Thursday 27 June 2024

 .👌 *दीक्षाभूमी स्मारक से जुडी आंबेडकरी - बौध्द समुदायों की चेतना बनाम दीक्षाभूमी समिती की गहरी राजनीति - कुटनीति ....!*

    *डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल 

एक्स व्हिजिटिंग प्रोफेसर, डॉ बी आर आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ महु म प्र 

मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२


     आज कल नागपुर में, *"दीक्षाभूमी भुमिगत पार्किंग"* (Underground Parking) इस विषय के कारण, आंबेडकरी - बौध्द समुदायों की बडी ही चेतना, जाग खडी हुयी है. उन्हे अब समझने में आया है कि, भविष्य में *"भुमिगत कारणों"* सें, दीक्षाभूमी स्मारक को बडी हानी होनेवाली है.‌ दीक्षाभूमी स्मारक को सटे लगकरं ही, *"जेसीबी द्वारा बडा गड्डा खनन के कंपन"* के कारण, दीक्षाभूमी स्मारक को भविष्य में, *"बडी हानी"* होने की संभावना है. दुसरा कारण - नागपुर शहर में जितने भी *"भुमिगत रास्ते"* बनाये गये है, वहां *"बहुल मात्रा में पाणी"* जमा होता है. अत: भुमिगत रास्तों से जाना, यह बडा कठिण रहा है. कल भुमिगत पार्किंग के कारण, दीक्षाभूमी स्मारक के पास  *"पाणी जमा"* हुआ तो, वह दीक्षाभूमी स्मारक को हानी कर सकता है. तिसरा कारण - हमने भारत के *"विभिन्न प्रकल्पों"* के, भारतीय इंजीनियर / ठेकेदारों का काम देखे है, *जो प्रकल्प पुर्णतः फेल हो गये है*. कई नये बडे पुल ( Bridge) / कैनल तुट गये है. इस दुर्घटना के पिछे, अधिकारी - ठेकेदार *"कमिशन राज"* इन प्रमुख कारणोंं की, बडी ही चर्चा हो रही है. कल वहीं स्थिती *"दीक्षाभूमी स्मारक"* की हुयी तो ? यह भी प्रश्न है. कुछ साल पहले ही समाज कल्याण विभाग द्वारा, दीक्षाभूमी स्मारक के पास, *"आलिशान ऑडिटोरीयम"* बनाया है.‌ उसका रख-रखाव (Maintanence) करने में, दीक्षाभूमी स्मारक समिती पुर्णतः नाकाम रही है. अत: वह आलिशान ऑडिटोरीयम, *"नागपुर सुधार प्रन्यास"* के अधिन हस्तांतरित किया गया है. तब उस बडे *"भुमिगत पार्किंग की रख-रखाव"* (Maintenance) की जिम्मेदारी, किस की होगी ? यह भी अहं प्रश्न है. साथ ही हमें यह समझना होगा कि, दीक्षाभूमी स्मारक की जगह *"भुमिगत पार्किंग"* की, क्या जरुरी पडी है ? इस बिन-अकल संकल्प का, असली सुत्रधार कौन‌ है ? उसकी सही‌ मनशा क्या रही है ? दीक्षाभूमी में हर वर्ष *"धम्म चक्र प्रवर्तन दिन समारोह"* पर, पार्किंग तो दो किलोमीटर दुरी पर होता है ? और अंत में, इन सभी कारणों से, *"दीक्षाभूमी स्मारक को बडी हानी"* हुयी तो, इस के लिये कौन जिम्मेदारी लेंगा ? स्मारक समिती / एन.आय.टी. / महाराष्ट्र शासन...??? क्यौं कि, यह तमाम आंबेडकरी - बौध्द समुदायों का, आंतरिक चेतना का बडा प्रश्न है.‌ उपर से, दीक्षाभूमी समिती द्वारा, *"आंतरराष्ट्रीय स्तर पर कार्यक्रमों"* का संंचालन / प्रसार / प्रचार का कार्य, सही रुप से कभी हुआ ही नहीं.‌ इसके लिये *"व्हिजन"* की ही आवश्यकता होती है. क्या वह व्हिजन दीक्षाभूमी स्मारक समिती के सदस्यों के पास है ? यह भी प्रश्न है.

