Monday, 10 June 2024

 🇮🇳 *भारतीय राजनीति वेश्यालय में हिजडे बने - नरेंद्र मोदी / राहुल गांधी के दलालगिरी में अटका हुआ भारत राष्ट्रवाद और भारतीय संविधान की गौरव गरिमा ...?*

    *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल 

एक्स व्हिजिटिंग प्रोफेसर, डॉ बी आर आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ महु म प्र.

मो. न.‌९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२



     भारत के ही पुराने राजनीतिक विश्लेषक (?) *भर्तृहरी* को लो या, गुलाम भारत के बनियावादी कांग्रेसी नेता *मोहनदास गांधी* इनको ही लो या, ब्राह्मण संघवाद के *के सुदर्शन* इनको ही लो, इन तिनों नेताओं के विचारों में, एक बडी ही साम्यता दिखाई देती है. वह एक साम्यता है, *"भारतीय राजनीति को वेश्यालय"* इस हिन शब्द से, उन्हे संबोधना...!!! तो हमें *"भारतीय राजनीति को वेश्यालय"* कहने में, कोई भी संकोच नहीं होना चाहिए.‌ परंतु *"वेश्या"* की एक नैतिकता रही है. वो चौराह पर अपना धंदा नहीं करती. वो चौराह पर, कभी नग्न नहीं होती है. वो चार दिवार‌ के ही अंदर, अपना देह व्यवसाय करती रही है. किसी ग्राहक से पैसा लेकरं, वो दगाबाजी भी कभी नहीं करती है. वही *"हिजडे"* भी, रास्तों पर दुकानों में घुमकर, मेहनत से ही पैसा कमाते रहते है. अत: *"हिजडे हो या वेश्या"* यह चरित्र *"भ्रष्टाचार"* नहीं करते. देश को भी, *वो बेचा नहीं करते.* करोडो का भ्रष्टाचार या हेराफेरी भी नहीं करते है .अत: *"भारतीय राजनैतिक नेताओं"* को, *"वेश्या या हिजडे"* कहना, शायद वह उनकी एक बडी ही तोहिम हो...!अन्य छोटे - मोटे राजनैतिक दलों के नेता तो, इन हिजडे नेताओं के अधिन होने से, उनके बारें में क्या कहे ??? अब हम हिजडे बने, भाजपा नेता *नरेंद्र मोदी* / या कांग्रेसी राजकुमार *राहुल गांधी* इनके, बिन-अकल भारत (?) की राजनीति पर चर्चा करेंगे.

