Wednesday 24 March 2021

 🇮🇳 *इंदिरा गांधी के आपात इमरजंसी से लेकर नरेन्द्र मोदी के कोरोना इमरजंसी तक....!!!*

         *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर १७

        राष्ट्रीय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल

         मो. न. ९३७०९८४१३८ , ९२२५२२६९२२


         भारत के इतिहास में *"इमरजंसी"* यह शब्द, बडा ही बदनामीकारक रहा है. वही भारतीय नागरिकों के प्रदत्त अधिकारों के खुले हनन से लेकर, भारतीय (?) सत्ताधारीयों द्वारा *"भारतीय संविधान "* की धज्जियां भी उडाने में, कोई कसर नही छोडी गयी. उस आपात काल में, कभी कभी नागरिकों को सेंट्रल जेल की हवा भी खानी पडी. चाहें वह जेल, अपने ही घर में रहना हो...! और *"पुलिस एवं प्रशासन"* की मदमर्जी को, *"तब और अब"* क्या कहना....? वही उस *"इमरजंसी"* काल में मनमौजी भी, अपने हाथ धो लेते है. चाहे वह *"मनमौजी"* महाशय, वे भारत के सत्तावादी दल हो या, प्रशासन / पुलिस हो या, बिघडेल संताने भी हो या, ये बदनाम (?) चड्डीधारी संघवादी हो...!!!

       भारत सरकार ( आरोग्य मंत्रालय) के २० मार्च २०२१ का रिपोर्ट कहता है कि, समस्त भारत में आज ४०, ९५३ कोरोना पेशंट का निदान हुआ है. और कुल कोरोना पेशंट की संख्या *" एक करोड १५ लाख २८४"* बताई गयी. भारत की कुल आबादी *"३५ करोड"* को मान लिया जाए तो, भारत में *"कोरोना का प्रतिशत यह ३.३० % है."* अर्थात यह कोई चिंता का विषय दिखाई नही देता. वही हम *"पिछले पांच साल का मृत्यु दर"* को भी देखें तो, सन २०१७ (७.२४२%), सन २०१८ (७.२३७%), सन २०१९ (७.२७३%), सन २०२० (७.३०९%) और सन २०२१ (७.३४४) हमे भारत सरकार के रिपोर्ट के आधार पर दिखाई देते है. अर्थात भारत का पिछले पांच साल का मृत्यु दर, हमें कांस्टंट दिखाई देता है. अर्थात उस पिछले पांच साल के मृत्यु दर में, हमे *"साधारण / नियमित मरनेवाले, अपघात से मरनेवाले और टी.बी., हार्ट अटैक समान अन्य बिमारी से मरनेवाले"* को भी, उस में सलग्न किया गया दिखाई देता है. तो फिर भारत में, *"सन २०२० तथा सन २०२१ में कोरोना से मरनेवालों का, सही प्रमाण क्या है...???"*  वह प्रतिशत हमे १.००% भी दिखाई नहीं देता....!!! फिर भारत सरकार कोरोना व्हायरस से, *"मरनेवालों की कुल संख्या १ लाख ५९ हजार ५५८"* यह, किस आधार पर बता रही है. अर्थात भारत सरकार के आकडों के अनुसार *"कोरोना का मृत्यु दर १.३८%"* बताया जाता है. भारत का पिछले पांच सालों का मृत्यु दर को देखे तो, *"कोरोना का मृत्यु दर"* यह एक बडा छलावा है. एक बडा अंतरराष्ट्रिय षडयंत्र है. और *कोरोना का मृत्यु दर यह १.३८% मान भी लिया जाए तो, वह एक बहुत साधारण सी बात है.* वही भारत सरकार *"कोरोना का रिकव्हरी दर, यह ९६.१२%"* बता रही है...! फिर *"कोरोना डर / कोरोना फोबीया"* फैलाने की, भारत सरकार हो या कोई राज्य सरकार हो, इन्हे जरूरत क्या है...???

