Thursday 11 May 2023

 ✒️ *प्रा.‌ डॉ. शशीकांत लोखंडे संपादित डॉ. आंबेडकर - भारतीय संविधान : एक महत्वपुर्ण पुस्तक...!*

   *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल (सी.आर.पी.सी.)

माजी व्हिजीटींग प्रोफेसर, डॉ. आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ, महु (म.प्र.)

मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२


      मुंबई विद्यापीठ के भुतपुर्व व्याख्याता तथा एस. एन. डी. टी. विद्यापीठ के भुतपुर्व मराठी विभाग प्रमुख रहे, आंबेडकरी लेखक एवं मेरे मित्र - *प्रा.‌ डॉ. शशीकांत लोखंडे* द्वारा संपादीत *"डॉ. बी. आर. आंबेडकर : भारतीय संविधान"* यह पुस्तक मुझे पढने को भेजी है. प्रा. डॉ. लोखंडे द्वारा लिखित, बहुत कुछ साहित्य लिखाण प्रकाशित भी है.‌ प्रा. लोखंडे इनसे मेरी पहली भेटं ८ - ९ - १० अक्तुबर १९८७ में, हैदराबाद शहर (आंध्र) में हुयें - *"अखिल भारतीय दलित लेखक सम्मेलन"* में हुयी थी. उस काल में, *"दलित साहित्य"* बहुत उफान पर था. आगे जाकर उसकी जगह *"आंबेडकरी साहित्य"* ने ली. और अब तो हमने, *"बुध्द - आंबेडकरी साहित्य"* की, सत्य बांधिलकी स्वीकार की है. हैदराबाद शहर (आंध्र) के उस परिषद में, भारत के विविध कोने से तथा विदेश से भी, नामचिन साहित्यिक उपस्थित थे. उन कुछ नामांकित नाम का उल्लेख है - *दया पवार, वामन निंबालकर, भि. सि. शिंदे, प्रा. डॉ. शशीकांत लोखंडे, प्र.‌श्री.‌नेरुरकर, इ.मो. नारनवरे, कपुर वासनिक, प्रा. अविनाश डोलस* आदी तथा मैं स्वयं भी उस परिषद में उपस्थित था. अब प्रा. लोखंडे संपादित पुस्तक पर चर्चा करेंगें.

    सविरो प्रकाशन गृह, पालघर मुंबई द्वारा प्रकाशित पुस्तक में, *"भारतीय संविधान"* बनने के पहले घटनाओं का, संविधान सभा के कुछ डिबेट / डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर साहाब के संविधान सभा के कुछ भाषणों का वहां उल्लेख हैं. *२६ नवंबर १९४९* का संविधान सभा के डॉ. आंबेडकर साहाब के भाषण के पश्चात, *"भारत के संविधान"* को स्वीकृती मिली है. और *२६ जनवरी १९५०* को, भारत के संविधान को अमल में लाया गया. अर्थात हम सही अर्थो में, उस दिन से *"प्रजासत्ताक देश"* के नागरिक हुयें है. यह पुस्तक की तिसरी आवृत्ति है. उस पुस्तक में सारांश रुप सें, *"भारतीय संविधान"* को भी वाचकों के लिए / संविधान प्रेमी के लिए, वह लिखा गया है. अत: यह पुस्तक बहुत ही महत्वपुर्ण है.

     *"भारत के संविधान"* का स्वरुप क्या है ? यह भी हमे समझना बहुत ही जरुरी है.‌ *"भारत का संविधान"* यह कोई *"कानुनी किताब"* (Legal Book) नही है. बल्की संविधान यह *"कानुनी दस्तावेज़"* (Legal Documents) है. अत: संविधान को हम *"साहित्य"* के श्रेणी मे नही ले सकते.‌ दुसरी बात हमे *"अधिनियम / कानुन (Act) एवं संहिता / कोड (Code)"* में, विशेष फरक समझना जरुरी है.‌ *अधिनियम / कानुन* - अधिनियम कानुन में अधिनियमित निर्णय है. मौजुदा कानुनों का वह एक समुह ही है. *संहिता / कोड*- नियमों एवं अध्यादेशों का संग्रह है. उदा. - दि इंडियन कंपनीज एक्ट २०१३ / दि इंडियन टोल्स एक्ट १८६४ / दि बाम्बे रिव्हन्यु जुरिस्डिक्शन एक्ट १८७६ / दि कोड ऑफ सिव्हिल प्रोसीजर १९०८ - C.P.C. / क्रिमिनल प्रोसीजर कोड १९७३ - Cr.P.C. / दि महाराष्ट्र लैंड रिव्हन्यु कोड १९६६ आदी... *"भारत का संविधान"* लागु होने पहले का भी इतिहास, हमे समझना बहुत ही जरुरी है.‌ *सन १९१९* में, *"द्वैध शासन"* की शुरुआत हुयी थी. फिर सन १९३५ में, *"भारत सरकार अधिनियम १९३५"* (The Government of India Act 1935) को अस्तित्व में लाया गया था. और *२६ जनवरी १९५०* को, भारत सरकार अधिनियम १९३५ (Act) की जगह, *"भारत के संविधान"* (The Constitution of India) ने अधिकृत रूप से ली. हमे यह भी समझना बहुत जरुरी है कि, *उस नाम* में कही भी *"अधिनियम"* (Act) इस शब्द का उल्लेख नही है.‌ स्वतंत्र *"भारतीय संविधान"* का *अनुच्छेद १* अनुसार हमारे देश‌ का नाम - *"India, that is Bharat"* रखा गया है. अत: *"हिंदुस्तान"* यह शब्द *"असंवैधानिक"* है. तथा संविधान अनुच्छेद १ मे ही, *"भारत यह राज्यों का संघ"* (Union of States) बताया गया है. अर्थात भारत देश‌ यह *"२६ जनवरी १९५०* सें, पुर्णत: स्वतंत्र रूप से - *"सार्वभौमिक-समाजवादी-धर्मनिरपेक्ष - लोकशाही (प्रजातंत्र) देश"* हो गया.