          भारत के आज की राजनीति पर, कुछ एक गंभीर चर्चा करने के पहले, हमें यें समझना होगा कि, *"विश्व में भारत की पहचान, बुध्द का देश के रूप में ही होती है."* ना कि, किसी अन्य देव - देवतांओ के रुप में भी...! विश्व के एक बडे  चिंतक *आचार्य (भगवान ?) रजनीश,* ये जैन धर्म से जुडे‌ हुये रहे थे. मुझे उनके मध्य प्रदेश की जन्मस्थली, गाडरपारा को भेट देने का अवसर आया. जब *आचार्य रजनीश*, अमेरिका का अपना वास्तव्य को छोडकर, भारत के धरती पर उन्होने कदम रखा तो, पत्रकार को वो बता गये कि, *"उन्होंने बुद्ध के इस धरती पर कदम रखा है."* हमारे हिंदु ब्राम्हण साधु तो, बुध्द की महानता को, पुर्णतः भुल जाते है. जब की भारत के महान *चक्रवर्ती सम्राट अशोक,* इनके द्वारा बनाये गये ८४,००० बौध्द विहार और स्तुपों पर, ब्राह्मण वर्ग ने, अपने *"कुछ हिंदु मंदिर"* के नाम पर, उस पर अवैध कब्जा बनाया है. बुध्द को ज्ञान प्राप्ती का केंद्र, *"बुध्दगया"* को भी, उन्होंने नहीं छोडा. और वे लोग मुस्लिम समुदायों पर, हिंदु मंदिर का अतिक्रमण का गंभीर आरोप करते है. भारत का *"तिरुपती मंदिर, जगन्नाथ का पुरी मंदिर, पंढरपुर का विठोबा मंदिर, अयोध्या का रामजन्मभूमी मंदिर, नेपाल का पशुपतीनाथ मंदिर"* आदी आदी....! क्या हिंदु ब्राम्हण, ये लोग नैतिकता वादी लोग है ? *आदि शंकराचार्य* का बुध्द धर्म से कुछ संबंध, इस विषय पर, फिर कभी मैं चर्चा करुंगा. परंतु  महान *चक्रवर्ती सम्राट अशोक* का *"अखंड विशाल - विकास भारत"* को, खंड खंड करनेवाले, आज के *"हिंदु (?) ब्राम्हण के पुर्वज"* है. जो हमारे *"भारत के गद्दारी"* के झार शुक्राचार्य रहे है. *"ब्राह्मण वर्ग (Race), ये हिंदु कैसे बने ?"* इस विषय पर भी चर्चा, हम फिर कभी करेंगे. अयोध्या के *"रामजन्मभूमी प्रकरण"* को ही ले. बुध्द कालखंड में, अयोध्या का प्राचिन नाम *"साकेत"* रहा था.‌ जो *"बौद्ध राजा"* की राजधानी रही थी. फिर *"राम"* का अस्तित्व तो, यह बुद्ध के बाद का सिध्द होता है.‌ और *साकेत* तो, बुध्द धम्म का केंद्र था. *"मा. सर्वोच्च न्यायालय"* के प्रधान न्यायाधीश *रंजन गोगोई*  इनकी अध्यक्षतावाली खंडपीठ में, अन्य चार न्यायमूर्ती *शरद बोबडे / अशोक भुषण / धनंजय चंद्रचूड / एस. अब्दुल नजीर* इनका समावेश रहा था. और उनका निकाल यह *"बिना प्रायमा फेसी""* के आधार पर, वह दिया गया है. अत: वे तमाम पाचों लोग, न्यायाधीश बनने के, बिलकुल ही *"ना-लायक"* (Not Qualified) दिखाई देते है. आगे बने सरन्यायाधीश *शरद बोबडे* तो, अपने प्रोटोकॉल को ही भुल गये थे. किसी एक हिंदु मंदिर में, वे पुजा करते हुये, पुरी तरह जमिन पर सोते हुये ,वे पुजा कर गये. ये देश का नशीब है कि, *"उन तमाम न्यायाधीशों ने,अपने स्व- परिवार को नहीं बेचा‌ है. केवल देश की गरिमा को खंडित किया है."* अब आप का, बुध्द के बडे एक वचन पर लक्ष केंद्रित करता हुं. बुध्द को एक उपासक ने अपनी समस्या पर, *बुध्द को एक प्रश्न* पुछा था कि, *"अन्तो जटा बहि जटा, जटाय जटिता पजा | तं तं गोतं च पुच्छामि, को इमं विजटये जटं ||"* (अर्थात - इस संसार में, अंतर्गत और बहिर्गत ऐसे समस्या का निवारण, कौन कर सकता है ?) उपासक के उस प्रश्नों को उत्तर देते हुये बुध्द कहते हैं कि, *"सीले पतिट्ठायो नरो, सम्पञ्ञो चितं भवयं | अत्तपि निपको भिक्खु, सो इमं विजटयं जटं ||"* (अर्थात - जो व्यक्ती शील पर विराजमान हुआ है‌ ऐसा संपन्न और जिस ने चित्त तथा प्रज्ञा की भावना को प्राप्त किया है, ऐसा उद्योगशील भिक्खु ही, संसार के समस्या का निवारण कर सकता है.) मैं आज के पोंगा पंडित बौध्द भंते - हिंदु साधु महंतो की बात नहीं करता. *"अर्हत - बोधिसत्व साधना प्राप्त महान ऐसे विभूती"* की बात कर रहा हुं. जो भगवान बुद्ध हमे बोध कराते है.

