Thursday 7 July 2022

 🎓 *सर्वोच्च न्यायालय के दो न्यायाधीशों पर संस्कृती ना-लायकों का तिव्र हमला वार : एक चिंतन...!*

  *डाॅ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर १७

 मो.न. ९३७०९८४१३८ ‌/ ९२२५२२६९२२

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल


     मंहमद पैंगंबर इनके संदर्भ में, भाजपा की राष्ट्रिय प्रवक्ता *नुपुर शर्मा* के अनैतिक बयाण पर, मा. सर्वोच्च न्यायालय के *न्या. सुर्यकांत / न्या. जे. बी. परडीवाला* इनके खंडपीठ ने, गंभिरता से लेते हुये‌ नूपुर शर्मा को उसकी औकात दिखा दी. राष्ट्र से बढकर कोई व्यक्ति नही होता. *भारतीय संविधान"* यह सर्वोच्च है. देश‌ की शांती और अमन का खयाल रखना चाहिये. उसकी मर्यादा रखते हुये, उस पर चलने का हमे संदर्भ माननीय न्यायामुर्ती महोदया ने बता दिया. और वह न्यायालय संदर्भ, ऐतिहासीक दृष्टीकोन से महत्वपुर्ण भी है. परंतु संस्कृती संविधान के ना-लायक / रुढ़िवादी - तथाकथित *"१५ माजी न्यायाधीश / ७७ माजी सनदी अधिकारी / २५ माजी सैनिक अधिकारी एवं विचारविद महाशयो ने,"* भारत के सरन्यायाधीश को एक चिठ्ठी लिखकर, उन दो मा. न्यायाधीशों के उस निर्णय का, कडा विरोध किया है. अब सवाल यह है कि, *"उन ना-लायक संस्कृती संविधान वादीयों के विरोध में, भारत संविधान संस्कृती के सुधारवादी उठ खडे होंगे या नही ? इट का उत्तर पत्थर से देंगे या नही ?"* और यह आज की आगाज भी है.

     संस्कृती संविधान के उन तथाकथित विचारविदों ने, मा. सर्वोच्च न्यायालय के उन दो विद्वान न्यायाधीशों पर, नूपुर शर्मा मामलें में *"लक्ष्मण रेखा पार करने का"* यह गंभिर आरोप लगाया है. तथा उन दो न्यायाधीशों द्वारा नूपुर शर्मा संदर्भ में, न्यायालय द्वारा किया गया *"मतप्रदर्शन यह दुर्दैवी तथा न्याय परंपराओं से विपरीत"* बताया है. वह विचार न्यायालयों का भाग हो ही नही सकता, यह भी कहां है. अर्थात *"उन दो न्यायाधीशों द्वारा सर्वोच्च न्यायालय का पावित्र भंग करने का भी, आरोप लगाया है...!"* अब हम यहां, मा. उच्च / सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गये, *"कई विवादपुर्ण तथा दोषपुर्ण निर्णय"* दोहरा सकते है...! परंतु लेख की मर्यादा देखते हुये, केवल हम *"रामजन्मभूमी प्रकरण"* संदर्भ पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय पर चर्चा करेंगे. *"क्या उस जजमेंट में मेरीट दिखाई देता है ? क्या कोई प्रायमा फेसी प्रमाण है ?"* उस समय यह ना-लायक महावीर (?), कौन से बिल में छुपे हुये थे ? मैने सर्वोच्च न्यायालय के, उस निर्णय के विरोध में, एक लेख भी लिखा था. जब की, *उस समय मा. सर्वोच्च न्यायालय उस निर्णय पर, भारत भर में बहुत बवाल भी मचा था.* क्या नूपुर शर्मा को केवल बचाना, यह देश का अहं विषय हो सकता है ? यह प्रश्न है. क्यौं कि, हमारे सामने बहुत से ज्वलंत प्रश्न है.

    हमे यह समझना होगा कि, *"स्वातंत्र / आजादी याने स्वैराचार नही. समता याने व्यभिचार नही."* भारत की राजनीति लो या, सत्तानीति ने भी कभी *"राष्ट्र विकास"* को अहमता दी ही नही. हमारी राजनीति / सत्तानीति, यह केवल *"देववाद / धर्मवाद / जातवाद / स्व-कल्याणवाद"* इन चक्रव्युह में, घुमती नज़र आती है. यही कारण है कि, भारत आजादी के इन ७५ सालों में, *"भारत राष्ट्रवाद"* यह विचार हो या, *"भारतीयत्व"* यह भावना कभी पनपी ही नही. भारत की अर्थव्यवस्था ने आज तक, *"विकास भारत - समृध्द भारत - समता भारत - अपना भारत"* इन विषयों को, कभी छुआ ही नही. ना ही हमारी *"न्यायव्यवस्था"* ने, *"वॉच डॉग"* के रूप में अपना दायित्व सही रुप में निभाया है. अब सवाल है, *"क्या हमारे सुधारवादी मान्यवरों, इस गंभिर विषय पर आगे आयेंगे ? अपना तिव्र विरोध जतायेंगे ?"* हमारे अपने भारत की गरिमा बचाने के लिए...!!!


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(नागपुर, दिनांक ७ जुलै २०२२)

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