का है. और इस दुसरे नागरीकरण में, अर्थात बौध्द सभ्यता में, प्राचिन भारत की पहचान, *"स्वर्ण युग"* के रूप में होती है. और प्राचिन भारत को, हम चार भागों में विभक्त कर सकते हैं.‌ *"प्रारंभिक मध्यकालीन भारत"* (कालखंड इ. पु. २०० से इसवी सन १२००) / *"गत मध्यकालीन भारत"* (कालखंड इसवी १२०० - १५२६) / *"प्रारंभिक आधुनिक भारत"* (कालखंड इसवी १५२६ - १८५७) / *"आधुनिक भारत"* (कालखंड इसवी १८५७ के बाद का). हमे यह भी समझना होगा कि, प्राचिन भारत में *"वैदिक सभ्यता"* भले ही इ. पु. १५०० - ६०० में आयी थी, परंतु वैदिक सभ्यता ने समुचे भारत में पैर नहीं पसारे थे. वैदिक सभ्यता यह केवल *"उत्तरी भारत"* तक सिमित थी. और *"मुल भारतीय समुह तथा विदेशी वैदिक ब्राह्मणों ( अरबी / फारसी) का वह सत्ता संघर्ष था."* बौध्द सम्राट कालखंड (इ. पु. ५४४ - १८५) में,  *चक्रवर्ती सम्राट अशोक* का आखरी वंशज *सम्राट बृहद्रथ* (इ. पु. १८५) की हत्या, *ब्राह्मणी सेनापती पुष्यमित्र* (सम्राट बृहद्रथ का साला) द्वारा, ब्राह्मण ऋषी *पातंजली* के कहने पर होती है. *चक्रवर्ती सम्राट अशोक* के कालखंड में *"प्राचिन अखंड विशाल विकास भारत"* यह अफगाणिस्तान (१८७६) / तिब्बत (१९०७) / भुतान (१९०६) / नेपाल (१९०४) / श्रीलंका (१९३५) / म्यानमार (१९३७) / पाकिस्तान - बांगला देश (१९४७) तक फैला हुआ, हमें यें दिखाई देता है. आज का भारत यह *"खंड खंड विकसनशील भारत"* है. चक्रवर्ती सम्राट अशोक मौर्य वंश के, आखरी सम्राट बृहद्रथ की हत्या के बाद, भारत में *"दुसरी विदेशी गुलामी"* की निवं भी, विदेशी वैदिक ब्राह्मणों द्वारा ही रची गयी.

     विदेशी वैदिक ब्राह्मणों द्वारा फिर *"अंग्रेजो / मुस्लिम आदी अन्य विदेशी शासकों"* के लिये, भारत में *"गुलामी के द्वार"* (दरवाजे) खुले किये गये.‌ अन्य सभी विदेशी शासकों की चर्चा, हम फिर कभी करेंगे. प्राचिन भारत की सत्ता को संभालना, ये विदेशी ब्राह्मणों के बस की बात नहीं थी.‌ अर्थात सत्ता संभालने का मेरीट, विदेशी ब्राह्मणों में था ही नहीं. *"भोगवाद / अनैतिक वाद / गद्दारी वाद / आलस्य ही, उनके लहु में भरा हुआ है / था."* अब हम *"आधुनिक भारत"* (कालखंड १८५७ के बाद का) की ओर बढते है. *"सन १८५७ का उठाव"* यह भारत का *"पहिला स्वातंत्र्य संग्राम"* नहीं है. वह उठाव तो, भारत के *"विभिन्न राजाओं का सत्ता संघर्ष"* था. झाशी की *राणी लक्ष्मीबाई* ने, सन १८५७ में इंग्रजो के साथ, आमने सामने लढाई नहीं की थी. अंग्रेजो से लढाई तो, *राणी लक्ष्मीबाई* के भेष में कोरी (अस्पृश्य) समाज की *झलकारी* ने लढी थी.‌ राणी लक्ष्मीबाई तो छुपकर, झाशी से ग्वाल्हेर तक,  *राजा सिंधीया* की मदत मांगने गयी थी. और ग्वाल्हेर नरेश सिंधीया ने, राणी लक्ष्मीबाई को मदत देने से इंकार कर, लक्ष्मीबाई के आने की सुचना अंग्रेजो को दी थी.‌ इस प्रकार *ब्राम्हण सिंधीया* ने, भारत देश से गद्दारी कर गया. और *राणी लक्ष्मीबाई* ने तो, अंग्रेजो से बगैर लढाई किये, ग्वाल्हेर में *"आत्मदहन"* कर डाला. मुझे स्वयं *"झाशी किला - ग्वाल्हेर किला - फत्तेहपुर सिकरी किला - दिल्ली का लाल किला - जयपुर किला - हैदराबाद किला"* आदी बहुत से प्राचिन किल्लों में, भेट कराने का अवसर मिला है.‌ और उन तमाम राजाओं का इतिहास भी, मैने अच्छे से पढने का / समझने का प्रयास भी किया. भारत का प्राचिन इतिहास भी समझा है. परंतु ब्राह्मणी इतिहासकारों ने, उन तमाम ब्राह्मण राजाओं को, *"भारत आझादी के सेनानी"* बना डाला. *"सन १८५७ के उठाव को, भारत आझादी की पहिली लढाई भी...!"*

