Saturday 22 June 2024

 🌪️ *तृतीय महायुध्द (?) आगाज में धधगती हुयी विश्व शक्ति की तुफानी आग....!!!*

   *डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल 

एक्स व्हिजिटिंग प्रोफेसर, डॉ बी आर आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ महु म प्र 

मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२


       पिछले दो दिनों से *"तृतीय महायुध्द के आगाज"* विषय पर लिखने का, मेरा बहुत ही मन कर रहा था. परंतु मेरी अपनी व्यस्तता ने, मुझे वह संभव भी नहीं हो पाया. उधर *अमेरिका* समान विश्व शक्ति पुंजीवांद देश, और उसके साथ रहे - *"जापान / आष्ट्रेलीया / न्युझीलंड / थायलंड / दक्षिण कोरीया /फिलिपिन्स"* आदी आशियाई - प्रशांत सागरी देश है. वही दुसरी ओर *"रशिया / चायना / उत्तर कोरिया / पाकिस्तान"* आदी देश अमेरिका को ललकार रहे है. इस के पहले *"तृतीय महायुध्द"* इस गंभीर विषय पर, मेरे बहुत से लेख मिडिया में प्रकाशीत है. वे लेख के विषय है - *"कोरोना की छाया में तृतीय महायुध्द (?) और डॉ बाबासाहेब आंबेडकर / तृतीय महायुध्द के गदर में रशिया - अमेरिका - चायना की सत्तानीति /  तृतीय महायुध्द के छाया में विश्व एवं भारत का अर्थ-गाडा रहस्य / तिसरे महायुध्द छाया की एक बडी सिख है - "बुद्ध" / द्वितीय महायुध्द की धधगती ज्वाला में, विश्व का बना बिखरेपण बनाम तिसरे महायुध्द की आवाज ...!"* आदी आदी. *"HWPL H.Q. Korea"* इस आंतरराष्ट्रीय संघटन के अगुवाई में, दिनांक १९- २०- २१ सितंबर २०२३ को, फाईव्ह स्टार "होटेल ग्रंट ह्यात"  इंचेन सिटी में, *"9th World Peace Conference 2023"* का आयोजन, *मैन ही ली* इनकी अध्यक्षता में हुआ था. मुझे (डॉ जीवने) उस विश्व शांती परिषद का निमंत्रण होने से, मैं व्हाया व्हिएतनाम होकर दक्षिण कोरीया गया था. उस विश्व शांती परिषद में, विश्व के बडे बडे मान्यवर, कुछ देश के प्रमुख भी उपस्थित थे. मेरी संघटन - "जीवक वेल्फेअर सोसायटी" का *"डॉ बाबासाहेब आंबेडकर आंतरराष्ट्रीय पुरस्कार"* यह HWPL के अध्यक्ष *मैन ही ली* इन्हे दिया गया. परंतु दक्षिण कोरीया में, *"महायुध्द की यादें"* संजोग कर रखी है. मुझे उन जगह को भेट देने का अवसर आया. और मैनै उस विषय पर भी, एक *"बडा लेख"* लिखा था. मुझे वह यादे बहुत ही अस्वस्थ कर जाती है. HWPL के अध्यक्ष तो भुक्तभोगी है.‌ और वे विश्व शांती के प्रयास में लगे हैं. वही *चायना* देश के शोषण संदर्भ में, *"फालुन दाफा"* युवा टीम द्वारा नागपुर के लोकमत आर्ट गॅलरी में, एक प्रदर्शनी आयोजन किया गया था. टीम सदस्या *एड. प्रज्ञा निकोसे / करुणा रामटेके* इनके निमंत्रण पर, मैं मेरी टीम *सुर्यभान शेंडे / इंजी. गौतम हेंदरे / शंकरराव ढेंगरे / डॉ मनिषा घोष / डॉ भारती लांजेवार* इनके साथ, उस प्रदर्शनी को भेट दी थी. अत: उन दु:ख वेदनांओं को, अकसर मैं महसुस करता हुं. *"अत: उन दु:ख वेदनांओं को जताने को, शब्द भी कम हो जाते हैं...!"*

