Monday, 3 February 2025

 🇮🇳 *भारत आर्थिक बजेट २०२५ के लुभावनी घोषणा में अमेरिका द्वारा आय कर वृध्दी का दुरगामी आर्थिक असर ?*

        *डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल 

एक्स व्हिजिटिंग प्रोफेसर, डॉ बी आर आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ महु म प्र 

मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२


       भारत की वित्त मंत्री *निर्मला सितारमण* इन्होने, १ फरवरी २०२५ को भारत का वार्षिक आर्थिक बजेट पेश किया. वही अमेरिकी देश के भुतपुर्व राष्ट्राध्यक्ष *डोनाल्ड ट्रम्प* इन्होने तो, २० दिसंबर २०२४ को दोबारा राष्ट्राध्यक्ष पद की शपथ लेने के बाद, *"अवैध प्रवासी तथा आयात कर वृध्दी"* की घोषणा की थी. जो समस्त विश्व देशों के आर्थिक हालात पर प्रभाव डालनेवाला है. अमेरिका यह चायना / रशिया / मेक्सिको / कॅनडा को धमका चुका है. भारत के प्रधानमंत्री *नरेंद्र मोदी* इन्हे भी, उनके शपथ ग्रहण में ना बुलाकर, भारत को एक इशारा दे चुके हैं. भारत रशिया से *"कच्चा तैल"* खरिद (आयात) कर, उस तैल पर प्रक्रिया कर, अन्य देशों को *"निर्यात"* करता है. अर्थात भारत की अर्थव्यवस्था का, वह निर्यात भी *"आय स्त्रोत"* रहा है. शायद *"रशिया - युक्रेन युद्ध"* की कुटील राजनीति मे, फरवरी २०२५ के बाद, वह आय स्त्रोत कही बंद ना हो जाए ! यह भी हमे समझना होगा. भारत का सन २०२५ - २६ का बजेट १ फरवरी २०२५ को पेश होने के बाद, कुछ लुभावने वादे दिये गये है. आर्थिक बजेट में भारत का *"खर्च (Expenditure) रू. ५०,६५,३४५ करोड"* बताया गया. वही *"वार्षिक आय (Income) रु. ३४,९६,४०९ करोड"* (पिछले साल से ११.१% वृध्दी) बतायी गयी है. और सकल घरेलु उत्पाद दर (GDP) यह १०.१% है. वही राजस्व घाटा १.५% तथा फिस्कल घाटा ४.४% बताया गया, जो पिछले साल की तुलना में कम है. भारत पर *"विदेशी कर्ज"* (२०२४ तक) यह *"७११.८ अरब डॉलर"* है. उस विदेशी कर्ज पर ऋण भी देना है. वही मध्यम वर्ग के लिये *"आय कर मर्यादा १२.७५ लाख"* तक का बढाना भी, बहुत सारे प्रश्न खडा कर रहा है. अत: हम *"भारत का आर्थिक बजेट तथा विश्व के व्यापार युध्द"* (?) इस गंभीर विषय पर कुछ चर्चा करेंगे.

        भारत के आर्थिक बजेट में, चार मुख्य विषय - *"कृषी / एम.एस.एम.ई. / निवेश / निर्यात"* इस पर, लक्ष केंद्रित करने की बात कही गयी है. यहा सवाल तो, *"मंदिर की अर्थनीति"* पर, हमारी सरकार खामोश का है ? मंदिर की अर्थनीति यह *"३ लाख करोड"* के ऊपर की बतायी जाती है. भारत के कुछ मंदिर ही लो - *"पद्मनाभ स्वामी मंदिर* - तिरुवनंतपुरम केरल के इस मंदिर में हिरे सोने चांदी की मुर्तीया २० अरब डॉलर की है. गर्भगृह में ५०० करोड की भगवान विष्णू की मुर्ती है. ओर सालाना दान के बारे में क्या कहे ? *"तिरुपती बालाजी मंदिर"* - आंध्र प्रदेश यह मंदिर दान के मामले में, सबसे अमिर है. यहां सालाना ६८० करोड रुपये दान में आता है. इस मंदिर के पास ९ टन सोना / १४००० करोड रुपया बॅंक में जमा है. *"शिर्डी साई मंदिर"* - महाराष्ट्र राज्य के इस मंदिर में, हर साल ३८० करोड रुपये दान में आते है. बॅंक में ४६० किलो सोना / ५४२८ किलो चांदी / डॉलर पाऊंंड समान विदेशी मुद्रा को मिलाकर, १८००० करोड रुपये जमा है. *"माता वैष्णोदेवी शक्तीपीठ"* - जम्मू काश्मीर के इस मंदिर को हर साल ५०० करोड दान में आता है. *"महाकाल मंदिर"* - उज्जैन मध्य प्रदेश के इस मंदिर में, ८१ करोड दान में आता है. मंदिर के पास ३४ लाख का सोना / ८८ लाख ६८ हजार की चांदी है. *"मिनाक्षी मंदिर"* - मदुराई तामिलनाडू के इस मंदिर में, भावांना ६ करोड रुपये दान में आते है. गुहाटी असम का *"कामाक्षा मंदिर"* / प्रयागराज का *"कुंभ मेला"* समान बहुत से मंदिर अर्थनीति पर, और हम क्या कहे ? किसी भी धार्मिक संस्थानो पर, *"कोई टॅक्स का प्रावधान नहीं है."* धार्मिक संस्थानो के *"दान को आय नहीं माना जाता."* इस लिए उन संपत्ती पर *"आय कर"* या *"विक्री कर / सेवा कर"* नहीं लगता. सवाल यह है कि, *"कमरों में डंब पडी उस करोडो के संपत्ती का, राष्ट्र विकास में योगदान क्या है ?"* हमारी भारत सरकार उन *"तमाम मंदिरो का, राष्ट्रियकरण क्यौं नहीं करती ?"* यहां तो *"खेतीहार मजुर"* हो या *"कोई कामगार"* हो, वे आर्थिक स्थिती से पिडित है. अत: *"खेती का राष्ट्रियकरण "* करते हुये, उसे *"उद्योग"* का दर्जा, हमारी सरकार क्यौ नहीं देना चाहती ? इस से रोजगार में इजाफा होगा. ग्रामीण क्षेत्र के लोगों का *"स्थलांतरण"* भी रुक जाएगा. हमारी सरकार तो *"सरकारी कंपनीयों का निजीकरण"* कर रही है. जो *"पुंजीवादी व्यवस्था"* को मजबुतीकरण का प्रयास है. इस कारणवश *"लोकतंत्र"* खतरें में है.