       दिनांक २३ जुन २०२४ को, ऊर्वेला कॉलोनी स्थित *"डॉ बाबासाहेब आंबेडकर सभागृह"* में, इस विषय संदर्भीत आयोजित सभा में, *"सभा आयोजन समिती"* के महिला सदस्य ने, एक बडी बात कही थी. *"क्या इस सभा में, कोई ऐसा एखादा विचारविद / चिंतक है, जिस ने इस षडयंत्र के विरोध में, कोई आवाज उठायी है ?"* तब मैं (डॉ मिलिन्द जीवने) खडा हो गया, और कहां कि, *"इस तरह के हमारे विचारविद / चिंतको पर आरोप ना करे. और मैंने स्वयं, २२ सितंबर २०२३ का वह संदर्भ देने लगा."* लोकमत के तत्कालीन पत्रकार और चिंतक *प्रा. रणजित मेश्राम* इनका, मुझे एक फोन आया था.‌ और मेश्राम जी मुझे कहने लगे कि, *"धम्म मित्र, दीक्षाभूमी पर भुमिगत पार्किंग के लिये, खनन कार्य चालु किया गया है. क्या यह उचित कार्य है ? क्या इस से दीक्षाभूमी वास्तु को, कोई धोका हो सकता है ?"* तब मैने प्रा. रणजित मेश्राम को कहा कि, "इस संदर्भ में हमें घटना स्थल पर जाकर ही, कुछ बयाण करना ठिक रहेगा."  और मैंने स्वयं २२ सितंबर २०२३ को, *इंजी.‌ विजय बागडे / इंजी.‌ गौतम हेंदरे* इनको दुसरे दिन, मेरे अपने ऑफिस बुलाया था. इंजी. विजय बागडे कुछ कारणवश नहीं आ पाये. साथ ही मैने *सुर्यभान शेंडे / शंकरराव ढेंगरे / विजय भैसारे / डॉ. मनिषा घोष / डॉ. भारती लांजेवार* इनको भी फोन कर, मेरे अपने ऑफिस बुलाया. सुर्यभान शेंडे / विजय भैसारे ये बाहर होने से नहीं आये. २३ सितंबर २०२३ को, *इंजी. गौतम हेंदरे / शंकरराव ढेंगरे / डॉ. मनिषा घोष / डॉ. भारती लांजेवार* ये मेरे घर आये. मैने उनको *"दीक्षाभूमी भुमिगत खनन"* की सारी बात बतायी. और इंजी. गौतम हेंदरे इन्हे, सदर भुमिगत खनन संदर्भ धोके के बारे में पुछा. तब इंजी गौतम हेंदरे  मुझे कहने लगे कि, *"घटना स्थल पर जाकर ही, इस संदर्भ में बता सकता हुं."* और हम सभी मेरे कार से, दीक्षाभूमी चले गये. और *"हमने उस भुमिगत खनन के फोटो लेकरं, एवं मैने उस संदर्भ में लेख लिखकर, सभी मिडिया में प्रकाशित किया था. एक साल पहले तक, किसी ने भी उस संदर्भ में, कोई दखल नहीं ली. और अब बांधकाम होने पर, कडा विरोध हो रहा है."* इस संदर्भ को‌ हम क्या कहे ? तब मेरे इस कथन पर, २३ जुन २०२४ की सभा में, सभा आयोजन समिती महिला सदस्या खामोश हो गयी. अभी अभी भुमिगत पार्किंग के संदर्भ में, दीक्षाभूमी स्मारक समिती सचिव (?) *राजेंद्र गवई* इनकी वह पत्र परिषद मैने सुनी है. उनके साथ ही उस पत्र परिषद में, पद्मश्री *डॉ चंद्रशेखर मेश्राम / विलास गजघाटे / एन.‌आर. सुटे / प्रा. डॉ. प्रदिप आगलावे / प्रा. डी. के. दाभाडे* आदी मान्यवर उपस्थित थे. *राजेंद्र गवई* का‌ वो कथन, बहुत ही शर्मसारं है. वह दोष केवल *भंदत आर्य नागार्जुन सुरेई ससाई जी* इन पर लादने का, कभी समर्थन नहीं किया जा सकता. तत्कालीन सचिव *डॉ सुधिर फुलझेले* इनको मैने, *"कोरोना काल"* में, प्रदिप आगलावे इनको समिती सदस्य बनाना, यह तो बहुत बडी भुल बताया था. क्यौ कि, प्रदिप आगलावे ये मेरा *जिवलग मित्र* रहा था. उसकी *"कुछ आदतें"* मुझे भलीभाती पता है. *"अत: हमारे दोनों के, अलग अलग हो जाने की पिडा / वेदना को, मैं भलीभांती ही झेला हुं"*  यही बातें मैने *एड. आनंद फुलझेले* इनको भी कही थी. स्मारक समिती के *भंदत आर्य नागार्जुन सुरेई ससाई / प्रा. डॉ. सुधिर फुलझेले / भंते नाग दिपांकर जी / विलास गजघाटे / डॉ चंद्रशेखर मेश्राम* इनके साथ मेरे अच्छे संबंध है. उन सभी समिती सदस्यों से, *१ जुलै २०२४ तक* उचित सकारात्मक कार्यवाही की, हम आशा करते है.