       विश्व में आज कल *"अमेरिका - चायना - रशिया"* इनका *"दादागिरी संघर्ष"* चल रहा है. विश्व शक्ती रहा *"सोव्हिएत संघ"* (रशिया) कब का ढल चुका है. और विश्व शक्ति *"अमेरिका"* को *"चायना"* यह शह दे रहा है. अमेरिका की अर्थव्यवस्था ढलने की ओर बढ रही है. और *"चायना"* देश अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की दिशा में, आगे बढ रहा है. *"कोरोना संक्रमण"* यह अमेरिका - चायना के बिच, शह - मात का खेल रहा है.‌ वही *"चायना - रशिया - उत्तर कोरिया"* इन देशों की मैत्री ने, *"अमेरिका"* की निंद उडायी है. *"क्या भविष्य में चायना यह विश्व शक्ति देश होगा ?"* यह भी अहं प्रश्न है. *"इस्त्रायल - हमास युद्ध"* से, गाझा के सामान्य लोक परेशान है. ७ अक्तुबर २०२३ के हमास हल्ले के कारण, युध्द की निवं रची  गयी. सात महिने से वह युध्द चल रहा है. १४ - १५ मई यह *इस्राएल* का स्थापना दिन (१४ मई १९४८) रहा है. वही *"पॅलेस्टाईन समुदायों"* का वह *"बेघर दिन...!"* और क्या इस युद्ध के‌ परदे के पिछे का शुक्राचार्य, *"अमेरिका"* देश है ? यह भी एक अहं प्रश्न है. *"रशिया - युक्रेन युध्द"* वैसे तो, फरवरी २०१४ से ही चल रहा है. और फरवरी २०२२ को, रशिया द्वारा युक्रेन पर आक्रमण बढ गया है. *"परंतु रशिया की तुलना मे वह छोटासा देश युक्रेन, रशिया समान बलाढ्य देश का, युद्ध में सामना कर रहा है."* इस के पिछे की राजनीति - कुटनीति को समझना भी, बहुत जरुरी है. क्या इस युद्ध में *अमेरिका* यह क्या, "शुक्राचार्य" के भुमिका में है ? यह भी एक बडा प्रश्न है. जैसे भारत में, *"ब्राम्हणवाद"* (स्वातंत्र्य, समता, बंधुता भाव का अभाव - डॉ. आंबेडकर) यह शुक्राचार्य दिखाई देता है. युध्द में सामान्य लोगों की आर्थिक हालात, बहुत ही पतली हो जाती है.‌ और शुक्राचार्य एक गाना गाते रहता है - "*प्यार किया तो डरना क्या? छुप छुप के आहे भरना क्या...?"* (जो भी कुछ करो बिनधास्त करो.‌ उन्हे गुलाम तो बनाना ही है.)

