Tuesday 14 November 2023

 👌 *दि बुध्दीस्ट सोसायटी ऑफ इंडिया (TBSI) संस्था के न्यायालय विवाद में नेतावाद...?* (डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर द्वारा स्थापित धार्मिक इस संस्था के मारक यह लहु के वारिसों से लेकर भावनाओं के वारिसों तक...!)

   *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल (सी. आर. पी. सी.)

मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२


     हमारे ऊर्जास्त्रोत परम पावन बोधिसत्व डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जी द्वारा स्थापित सामाजिक संस्था - *बहिष्कृत हितकारिणी सभा* (२० मार्च १९२४) / *समता सैनिक दल* (मिलिटरी बेस्ड दल - १३ मार्च १९२७), राजकिय संघटन - *इंडिपेंडेट लेबर पार्टी* (स्वतंत्र मजदुर पक्ष - १५ अगस्त १९३६) / *शेड्युल्ड कास्ट फेडरेशन* (१८ /१९ जुलै १९४२) / तथा *रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया* (डॉ. बाबासाहेब के मरणोपरांत ३ अक्तुबर १९५७ मे कार्यरत) / *रिपब्लिकन कैडर्स गठण* (१ जुलै १९५६), तथा धार्मिक संघटन - *भारतीय बौध्द जनसंघ* (जुलै १९५१) / *दि बुध्दीस्ट सोसायटी ऑफ इंडिया* (स्थापना यह ४ अक्तुबर १९५४ / सोसायटी एक्ट पंजीकरण ४ मई १९५५) यह बहुत लंबा इतिहास रहा है. और इन तमाम संगठनों से, हमारी अपनी भावनाएं भी जुडी है. यहां हम केवल बाबासाहेब की धार्मिक संस्था - *"दि बुध्दीस्ट सोसायटी ऑफ इंडिया"* (भारतीय बौध्द महासभा) विषय पर ही चर्चा करेंगे. इस महत्वपुर्ण धार्मिक संघटन के स्थापना से लेकर, लहु के वारिस / भावनाओं के वारिसों के विभिन्न विवादों तक, एक अच्छी सी किताब लिखी जा सकती है. इस धार्मिक संघटन के बहुत से *ओरीजनल डाकुमेंट्स, तथा विभिन्न कोर्ट के कुछ आदेश* भी, मेरे पास उपलब्ध है. और *मैने व्यक्तिश: भी, इस संघटन के कार्यभाव को करिबी से देखा* है.

     परम पावन बोधिसत्व *डॉ. बाबासाहेब बी. आर. आंबेडकर* इनकी अध्यक्षता में स्थापित हुयें, *"दि बुध्दीस्ट सोसायटी ऑफ इंडिया"* (TBSI) - इस धार्मिक संघटन में, *डॉ. माधव जी. मालवणकर / सी. एस.‌ पिल्लई / भालचंद्र के.‌ कबिर / भगवंत सय्याजी गायकवाड / एस. डी. गायकवाड / काशीराम विश्राम सावदकर* इन सात लोगों की समिती बनी थी. और इस *धार्मिक संस्था की ओरीजनल घटना - नियमावली / शेड्युल्ड वन की प्रत भी मेरे पास आज‌ उपलब्ध* है. संस्था के घटना प्रती पर, *डा. बाबासाहेब आंबेडकर जी की सही* भी है. अभी वह *मुल रिकार्ड धर्मादाय आयुक्त कार्यालय में, उपलब्ध नही है,* (उधडी लगने के कारण)  इस संदर्भ का आयुक्त कार्यालय का पत्र भी *मुझे २४ अप्रेल २०१९ को प्राप्त हुआ* है.

