👌 *मेरे अपने चित्र शब्द...!*
*डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर १७
मो. न. ९३७०९८४१३८
नयी नवेली दुल्हन डोली पे सज धजे आती है
अरे तुम तो बैसाखी पे सज धजे दुल्हा बने हो
यें बैसाखी कब डुबोगी इस तुफानी मजधार में
तब ना कोई अपना होगा, ना ही पराया होगा...
वो राजा तो अपने मन का भी राजा होता था
अपने स्पष्ट विचारों पर भी वो अड़िग होता था
आवाम को न्याय देनें, ना वो अन्यायी होता था
पर आज न्याय दान में, जहां वहां अंधार ही है...
इन सुंदर मोहक फुलोंं ने तो सब को मोह लिया
ना नफ़रत थी ना धोका था ना तो कोई अविश्वास
हर कोई अपने विचारों पर अड़ीग रहा करता था
अब तो हर पल खतरा ही खतरा दिखाई देता है...
हे सिंध तुम्हारी संस्कृति ने स्वयं इतिहास रचा है
जो आज भी कोई माई का लाल ना मिटा सका
हां तुम्हे ये दुश्मनों ने मिटाने की कोशीश की थी
युं तुम्हारी संस्कारी निवं ने गहरा खंबा गाडा था...
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नागपुर, दिनांक १५/०६/२०२४
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