        केंद्रीय अर्थसंकल्प में *"महिला कल्याण (४,४९,०२९) / बाल कल्याण (१,१६,१३३) / अनुसुचित जाति (१,०८,४७८) / अनुसुचित जमाती (१,२८,२५०) / नार्थ इस्टर्न राज्य (१,०५,८३७)"* तरतुद की गयी है. क्या यह राशी कल्याण हेतु पर्याप्त है ? या उस राशी का सही उपयोग, उत्थान के लिये किया जाता है ? यह भी तो प्रश्न है. भारत में *"सालाना प्रति व्यक्ती आय,"* यह केवल *"रू. १ लाख"* बतायी जाती है. और *"बिहार"* राज्य में तो, वह आय *"केवल ६० हजार रू."* है. भारत की जनसंख्या *"१४५ करोड"* बतायी जाती है. और जनसंख्या मामले में भारत *"नंबर १ देश"* हुआ है, यह संयुक्त राष्ट्र की *"वर्ल्ड पापुलेशन प्रास्पेक्ट २०२४"* की वह रिपोर्ट है. और *"७०% लोक (८१.४ करोड)"* यह *"मुफ्त / सस्ता अनाज"* पर ही निर्भर हैं. उस अनाज से *"२ करोड टन अनाज"* या तो खुले बाजार में बिकता है, या ६९,००० करोड रुपये का अनाज गलत हाथों में जाता है. यह मेरा कहना नहीं है. बल्की *"इंडियन कौन्सिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनैशनल इकोनामिक्स रिलेशन्स"* (ICRIER) की रिपोर्ट है. अर्थात हमारी *"गरिबी / बेरोजगारी"* यह रिपोर्ट बयाण करती है. भारत की वित्त मंत्री ने *"कार्पोरेट टैक्स "* को, *"सबसे बडा आय स्त्रोत "* माना है. जब की इस साल की बजेट में, *"जी.एस.टी. / इन्कम टॅक्स / कस्टम / एक्साईज / सेस / युनीयन टेरेटरी"* आदी टॅक्स की आय तुलना में, *"कार्पोरेट टैक्स वृध्दी"* बहुत खास दिखाई नहीं देती. और *"२२ उद्योगपतीयों को १६ लाख करोड की माफी"* दी गयी है. जब कि, *"४० लाख किसानों का केवल २ लाख करोड"* राशी माफ की गयी है. नरेंद्र मोदी इन्होने तो, *"World Economic Forum 2018 "* के अपने भाषण में, *"भारत की अर्थव्यवस्था २०२४ तक ५ ट्रिलियन डॉलर"* होने की बात कही थी. जो सन २०२४ में *"३.९४ ट्रिलियन डॉलर"* रही थी. अभी अभी उस वर्ल्ड फोरम के दिये भाषण में, *"विकास भारत"* कराने के साथ *"भारत के अर्थव्यवस्था का लक्ष १० ट्रिलियन डॉलर"* बताया जाता है. इस तरह के हमारी नीति हो तो, यह कैसे संभव है ? यह भी प्रश्न है. अमेरिका राष्ट्राध्यक्ष *डोनाल्ड ट्रम्प* की *"अमेरिका विकास नीति"* को देखे तो, *"तिसरे महायुध्द"* के आसार नज़र आते है. वही भारतीय आर्थिक बजेट में *"आय कर की सीमा १२.७५"* करने से, *"१ लाख करोड का घाटा"* होने का अनुमान, हमारी वित्त मंत्री बताती है. दुसरी ओर *"५ लाख करोड टॅक्स वसुली"* का लक्ष भी रखा है. अत: *"जी.एस.टी. / इन्कम टॅक्स / कस्टम टॅक्स"* आदी कर में वृध्दी कराने से,  *"जीओ / एयरटेल"* समान नीजी कंपनीयों के माध्यम से, *"महंगाई बढाकर"* आम लोगो से ही, वह वसुल करने का षडयंत्र रचने की, बु आ रही है. *"बेरोजगारी"* यह आसमान छु रही है. *"मुफ्त योजना"* लागु कराने से, लोगो में आलस्यता भाव निर्माण हुआ है‌. अत: मुफ्त योजना बंद होना जरुरी है. और *"रोजगार निर्माण"* की दिशा में हमें जाना होगा. *"उत्पादन"* क्षमता बढाने की ओर हमे बढना होगा. शेती को *"उद्योग दर्जा"* देने की ओर पहल जरुरी भी है. और फिर तो *"निर्यात"* को बढावा मिलेगा.  नहीं तो, भारत की *"अर्थव्यवस्था / जन आक्रोश"* यह एक दुसरों से टकराने की संभावना है. कल की राह में.....!!!


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▪️ *डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*

        नागपुर दिनांक ४ फरवरी २०२५.

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