Saturday, 13 May 2023

 ➿ *मा.‌ सर्वोच्च न्यायालय द्वारा महाराष्ट्र राजनीति-कार ठाकरे / शिंदे/ फडणवीस एवं दिल्ली सरकार संदर्भ में निर्णय...?*

   *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल (सी.आर.पी.सी.)

एक्स व्हिजीटींग प्रोफेसर, डॉ. आंबेडकर सामाजिक विज्ञानं  विद्यापीठ, महु (म.प्र.)

मो.न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२


     गुरुवार दिनांक ११ मई २०२३.‌ *"स्वतंत्र भारत संघराज्य महाराष्ट्र तथा दिल्ली"* के केंद्र - राज्य अधिकार संदर्भ में, मा. सर्वोच्च न्यायालय द्वारा घोषित निर्णय पर, *"कही खुशी - कही गम"* ऐसा समुचे भारत में ही, गरम चर्चा का माहुल बना‌ है. उक्त न्यायालय निर्णय (?) पर चर्चा करने के पहले, भारतीय राजनीति को *"वेश्या"* (Prostitute) शब्द कहनेवाले - *मोहनदास गांधी*/ शारदापीठ के शंकराचार्य जगतगुरु *राजराजेश्वर* जी / राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस.) के प्रमुख *के.‌ सुदर्शन* जी, संस्कृत भाषा कवि एवं सनातनी विचारों के नीतिकार - *भर्तुहरी* इनके आकलन को, *हमने क्या समझना चाहिये ?* यह भी अहं प्रश्न है.‌ बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर साहेब ने *"संविधान सभा"* में, *"सत्ता केंद्रीयकरण तथा राज्यों पर अतिक्रमण"* संदर्भ में उत्तर देते हुये कहा, *"केंद्र को जादा अधिकार, यह संविधान में सर्वसामान्य अंग है. केवल इमरजंसी में ही, यह अधिकार केंद्र के पास होंगे. अन्यथा नही."* (दिनांक २६ नवंबर १९४९) बाबासाहेब जी ने *"भारत पर लादी गयी गुलामी"* के संदर्भ में कहा है कि, *"भारत के इतिहास में जो कुछ भी हुआ है, क्या उसकी पुनरावृत्ति होंगी ? इस प्रश्न से मेरा मन्न सुन्न होता है. जातीभेद और धर्मभेद - हमारे पुराणे शत्रु है. नये - नये, अलग - अलग विचार करते हुये, राजनीतिक दल पैदा हुये है, और आगे भी होंगे - इससे हमारे शत्रुओं में वृध्दी होंगी."* जरा सोंचो, बाबासाहेब के यह ७३ साल पहले के शब्द है. जो आज भी पुरे लागु है.*"सत्ता पाने की लालसा"* में, भारत के राजनीति का स्तर इतने निचे गया कि, *"नंगावाद - नंगानाच"* दिखाई देता है. अत: इन राजनीतिक नेताओं को, वेश्या शब्द के साथ साथ *"नंगे दलाल"* भी कहना, कोई अतिशयोक्ती नही है. इन्हे *"देश विकास, आवाम उत्थान"* का कोई भी लेना - देना नही है...! अब हम न्यायालय निर्णय पर चर्चा करेंगे.

     *उध्दव ठाकरे* जी, महाराष्ट्र के तत्कालिन *मुख्यमंत्री पद के इस्तीफे* से लेकर, ठाकरे के सरकार‌ / महाआघाडी से, जो भी गलती हुयी हो, क्या उस *बडी गलती* से, विरोधी दलों द्वारा सरकार उलटाना / शिवसेना में दो फाड कर डालना / राज्यों में तिव्र असंतोष निर्माण करना / पैसों का व्यापारीकरण भी/ इसका समर्थन, क्या किया जा सकता है ? यह प्रश्न है. तत्कालिन‌ राज्यपाल *भगतसिंह कोश्यारी* पर, केवल टिप्पणी करना काफी है ! और तो और, वो कोश्यारी महाराज भी, निर्लज्ज होकर *"इस्तीफा मत दो !"* कहना चाहिये क्या ? ऐसे बयाण दे गये. इतना बडा ना-लायक (Not Qualified) / निर्लज्ज / कलंकित व्यक्ति - राज्यपाल समान पद पर, बहुत ही कम देखे जाते है. वही मा. सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय पर, अपनी प्रतिक्रिया देते हुये महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष *विजय नार्वेकर* ने कहा कि, *"सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अंतर्गत सुनवाई करते हुये, उचित कालावधी में निर्णय देंगे."* अब तो आगे की कारवाई देखनी होगी.

