💐 *एड. अशोक गेडाम द्वारा संपादित - बुध्द धम्मोपदेश यह बौध्द सुत्तसंग्रह का उत्तम ग्रंथ...!*
*डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर १७
राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
माजी व्हिजिटींग प्रोफेसर, डॉ. आंबेडकर समाज विज्ञान विद्यापीठ, महु (म.प्र.)
मो.न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२
हमारे धम्म मित्र *एड. अशोक गेडाम* (माजी उपजिल्हाधिकारी) इनसे जब भी मेरी चर्चा होती रही है, वह विशेषत: धम्म पर ही होती है. और उनका प्रत्यक्ष अनुकरण भी, मुझे देखने को मिलता रहा है. अभी अभी उनके कनिष्ठ पुत्र *अश्विन* के मंगल परिणय में भी, उन्होने अनावश्यक रुढीयों को नकारते हुयें, किसी भी भेटवस्तु / बुके -पुष्पगुच्छ ना लाने की निमंत्रण पत्रिका में, अपने चिंतक साथियों को अपिल की थी. वही सदर मंगल परिणय में, *अशोक गेडाम* द्वारा संपादित *"बुध्द धम्मोपदेश"* इस बौध्द सुत्तसंग्रह ग्रंथ का, २७ बौध्द भिक्खुओं के उपस्थिती में, उसका प्रकाशन किया. और सभी निमंत्रित साथियों को, उन्होंने तो उस पावन अवसर पर, वह धम्म ग्रंथ को भेट भी किया था. इसके पहले उन्होने, उनके द्वितिय पुत्र *क्षितिज* के मंगल परिणय में तो, उन्होने लॉन में *"बुध्द नगरी"* ही बसायी थी. जहां देखों वहां १० - १२ फुट आकार की, बुध्द - डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जी की प्रतिमा रखी हुयी थी. उस समय भी अनावश्यक रूढींयों को नकारा था. तथा सभी निमंत्रीत साथियों को, गोल्डन कलर में *"धम्मपद"* यह अमुल्य धम्म पुस्तक को भेंट किया था. और वह मंगल परिणय हमें, एक प्रकार से *"धम्म सम्मेलन"* दिखाई दिया.
अब हम *एड. अशोक गेडाम* जी द्वारा संपादित, *"बुध्द धम्मोपदेश"* नामक बौध्द सुत्तसंग्रह ग्रंथ पर, कुछ अल्प मात्रा में चर्चा भी करेंगे. सदर सुत्तसंग्रह ग्रंथ का पेपर का दर्जा, बहुत ही लाजबाब है. वह ग्रंथ *"पाली, अंग्रेज़ी, हिंदी, मराठी"* चारों भाषा में, एक ही जगह में पढ सकते हैं. वह ग्रंथ हर बौध्द परिवार में, हर बौध्द विहार में रखने के योग्य है. हर व्यक्ति नें उस ग्रंथ को पढना चाहिये. वही बात *"धम्मपद"* इस पुस्तक कें संदर्भ में भी, कहा जाएं तो, वह कोई अतिशयोक्ती भी नही होगी. महत्व का विषय यह है कि, वह धम्म ग्रंथ *"मुफ्त वितरण"* के लिए है. इससे बडा धम्म दान और क्या हो सकता है ? और महत्वपुर्ण विषय यह है कि, उनके बडे सुपुत्र *दिक्षित* (IPS) भी अपने पिता के धम्मगत कामों के साथ खडें है.
जब भी धम्म कार्यों का विषय आता है, तब मुझे मेरे कुछ अन्य धम्म मित्रों कें, धम्म कामों की याद आ जाती है. हमारे ऐसे ही प्रिय धम्म मित्र है - *इंजी. विजय मेश्राम* साहाब (Retd. Secretary, Ministry of Railway). उन्होने *"बानाई"* के अध्यक्ष काल में, *"दि बुध्दा एडं हिज धम्मा"* इस धम्म ग्रंथ को, दस रुपया इस अल्प दर में, बौध्द समुदायों को उपलब्ध कराया था. मेरे *(डॉ. मिलिन्द जीवने)* द्वारा आयोजित प्रत्येक *"जागतिक बौध्द धम्म परिषद / अखिल भारतीय आंबेडकरी विचार परिषद"* में, उन्होने ४०० - ५०० प्रतियां तो मुफ्त में उपलब्ध करायी हुयीं थी. और मेरे द्वारा आयोजित किसी भी परिषद में, मैने किसी भी तरह की फी नही रखी थी. इतना ही नही, तायवान देश से जो भी बौध्द धम्म संपंदा मेरे पास भेजी जाती थी, वह भी मैने *"मुफ्त"* में ही आवाम को उपलब्ध करायी है. इंजी. *इंजी.विजय मेश्राम* साहाब के, और भी बडे धम्म कार्य है. उन्होने ए - फोर साईज में, कलर बुध्द पिक्चर्स *"दि बुध्दा एडं हिज धम्मा"* इस धम्म ग्रंथ का बुध्द विहार को, मोफत वितरण किया हुआ है. *"भारत का संविधान"* भी ए - फोर साईज में, भारतीय आवाम के लिए, उन्होने *"बानाई"* के माध्यम से उपलब्ध कराया है. इस लिए बानाई का योगदान भी काबिल - ए - तारिफ है. वैसे ही दिल्ली के मेरे बहुत ही अच्छे धम्म मित्र - नामचिन विचारविद *डॉ. अरविंद आलोक* (माजी सचिव, रेल्वे मंत्रालय) भी, *देश तथा विदेश* जाकर धम्म कार्य कर रहे है. वे जब भी नागपुर में, मेरे द्वारा आयोजित परिषद में आयें है, उन्होने किसी भी तरह का विमान प्रवास भाडा या मानधन, मेरे से कभी नही लिया. उनकी जहां भी रहने की व्यवस्था मैने की थी, उन्होने कभी भी, मेरे से नाराजी नही जताई. वही बात भी *इंजी. विजय मेश्राम* साहाब जी के बारें में कही जा सकती है. उन्हे केवल मैने फोन पर ही निमंत्रण दिया है.