      *नरेंद्र मोदी* इनके पहले, हम कांग्रेस और उसके राजकुमार *राहुल गांधी* इनकी बात करते है. राहुल गांधी ने नेहरू - गांधी परिवार से, *"भारत राष्ट्रवाद"* की शिक्षा / संस्कार पाया है या नहीं ? यह बडा प्रश्न है. उसके पिता राजीव गांधी, ये तो वैमानिक थे. और मां सोनिया, ये विदेशी नागरिक रही है. कांग्रेस की परिस्थिती ने, *राजीव गांधी को, भारत का प्रधानमंत्री* बनाया था. और हमारे देश का,  *"इंडिया / भारत"* यह संविधानिक नाम, *राहुल गांधी को पता तक नहीं है.* और भारत की राजनीति में, राहुल का सहजता से पदार्पण हुआ है. परंतु राहुल यह मुर्ख नेता, हमारे देश का *"हिंदुस्तान"* इस असंविधानिक / अपमानजनक (हिंदु यह विदेशी द्वारा थी गयी गाली है) शब्द का प्रयोग करता है. उसे हिंदु > हिनदु > हिन + दु > हिन = निच, चोर...‌ दु = प्रजा, लोक > हिंदु = निच लोग, चोर > *"हिंदुस्तान = निच लोगो का देश"*.... इस तरह बोलकर, राहुल गांधी, ये हमारे देश की तोहिम कर रहा है. *क्या राहुल गांधी, ये हमारे देश का, सही नेता बनने के लायक है ?* यह प्रश्न है. *जवाहरलाल नेहरू* काल से, कांग्रेस ने डॉ बाबासाहेब आंबेडकर इनका अपमान किया है. इस विषय पर चर्चा, हम फिर कभी करेंगे. परंतु कांग्रेस की आर्थिक स्थिती को संभालनेवाले मागासवर्गीय समाज के, *सिताराम केसरी,* जब वे कांग्रेस के अध्यक्ष रहे‌ थे, *सोनीया गांधी* इन्हे अध्यक्ष बना कर, मागासवर्गीय सिताराम केसरी इनको, बहुत बुरी तरह पार्टी कार्यालय से बाहर निकाला गया. *"कांग्रेस का वह बुरा व्यवहार"* (बुरे कर्म) ही आज, कांग्रेस को बुरी हालात में ले आया. और आज २०२४ को, एक मागासवर्गीय नेता *मल्लिकार्जुन खरगे* इन्होने, कांग्रेस को सन्मानजनक स्थिती में, ला खडा किया है. भविष्य में, कांग्रेस मागासवर्गीय *मल्लिकार्जुन खरगे* को, क्या इनाम देता है, यह भी हमें देखना है. दुसरा अहं प्रश्न यह कि, *"सन १९४७ को भारत को आजादी"* मिलने के बाद, किसी भी कांग्रेस सरकार ने, *"भारत राष्ट्रवाद मंत्रालय / संचालनालय"* की स्थापना की थी ? या *"भारत के बजेट"* में किसी भी तरह का कोई भी प्रावधान ? अगर *"द्वितिय महायुध्द"* (१९३९ - १९४५) ना हुआ होता, *"विश्व की आर्थिक हालात बदतर"* ना हुयी होती, *डॉ बाबासाहेब आंबेडकर* इन्होने द्वितीय महायुध्द में, *"मित्र देशों (ब्रिटन /  अमेरिका / रशिया / चायना) का साथ"* (जर्मनी - जापान - इटली ये विरोधी - शत्रु देश थे) दिया ना होता तो, भारत आजादी की चर्चा करना बेमानी है. और गुलाम भारत पर, *"जर्मनी के हिटलर"* का / इटली के *मुसोलिनी* का या जापान की *झार शाही* का अधिपत्य हुआ होता. द्वितीय महायुध्द (१९३९ - ४५) के समय, *मोहनदास गांधी हो या कांग्रेस, हिटलर का साथ दे या ब्रिटिश का ?"* इस प्रश्न में फसी हुयी थी. उधर *सुभाषचंद्र बोस* जापान की झार सेना के अधिन, अपनी राजनीति कर रहा था. जब की *"जापान - जर्मनी - इटली यह हमारे विरोधी देश"* रहे थे. और द्वितीय महायुध्द के समय, ८ अगस्त १९४२ को, *"इंग्रज भारत छोडो"* किया गया कांग्रेस का आंदोलन, यह बहुत बडी मुर्खता थी. कांग्रेस का वह आंदोलन, पुरी तरह विफल हुआ था. फिर कांग्रेस ने (डॉ बाबासाहेब आंबेडकर के साथ देने के बाद) द्वितीय महायुध्द में, मित्र देशों के पक्ष में अपना पुर्ण साथ घोषित किया. यह भी महत्वपूर्ण है कि, *"सन १९४२ के बाद, कांग्रेस द्वारा कितने आजादी के आंदोलन चलाये गये ?"* यह प्रश्न है. यही नहीं, गांधी और कांग्रेस के मुर्खता के कारण, भारत को आजादी मिलने में *"तिन - चार साल की देरी"* हुयी.