      *"राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ"* (RSS) द्वारा अभी अभी बेंगलुरू में, *"अखिल भारतीय प्रतिनिधी सभा"* का, सफल आयोजन किया गया है. मिडिया ने उसे बहुत अच्छी कव्हरेज दी. वही उस राष्ट्रीय सभा में, भय्याजी जोशी को "सरकार्यवाह" इस पद से रिटायरमेंट देकर, दक्षिण के युवा *दत्तात्रय होसबळे* को, संघ का नया *"सरकार्यवाह"* बनाया गया है. अर्थात वे भविष्य में संघ के, मुखिया भी हो सकते है...!!! वास्तव मे १२०० से भी जादा पदाधिकारीयों के, उपस्थिती वाली वह राष्ट्रीय सभा, नागपुर में होना तय थी. परंतु कोरोना का कारण वह बेंगलुरू को लेना, यह भी सामान्य लोगों के लिए, समझ से परा विषय है. उधर *पश्चिम बंगाल / असम* में, "विधान सभा चुनाव" का तुफान माहोल चल रहा है. नरेंद्र मोदी से लेकर, ममता बैनर्जी / राहुल गांधी आदी नेताओं की लाखों की रैलीया तुफान पर है. *परंतु वहा कोरोना का, कोई गंभीर असर दिखाई नही देता...!* वही महाराष्ट्र में भा.द.वी. १४४ धारा से लेकर, *"कोरोना इमरजंसी "* का कडाई से पालन किया जा रहा है. पांच से जादा लोग, एक जगह इकठ्ठा होने पर पाबंदी है. उधर संघवाद की राष्ट्रीय सभा का, सफल आयोजन हो चुका है. वहा भी कोरोना पुरी तरह गायब है. *"परंतु भारत के तमाम न्यायालय / कार्यालय / उद्योग - व्यापार प्रतिष्ठान / माल / बाजार आदीयों पर, कोरोना की तिव्र काली छाया बताई जा रही है....!"* बेकारी छायी जा रही है. वही पेट में चुहे, दंड बैठके मार रहे है. पर सरकार को क्या...??? इतने बुरे हालात में, केंद्र हो या राज्य सरकार ने कोई आर्थिक प्रावधान नही किया. जैसे अमेरिका हो या अन्य देश ने, अपने आवाम के लिए किये है/ थे./अर्थात भारत के संदर्भ में, इसे एक कहावत में भी कह सकते है - *"अंधेर नगरी, और ........(?) राजा....!!!"*

      भारत में आज कल हमारे सरकार द्वारा, *"कोरोना व्हेक्सीन"* का, बडा ही माहोल बनाया जा रहा है. वही कुछ मिडिया द्वारा, "कोरोना व्हेक्सीन" के उपयोगिता पर, निगेटिव्ह इफेक्ट की बडी गरम चर्चा, बहोत जोरो शोरों पर है. वही *डेन्मार्क, आइसलैंड, एस्टोनिया, लिथुआनिया, लक्झमबर्ग, लातविया, आस्ट्रिया* इन देशों ने भी, ऑक्सफर्ड - एस्ट्रोजेन नामक घातक *"व्हेक्सीन से होनेवाले टिकाकरण को, निलंबित (Suspend) कर देने की"* चर्चाएं, बहुत जोरो पर है. *युरोप* में इस घातक बिमारी एवं व्हेक्सीन पर, कुछ सवाल उठने जाने की भी बातें, बडी चर्चा मे है.  वही *"इंडिया स्पेंड"* मे, छपे एक लेख के अनुसार, *"मोदी सरकार कोरोना से / व्हेक्सीन से, तथाकथित (?) होनेवाले विनाश पर, किसी भी प्रकार की जांच नही करने की, एक खबर व्हायरल हो चुकी है. ...!"* इतना ही नहीं, *"इटली ने मृत कोरोना मरीज का पोष्टमार्टम"* कराने की बांतें, हमे सुनाई देती है. और कहा गया है कि, *"इटली, यह विश्व का पहला देश बन गया है, जिसने एक कोविड - १९ मृत शरिर का पोस्टमार्टम किया है. जहां व्यापक जांच करने पर, वहां कोरोना वायरस नजर नहीं आया. जो लोग असल में मर रहे है, वे "ऐमप्लीफाईड ग्लोबल ५जी, मेगनेटिक रेडिऐशन (जहर)" के कारण मर रहे है....!"* यह भी कहा गया कि, इटली के डॉक्टरों ने अपने रिस्क पर, *"विश्व स्वास्थ संघठन (WHO)"*  के नियमों का, पुरेपुर उल्लंघन करते हुये. जो कि करोना व्हायरस से मरनेवालों के मृत शरिर पर, आटोप्सी (पोष्टमार्टम) कराने की इजाजत नही देता, और यह बातें मिडिया में चर्चा में है. *"WHO यह विश्व आरोग्य संघटन, कथित कोरोना रुग्न की, आटोप्सी / बायोप्सी कराने की इजाजत क्यौ नही देता...???"*  यह बहुत बडा प्रश्न है. और बगैर आटोप्सी / बायोप्सी - किये बिना, कोरोना होने का निदान, कैसे कन्फर्म माना जा सकता है...? यह भी एक बडा प्रश्न है. क्यौ कि, *"कोरोना स्वाब टेस्ट" इसे तो हम केवल "प्राथमिक निदान" कह सकते है. "Confirm निदान कभी नहीं...!!!"* क्या इसके पिछे, कुछ *"भांडवलवादी लोगों"* का, कोई बहुत बडा आतंरराष्ट्रीय षडयंत्र तो नही...?