         इस्त्रायल - हमास युद्ध हो या, रशिया - युक्रेन युध्द हो, विश्व शक्ति - *अमेरिका* ने *"आग में घी डालने के काम किया है."* जब कभी हम *"प्रथम महायुध्द"* (२८ जुलै १९१४ से ११ नवंबर १९१८) हो या, *"द्वितीय महायुध्द"* (१५ सितंबर १९३९ से २ सितंबर १९४५) को ही लो, *"अमेरिका / ब्रिटन / फ्रांस / रशिया / इटली"* (प्रथम महायुध्द) ये *"गठबंधन देश"* हो या, *"जर्मनी / आस्ट्रिया / हंगेरी / खिलाफत एक उस्मानिया / बल्गेरिया आदी* ये सभी *"केंद्रीय शक्ति देश"* (Central Power) हो या, *"द्वितीय महायुध्द "* में सलग्न "मित्र देश" - *सोव्हिएत संघ (रशिया) / अमेरिका / ग्रेट ब्रिटन / चायना"* हो या,  "अक्ष देश" (धुरी देश) - *जर्मनी (हिटलर) / इटली (मुसोलिनी) / जापान (हिराहितो)* इनके बिच वह तो, *"युद्ध संघर्ष"* रहा है. गुलाम भारत यह तो, *"ब्रिटिश सत्ता का उपनिवेश"* रहा था.  तब हम *"प्राचिन भारत"* के *चक्रवर्ती महान सम्राट अशोक* इनके काल में जाना होगा. अर्थात *"बुद्ध काल"* में, तब *"अखंड विशाल विकास भारत"* का क्षेत्र रहा था - *"अफगाणिस्तान (१८७६) / तिब्बत (१९०७) / नेपाल (१९०४) / भुतान (१९०६) / श्रीलंका (१९३५) / म्यानमार (१९३७) / पाकिस्तान - बांगला देश (१९४७)."* अब सवाल है कि, *"यह सभी के सभी देश, भारत से अलग कैसे हुये ? और क्यौं हुये ? वो गद्दार शुक्राचार्य कौन था ?"* चक्रवर्ती सम्राट अशोक का पड-पोता *चक्रवर्ती सम्राट ब्रहद्रथ* इनकी हत्या, बामणी गुरू (?) *पातंजली* इनके कहने पर, बामणी सेनापती *पुष्यमित्र शृंग* ने कर, *"अखंड विशाल विकास भारत"* का बंट्याधार किया था. आज का *"खंड खंड भारत"* का बंट्याधार भी, उसी *"बामणी व्यवस्था"* द्वारा किया जा रहा है. और *"विश्व गुरु"* होने का, बडा दंभ भी भरते है.  यहां बडा सवाल तो, उन *"दो महायुध्द"* में, भारत देश कहां खडा था ? यह भी है.

        उपरी पैरा से ही जुडा हुंआ मुद्दा, विश्व शक्ति *अमेरिका* द्वारा, *चायना - रशिया* विरोधी देशों को, संरक्षण शास्त्रार्थ आदी मदत करना, यह एक मुद्दा रहा है. *अमेरिका - रशिया - चायना - ब्रिटन* इन शातिर देशों की राजनीति / कुटनीति / युध्दनीति ने, *"तिब्बत / तायवान'* समान देश *चायना* के अधिन हुये है.‌ तो कुछ देश *रशिया* के अधिन, तो कुछ देश *अमेरिका* आदी देशों के अधिन, *"प्रथम महायुध्द / द्वितीय महायुध्द"* के कारण हुये है. इस विषय पर बडी चर्चा, हम फिर कभी करेंगे. *चायना - रशिया - उत्तर कोरिया* की राजनीति / युद्धनीति ने, जहां *अमेरिका* की गहिरी निंद भी उडायी है, वही *"तृतीय महायुध्द"* की खुमखुमी भी भर दी है.‌ अभी अभी रशिया के अध्यक्ष *व्लादिमीर पुतीन* इन्होने, उत्तर कोरिया का दौरा कर, उत्तर कोरिया के सर्वेसर्वा *किम जोंग उन* इनके साथ, उत्तर कोरिया के सैनिकों का *"गार्ड ऑफ ऑनर"* को स्वीकार किया है. इस के पहले *किम जोंग उन* इन्होने रशिया का दौरा किया था. और रशिया - उत्तर कोरिया के बीच कुछ करार होने की, बातें कही जाती है. और वह करार क्या होंगे ? यह बताने की गरज भी नहीं है. उत्तर कोरिया के सर्वेसर्वा *किम जोंग उन* इनके, चायना से अच्छे संबंध बने है.‌ *पाकिस्तान / श्रीलंका / नेपाल / थायलंड / बांगला देश* आदी अपने पडोसी देश, *चायना* के साथ जुड चुके हैं. *तिब्बत* पर चायना का है. और तिब्बत से चायना का *भारत* पर *"केमिकल आक्रमण"* हुआ तो,  हमारे संरक्षण का प्रश्न खडा होगा या नहीं ? यह भी अहं प्रश्न है.अत: *'तिब्बत"* की आजादी, भारत के सुरक्षा के लिये बहुत आवश्यक है. परंतु *"भारत के विदेश नीति"* के बारे में, हम क्या कहे ? उधर *पाकिस्तान* के साथ साथ *नेपाल* भी, हमें आंखे दिखा रहा है. जो हमारे लिये बडा चिंता का विषय है. उधर *अरुणाचल प्रदेश / लद्दाख "* का मुद्दा भी, हमारे लिये बडा चिंताजनक दिखाई देता है. पडोसी देश वे हमारे मित्र कम, चायना के मित्र ज्यादा हमें दिखाई देते है. क्या हमें हमारी *"विदेश नीति"* बदलनी होगी ? यह भी अहं प्रश्न है.