      *नरेंद्र दामोधर मोदी* को भारत की राजनीति में लाना, यह *संघवाद* की एक कुटील राजनीति थी, जो की कुटनीति, प्रधानमंत्री *अटलबिहारी वाजपेयी* इनके कार्यकाल में, संभव नहीं हो पायीं. ना ही अटलबिहारी वाजपेयी ने, संघवाद को विशेष ऐसी तवज्जो दी. गुजरात के ट्रेन कांड में, अटलबिहारी वाजपेयी नरेंद्र मोदी को हटाना चाहते थे. परंतु *लालकृष्ण अडवाणी* के कारण, नरेंद्र मोदी पर कोई गाज नहीं गिर पायी. सन २०१४ को *नरेंद्र मोदी* इनके प्रधानमंत्री बनने के बाद, उनके राजकीय गुरू *लालकृष्ण अडवाणी* इन्हे ही, राजकीय पटकनी दी गयी. और लालकृष्ण अडवाणी के आंखो में, अपमान के आंसु आ गये. *"कभी कभी तो शिष्य भी, गुरु को पटकनी (अपमान करना) दे जाता है"* यह नरेंद्र मोदी ने, कहावत को बिलकुल सच कर डाला. यही नहीं, नरेंद्र मोदी के सिनियर *वसुंधरा राजे सिंधीया / रमण सिंह / मुरली मनोहर जोशी / शिवराज चौहान* समान राजकीय नेता का, भारत के राजनीति में अस्त भी कर दिया. और भी कुछ नेता है, उनका भी हश्र...??? यही नहीं, प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी के आगे निकलकर, *नरेंद्र मोदी ने तो "संघवाद" को, एक आयना* ही दिखाया. *संघवाद* का उदय २७ सितंबर १९२५ को, *डॉ केशव हेडगेवार* इन्होने, लाल झेंडे के प्रभाव में, *"Royal Secreat Service"* (RSS) इस नाम से करने की, बात कही जाती है. जो बाद में, *"स्वयं सेवक संघ"* इस नाम से बदली गयी. इस का सच या झुट क्या ? यह अहं प्रश्न रहा है. परंतु संघवाद के मुल एजेंडा में, *"भारत राष्ट्रवाद"* या *"भारतीय भावना"* कभी उल्लेख रहा ही नहीं. संघवाद इस देश में, *"हिंदु राष्ट्रवाद"* लाकर, धार्मिक भावना के नाम पर, भारतीय आवाम को, *"गुलाम बनाना चाहता है."* प्राचिन भारत की मुल संस्कृति *"सिंध संस्कृति"* के, उनके पुरखे हमलावार थे. अर्थात उनके पुरखों (वैदिक धर्म) का मुल विदेशी था. सिंध संस्कृति को तहस नहस किया गया. बाद में *बुद्ध काल"* में, उनके अस्तित्व पर प्रश्न लग गये. प्राचीन भारत का महान *चक्रवर्ती सम्राट अशोक* के नाती चक्रवर्ती ब्रहद्रथ की हत्या, ब्राह्मणी ऋषी *पांतजली* के कहने पर, सेनापती *पुष्यमित्र शृंग* ने करते हुये, *"ब्राह्मण धर्म"* की सत्ता स्थापन की. चक्रवर्ती सम्राट अशोक काल में रहा *"अखंड विशाल विकास भारत,"* फिर ब्राह्मणी सत्ता काल से, *"खंड - खंड"* हो गया. उसके पहले‌ प्राचीन भारत में, ना कोई *"हिंदु धर्म"* था, ना ही कोई उसका संस्थापक...! *डॉ बाबासाहेब आंबेडकर* इस संदर्भ में कहते हैं कि, *"भारत का धर्म, हमेशा के लिये हिंदु धर्म था, यह विचार मुझे कदापी मान्य नहीं है. हिंदु धर्म तो सब के बाद हुयी, विचारों की उत्क्रांती है. वैदिक धर्म के प्रचार के बाद, भारत में तिन बार धार्मिक परिवर्तन हुआ है. वैदिक धर्म का रूपांतर ब्राह्मण धर्म में, और ब्राह्मण धर्म का रूपांतर हिंदु धर्म में हुआ है."*(कोलंबो, ६ जुनं १९५०)  अब नरेंद्र मोदी तो खंड खंड भारत में, *"पुंजीवाद व्यवस्था / हुकुमशाही"* लाना चाहता है. और *"भारत के प्रजातंत्र"*  (Democracy) को पुर्णतः मूठमाती ! अर्थात यहां डॉ बाबासाहेब आंबेडकर इनके रचित - *"संविधान संस्कृति"* के स्थान पर, ब्राह्मण वर्ग आधारीत - *"संस्कृति संविधान"*....!!!

