Wednesday, 12 February 2025

 🇮🇳 *गोवर्धन पीठ पुरी (ओरिसा) शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती क्या भारत के सरन्यायाधीश है ?* (संविधान संस्कृति बनाम संस्कृति संविधान संघर्ष मे, भारत सरकार का मौन हमें क्या जता रहा है ?)

   *डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल 

एक्स व्हिजिटिंग प्रोफेसर, डॉ बी आर आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ महु म प्र 

मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२


         दो दिन पहले, बद्रीनाथ (उत्तराखंड) के *ज्योतिर्मठ पीठ शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद* इनके, टाईस नाऊ - नवभारत द्वारा ली गयी मुलाखत - *"भारत संविधान और धर्म शास्त्र"* विवादित बयाण पर, मैने एक लेख लिखकर उस पर कुछ चर्चा की है. वही अब जगन्नाथ पुरी (ओरिसा) के *"गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य"  स्वामी निश्चलानंद सरस्वती* इनका भी एक विवादित बयाण, स्वयं को *"न्यायाधीश"* कहना, हमें दिखाई दिया. गुलाम भारत में, २६ जनवरी १९५० को *"भारत का संविधान"* लागु होने के बाद, *"प्रजासत्ताक भारत"* यह *"संविधान संस्कृति"* की ओर जा रहा था. धर्मांंधी राजनीति ने *"संस्कृति संविधान"* की ओर रुख करते हुये, प्रजासत्ताक भारत के *"संविधान संस्कृति"* की मजबुत जड़े हिलाना शुरु किया. अत: अब प्रजासत्ताक *"संविधान संस्कृति"* पर, धर्मांधी शक्ती द्वारा, गंभीर खतरा मंडराते हुये दिखने लगा है .दुसरे अर्थो में *"चार पीठों के शंकराचार्य"* - श्रृंगेरी पीठ, रामेश्वरम् केरल (यजुर्वेद) / शारदा पीठ, द्वारका गुजरात (सामवेद) / ज्योतिर्मठ, बद्रीनाथ उत्तराखंड (अथर्ववेद) / गोवर्धन पीठ, पुरी ओरिसा (ऋग्वेद) यह ब्राह्मणी पीठ, प्रजातंत्र भारत के *"संविधान"* को स्वीकार्ह नहीं मानते. वे ब्राह्मणी शंकराचार्य स्वयं को *"जगतगुरु"* समजते है. अत: २९ फरवरी २०२२ का, उत्तर प्रदेश के प्रयागराज मे हुआ *"संत सम्मेलन"* / अंखड हिंदु राष्ट्र की मांग कर, *"अखंड हिंदु राष्ट्र संविधान समिती"* का निर्माण / २५ लोगों की समिती द्वारा *"५०१ पेज का अखंड हिंदु राष्ट्र संविधान"* को बनाना / प्रयागराज  *"महाकुंभ मेला २०२५"* में, *"हिंदु संविधान"* को स्वीकृति कराना / फिर इन *"चारो पीठों के शंकराचार्य"* द्वारा उनकी अनुमती लेना / *"सन २०३२ को हिंदु संविधान"* लागु कराने के लिये, *"भारत सरकार"* के पास भेजना, यह किसी षडयंत्र का हिस्सा तो नहीं है ? यह बडा अहं प्रश्न है.

         ब्राम्हणी शंकराचार्य स्वयं को *"जगतगुरु"* कहने के पिछे का, षडयंत्र भी समझना जरुरी है. गोवर्धन पीठ पुरी (ओरिसा) के *शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती* इन्होने तो, *"दो विश्व धर्मगुरू"* - ख्रिस्ती धर्म के *"पोप"* तथा तिब्बती बौध्द धर्मगुरू *"दलाई लामा"* इनका उदाहरण दिया है. शंकराचार्य इनके मतानुसार *"पोप हो या दलाई लामा हो,"* ये उनके राष्ट्र के *"राष्ट्राध्यक्ष"* है. साथ ही वे *"सेनाध्यक्ष"* भी है. भगवान शंकराचार्य की परंपरा, यह २५०० वर्षों से चले आ रही है. पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती इन्होने तो, *"बंगाल उच्च न्यायालय तथा ओरीसा उच्च न्यायालय"* खंडपीठ द्वारा, उनके पक्ष में न्याय मिलने का संदर्भ दिया है. *ओरिसा उच्च न्यायालय* ने तो, *"शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती के सर्वोच्च धार्मिक अधिकारों को स्वीकृति प्रदान"* करने की बात कही है. अत: पुरी के शंकराचार्य, ये स्वयं को *"न्यायाधीश "* मानते हुये दिखाई देते है. जब मैने स्वयं (डॉ जीवने) सदर *"न्यायालय निर्णय"* प्रति को, प्राप्त करने का प्रयास किया, परंतु अभी तक वह *"निर्णय की प्रति"* मुझे उपलब्ध नहीं हो पायी है. अत: *"ओरिसा न्यायालय"* के उस निर्णय पर, कोई भी भाष्य करना उचित नहीं है. अगर ओरिसा उच्च न्यायालय द्वारा *"शंकराचार्य के धार्मिक सर्वोच्च स्थान"* निर्णय हुआ हो तो, हमारे *"न्याय व्यवस्था पर भी प्रश्नचिन्ह"* लगेंगे ही !!! हमारा *"भारत का संविधान "* यह किसी धार्मिक गुरु को, पदसिद्ध *"राष्ट्राध्यक्ष / सेनाध्यक्ष"* बनने की, उन्हे कोई भी अनुमति नहीं देता. भारत यह *"धर्मनिरपेक्ष देश"* है. और भारत में २६ जनवरी १९५० से, *"प्रजातंत्र व्यवस्था"* (Democracy) को मान्यता दी है. दुसरा अहं विषय यह है कि, भारत यह अब केवल *"देश"* (Country) ही है. भारत यह *"राष्ट्र"* (Nation) नहीं बन सका. राष्ट्र बनने के *"मापदंड"* में, भारत अभी तक पिछडा हुआ दिखाई देता है. *"राष्ट्र"* बनने के लिये, भारत में *"सामाजिक / आर्थिक समानता"* के साथ साथ, *"प्रेम / मैत्री /बंधुता / देशभक्ती"* को भी जगाना होगा.