     बोधिसत्व डॉ बाबासाहेब आंबेडकर जी के महापरिनिर्वाण (६ दिसंबर१९५६) के बाद, उनके एकमेव सुपुत्र *यशवंतराव आंबेडकर* (भैय्यासाहेब) इनकी अध्यक्षता में (२४ नवंबर १९६८ को) *दादासाहेब ता. रुपवते / रघुनाथ मानोजी उके / बी. के. गायकवाड (दादासाहेब) / बी. पी. मौर्य (बुध्दप्रिय) / बँरीस्टर राजाभाऊ खोब्रागडे / भदंत आनंद कौशल्यायन / एड. डी. ए. कट्टी / एन. एम. कांबले / रेवारामजी कवाडे / वाय. सत्यनारायण* इन अकरा लोगों की एक *"एडव्हायझरी कौंसिल"* भी बनी थी. और *भैय्यासाहेब आंबेडकर* इनके निर्वाण के बाद, TBSI में विवादों की बडी झडी लग गयी. और वह विवाद इतना गहराया कि, आगे जाकर डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जी द्वारा स्थापित *"सोसायटी एक्ट"* अंतर्गत जो *"घटना - नियमावली"* (बाबासाहेब के हस्ताक्षर) बनी थी, उसे *"बाम्बे पब्लिक ट्रस्ट एक्ट"* अंतर्गत *'नयी स्किम"* बनानी पडी. और सोसायटी एक्ट अंतर्गत *"पांच साल"* तक, पद पर बने रहने का प्रावधान था. बाद में इन नेताओं नें, *"बी.पी.टी.‌ एक्ट"* अंतर्गत, *"मरते दम तक"* पद पर बने रहने का एक प्रावधान किया. *चाहे वह पदाधिकारी काम करने के ना योग्य क्यौं ना भी हो.* क्या यह कृत्य बाबासाहेब के विचारों से, गद्दारी नही थी ? *हमे इस के विरोध मे, आवाज नही उठाना चाहिये ?* और यही सें TBSI में विवादों के कारण जादा दिखाई देते है. फिर *मै स्वयं ने केस नंबर 17/2019* अन्वये, सोसायटी एक्ट अंतर्गत *"नियमावली रिस्टोरेशन"* तथा भारत के विभिन्न मान्यवरों की *"अस्थायी समिती"* बनाने की, केस दायर की. इसका कारण मै आगे विशद करुंगा.

       यशवंतराव आंबेडकर के निर्वाण के पश्चात, बाबासाहेब की पुत्रवधु *मीराताई यशवंत आंबेडकर* को, कुछ नेता लोगों ने भावनावश उस धार्मिक संघटन का *अध्यक्ष* घोषित कर डाला. जब कि, *उस संस्था के कार्यरत पदाधिकारी द्वारा इस संदर्भ में, ना कोई भी संबधित मिटिंग* ली गयी थी. *ना ही मीराताई आंबेडकर इनको अध्यक्ष बनाने का, कोई ठराव पारीत किया गया.* मीराताई आंबेडकर ने स्वयं के नाम का *चेंज रिपोर्ट,* धर्मादाय आयुक्त कार्यालय में डालने के बाद, और विवादों ने जन्म ले लिया. जो विवाद आगे जाकर, मा. सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा. *जहां मीराताई आंबेडकर वह केस हार गयी.* फिर भी, संस्था के अध्यक्ष के रुप में, संघटन चलाते रही. सबसे अचंबित *मीराताई आंबेडकर का अकृत्य* था कि, उसने *"भारतीय बौध्द महासभा"* इस नाम सें, दुसरा पंजीकरण कर लिया था. जीसे मा. धर्मादाय आयुक्त कार्यालय में, आवाहन दिया गया. और वह पंजीकरण आगे जाकर, धर्मादाय आयुक्त कार्यालय द्वारा पुर्ण निरस्त किया.*"भारतीय संविधान"* के रचयिता के पुत्रवधु इस तरह की, *घटना विरोधी कार्य में लिप्त दिखाई दी है.* बाबासाहेब आंबेडकर जी ने, अपने पुत्र *यशवंतराव आंबेडकर के मीराताई से, विवाह करने का विरोध* किया था. परंतु यशवंतराव ने उनकी यह बातें ना सुनने के कारण, *"बाबासाहेब यशवंतराव के शादी में उपस्थित नही रहे. और यशवंतराव के लिए अलग रहने की व्यवस्था की थी."* क्यौं कि, बाबासाहेब मीराताई के व्यवहार से, अच्छी तरह परिचीत थे. कुछ दिन तक यशवंतराव आंबेडकर अलग रहे. परंतु जब वे मीराताई के साथ *"राजगृह"* में रहने को आये थे, फिर बाबासाहेब अपने मृत्यु तक, *राजगृह में कभी नही गये.*

