Sunday 30 June 2024

 👌 *दीक्षाभूमी पर फोटो - व्हिडिओ खिचनें पर अब मनाई हुकूम नोटीस जारी हुयी बनाम दीक्षाभूमी समिती के विश्वस्त (विश्वास करने योग्य व्यक्ती ?) की दादागिरी...!*

      *डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल 

एक्स व्हिजिटिंग प्रोफेसर, डॉ बी आर आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ महु म प्र 

मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२


       *"सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल"* इस राष्ट्रिय संंघटन का, वो एल्गार हो या, आंबेडकरी - बौध्द समुदायों का भावनिक एल्गार रहा हो या, अन्य किसी भी सामाजिक संघटन का कोई एल्गार....! वो एल्गार आवाज फिर, *"दीक्षाभूमी स्मारक परिसर लगत भुमिगत बांधकाम का हो या.....कोरोना काल में धम्मचक्र प्रवर्तन दिन समारोह का ना होना हो या, दीक्षाभूमी के दरवाजे पुरी तरह से बंद कराते हुये, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर इनको अभिवादन करने का, वो भावनात्मक प्रश्न रहा हो..!!!"* वहां केवल  "दीक्षाभूमी स्मारक समिती" की ही, क्या मनमर्जी ही चलेगी.‌..? यह भी अहं प्रश्न है. क्यौं कि, *'मैं और मेरी संघटन"* उपरोक्त दोनो ही घटना का प्रत्यक्ष साक्ष रहा है.‌ *मैने स्वयं (डॉ जीवने)* इसके विरोध में, धर्मादाय कार्यालय / मा. उच्च न्यायालय नागपुर खंडपीठ में, केस / याचिका दायर की थी. और मेरी ओर से सर्वोच्च न्यायालय में कार्यरत, नयी दिल्ली के नामचिन *एड. चेतन बैरवा / एड. डॉ. मोहन गवई / एड. बी. बी. रायपुरे / एड. संदिप ताटके* इन्होने पैरवी की थी. हमें यह भी समझना होगा कि, *"दीक्षाभूमी स्थित सदर संपुर्ण संपत्ती, क्या उन स्मारक समिती के तमाम सदस्यों की, पैतृक निजी अर्जीत संपत्ती रही है ...?"* अगर वे उन सभी सदस्यों की, वे पैतृक निजी संपत्ती ना हो तो, यह मनमानी मर्जी क्यौं है ? यह दादागिरी (हुकुमशाही) क्यौं है ? यह भी अहं प्रश्न है. *"दीक्षाभूमी स्मारक समिती के तमाम सदस्य, यह उस समिती के केवल विश्वस्त है, ना कि निजी मालिक ...! और विश्वस्त का अर्थ होता है - विश्वास करने योग्य व्यक्ति."* अभी तो, वे दीक्षाभूमी स्मारक समिती के तमाम सदस्य, आंबेडकरी - बौध्द समुदायों के, कुछ भी विश्वास पात्र नहीं रहे है. अत: उन्होंने वह *"समिती भंग कराकर,"* समिती से बाहर पडना, यह केवल ही नैतिकता बची है.‌ क्यौं कि, उपरोक्त दोनो ही विषय नहीं रहे है, बल्की समिती द्वारा जो *"राष्ट्रिय तथा आंतरराष्ट्रीय स्तर"* पर, डॉ बाबासाहेब आंबेडकर मिशन जो चलाया जाना चाहिए था, उसके लिये वे लायक सदस्य भी नहीं है. *"ना ही उन सभी सदस्यों के पास कोई व्हिजन है, ना ही कार्य करने की कार्यकुशलता ...!!!"* यह बातें हमें बडे दु:ख से कहना पड रहा है.

        दीक्षाभूमी स्मारक *"भुमिगत प्रकरण २०२४"* में, नागपुर की सजग आम जनता की भावना जाग उठी तो, सदर *"भुमिगत प्रकरण संदर्भ के फोटो - व्हिडिओ"* जन व्हायरल हो जाना,  वही *"कोरोना संक्रमण काल २०२०"* में, दीक्षाभूमी पर *"धम्म चक्र प्रवर्तन दिन समारोह"* ना होना / *"दीक्षाभूमी के दरवाजे समुचे बंद कर देना"* इस दीक्षाभूमी स्मारक समिती की गुंडा रवैय्ये से बहुत नाराज होकर, *"सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल"* इस राष्ट्रिय संंघटन द्वारा, सेल के राष्ट्रीय अध्यक्ष *डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*  इनके नेतृत्व में सफल आंदोलन किया था. / और दीक्षाभूमी के दरवाजे खुल जाने के कारण, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल की टीम का दीक्षाभूमी को भेट देना, सदर फोटो - व्हिडिओ मिडिया में व्हायरल हो जाने से, आनन - फानन में *"दीक्षाभूमी स्मारक समिती द्वारा, दीक्षाभूमी परिसर के फोटो - व्हिडिओ लेने संदर्भ में, दीक्षाभूमी मेन गेट पर, वह लेने का मज्जाव नोटीस लगाना,"* यह दीक्षाभूमी स्मारक समिती की, हिन मानसिकता दिखाई देती हैं.‌ *"दीक्षाभूमी स्मारक परिसर में, आम जनता को फोटो - व्हिडिओ लेने पर, मज्जाव करने वाली, ये दीक्षाभूमी की समिती कौन है ?"* यह प्रश्न‌ है.‌ दीक्षाभूमी स्मारक समिती के सदस्यों की, दीक्षाभूमी यह पैतृक निजी संपत्ती नहीं है. दीक्षाभूमी यह आंबेडकरी - बौध्द जनता की धरोहर है. यहां के हर आंबेडकरी - बौध्द जनता का, वह मौलिक अधिकार है.‌ जो मौलिक अधिकार *"भारत के संविधान"* के अनुच्छेद १९ अन्वये, आंबेडकरी जनता को मिला है. अगर दीक्षाभूमी स्मारक समिती सदस्य, इस तरह के लोगों के अधिकारों पर आक्रमण करती हो तो, उन तमाम *"स्मारक समिती सदस्यों के विरोध में, आंबेडकरी जनता पुलिस में शिकायत कर सकती है. धर्मादाय कार्यालय में शिकायत भी कर सकती है."* जैसे कि - दीक्षाभूमी परिसर में फोटो - व्हिडिओ लेना इस जन‌ अधिकार का उल्लंघन / समिती द्वारा आंबेडकरी जनता में आक्रोश बढाना / आंबेडकरी - बौध्द जनता की भावना को आहत करना / भुमिगत बांधकाम की सुचना विभिन्न दैनिकों में, प्रकाशीत कर आंबेडकरी जनता का मत लेना या आंबेडकरी जनता को अंधेरे में रखना आदी आदी...! *अत: आंबेडकरी जनता ये दीक्षाभूमी समिती - विश्वस्त से, केवल जबाब ही तो वो पुंछ रही है.* अत: दीक्षाभूमी स्मारक समिती, इस तरह के उपद्रवों‌ से बचे. वे आंबेडकरी समाज का सच्ची जबाबदेही बने...! *"दिनांक १ जुलै २०२४"*  को, हम आंबेडकरी जन सैलाब उस भुमिगत प्रकरण पर, केवल आप से ही उत्तर चाहती है. अत: वह माहोल खराब ना करे. जय भीम...!!!


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नागपुर, दिनांक ३० जुनं २०२४

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