     मा. सर्वोच्च न्यायालय के सरन्यायाधीश *धनंजय चंद्रचूड* इनकी अध्यक्षता में - *न्या. एम. आर. शहा, न्या. कृष्ण मुरारी, न्या. हिमा कोहली, न्या. पी. एस. नरसिंहा*  इन पांच न्यायाधीश‌ घटनापीठ का वह निर्णय, तांत्रीक दृष्टीसे सही भी है. परंतु उस निर्णय से, बहुत सारे प्रश्न भी उत्पन्न हुये दिखाई देते है. उस प्रश्नों के सही उत्तर और इस तरह का दुषित वातावरण निर्माण करनेवाले दोषीओं को, उचित सजा देना भी, भारत के लोकतंत्र के लिए बहुत आवश्यक है. नही तों, ऐसे ही सरकारों को गिराना / राजकिय दलों का फाड करना / न्यायालय में सुनवायी होना, इस तरह के कुटिल - हिन तंत्र को रोकना भी, न्यायालय का सही दायित्व है. क्यौ कि, *"भारतीय संविधान"* द्वारा *"सरकार द्वारा बनाये गये, दोषपूर्ण कानुन (?) में, सुधार करने का संविधानिक अधिकार सर्वोच्च न्यायालय को मिला है."* तथा कानुन के दुरुपयोग (?) करनेवालों को भी रोकना, *"सत्ता का व्यापारीकरण"* रोकना, यह भी न्यायालय का बडा दायित्व ही है. और जब *न्यायालय अपना दायित्व,* बडे बखूबी से निभाता चला आयेगा, तब सरकार पर भी अंकुश‌ लगना आसान होगा...!

      मा. सर्वोच्च न्यायालय ने, एक ही दिन दो महत्वपुर्ण राज्य - *"महाराष्ट्र तथा दिल्ली के राज्यपालों के अधिकार‌ - कर्तव्यों के फ़ैसले"* दिये है. राजधानी नयी दिल्ली के प्रशासनिक अधिकारी वर्गों की नियुक्ति हो या, बदली का अधिकार, *"लोकानुभुम नयी दिल्ली सरकार का ही है.‌ नयी दिल्ली के नायब राज्यपाल, नयी दिल्ली सरकार के सलाह तथा सहकार्य पर काम करेंगे.‌..!"* ऐसा अपना फैसला दिया गया. इससे दिल्ली का बॉस, अब नायब राज्यपाल नही, बल्की दिल्ली सरकार ही होगी. सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय, केंद्र सरकार के लिए, बडा ही सबक रहा है. *फिर भी नयी दिल्ली में कानुन, सुव्यवस्था, जमिन की समस्या, पोलिस यह विषय केंद्र सरकार के अधिन है.* अत: दिल्ली सरकार, इस विषय दोषों से, मुक्त भी हो पायी है. *"सत्ता विभाजीकरण"* निर्णय होने से, दिल्ली के विकास के रास्ते अब खुल गये है. *"भारत के संविधान"* में एवं *"संविधान सभा"* डिबेट में, बाबासाहेब आंबेडकर साहाब ने *"केंद्र - राज्य संबंधो"* को उजागर करते हुये कहा कि, *"कानुन बनाने का अधिकार, यह केंद्र सरकार एवं राज्यों सरकारों में विभाजीत है. और यह विभाजन केंद्र सरकार द्वारा ना होकर, संविधान द्वारा निहित है. अर्थात राज्यों को, केंद्र सरकार के अधिन नही रखा गया."* और दिल्ली यह केंद्र शासित प्रदेश नही, बल्की स्वतंत्र राज्य है. फिर भी केंद्र - राज्यों के बिच, अधिकारों के संदर्भ में ऐसे विवाद होना, ये स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अच्छा नही है.