     आज कल की *"नरेंद्र मोदी की कोरोना इमरजंसी"* को देखकर, मुझे भारत की शक्तीशाली मानी गयी, तत्कालीन प्रधानमन्त्री *"इंदिरा गांधी की आपात इमरजंसी"* की बहुत याद आ रही है. *"जब बहुसंख्य उच्च वर्णिय खुरापती नेता लोग, जेलों में बंद कर दिये थे...!"* उस आपात काल का सामान्य लोगों पर, उतना गंभिर असर नही दिखाई दिया. इंदिरा गांधी ने २५ जुन १९७५ को *"आपातकाल (Emergency)"* की घोषणा की. जो २१ मार्च १९७७ तक २१ महिने चली. यह आपातकाल *"भारतीय संविधान की धारा ३५२ के अधिन,"* तत्कालीन राष्ट्रपती *फक्रुद्दीन अली अहमद* इन्होने लागु करने पर हस्ताक्षर किये थे. यहां महत्व का विषय यह है कि, *" नरेंद्र मोदी की दिनांक २२ मार्च २०२० से लादी गयी "कोरोना इमरजंसी," यह भारतीय संविधान की धारा ३५२ के अधिन बिलकुल नही है...!"* फिर भी इंदीरा गांधी के *"आपात इमरजंसी"* से, नरेन्द्र मोदी की *"कोरोना इमरजंसी"* बहुत ही खतरनाक, हमे दिखाई दे रही है. यहां "नेता लोगों" को जिना, उतना दुर्धर नही दिखाई देता, जितना की *"सामान्य आवाम"* उसे झेल रही है.

        तत्कालीन प्रधानमन्त्री इंदिरा गांधी द्वारा भारत में आपातकाल (Emergency) लगाने के, बहुत कुछ महत्वपुर्ण कारण माने जाते है. उसमें से एक प्रमुख कारण है, *"कांग्रेस में इंदिरा गांधी एवं सवर्णों वर्गों के बिच, उभरा हुआ सत्ता विवाद...!"* तब चित्पावन ब्राह्मणों के साथ, सभी ब्राम्हण वर्ग एक तरफ हो गये. और इंदिरा गांधी अकेली पडी....! इंदिरा गांधी ने तब, मागासवर्गीय वर्गों को खुश करने के लिए, *"उच्च वर्गिय जमिनदारों की अतिरिक्त जमिन छिनने की घोषणा की. और घोषणा की थी कि, आज से सभी जाती, धर्म, समुदाय के लोग बराबर है. कोई छोटा नही. कोई उच्च नही."* महत्वपुर्ण बात यह कि, तब देश के ८०% जमिन पर, ब्राम्हण / सवर्ण का एकाधिकार था. जो जमिन मागासवर्ग से ठगी कर, सवर्णो द्वारा हथिया लिया गया था. इस कारण सवर्ण वर्ग कांग्रेस से दुर हो गया. और मागासवर्गीय कांग्रेस के साथ जुड गया. वही कांग्रेस दो गटों में विभक्त हो गयी. आगे जाकर RSS  के माध्यम से *"जनता पार्टी"* का जन्म हुआ. परंतु कुछ मागासवर्गीय नेता बहककर, जनता पार्टी के साथ जुड गये. *बाबु जगजीवन राम* को प्रधानमन्त्री पद का उम्मीदवार घोषित कर, राजनीति खेली गयी. परंतु चुनाव होने के पश्चात, जगजीवन राम कभी प्रधानमन्त्री बने ही नही...! *मोरारजी देसाई* नामक उच्च वर्गिय, यह देश का प्रधानमन्त्री बना. *"मागासवर्गीय के साथ किया गया यह धोका, आज भी निरंतर उच्च वर्णिय द्वारा होता आया है...!"* फिर भी मागासवर्गीय समाज यह राजनीति समझता ना हो तो, इसे हम क्या कहे...?