      अब हम *"कोरोना काल"* की ओर बढते है.‌ कोरोना काल में, ओरीसा राज्य की  *"जगन्नाथ रथ यात्रा"* निकालने में, सर्वोच्च न्यायालयाने राज्य सरकार के नियंत्रण में, वह निकालने को हरी झंडी दिखाई थी. विजया दशमी दिन के उपलक्ष में, *"संघवाद का शस्त्रपुजन"* भी किया गया. दीक्षाभूमी समिती ने, वह पहल नहीं की थी. दिक्षाभुमी पर, ना ही *"धम्म चक्र प्रवर्तन दिन समारोह"* हुआ. ना ही *"दीक्षाभूमी के द्वार खोले गये थे."* अत: उस विषय के विरोध में, *सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल "* इस राष्ट्रिय संंघटन द्वारा, मेरे (डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य') ही नेतृत्व में, पावन दीक्षाभूमी पर *"डॉ बाबासाहेब आंबेडकर इनको अभिवादन "* का सफल आयोजन किया गया. प्रेस मिडिया में सी.आर.पी.सी. संघटन की राष्ट्रिय महासचिव के रुप में, *डॉ. किरण मेश्राम* इन्होने प्रेस को तब संबोधित भी किया गया था. तथा *मा. उच्च न्यायालय* नागपुर खंडपीठ में, तिन पिटिशन भी (WP No. (ST) 9691/2020 & WP No. 4159/2020 & WP No. ..Stamp No. WIST/10860/2020) डाली गयी थी. तथा धर्मादाय सह आयुक्त कार्यालय में, (माणिकराव सातव) एक केस (चौकशी अर्ज न. ३२/२०२०) डाली गयी थी. तब सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल के *सुर्यभान शेंडे / प्रा. नितीन तागडे / शंकरराव ढेंगरे / प्रा. वंदना मि.‌ जीवने / डॉ. किरण मेश्राम / दीपाली शंभरकर / डॉ. मनिषा घोष / प्रा.‌ डॉ. वर्षा चहांदे / डॉ. भारती लांजेवार / ममता वरठे / चैताली रामटेके / कल्याणी इंदुरकर /  इंजी. माधवी जांभुलकर / प्रा. डॉ. नीता मेश्राम / ममता गाडेकर / डॉ राजेश नंदेश्वर*  आदी बहुत सारे सहपाठी, मेरे साथ ही खडे थे. आज *दिपाली शंभरकर* हमारे बीच नहीं है. परंतु यादे रह जाती है. तथा उच्च न्यायालय में, मेरे उस केस की वकिली - *एड. डॉ. मोहन गवई / एड. संदिप ताटके* इन्होने, किसी भी प्रकार की *कोई वकिल फी ना लेकर,* तरफदारी की थी. वही बातें *"संविधान साहित्य नहीं है"* इस संदर्भ में भी, सर्वोच्च न्यायालय के वकिल *एड. चेतन बैरवा / एड. बी. बी. रायपुरे* इन्होने भी, किसी भी प्रकार की, *वकिल फी ना लेकरं* मेरे केस की (WP No . 3940/2019) तरफदारी की थी. माजी सनदी अधिकारी - *इ. झेड. खोब्रागडे* इस महामानव (?) को, *"भारत का संविधान यह साहित्य लगता है."* तो फिर नयी दिल्ली के *"जंतर मंतर पर, भारत का संविधान को जलाया गया,"* इसके लिये वो दोषी कौन है ? यह प्रश्न है. साहित्य अगर मान्य ना हो तो, उसे जलाया भी जा सकता है. जैसे - *"मनुस्मृती...!"* भारत का संविधान यह *"कानुनी किताब"* नहीं है, बल्की वह *"कानुनी दस्तावेज"* है. यह साधी अक्कल भी, इ. झेड. खोब्रागडे को नहीं दिखाई दी. तब हम सभी खामोशी से देख रहे थे. और मेरे साथ केवल मेरे अपने साथी थे. *"जो कोई भी अपना साथ देता है, या मिशन‌ में कार्यरत होता है, उसे कभी भी भुला नहीं करते. वह एक इतिहास बनता है."* और फिर इतिहास को भुलनेवाले, वे कभी भी बडे नहीं हो सकते...!!!  वही भारत में, *"किसी गद्दारों* का इतिहास नहीं बना. वे इतिहास में दफन हो गये. यही जीवन का सत्य है. वो संपुर्ण सत्य है. और यही सत्य ही हमें समझना है. जय भीम...!!!


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नागपुर, दिनांक २७ जुनं २०२४

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