       TBSI इस धार्मिक संस्था विवाद के कारण, बाबासाहेब लिखित मुल नियमावली को, बदलने का निर्णय धर्मादाय आयुक्त ने देने के बाद, तथा मुंबई ट्रस्ट एक्ट १९५० के कलम ५०ए अंतर्गत, *"सर्व समावेशक स्किम"* बनाना पड गया. फिर TBSI के केंद्रीय कार्यकारीणी द्वारा, २५ मई १९७९ को, आग्रा में एक मिटिंग बुलायी थी. और उस मिटिंग में पारीत ठराव के अनुसार, *हरिष मजगौरी* (मेरे मम्मी के सगे पुफा के लडके) तथा *डॉ. स. वि. रामटेके* इन्हे नयी स्किम बनाने की जबाबदारी दी गयी. हरिष मजगौरी अंग्रेज शासन काल में, रेल्वे में अधिकारी रहे थे. तथा भारत सरकार के *"आयोग"* में काम किया था. उन्होने मुझे ड्राफ्टींग कैसे की जाती है ? यह सिखाया. तथा उन्होने उनके दो प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी भी मुझे दी. यही नही TBSI का सदस्य भी मुझे बनाया था. आग्रा अधिवेशन में TBSI के *"नयी स्किम"* बनाने की जिम्मेदारी मिलने के बाद, *हरिष मजगौरी / डॉ. स.‌ वि. रामटेके, बहुत बार मेरे घर आते थे. और मेरे स्टडी रुम में बैठकर* इस संदर्भ में चर्चा होती थी. इसलिए मै उस विषय संदर्भ में, भलीभांति परिचीत रहा हुं. *TBSI के चंदु (चंद्रबोधी) पाटील* को, मैने ही *हरिष मजगौरी* से मिलाया था. और वहां फोटो भी लिया गया था.

       ‌TBSI के इस बडे विवादों के बिच ही, धर्मादाय आयुक्त ने *शंकरानंद शास्त्री / प्रा. डॉ. पी. जी. ज्योतिकर / डॉ. स. वि. रामटेके / कोंडाजी टी. अहिरे / एड. के. सौगत / अशोक आंबेडकर / डी. डी. बाविस्कर* इन सात नामों को, अपनी स्वीकृती दी थी. फिर इन सात पदाधिकारी में सें, सन २०२० में *पी. जी. ज्योतिकर / अशोक मुकुंदराव आंबेडकर* ये दो ही सदस्य जिवीत रहे. इसके पहले धर्मादाय आयुक्त ने, उस *"नयी स्किम"* को मंजुरी दी. *मीराताई आंबेडकर* TBSI की कोई भी पदाधिकारी नही थी. फिर भी TBSI के नाम से, आर्थिक व्यवहार करती रही. तथा मृत्यु हुये पाच सदस्यों के पद भी नही भरे गये. या चेंज रिपोर्ट को कोई भी स्वीकृती मिली. *चंदु (चंद्रबोधी) पाटील / हरिष रावलीया* इनके नामों का, चेंज रिपोर्ट को स्वीकृती नही मिली. वही बात *राजरत्न अशोक आंबेडकर* की रही. अत: शेड्युल्ड वन पर, इन लोगों के नाम दर्ज ही नही है. इधर *डॉ. पी. जी. ज्योतिकर / अशोक मुकुंदराव आंबेडकर* इनके बिच में भी, बडा बिखराव हो गया. महत्वपुर्ण विषय यह कि, TBSI *"नयी स्किम"* नियम १४ अनुसार, *"कोरम पुरा होने के लिए, ७ पदाधिकारी में ५ सदस्य होना अनिवार्य है. और अगर कोरम पुरा नही होता हो, आधे घंटे के बाद हुयी सभा में, ३ सदस्य का उपस्थित रहना अनिवार्य है."*  यहां की परिस्थिती तो, पुर्ण उलटी थी.‌ *केवल दो ही सदस्य जिवीत थे.* कोरम का पुर्ण अभाव था. तथा *"नयी स्कीम के नियम २९ अन्वये,"* इस प्रकार के विवाद में, निर्णय देने का अधिकार धर्मादाय आयुक्त के पास केंद्रीत है. तो फिर *मीराताई आंबेडकर / चंद्रबोधी पाटील / राजरत्न अशोक आंबेडकर / भीमराव आंबेडकर / हरिष रावलीया* ये सभी लोक TBSI के पदाधिकारी / राष्ट्रिय अध्यक्ष कैसे हुये ? यह सभी *तथाकथित पदाधिकारी लोग,* आंबेडकरी समाज को गुमराह कर रहे है. यही नही, इन्होने समाज से *"लाखों रुपयों"* का चंदा इकठ्ठा किया है. *जिसका हिशोब सन २००९ से, धर्मादाय आयुक्त कार्यालय में जमा नही किया है. इस कारणवश TBSI की मान्यता खतरे में भी है.* अत: इन सभी से, आंबेडकरी जनता ने, सवाल पुछना बहुत जरुरी है. उन सभी को, *"नयी स्किम के नियम ४ अन्वये"* अपात्र घोषित कर, *"फौजदारी केस"* दायर करना बहुत जरुरी है. *मेरी दायर केस न. १७/२०१९ उसी से संबधित है.* तथा मुंबई ट्रस्ट एक्ट की धारा ४१ए अन्वये, नविन ट्रस्टी नियुक्ती भी है. इन सभी *"अनैतिक / स्वयंघोषित पदाधिकारी वर्ग का असली लक्ष, सरकार के ट्रैझरी मे जमा, TBSI  के १२ करोड रुपयों"* के राशी पर केंद्रीत है.