       *"कोरोना व्हायरस - कोविड १९"* के कारण, समस्त विश्व की अर्थव्यवस्था खस्ताहाल हुयी है. यह भी चर्चा का विषय है कि, *"अमेरिका के वर्चस्ववादी ज्यु लोगों का "झिओनिस्ट समुह" ही, कोरोना व्हायरस फैलाने के पिछे है...!"* अर्थात कोरोना व्हायरस यह कुछ नही है, बल्की यह एक *"झियोनिस्ट कांस्पिरसी"* है. तथा कहा जाता है कि, रॉकफेलर, बिल गेट्स समान झियोनिस्ट का, इस तथाकथित बिमारी फैलाने के पिछे हात है. क्यौं कि, अमरीकी राजनीति, प्रशासन, मिडिया, उद्दोग - व्यापार, आय.एम.एफ. (इंटरनेशनल मानेटरी फंड), वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन, वर्ल्ड बैंक, फेडरल रिझर्व, युरोपिअन सेंट्रल बैंक एवं युनो आदी संघटन पर, झियोनिस्ट अमरीकी का पुर्ण नियंत्रण है. *"झियोनिस्ट अमरीका के प्रभाव से, भारत में LPG / SEZ / FDI समान पालिसी लागु कराने का आरोप है...!"* भारत का प्रधानमन्त्री कौन बनेगा, यह भी अमेरिका तय करती है. कोरोना उच्चाटन के नाम पर, *"वर्ल्ड बैंक"* से करोडो का निधी भारत ने उठाया है. विश्व में भारत यह कर्ज उठानेवाले देश में सामिल है. दुसरे अर्थ में कहा जाएं तो, *"भारत यह विकसीत देश (Developed Country) नही हैं. वो तो विकसनशील देश (Under Developed Country) है...!"* चक्रवर्ती सम्राट अशोक के काल में, भारत यह *"विकसीत देश"* था. परंतु ब्राम्हणी षडयंत्र से, चक्रवर्ती सम्राट अशोक का आखरी वंशज ब्रहदत्त की हत्या, *ब्राम्हण सेनापती पुष्ष्यमित्र शुंग* ने कर, भारत को गुलामी के दलदल में झोक दिया. आगे जाकर *"अखंड विशालकाय भारत"* को, खंड खंड कर गुलाम बनाया गया. *"आज उसी शुंग ब्राह्मणों कें वंशज ही, भारत की  बरबाद कर रहे है. भारत को गुलाम बना रहे है. नरेंद्र मोदी, यह तो केवल एक मुखवटा है...!!!"* नरेंद्र मोदी पुरस्कृत *"कोरोना इमरजंसी "* यह उसकी एक कडी है.

