Wednesday 31 January 2024

 👳🏻‍♀️ *सिख साम्राज्य के रजवाडों ने क्या भारत आजादी में गद्दारी की थी...???*

    *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल (सी. आर. पी. सी.)

एक्स व्हिजिटिंग प्रोफेसर, डॉ. आंबेडकर समाज विज्ञान विद्यापीठ, महु (म. प्र.)

मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२


    सिख साम्राज्य का इतिहास, *क्या बहुत ही देशभक्ति का* रहा है ? यह विषय तब आया, जब सिख समुदायों से जुडे हुये, नयी दिल्ली स्थित एक बहुत ही बिगडेल छोरा वकिल *दिनेश सिंघ* ने, भारतीय संविधान की शिल्पी *डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर* इन पर, बहुत ही अनर्गल आरोप लगाये थे. जो आरोप लगाये थे, वह केवल बाबासाहाब आंबेडकर की किताब कें, *"केवल एक शब्द को पकडकर"* ही लगाये गये. लेकिन बाबासाहाब डॉ. आंबेडकर जी ने, *वह शब्द किस संदर्भ में कहें थे,* उस संदर्भ को वो पुरी तरह से भुल जाते है. और उस बिगडेल पंजाबी छोरे के समर्थन में, पंजाब के बाजपुर का बिगडेल छोरा *नानक सिंघ* (उस के फोन पर USA उल्लेख है) तथा दुसरा पंजाबी बिगडेल छोरा *कबिर सिंघ* सही नाम (?) उतर आये है. वे बिगडेल छोरा लोग, यह लिखा है या नहीं, इसका *"केवल हां या नां"* इस एक शब्द मे ही उत्तर मांगते है. वह वक्तव्य किस संदर्भ में दिया गया है / सामाजिक - राजकिय दृष्टिकोण संदर्भ क्या था ? उसका उनसे कोई लेना देना नही है. दुसरे अर्थो में कहां जाएं तो, *"उनकी अक्कल घुटनें में !"* यह कहावत उनको पुर्णत: लागु होती है. तब मैने उनको, एक साधा ही सवाल पुछा कि, *"क्या सिख साम्राज्य ने, भारत देश से गद्दारी की थी या नहीं ?"* इस प्रश्न का उत्तर *"केवल हां या नां"* इस एक शब्द में, मैने उनसे मांगा. जैसे कि - वे पंजाबी बिगडेल छोरे को, *"केवल मां ने ही जनम दिया. बाप का रोल ???"* इस संदर्भ का उनको कोई लेना देना ही नां हो ! और मेरे प्रश्न का उत्तर ना मिलने के कारण, यह लेख सिख साम्राज्य के संदर्भ में लिखना, यह बहुत ही जरुरी हुआ है. क्यौं इस हिन संदर्भ में, *किसी सिख धर्मगुरु* ने, उन बिगडेल छोरे पर, सामाजिक सौहार्द खराब करने के कारण, कारवाई करते हुये दिखाई नही दी है.

       *"प्राचिन अखंड भारत""* का इतिहास, आगे को जाकर *"गुलामी का तथा गद्दारी का"* ही रहा है. पहला इतिहास - *"विदेशी ब्राम्हणों ने सिंध संस्कृति पर आक्रमण / हमला"* किया था. और भारतीय आवाम को गुलाम बनाया गया था. दुसरी इतिहास - चक्रवर्ती सम्राट अशोक मौर्य वंश के आखरी *सम्राट ब्रहदृथ* (पहले तो पुष्यमित्र शुंग ने, अपनी बहन को सम्राट से ब्याह कर रिस्ता जमाया. फिर...) की हत्या, *ब्राम्हणी वंश सेनापति पुष्यमित्र शुंग* ने, ब्राम्हणी गुरु *पातंजली* के कहने पर किया था. और तब से ही "अखंड भारत" यह *"खंड - खंड"* हो गया. जैसा कि - अफगानिस्तान (१८७६) / नेपाल (१९०४) / भुतान (१९०६) / तिब्बत (१९०७) / श्रीलंका (१९३५) / म्यानमार (१९३७) / पाकिस्तान (१९४७) / पुर्व  पाकिस्तान - बांगला देश (१९४७ - १९७१). इसके साथ ही, भारत में विदेशी शासकों की गुलामी भी, भारत पर लादी गयी थी. मौर्य काल में तो, *"भारत को सोने की चिडियां"* ही कहा जाता था. वो विकास भारत था. विदेशों से लोक प्राचिन भारत के विद्यापीठ - *"तक्षशीला / नालंदा / विक्रमशीला...."* आदी में पढाई करने आते थे. वह तो *"बुध्द कालखंड"* था. आज का भारत ?????