       TBSI की आज की स्थिती बहुत ही चिंतनीय है.‌ सभी ७ ट्रस्टी अभी जिवीत नही है. अत: उनके द्वारा दायर *"चेंज रिपोर्ट"* पर पैरवी कौन करेगा ? व्यक्ती के मृत होने पर, उसकी और से किसी वकिल को, पैरवी करने के लिए, खडा होने का क्या अधिकार बचा है ? अगर कोई वकिल खडा भी होगा तो, उनके नाम के शपथपत्र पर, सही कौन करेगा ? *अत: महाराष्ट्र पब्लिक ट्रस्ट एक्ट की धारा ४१ ए, यही केवल एकमात्र मार्ग है. जो मैने दायर की हुयी वह याचिका है.* जो TBSI को पुर्ववत कर सकता है. दुसरा भी अहं प्रश्न खडा है. *मीराताई आंबेडकर / चंदु (चंद्रबोधी) पाटील / राजरत्न अशोक आंबेडकर उन्होने, सन २००९ से धर्मादाय कार्यालय में, वार्षिक हिशोब सादर नही किया है.* वह तिन अलग अलग वार्षिक हिशोब को, हम कैसे एकसंघ करे ? अब आनलाईन हिशोब देना होता है. तिसरा प्रश्न भी है कि, *स्कीम नियम ४ अंतर्गत, क्या इनकी सदस्यता रद्द की जाए ?* ऐसे बहुत सारे प्रश्न यहां खडे है.

       सन २०२० -२१ की वह घटना होगी. बुलडाणा में आयोजीत *"भारतीय बौध्द महासभा के परिषद"* के लिए,  *मुझे (डॉ. मिलिन्द जीवने)* और मेरे संघटन - सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल की राष्ट्रीय सचिव *दिपाली विजय शंभरकर* इन्हे अतिथी के तौर पर, बुलाया गया था. और मुंबई से TBSI के *अशोक मुकुंदराव आंबेडकर / राजरत्न अशोक आंबेडकर* हम सभी, एक ही गेस्ट हाऊस में ठहरे हुये थे. हम चारो भी अतिथी गेस्ट हाऊस में, एकसाथ आने पर, मैने अशोक आंबेडकर की उपस्थिती में ही, *राजरत्न आंबेडकर* को, मैने प्रश्न किया. राजरत्न, क्या तुम्हे TBSI का ट्रस्टी बनना है ? और उसे मैने TBSI विवाद छुडाने के संदर्भ में, कुछ सुझाव भी दिए. मेरे उस सुझाव पर, *अशोक आंबेडकर पुरे सहमत हुये. और उन्होने राजरत्न आंबेडकर को कहा कि, डॉ. जीवने जी, जो कह रहे है, वैसे तु कर.* राजरत्न आंबेडकर ने भी, तब मेरे विचारों पर अपनी हामी भरी. और नागपुर में, मुझे मिलने की बातें भी हुयी. *चंद्रबोधी पाटील* नागपुर ही रहते है. उनसे भी मेरे घरेलु ही संबंध रहे थे. और TBSI के राष्ट्रीय ट्रस्टी अध्यक्ष *डॉ. पी. जी. ज्योतिकर* जी (गुजरात) का मेरा अच्छा संबंध जुडा था. और ज्योतिकर जी इसके पहले, आंबेडकरी लेखक / चिंतक / समता सैनिक दल के *एड. भगवानदास* जी (नयी दिल्ली) के साथ, मेरे घर आये भी थे. मै स्वयं भी दिल्ली जाने पर, कभी कभी भगवानदास जी से मिला करता था. असम के कार्यक्रम में भी, मैं स्वयं, *भगवानदास* जी / बामसेफ के *डी. के. खापर्डे* हम साथ साथ ही थे. आंबेडकरी लेखक / चिंतक / समता सैनिक दल के *एल. आर. बाली* जी, और मै स्वयं, हम डॉ. आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय, महु के कार्यक्रम में, अतिथी बने साथ साथ उपस्थित थे. परंतु राजरत्न अशोक आंबेडकर, मुझे मिलने को कभी नही आया. और TBSI का विवाद यह विवाद ही रह गया. और आज वे सभी बडे मान्यवर, हमारे बीच नही रहे.