     प्रा. लोखंडे संपादित सदर पुस्तक में, डॉ. आंबेडकर द्वारा दिये गये भाषण पर भी चर्चा करेंगे. सदर "भाषण के संदर्भ (सन १९४९)" आज भी लागु दिखाई देते है. बाबासाहेब आंबेडकर साहाब को, तत्कालिन रुढीवादी नेताओं ने, *"अंग्रेजो का साथी (अंग्रेज सरकार में मंत्री होना - द्वितिय महायुध्द मे उनको मदत करना) / मुस्लिमों का बगलबच्चा (थाट्स ऑफ पाकिस्तान ग्रंथ लिखने के कारण भी रहा) / अराष्ट्रिय (गोलमेज परिषद में स्वतंत्र मतदार संघ की मांग - कांग्रेस विरोध आदी.)"* यह आरोप लगाये गये. हमे यह समझना होगा कि - बाबासाहेब *"अंग्रेज सरकार"* में मंत्री जरुर बने थे. परंतु उन्होने कभी भी उनके जीवन काल में, ना ही उनकी *"हां"* भरी, ना ही उनके शरण में गये. *"दुसरे महायुध्द (१९४२)"* में, उन्होने *"ब्रिटिश के पक्ष मे लढने"* की वकालत की थी. परंतु कांग्रेस ने तिव्र विरोध किया था. उन्होने ब्रिटिश के पक्ष में लढने का कारण, *"जर्मनी के हिटलर - इटली के मुसोलीनी का भारत को धोका"* बताया हुआ, हमें दिखाई देता है. आखिर कांग्रेस दल, ब्रिटिश के पक्ष मे लढाई में खडी हो गयी. *"मुसलमानों का बगलबच्चा"* - इस आरोप के संदर्भ में, उन्होने सन १९४४ में भारत को चेताया था. और परिणाम स्वरूप सन १९४७ में, भारत से पाकिस्तान अलग हुआ. मोहनदास गांधी की मुस्लिम वकालत का इतिहास, यह सब कुछ बयाण करती है. *"अराष्ट्रिय आरोप"*- आंबेडकर जी के बोल है - *"भाषा, प्रांत भेद, संस्कृति आदी भेद नीति मुझे मंजुर नही. प्रथम हिंदी, बाद में हिंदु या मुस्लिम यह विचार भी, मुझे स्वीकार्य नही है. सभी ने प्रथम भारतीय, अंतत: भारतीय, और भारतीयता के आगे कुछ नहीं, यही मेरी धारणा रही है."* (मुंबई - दिनांक १ अप्रैल १९३८) अत: डॉ. बाबासाहेब पर लगे सभी आरोपों को, यह बोल सही उत्तर है.

     छ: साल तक चले, विश्व के सबसे घातक युध्द - *"द्वितिय महायुध्द"* (वह कालखंड १ सितंबर १९३९ से २ सितंबर १९४५ तक) का थोडासा इतिहास भी हमें समझना होगा. *"मित्र राष्ट्र"* की ओर से प्रमुख नेता - जोसेफ स्टेलिन / फैंकलिन डेलोनो रूजवेल्ट / विस्टन चर्चील / चिआंग कोई शेक. *"धुरी (विरोधी) राष्ट्र"* के प्रमुख नेता थे - एडाल्फ हिटलर / बेनीतो मुसोलीनी / हिराहितो. ७० देशों की थल - वायु - जल सेना इस युध्द में सम्मिलीत थी. पाच से सात करोड लोगों की बली चढी. अत: इस घातक युध्द के समय *"मित्र राष्ट्र"* के पक्ष में रहने का, बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर का सुझाव था. *"भारत की आजादी"* भी, उस युध्द के समाप्ति बाद तय होना लाजमी थी. परंतु *कांग्रेसी दल एवं मोहनदास गांधी* की अदूरदर्शी भाव, हमे यहां नजर आता है. उस युध्द में, *"मित्र राष्ट्रों"* की जीत हुयी. *हिटलर - मुसोलीनी* का अंत. और युध्द परिणाम स्वरुप *"संयुक्त राष्ट्र"* का निर्माण भी. परंतु यहां अहं सवाल उठता है कि, *"भारत को आजादी, द्वितिय महायुध्द समाप्ति - १९४५ के बाद, क्यौं नही मिल पायी ?"* उसके लिए हमे *"१५ अगस्त १९४७"* तक, क्यौं इंतजार करना पडा ? इस पर चर्चा, हम फिर कभी करेंगे.