     अब हम *"द्वितीय महायुध्द और भारत की सन १९४७ के आझादी"* की ओर आगे चलते है. सन १९४२ के बाद, मोहनदास करमचंद गांधी हो या कांग्रेस दल ने, *अंग्रेजो के विरोध में कितने आंदोलन किये है ?* यह भी प्रश्न है. *"पहिला महायुध्द"* (कालखंड २८ जुलै १९१४ से ११ नवंबर १९१८ तक) / *"द्वितीय महायुध्द"* (कालखंड १ सितंबर १९३९ से २ सितंबर १९४५) ये दोनो युध्द *"भुमी विस्तारवाद"* से जुडे हुये है.‌ आनेवाला *"तिसरा महायुध्द"* यह तो, *"पाणी संघर्ष"* के लिये होगा. *"पर्यावरण बदलाव"* (Climate Change) यह विश्व की, सबसे बडी समस्या है. भारत में भी लद्दाख से, यह आंदोलन किया गया है. जब हम *"द्वितीय महायुध्द"* का कालखंड देखते है, तब प्रश्न खडा होता है कि, *"भारत को आजादी मिलने में ३ - ४ साल की देरी क्यौं हुयी ?"* क्या यह कांग्रेस या मोहनदास गांधी की विफलता थी ? या भारत का धर्म जात संघर्ष (कांग्रेस / मुस्लिम/ अस्पृश्य) कारण ? यह भी हमें समझना होगा. *"संघवाद (RSS) का योगदान"* भी विषय है. संघवाद का ब्रिटन राणी के संबंध भी, हमें देखना होगा. *"भारत की संविधान सभा"* की डिबेट तो, हमारे गुलामी के इतिहास को, बयाण कर जाता है. जब *"द्वितीय महायुध्द"* का विषय आता है, तब अचानक मुझे मेरे *दक्षिण कोरीया* प्रवास की यादें, बहुत ताजा हो जाती है. मैने दक्षिण कोरीया में *"द्वितीय महायुध्द की वो यादें / स्मृतीयां"* देखी है. वही *"श्रीलंका / मलेशिया / सिंगापुर / थायलंड / नेपाल / व्हिएतनाम"* इन देशों के प्रवास में, मुझे बौध्द संस्कृति की झलक याद आती है. श्रीलंका सरकार ने तो मुझे *"व्हीव्हीआयपी "* तरह रखा था. मैं तो, श्रीलंका सरकार की सेना के लेफ्टनंट / कर्नल की सुरक्षा में रहा था.