     कोरोना व्हायरस संक्रमण काल में, *"अयोध्या राम मंदिर शिलाण्यास / भविष्य में मथुरा का कृष्ण मंदिर आंदोलन / जगन्नाथपुरी रथ यात्रा / शबरी माला मंदिर का खोलना / अभी अभी बैंगलुरू में RSS का सफल हुआ अधिवेशन आदी घटनाएं किस बात की ओर इशारा करती है....?"* भारत की अर्थव्यवस्था पुर्णत: खस्ताहाल करना, बेरोज़गारी की ओर ढकेलना / भुखमरी स्थिती को पैदा करना / समस्त सरकारी कंपनियों का खाजगीकरण करना आदी सभी बातें, *"प्रजातंत्र व्यवस्था"* को खत्म कर, *"भांडवलशाही व्यवस्था"*   की ओर जाने का संकेत है. अर्थात भारत में भविष्य में पुनश्च, *" आर्थिक / धार्मीक / सामाजिक गुलामी"* लादना, इस ओर इशारा करती है. महत्वपुर्ण विषय यह कि, हमारी बहुसंख्यक भारतीय जनता यह *"देववाद / धर्मांधवाद"* का गुलाम है. और उस कारण वे लोग मंदिरो में, करोडों का चढावा देती आयी है. *"आज भारत के समस्त मंदिरो की अर्थव्यवस्था पर, ब्राम्हणशाही का अधिपत्य है. और भारत के आर्थिक बजेट के चार गुणा जादा बजेट, उन सभी मंदिरो का है ...!"* अगर उन मंदिरो का *"राष्ट्रीयकरण"* कर, वो समस्त अतिरिक्त पैसा, अगर भारत सरकार के अधिपत्य आता हो तो, भारत की आर्थिक व्यवस्था सशक्त हो सकती है. बेकारी / भुखमरी / महंगाई आदी दुर हो सकती है. *"वही बात खेती के संदर्भ में है...!"* 

      खेती करनेवाला किसान आज कर्जबाजारी दिखाई देता है. आत्महत्या कर रहा है. खेती से उतना उत्पन्न नही निकलता, जितना निकलना चाहिये. इस लिये भारत के संविधान निर्माता डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने, *"सामुहिक खेती"* (Collective Farming) की बात कही थी. सभी ने मिलकर काम करते हुये, होनेवाला उत्पन्न सभी ने मिलकर बाटंने की बात कही थी. खेती को *"उद्दोग"* (,Industry) का दर्जा देने की बात कही थी. भारत के तमाम उद्योगों का (Industries) का *"राष्ट्रीयकरण"* हो. ता कि भारत में सही अर्थों में, प्रजा का शासन - *"प्रजातंत्र"* (Democracy) बना रहे, *"भांडवलशाही"* (Capitalisation) नहीं...!  परंतु भारत प्रशासन, ना ही उस दिशा में पहल करेगा, और ना ही हमारी न्याय व्यवस्था, उसमे कोई दिलचस्पी लेगी. क्यौं कि, उन्हे सत्ता में / प्रशासन में / नोकरशाही में / न्याय व्यवस्था में अपना अधिपत्य कायम रखना है. *"सर्वोच्च न्यायालय "* यह सर्वोच्च या न्यायवादी ना होकर, *"सवर्ण न्यायालय"* बना हमे दिखाई देता है. न्यायालय में अधिकांश ब्राम्हण वर्ग का भरना हें. तो सामान्य वर्ग को न्याय कैसे मिलेगा....?  सर्वोच्च न्यायालय के एक भुतपुर्व ब्राम्हण न्यायाधीश, एक बात बिलकुल सही कह गये है कि, *"न्यायालय से सच्चे न्याय की अपेक्षा करना बेमानी है...!"*

    अंत में, मै कुछ महत्वपुर्ण बिंदुओ पर, आप का लक्ष केंद्रित करना चाहुंगा. नरेंद्र मोदी सरकार ने, न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ती करनेवाला *"कालोजीयम"* को हटाकर, *"लोक सेवा आयोग"* (Public Service Commission" के समान ही, भारतीय संविधान की धारा १२४अ - के तहत,  *"National Judicial Appointment Commission "* नियुक्ती की, एक अच्छी पहल की थी. ता कि, न्यायाधीश नियुक्ती की सर्वोच्य न्यायालय की मनमानी रोकी जा सके. परंतु वह अमलं मे लाने की, नरेंद्र मोदी की इच्छाशक्ती, हवा में गूल हो गयी. शायद सर्वोच्च न्यायालय की तडजोड से, नरेंद्र मोदी खुश हो...!!! *"परंतु न्यायालय में सभी जाती विशेष की अनुपात में, न्यायाधीशों की नियुक्ती ना होना, यह बहुत बडा चिंता का विषय है....!"* दुसरा महत्वपुर्ण विषय है, *"IAS कैडर में बगैर UPSC पास तथा उद्दोग क्षेत्र से दगाबाजी / घुसखोरी करनेवाले व्यक्तियों की नियुक्ती...!"* अब हमारे देश का क्या होगा...??? हमारा देश यह *"पूंजीवाद"*  (Capitalism) की ओर बढना, अब तय है...! परंतु शर्म की बात यह है कि, सर्वोच्च न्यायालय खामोश है. सर्वोच्च न्यायालय ने, स्वयं होकर तत्काल *" जनहीत याचिका"* दायर कर, भारत सरकार को नोटीस क्यौं नही भेजी...??? फिर भारतीय संविधान द्वारा अपेक्षीत, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा *"Watch Dog"* इस भुमिका क्या...???