     प्रा. लोखंडे संपादित संविधान पुस्तक में, बाबासाहेब आंबेडकर पर लगे और भी अन्य आरोप बताया है कि - *"भारत के संविधान यह तो केंद्रीयकरण होकर, राज्यों की स्थिती म्युनिसिपालिटी समान हो गयी."* डॉ. आंबेडकर साहाब ने *"संविधान सभा"* में, इस आरोप प्रश्न के उत्तर में स्पष्ट कहा है कि - *"कानुन बनाने का अधिकार, यह केंद्र सरकार एवं राज्यों सरकारों में विभाजीत है. और यह विभाजन केंद्र सरकार द्वारा ना होकर, संविधान द्वारा निहित है. अर्थात राज्यों को, केंद्र के अधिन रखा गया नही है."* केंद्र - राज्य अधिकारों पर, और एक आरोप है कि, *"केंद्र सरकार ने, राज्य सरकार पर अतिक्रमण किया गया है."* इस आरोप को स्वीकृती देते हुयें, डॉ. आंबेडकर कहते है कि, *"यह जादा अधिकार, संविधान का सर्वसामान्य अंग है. केवल इमरजेंसी में ही, यह अधिकार केंद्र के पास होंगे. अन्यथा नही."* आगे डॉ. आंबेडकर कहते है कि, *"जब राष्ट्र एक होगा, तब ही हम बंधुत्व की भावना को अर्थ प्राप्त होगा."* एवं *"न्यायालय"* को भी, *"केवल कानुन में, दुरूस्ती करने का ही अधिकार दिया गया है. कानुन बनाने का अधिकार नही."*

      प्रा. लोखंडे संपादित संविधान पुस्तक में, बाबासाहेब  डॉ. आंबेडकर के *"संविधान सभा"* के भाषण होने से, संविधान सभा में उन पर लगे विभिन्न आरोप - संविधान बनाने में *"२ वर्ष ११ महिने १७ दिन"* के भी, उत्तर दिखाई देते हैं. संविधान सभा में उठायी गयी *७६३५ आपत्तीयां* (उपसुचना) तथा उनमें से *२४७३ का स्वीकृती* भी वहां जिक्र है. संविधान सभा की हुयी पहिली मिटिंग से लेकर, अंतिम मिटिंग का जिक्र भी है. वही प्रा. लोखंडे संपादित संविधान पुस्तक में, प्रस्तावना और बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर के कुछ मराठी भाषांतर में, *"हिंदुस्तान"* इस शब्द का प्रयोग किया हुआ दिखाई देता है. अगले *"चवथी आवृत्ति"* में, वह सुधार होना जरूरी है. बाबासाहेब आंबेडकर साहेब ने, *"भारत के संविधान"* के अनुच्छेद १ में, स्पष्टत: लिखा है कि, हमारे देश का नाम यह *"इंडिया, दैट इज भारत"* कहा है. और भी एक सुधार करना जरुरी है. बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर जी के अंग्रेजी मुल भाषण मराठी अनुवाद में, कुछ भाषांतर अंश लिखना छुट गया है. बाकी सभी संदर्भ ठिक है. अंत में बाबासाहेब आंबेडकर साहाब ने, संविधान डिबेट में *कुछ विदेशी मान्यवरों* के बोल बताये है. उसे कोट करते हुयें, मेरे विश्लेषण को विराम दुंगा. क्यौं कि, वह बोल बहुत ही महत्वपुर्ण है.

* *"सत्ता किसे सौंपना बहुत ही आसान है. शहाणपण (होशियारी) सिखाना बहुत ही कठिण है."* (बर्क)

* *"स्वाभिमान की बली देकर, कोई भी व्यक्ति कृतज्ञ नही हो सकता. शील की बली देकर, कोई भी स्त्री कृतज्ञ नही हो सकती. आजादी का बली देकर, कोई भी राष्ट्र कृतज्ञ नही हो सकता."* (डैनिअल ओकोनेल)

* *"हममें सें कोई भी व्यक्ति, कितना भी बडा क्यौ ना हो. परंतु उसके चरण में, अपने व्यक्ति स्वतंत्र को झुकने देना नही चाहिए."* (जॉन स्टुअर्ट)

* *"पृथ्वी पर सत्ता चलाने का अधिकार, केवल मृत व्यक्ति को है. जिवीत व्यक्ति को नही !"* (जेफरसन)


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* *डॉ.‌ मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर १७

        (भारत राष्ट्रवाद समर्थक)

नागपुर, दिनांक ११ मई २०२३

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