      अब हम सन २०१४ के बाद की, *"भाजपा सत्त्ता शासन"* के ओर बढते है. भाजपा शासन ने *"नरेंद्र मोदी शासन"* की ओर रूख करते है. नरेंद्र मोदी ने, इन दस सालों में, *"पुंजीवाद"* को ही मजबूत किया है. दुसरे अर्थ में, *"भारत अब पुंजीवाद का, पुर्णतः गुलाम बन गया है."* पहिले विदेशी वैदिक ब्राह्मण गुलामी थी और अब *"पुंजीवाद गुलामी"* है...! और पुंजीवाद गुलामी की ओर, विदेशी वैदिक ब्राह्मणों ने ही ढकेला है. भारत में आज तक की, जो भी गुलामी लादी गयी है, वो विदेशी ब्राह्मणों द्वारा ही, लादी गयी है. भारत से गद्दारी भी, *"विदेशी ब्राह्मणों"* द्वारा ही की गयी है. और संघवाद के नायक *डॉ. मोहन भागवत* के उपरोक्त बयाण को, हम इसी रुप में ही देखना होगा. मोहन भागवत ने अपने बयाण में, केवल गुलामी लादलेवालों का नाम नहीं बताया. परंतु अदृश्य रुप में, उन्होंने इस सत्य को, पुर्ण स्वीकार किया है. भारत की आने वाली *"सन २०२४ की सत्ता नीति,"* वह किस ओर जाएगी ? यह वक्त ही बतायेगा. परंतु कांग्रेसी राजकुमार - *राहुल गांधी* द्वारा, *"हिंदुस्तान"* कहकर, अपना हिंदुत्व का आलाप बता दिया है. और *"हिंदु"* इस शब्द का अर्थ का अर्थ > हिंदु  > हिनदु > हिन + दु > हिन = निच, काला ....‌दु = प्रजा, लोक > हिंदु = निच आदमी, काला आदमी, चोर. *स्वामी दयानंद सरस्वती* ने, "हिंदु" इस शब्द का विरोध किया है. अर्थात *राहुल गांधी हो या डॉ मोहन भागवत* इनकी हरकते, हिंदु शब्द को फिट बैठती है. परंतु हम हमारे देश का अपमान, *"हिंदुस्तान"* (विश्व का अस्तित्वहीन - अनैतिक देश = निच लोगों का देश) बोलकर, हम बिलकुल ही सहन नहीं करेंगे. हमारे देश का संविधानिक नाम *"भारत अर्थात इंडिया"* है.

        भारत की सन २०२४ के राजनीति में, तमाम भाजपा विरोधी दलों को, यह सोचना होगा कि, *राहुल गांधी* को कितनी अहमत देना है. वही प्रकाश आंबेडकर को भी, अपनी *डॉ बाबासाहेब आंबेडकर साहाब* के प्रति निष्ठा सिध्द करनी होगी. प्रकाश आंबेडकर ने, आज तक जो भी राजनैतिक उमेदवार, चुनाव में खडे किये है ? उन उमेदवारों की पार्श्वभूमी, प्रकाश आंबेडकर को बतानी होगी. *"रिपब्लिकन विचारधारा"* विरोध का कारण देना होगा.‌ *"बहुजन महासंघ से लेकर वंचित आघाडी तक"* के विचारों का सही कारण भी...! १४ अप्रैल को *"राजगृह "* पर, काले झंडे लगाने का उद्देश भी, हमें बताना होगा.‌ कोरोना काल में, *"पंढरपूर विठ्ठल मंदिर दरवाजे खोलना आंदोलन"* भी...! मुंबई के *"आंबेडकर भवन"* का निर्माण विरोध भी...!!! हमने आज से ३५ -४० पहले नागपुर में, *प्रकाश आंबेडकर* को, सबसे पहले देश को परिचीत कराने का कार्यक्रम, धनवटे रंग मंदिर में रखा था. नामांकित समाजसेवी *डॉ. आनंद जीवने* भाऊ इन्होने, कार्यक्रम की अध्यक्षता की थी.‌ और मैने स्वयं (डॉ. मिलिंद जीवने) आपका स्वागत किया था. वही आज से *दस साल पहले* नागपुर के रवी भवन में, प्रा रणजित मेश्राम / डॉ. मिलिंद माने / राजु लोखंडे आदी आपके ५० लोगों की उपस्थिती में, *एड. प्रकाश आंबेडकर जी* आप को, जो मैने (डॉ जीवने) बातें की थी, वह शायद आप को याद होगी. मेरे मुंबई के दौरे में, एक बहुत ही वयोवृद्ध व्यक्ती, मुझे मिलने आया था. और वो वयोवृद्ध व्यक्ती, मेरे सामने रोकर कहने लगा कि, *"डॉ. जीवने साहाब, प्रकाश आंबेडकर का समाज के प्रति दायित्व ठिक नहीं है. प्रकाश ने मेरे (वृध्द आदमी) सामने कहा कि, बाबासाहेब आंबेडकर, इस खेड्डे ने हमारे (प्रकाश) लिये क्या किया ?"* वो बाबासाहेब डॉ आंबेडकर साहाब को *"खेड्डा"* कहता है. प्रकाश आंबेडकर जी, आज आप जो भी हो, *वह केवल डॉ बाबासाहेब आंबेडकर साहाब के कारण ही...!* अत: बाबासाहेब जी का, जो भी संघटन हो या कार्य हो, उसका आप के विरोध का कारण, यह विषय तो नहीं है ? वही बसपा सुप्रीमो *मायावती* को भी, कांशीराम जी के विचारों सें दुर होना भी....! सही कारण आवाम को बताना होगा.


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नागपुर, दिनांक १९ अप्रैल २०२४

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