        भारत का *"सन २०२४ का आम चुनाव"* तो, यह *संविधान संस्कृति* (बहुल आम जनता) बनाम *"संस्कृति संविधान"* (मोदी - ब्राह्मण वर्ग शासन), ऐसा रहा है. और नरेंद्र मोदी - ब्राह्मण वर्ग शासन लाने के लिये, *"चुनाव आयोग / इ.डी. / सी.बी.आय."* समान सरकारी संस्था ने, उनका अपना योगदान दिया है. फिर भी उतनी सफलता उन्हे नहीं मिली. शर्म का विषय यह कि, अ-ब्राहण *नितिश कुमार / चंद्राबाबू नायडू "* भी, उस सरकार के साथ आ गये. बसपा नेता *मायावती* हो या, वंचित नेता ( रिपब्लिकन नहीं) *एड. प्रकाश आंबेडकर* भी, *"संविधान संस्कृति"* को बचाने, जनता के साथ नहीं आये. और जनता ने उन्हे उनकी जगह दिखा दी. यह एक प्रकार का जन - पाप ही तो है. *बुध्द ने "पाप कर्म"* तथा कुछ अन्य संदर्भ कहा है कि - *"मधुआ मञ्ञति बालो याव पापं न पच्चति |*

*यदा च पच्चति पापं अथ बालो दुक्खं निगच्छति  ||"* (अर्थात - जब तक पाप का फल नही मिलता, तब तक अज्ञ व्यक्ति पाप को, मधु के समान समझता है. किंतु उस का फल मिलता है, तब वो दु:ख को प्राप्त होता है.)

*"पापञ्चे पुरिसो कयिरा न तं कयिरा पुनप्पुनं |*

*न तम्ही छंद कयिराथ दुक्खो पापस्स उच्चयो ||"*

(अर्थात - मनुष्य यदी पाप हो जाए तो, उसे बार बार ना करे. उस मे रत ना हो जाए. क्यौ कि पाप का संचय यह दु:खदायक होता है.)

*"पापोपि पस्सति भद्र याव पापं न पच्चति |*

*यदा च पच्चति पापं अथ पापो पापामि पस्सति ||"*

(अर्थात - जब तक पाप का परिणाम सामने नही आता, तब तक पाप अच्छा लगता है. जब पाप का परिणाम आना शुरु हो जाता है, तब पापी को समझ मे आ जाता है कि, मैने क्या कर दिया है.)

        बुध्द ने बडे लोगो का आदर करने की बात कही है. उस पर एक पाली गाथा है कि,

*"अभिवादनसिलिस्स निच्चं वध्दापचायिनो |*

*चत्तारो धम्मा वड्ढन्ति आयु वण्णो सुखं बलं ||"*

(अर्थात - जो नित्य बडों का आदर करता है, अभिवादनशील है, उस की आयु, वर्ण, सुख और बल मे वृध्दी होती है.)

      तथागत बुध्द ने सारनाथ मे अपने पांच भिक्खुओं को, जो प्रथम मार्गदर्शन किया था, उसे *"धम्म चक्र प्रवर्तन"* कहते है. तब बुध्द पाच मापदंड का पालन करने को कहा है. हमे देखना है कि, हम उस मापदण्ड में कितने खरे उतरते है.... ! *१. किसी भी प्राणी की हिंसा ना करना २. चोरी ना करना ३. व्यभिचार ना करना ४. झुट ना बोलना ५. मादक वस्तुओं का सेवन ना करना....!* बुध्द के वचन से हमें, सही दिशा का बोध कराता है. नहीं तो, हमें भविष्य में बुरे कर्म का भोगना होगा.


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#:  *डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर 

नागपुर, दिनांक १० जुन २०२४

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