         प्रथम महायुध्द हो या द्वितीय महायुध्द हो, वे सभी के सभी युद्ध, *"भुमी विस्तारवाद"* से जुडे हुये रहे है. प्राचीन काल में किये गये, ज्यादा तर *"राजेशाही युद्ध"* भी, भुमी विस्तारवाद के प्रमुख कारक रहे है. अखंड प्राचीन भारत के, *"कलिंग युध्द"* की युध्द मैदानी रक्त तांडव से ही, अखंड विशालकाय विकास भारत के *महान चक्रवर्ती सम्राट अशोक* के जीवन में, पुर्णत: बदलाव आ गया. चक्रवर्ती अशोक इन्होने *भदंत निगोथ* इनके हाथो, *"बुध्द धम्म"* का स्वीकार किया था. तत्पश्चात *मोगाली पुत्र निस्स* के प्रभाव से, चक्रवर्ती अशोक पुर्णतः बौध्द हो गये. चक्रवर्ती सम्राट अशोक ने, फिर कभी भी युध्द नहीं किया. बुध्द धम्म का प्रसार किया.‌ *"महायुध्द से केवल मानवी संहार ही नहीं होता, बल्की पर्यावरण, अर्थकारण, समाजकारण आदी की भी बडी हानी होती है."* द्वितीय महायुध्द में, विश्व की *"अर्थव्यवस्था"* पुर्णतः चरमरा गयी थी. *"कोरोना संक्रमण काल"*  भी, इसकी हमें एक अनुभुती दे गया है. *"पर्यावरण के बदलाव"* (Climate Change) संदर्भ का मेरा वो लेख - *"पर्यावरण बदलाव में जनसंख्या बढोत्तरी का दुष्परिणाम एवं लद्दाख आंदोलन की एक उचित पहल !"* यह जरुर ही पढना चाहिये. युध्द में जनसंख्या की बढोत्तरी निश्चित ही नहीं होती. जनसंख्या हानी होती है. परंतु *"रासायनिक प्रक्रिया"* को भी, हमें समझना होगा. यहाँ प्रश्न तो *"पाणी समस्या"* का है. *"जल स्तर"* यह बहुत ही निघे चला गया है. *"जंगल कटाव"* ने पर्यावरण पर, बहुत बडा असर किया है. अत: अगला महायुध्द यह *"भुमी विस्तारवाद"* के साथ साथ, क्या वह *"पाणी ग्रहण"* से भी जुडा हुआ होगा ??? यह प्रश्न है. *"द्वितीय महायुध्द"* (१९३९ - १९४५) में *कांग्रेस एवं गांधी* के अदुरदर्शीता ने, भारत को आजादी दिलाने में, *"तिन - चार साल की देरी"* हुयी है. क्या हम भविष्य में आने वाले खतरों को ना समझकर, हमारी ऐसे ही *"बिन-अकलवाद राजनीति"* करेंगे ? यह एक बडा ही गंभीर और महत्वपूर्ण प्रश्न, आप सभी के लिये....!!!


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▪️ *डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर १७

मो.‌न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२

नागपुर, दिनांक २२ जुनं २०२४

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