      मित्रो, उसके अलावा और भी तिन बिंदु बहुत ही महत्वपुर्ण है. भारतीय संविधान की धारा १४ - Rights of Equality / धारा १९ - Rights of Freedom के तहत, हमे Fundamental Rights मिले है. परंतु डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर भारतीय संविधान में, और दो अधिकार जोडना चाहते थे. वे अधिकार है - Rights of Education / Rights of Employment.....! *"हमे शिक्षा (Education) का अधिकार तो मिला. परंतु शिक्षा के खाजगीकरण / व्यवसायीकरण से,"* सामान्य नागरिक यह अपने बच्चों को उच्च / उत्तम शिक्षा देने में, असफल महसुस कर रहा है. परंतु *"Rights of Employment"* यह अधिकार डॉ. आंबेडकर *"भारतीय संविधान "* में नही जोड पाये...! और इसके पिछे की राजनीति भी, हमें समझना होगी. डॉ. बाबासाहेब आंबेडकरांनी इन्होने सन १९३२ में, *"लोकसंख्या नियंत्रण"* की पहल कर, रोहन दादा के माध्यम से हाऊस में बिल लाने की पेशकश की...! परंतु तत्कालीन धर्मांधीवादीयों ने, इस बिल का विरोध किया. और आज हम, उन धर्मिंधीयों के ""पाप का फल" भोग रहे है. उपर से वे "ना-लायक भारत के *"देशभक्त"* भी बन बैठे है. इसके अलावा *"भारत देशभक्ती जगाने"* की पहल का भी है...!

        भारत में, आझादी के इस ७० साल में *" भारत राष्ट्रवाद"* को, यहां कभी तवज्जो ही नही दी गयी. बस, *"देववाद / धर्मांधवाद"* इसी के ही सहारे, भारतीय राजकारण खेला गया. डॉ. आंबेडकर ने कहा है, *"मै प्रथम भारतीय हुं, अंतत: मै भारतीय हुं, और भारतीयता बिना कुछ नहीं...!"* शर्म की बात यह कि, देशभक्ती जगानेवाला , *"भारत राष्ट्रवाद मंत्रालय एवं संचालनालय"* कभी बना ही नही....! ना ही, भारतीय बजेट में, इसके लिए कोई प्रावधान....!!! फिर वह सत्ता राज, चाहे वो कांग्रेस का हो या, भाजपा का हो या, या लालशाही कम्युनिस्टों कां....! हमारी सर्वोच्च न्यायालय भी, इससे कभी अछुती नहीं रहीं. अर्थात ये लोग कभी देशभक्त रहे ही नहीं. केवल और केवल, भारत को बेचनेवाले *"दलाल"* है. इनसे हमारे देश की, वो वेश्या एवं तृतीयपंथी - छक्के अच्छे है. वे अपना पेशा बडी इमानदारी / कर्तव्य से पुरा करते है. *"अर्थात इन सत्तावादी /प्रशासन / अन्य व्यवस्था धारीयों को, वेश्या / छक्का कहना भी, उस वेश्या / छक्का वर्ग की तोहिम होगी...!!!"* फिर ये सवाल *"कोरोना इमरजंसी"* का भी, क्यौं ना हो...? इनमें ईमानदारी / वफादारी / कर्तव्य निष्ठा / देशभक्ती कहां है....???


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* *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर १७

         (भारत राष्ट्रवाद के प्रेरक)

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल

मो.न. ९३७०९८४१३८ / ९२२५२२६९२२

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