    शिख साम्राज्य की शुरुवात १८ वी शती की है. बाबासाहेब आंबेडकर ने *"भारतीय संविधान"* को अमली जामा देते समय, २६ नवंबर १९४९ को *"संविधान सभा"* में कहां कि, *"On 26th January 1950,  India will be an independent country (Cheers) . What would happen to her independence ?  Will she maintain her independence or Will she lose it again ? This is the first thought that comes to my mind. It is not  that India was never an independent country. The point is that she once lost the independence she had. Will she lost it a second time? "* भारत के आजादी बाद २६ जनवरी १९५० को, भारत में *"संविधान संस्कृति"* की निवं रची गयी. और *"संस्कृति संविधान"* को तिलांजली दी गयी. नरेंद्र मोदी के भाजपा शासन काल ने, *"संस्कृति संविधान"* की पुनर्स्थापना कर, *"भारतीय प्रजातंत्र"* का गला घोट डाला. भारत माता पर बलात्कार करना शुरु कर दिया. और हमारे सर्वोच्च न्यायालय के तत्कालिन सर न्यायाधीश - *रंजन गोगाई* इनकी अध्यक्षतावाली पीठ के न्यायाधीश *शरद अरविंद बोबडे / धनंजय चंद्रचुड  / अशोक भुषण / अब्दुल नज़ीर* इन्होने "रामजन्मभुमी प्रकरण" में, *"प्रायमा फेसी""* के आधार पर निर्णय ना देकर, *"भावना के आधार"* पर वह निर्णय देकर, भारत माता पर बलात्कार करने के बीज बोये है. अर्थात यें पाचों ही न्यायाधीश भारत के *"बलात्कारी पुरुष"* ही सिध्द हो गये है. *"अयोध्या"* का प्राचिन नाम *"साकेत"* था, जो बुध्द धर्मीय राजा की राजधानी थी. और *"साकेत मे बुध्द विहार"* के अवशेष मिलने की बातें, *लार्ड कनिंघम* ने अपनी किताब में लिखी है. परंतु बलात्कारी पुरुष वे अपनी बलात्कारी आदतो से, ना कभी बाज आते है...!!!

      बाबासाहेब आंबेडकर ने, *"संविधान सभा"* में  भारत के गद्दार राजाओं का नाम लेकर कहां कि, *"In the invasion of sindh by Mohammad Bin Kasim, the military commander of King Dahar accepted bribes from the agent of Mohamad Bin Kasim and refused to fight on the side of their King ............ When the British were trying to destroy the Sikh Rulers, Gulab Singh , the principle commander sat silence and did not help to save the Sikh Kingdom......"* ब्रिटिशों के कार्यकाल में, पंजाब का *"जालियनवाला बाग हत्याकांड"* हुआ था. जालियानवाला बाग में, *"किस समुदाय"* ने उस मिटिंग का आयोजन किया था ? और उस मिटिंग का असली उद्देश्य क्या था ? और *अंग्रेजो को गलत सुचना देनेवाला, वो उच्च वर्णीय सिख* कौन था ??? इस महत्वपुर्ण विषय पर संशोधन होने की, बहुत ही जरुरी है. अर्थात सिख समुदाय की *"असली विरता और वफादारी"* हम सभी भारतीय जान सके...!!!

      कुछ सिख समुदायों का, बाबासाहाब डॉ. आंबेडकर इन पर नाराजी का *पहला मुख्य कारण* - बाबासाहाब ने, *"संविधान सभा"* में सिखों द्वारा किये गये, *"भारत विरोधी वक्तव्यों"* पर दिखाई देता है. *दुसरा कारण* - बाबासाहाब ने *"सिख धर्म का स्वीकार ना करना,"* यह भी दिखाई देता है. अगर बाबासाहेब आंबेडकर ने *"सिख धर्म"* का स्वीकार किया होता तो, *"सिख समुदाय"*  ये केवल *"पंजाब प्रांत"* तक सिमित ना होकर, समुचे भारत में फैला हुआ दिखाई देता होता. और *"भारतीय राजनीति में सत्ता का अधिक भागिदार"* होता हुआ दिखाई देता. और बाबासाहाब आंबेडकर ने सिख धर्म स्वीकृती पर, अपना लक्ष केंद्रीत भी किया था. परंतु *सोहनलाल शास्त्री* (जो पंजाब प्रांत से आते थे. और *' डॉ. बाबासाहाब आंबेडकर इनके संपर्क में पच्चीस वर्ष'* इस किताब के लेखक भी) इन्होने एक कडा लेख लिखकर, बाबासाहेब को सचेत किया था कि, सिखों धर्म में भी, हिंदु धर्म के समान उच - निचता ये भेदाभेद है. सिख धर्म में भी समानता का अभाव है. इस कारणवश बाबासाहाब द्वारा *"सिख धर्म का स्वीकार करना"* यह विचार त्याग दिया था. परंतु कुछ बुध्दीहिन प्राणी *बाबासाहेब डाॅ आंबेडकर इनके समुचे लिखाण"* का, संशोधकात्मक अध्ययन ना कर, आधे अधुरे वाचन पर अपना अनुमान बांध देते है. अत: उन लोंगो पर मेरे कविता के शब्द है...

 *"तुमने ना कभी वफा किया यें वतन सें,*

*तुमने सिर्फ चमन में युं आनंद लिया हैं,*

*अपने मुकद्दर को एक बार झाके देखों,*

*हमाम मे तुम सभी नंगे ही दिखाई दोंगे !"*


* * * * * * * * * * * * * * * * * * 

(नागपुर, दिनांक १ फरवरी २०२४)

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