       दि बुध्दीस्ट सोसायटी ऑफ इंडिया इस विवाद में, *एड.‌ प्रकाश‌ आंबेडकर* का बहुत गहरा संबंध है. इस पर चर्चा हम फिर कभी करेंगे. हमारी राजकिय आंबेडकरी धरातल - *"रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया"* से, एड. प्रकाश आंबेडकर बहुत दुर हो गये, कहे या, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जी के प्रती राग / घुस्सा, उन्होने रिपब्लिकन विचारों को तिलांजली देकर, बहुजन‌ महासंघ / वंचित आघाडी यह प्रवास (?) सफल / असफल संदर्भ में, एक संशोधनात्मक विषय है. *८ - १० वर्ष पहले रवि भवन, नागपुर में हुयी, मेरी वह भेट एड. प्रकाश आंबेडकर भुले नही होंगे.* प्रकाश आंबेडकर को तब मैने पुछे गये वे प्रश्न, आज के संदर्भ मे भी वही है. बाबासाहेब आंबेडकर दिन पर, घर पर *"काले झंडे"* लगाना हो, या *"भीमा कोरेगाव"* प्रकरण पर, उनके बहन दामाद *डॉ. आनंद तेलतुंबडे* द्वारा, आंबेडकर दिन पर अरेस्ट होना, यह भी विषय सहज नही है. *"आंबेडकर भवन"* विषय पर, *रत्नाकर गायकवाड प्रकरण* की वकालत नही की सकती. *आंबेडकर भवन* यह बहुमंजली वास्तु बने, और TBSI / SSD / RPI इस आंबेडकरी विचारों का वह केंद्र बने, इन सभी संगठनों के कार्यालय वहां हो, जो विश्व में अच्छा संदेश होगा. *"राजगृह"* यह वास्तु *"राष्ट्रिय स्मारक बनने"* की, सभी जनता की बडी ईच्छा है. हर आदमी बाबासाहेब का घर / स्टडी रूम / बेड रुम आदी देखना चाहते है. *निश्चित ही हम नही चाहते कि, आंबेडकर परिवार बेघर हो...!* महाराष्ट्र शासन से, आप तिनो भाईयों के लिए,  तिन अच्छे बंगले की हम मांग करते है. और हमारी मन से ईच्छा है कि, इस मिशन का आंबेडकर परिवार ही नेतृत्व करे. क्यौ कि, भारत के महान व्यक्ती - मोहनदास गांधी / जवाहरलाल नेहरु / इंदिरा गांधी समान सभी मान्यवरों के निवास, *"राष्ट्रीय स्मारकों"* में परिवर्तीत हो चुके है. उन सभी स्मारकों को देश - विदेश के लोग भेट देते है. आंबेडकर परिवार वह धरोहर निर्माण करे.

        *रिपब्लिकन राजनीति* का नेतृत्व *एड. प्रकाश आंबेडकर* करे, दि *बुध्दीस्ट सोसायटी ऑफ इंडिया* इस धार्मिक राजनीति का नेतृत्व *भीमराव आंबेडकर* करे, *समता सैनिक दल* इस सामाजिक राजनीति का नेतृत्व *आनंदराज आंबेडकर* करे, इस पर हमारा कोई भी हस्ताक्षेप नही है. परंतु आंबेडकर परिवार को, अर्थात *"लहु के वारिसों"* को हम सभी *"भावनाओं के वारिसों"* के साथ, हाथ से हाथ मिलाकर / दिल से दिल मिलाकर / सभी एक साथ मिलकर / वैचारिक मंथन कराकर, चलना बहुत ही जरुरी है. *एकला चलो रे !* इस हुकुमशाही से परे रहना होगा. आज से ३० - ३५ साल पहले, नागपुर के धनवटे रंग मंदिर में, *डॉ. आनंद जीवने* इनकी अध्यक्षता में, *एड. प्रकाश आंबेडकर* का सबसे पहले, हम ने विशाल सत्कार लेकर, आप को हम ने, सामाजिक जीवन में परिचीत करते समय, यही अपेक्षा की थी. उस समय *मैने स्वयं आनंद जीवने भाऊ के कहने पर,* आप का स्वागत किया था. आज भी हम, आप से वही आशा करते है...!!! हमे कोई आंबेडकरी विचारों का मारक ना कहे...!!!!!


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नागपुर, दिनांक १४ नवंबर २०२३

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