          *"शंकराचार्य"* इस शब्द का प्राचिन संदर्भ, इन चारों पीठों के शंकराचार्य को ज्ञात है या नहीं ? यह प्रश्न है. बुध्द के महापरिनिर्वाण के बाद, बुध्द धर्म  *"हिनयान - महायान"* संप्रदाय में विभक्त हुआ. महायान ने *"वज्रयान संप्रदाय"* को जन्म दिया. वज्रयान ने *"तंत्रयान संप्रदाय"* को जन्म दिया. फिर वज्रयान - तंत्रयान ने, *"शैव पंथ / वैष्णव पंथ / साक्त पंथ"* की निव रखी. इसवी ८५० में (इ. पु. नही) में, शंकर का जन्म होता है. जो बाद में *"प्रछन्न बौध्द"* कहलाया जाता है. वो शंकर आगे जाकर *"चार पीठ"* का निर्माण कर, *"शंकराचार्य"* पद का निर्माण करते है. स्वयं भी *"आदि शंकराचार्य"* बन जाते है. साथ ही १२ *"शक्तीपीठ"* का निर्माण करते है. बाद में *"तमाम महायान बौध्द विहारों"* पर अतिक्रमण करता है. फिर वहां *"कर्मकांड"* को बोलबोला होता है. अत: वह तमाम प्राचिन मंदिर *"बौध्द विहार "* है, यह इतिहास प्रमाण है. बद्रीनाथ का मंदिर यह *"शीव मंदिर"* है. केदारनाथ का मंदीर *"वैष्णव मंदिर"* है. पुरी (ओरिसा) का मंदिर *"जगन्नाथ मंदिर "* है. और बुद्ध को जगन्नाथ / शीव भी कहा जाता है. *"पोप हो या दलाई लामा"* इनके चारित्र्य संदर्भ में, *शंकराचार्य* कही भी बैठते हुये, हमें दिखाई नहीं देते. पोप - दलाई लामा ये *"प्रेम / मैत्री / शील / करुणा / बंधुता / शांती / अहिंसा"* के प्रतिक माने जाते है. शंकराचार्य यह *"जातीभेद / हिंसा / द्वेष भावना पेरते"* हुये दिखाई देते है. बद्रीनाथ, उत्तराखंड *शंकराचार्य* इन पर *"२२८ किलो सोना चोरी"* करने का आरोप *स्वामी गोविंदानंद सरस्वती* इन्होने लगाया है. साथ ही किडनैप करना आदी कुछ आरोप है. वही पुरी, ओरिसा के *शंकराचार्य* पर भी कुछ गंभिर आरोप लगे हैं. और स्वयं पुरी के शंकराचार्य *अराजक शासन तत्व"* द्वारा, उन्हे प्रताडित करने का बयाण दे चुके हैं. यही नहीं *"राष्ट्रद्रोह"* का भी आरोप है. अत: *"हिंदु राष्ट्र संविधान "* की आवश्यकता इन तमाम *"धर्मांधी हिंदु वर्ग"* को, क्यौ लग रही है ? यह संदर्भ सहज समज में आते है. *"भारत के संविधान"* अनुच्छेद २५ / २६ / २७ / २८ अनुसार, *"धर्म - धार्मिक स्वातंत्र्य अधिकार/ कर सवलत / धार्मिक संस्थानो खोलने"* का अधिकार मिला है. हमारा संविधान *"स्वैराचार करने की अनुमती नहीं देता,"*  यह इन धर्मांधी वर्ग की वेदना है. इसे हमें समझना होगा. जय भीम !!!


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▪️ *डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*

       नागपुर दिनांक १२ फरवरी २०२५.

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