मेरे एक अच्छे धम्म मित्र *श्याम तागडे* साहाब जी (IAS) का भी, मै जिक्र करना चाहुंगा. उनके द्वारा लिखित *"बोधिसत्व आंबेडकरांचे बुध्द धम्म मिशन"* यह धम्म ग्रंथ भी, बहुत महत्वपुर्ण है. वैसे उनके द्वारा लिखित और भी धम्म पुस्तके है, जो मेरे खाजगी लायब्ररी में संग्रहित है. वे भी धम्म पर नियमित प्रवचन देते है. उमरेड के पास *"बौध्द सेमिनरी"* का काम, उन्होने हाथ में लिया है. वैसे मेरे बहुत ही घरेलु संबंध जिन से है, वे मान्यवर है *डॉ. मुंसिलाल गौतम* साहाब (IAS). उन्होने नागपुर में, *"पी. एन. राजभोज आय.ए.एस. कोचिंग संस्थान"* स्थापित कर, हमारे छात्रों कें लिए प्रशासन अभ्यास की व्यवस्था की है. मुझे बहुत बार उन्होने सदर संस्थान में, निमंत्रित भी किया है. नामचिन बौध्द विचारविद *भदंत आनंद कौशल्यायन* के, वे बहुत करिबी रहे. मेरी भी भदंत आनंद जी के साथ बातचित होती थी. ऐसे ही एक मेरे धम्म मित्र है - *अरविंद सोनटक्के* साहाब (Ex Income Tax Commissioner), जो डॉ. बाबासाहेब के *"बाईस प्रतिज्ञा"* का प्रसार - प्रचार कर रहे है. यवतमाल शहर के *डॉ. अशोक कांबले* साहाब इन्हें *"आधुनिक अनाथपिंडिक"* भी हम कह सकते है. उन्होने भंते बनकर अपनी खुदकी अर्जीत संपत्ति धम्म को दान की है. उनका यवतमाल के पास *"चापर्डा"* स्थित - *"बौध्द सेमिनरी"* को, हम ने तो एक बार निश्चित भेट देना चाहिये.
धम्म क्षेत्र में कार्यरत, हमारे धम्म मित्रों की यादी, बहुत ही लंबी है. बहुत सारे नाम गिने भी जा सकते है. *डॉ. आर.एस. कुरील* (माजी कुलगुरु, महु) इन्होने अपने कुलगुरू कार्यकाल में, आंबेडकर समाज संस्थान को विद्यापीठ मे बदला है. *डॉ. सी. डी. नायक* (माजी कुलगुरु, महु), इन्होने तो बहुत सारे संशोधित ग्रंथ लिखे है. न्यायाधीश - *अनिल वैद्द* / न्यायाधीश - *विजय धांडे* / *राजरतन कुंभारे* (माजी संचालक, अग्री. विभाग) / *शंकर ढेंगरे* (माजी प्रशासनिक अधिकारी) आदी बहुत सारे मित्र है. उनसे धम्म पर चर्चा होती रहती है. वही कभी कभी *अपने बहुत करिबी ही, बहुत वेदना कर जाते है...!"* हमारे बचनम में, हमें अंग्रेज़ी कहावत *"To err is Human Being"* (गलती करना, यह व्यक्ति का स्वभाव गुण है) सिखाया गया. और वह हमसे रट्टा भी कर लेते थे. जो अंग्रेजी कहावत, हम आज तक भी नही भुल पायें. परंतु *"धम्म से - मिशन से धोका करना / धम्म का व्यापारीकरण / झुट बोलना"* आदी बातों को, हम ने बिलकुल ही बर्दास्त करना नही चाहिये. यहां सवाल तो, *"विचारों के समझदारी का भी है."* जितने व्यक्ति, उतनी प्रवृति, उतनी विचारशीलता ?
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