     केंद्र - राज्यों  के बिच अब नया विवाद - *"सार्वभौमत्व"* का भी उभरा है.‌ *कर्नाटक चुनाव* का यह राजनीतिक विवाद, चुनाव आयोग तक गया है. शायद भविष्य में वह राजनीतिक विवाद, न्यायालय में ना पहुंचे ! *"भारतीय संविधान"* के अनुच्छेद क्र. १ में, देश का नाम, *"India, that is Bharat"*  लिखा है.‌ और आगे Bharat, shall be a *"Union of States"* अर्थात *"भारत यह संघराज्य"* भी बताया है. यही नहीं, भारत के राज्यक्षेत्र - (क) राज्य की राज्यक्षेत्र (ख) पहिले अनुसुचि में विनिर्दित संघ राज्यक्षेत्र (ग) संपादित की गये अन्य राज्यक्षेत्र - यह मिलकर बने है. हमारे राजनीतिक नेता लोग, *"हिंदुस्तान"* इस असंवैधानिक नाम का, वे प्रयोग करते है.‌ उसकी उन्हे शर्म भी नही. *"भारतीय संविधान"* की प्रास्ताविका हमें - *"हम भारत के लोग, भारत एक सार्वभौम - समाजवादी - धर्मनिरपेक्ष - लोकशाही - गणराज्य बनाने का एवं सभी आवाम को...."* शपथ लेते है. अर्थात भारत देश के साथ, सलग्न सभी राज्य एवं आवाम भी तो *"सार्वभौम"* ही है. इस विषय पर विवाद (?) खडा करना, अर्थात भारत की *"बंधुत्व के भावना"* को खंडित करने जैसा है.‌ भारत आज भी *"देश"* (Country)  है.‌ भारत यह *"राष्ट्र"* (Nation) नही बन पाया है. इसका कारण *"बंधुत्व का अभाव"* ही है.  उपरी पैरा में, डॉ. आंबेडकर साहाब ने, *"जातवाद - धर्मवाद - उभरते राजनीतिक दलों को, शत्रु बताया है"* यह समझना भी, हमे बहुत जरुरी है.

    जब हमारे तमाम राज दल के नेता, *"राष्ट्र विकास.. आवाम उत्थान.."* की बडी बडी बातें करते है, फिर उन्होने आजादी के ७५ साल गुजरने के बाद भी, *"भारत राष्ट्रवाद मंत्रालय एवं संचालनालय"* की स्थापना क्यौं नही की ? बजेट में प्रावधान भी क्यौ नही...? स्वतंत्र भारत का *"राष्ट्रगान",* आज‌ तक भी, क्यौं नही रचा गया ? *"जन - गण - मन - अधिनायक जय हे, भारत भाग्य विधाता...!"* इस राष्ट्रगान में, जन - गण - मन का भाग्य विधाता कौन है... *जिस का जय जयकार  हो...?* वास्तव में यह गीत, इंग्लैंड के राजा जार्ज पंचम की महिमा को बखान करता है. उस भाग्य विधाता का जय जयकार हो ! इससे बडी गुलामी, और क्या हो सकती है ? वही *" वंदे मातरम्"* यह गीत भी, भारत का राष्ट्रगान नही हो सकता ? वह गीत, देवी दुर्गा के सुंदरता का बखाण करता है. *"मा. सर्वोच्च न्यायालय"* यह, भारत की *"वॉच डॉग"* है.‌ उसे कानुन में सुधार करने का पुर्ण अधिकार‌ है. कानुन बनाने का सिर्फ अधिकार नही. *क्या सशक्त राष्ट्र बनाने के लिए, विकास भारत का मॉडेल बनाने के लिए, आवाम के उत्थान के लिए, सत्ता का व्यापारीकरण रोकने के लिए, भारत का भ्रष्टाचार मिटाने के लिए, भारत के राष्ट्रवाद के लिए,* कुछ उम्मीद हम, सर्वोच्च न्यायालय से कर सकते‌ है...?


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* *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर

        (भारत राष्ट्रवाद समर्थक)

मो.‌न.‌ ९३७९८४१३८, ९२२५२२६९२२

नागपुर, दिनांक १३ मई २०२३

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