Saturday, 20 May 2023

 💰 *दो हजार रुपये करंसी के ब्यान पर रिझर्व बैंक ऑफ इंडिया की घोषणा ...?*

   *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल

मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२५२२६९२२


      भारतीय करंसी (रुपया) के *"नोटबंदी"* का एक इतिहास रहा है. भारत की पहली नोटबंदी, *अंग्रेज काल* (आजादी के पहले) में, तत्कालिन व्हाईसरॉय - गव्हर्नर *जनरल सर आर्चीबाल्ड वेवेल* इन्होने, १२ जनवरी १९४६ को, हाई करंसी डिमोनेटाईझ करने का अध्यादेश‌ निकाला था. उस अध्यादेश के १३ दिन बाद ही, *"रुपये ५००/-, १०००/-, १०,०००/-"* इन नोटों की वैधता समाप्त हो गयी. क्यौं कि, उस समय व्यापारीयों ने मित्र देशों को, सामान निर्यात कर, भारी मात्रा में नफा कमाये जाने की चर्चा थी. अत: काले धन को रोकने के लिए, *ब्रिटिश सरकार* ने वह निर्णय लिया था. भारत की *"दुसरी नोटबंदी"* भारत के तत्कालिन प्रधानमंत्री *मोराररजी देसाई* इनके कार्यकाल में, १६ जनवरी १९७८ को ली गयी थी. और दुसरे दिन ही देसाई सरकार ने, *"रुपये १०००/-, ५०००/-, १०,०००/-"* के नोटों को चलन से बाहर किया था. महत्वपुर्ण विषय यह की, सन १९८० के चुनाव में, नोटबंदी यह विषय रहा था.

     भारत की *"तिसरी नोटबंदी "* प्रधानमंत्री *नरेंद्र मोदी* सरकार ने, ८ नवंबर २०१६ को, *रुपये ५००/-* नोट को चलन से बाहर किया था. और तो और *रुपये १०००/-* नोट को *"डिमोनेटाईझ"* (Demonetise) किया गया था. परंतु इसकी घोषणा अधिकृत रूप से, *रिझर्व बैंक ऑफ इंडिया* द्वारा नही की गयी थी. और मोदी सरकार के नोटबंदी का, सभी विरोधी दलों ने, भारी विरोध किया था. प्रकरण सर्वोच्च न्यायालय में भी गया. परंतु न्यायालय ने, मोदी सरकार का निर्णयों सही ठहराया. अब *"चवथी नोटबंदी"* भी, *नरेन्द्र मोदी* कार्यकाल में ही, १९ मई २०२३ को, रिझर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा, अधिकृत रुप से, घोषित की गयी. और २३ मई २०२३ से, *"रुपये २०००/-"* की नोट *बैंकों में जमा करने* का निवेदन किया गया. और रुपये २०००/- नोट *३० सितंबर २०२३ के बाद,* चलन से बाहर हो जाएगी. तिसरी - चवथी नोटबंदी का अंतर, यह *"७ साल के अंदर"* का ही दिखाई देता है. और पहिली - दुसरी नोटबंदी का अंतर *"३१ सालों"* का दिखाई देता है.‌ दुसरी - तिसरी नोटबंदी का अंतर भी लगभग *"३६ सालों"* का है. बडा महत्वपुर्ण विषय यह कि, भारत आजाद होने के बाद, *मोरारजी देसाई  - नरेन्द्र दामोधर मोदी* इन *"गुजरात मेड प्रोडक्ट"* ने ही, नोटबंदी कराने का इतिहास रचा है. आझाद भारत के इस नोटबंदी पर चर्चा करने के पहले हम, तत्कालिन प्रधानमंत्री *इंदिरा गांधी* इनके भी कार्यकाल को देखेंगे.

    भारत में सबसे जादा साल, प्रधानमंत्री का कार्यकाल *इंदिरा गांधी* का ही रहा है.‌ वे सन १९६६ से १९७७ तक लगातार तीन बार प्रधानमंत्री रही. और चवथी पारी सन १९८० से ३१ अक्तुबर १९८४ तक, अर्थात उसकी निर्घुण हत्या होने तक, वो गणराज्य भारत की प्रधानमंत्री रही.‌ उसके प्रधानमंत्री काल में, तत्कालिन अर्थमंत्री ने इंदिरा गांधी को, *"नोटबंदी"* कराने की सलाह दी थी. तब इंदिरा ने अर्थमंत्री को, *"क्या आगे सरकार बनानी नही है क्या ?"* यह उत्तर देने की, बात कहीं जाती है.‌ परंतु भारत की आर्थिक स्थिती मजबुत कराने के लिए, इंदिरा गांधी ने *"१४ प्रायव्हेट बैंको का राष्ट्रियकरण"* १९ जुलै १९६९ को कराते हुये, सर्व सामान्य लोगों के लिए भी अल्प, मध्यम उद्योगों के दरवाजे खुलें करने का इतिहास है. वे १४ बैंक है - *सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया / बैंक ऑफ इंडिया / पंजाब नैशनल बैंक / बैंक ऑफ बडोदा‌ / देना बैंक / युको बैंक / केनरा बैंक /  युनायटेड बैंक / सिंडिकेट बैंक / युनियन बैंक ऑफ इंडिया / अलाहाबाद बैंक / इंडियन बैंक / इंडियन ओव्हरसीज बैंक / बैंक ऑफ महाराष्ट्र.* और यह गणराज्य भारत का, क्रांतीकारी कदम भी कहा जाता है. गणराज्य भारत के प्रधानमंत्री *नरेन्द्र मोदी* ने, ६ नवंबर २०१७ को कहा था कि, *"इंदिरा गांधी ने अगर नोटबंदी की होती तो, उन्हे यह कदम उठाने की जरुरत ही ना पडती."* जब की *"दुसरी नोटबंदी"* यह तो, गणराज्य भारत के तत्कालिन प्रधानमंत्री *मोरारजी देसाई* इनके ही कार्यकाल में, १६ जनवरी १९७८ को हुयी थी.

    अब हम प्रधानमंत्री *नरेन्द्र मोदी* सरकार के, *"नोटबंदी कारणों"* की ओर रूख करेंगे.‌   नरेंद्र मोदी सरकार ने ८ नवंबर २०१६ को नोटबंदी लादकर, *"रुपये ५००/-, १०००/-"* इन नोटों को चलन से बाद कराने के बाद, *रिझर्व बैंक ऑफ इंडिया एक्ट के कलम २४(२)* अंतर्गत *"रुपये २०००/-"* की नोट चलन में लायी थी. परंतु रिझर्व बैंक ने सन २०१८ - १९ से, दो हजार के नोटों की छपाई करना पुर्णत: रोक दिया. रिझर्व बैंक द्वारा सदर *"नोटों का आयुर्मान पांच साल"* का भी बताया था. तथा ३१ मार्च २०२३ को, *"३.६२ लाख कोटी रुपये मुल्य"* की वह करंसी, व्यवहार में होने की बात कही गयी.‌ परंतु ३१ मार्च २०१८ को, *"६.७३ लाख कोटी रुपये मुल्य"* की वह करंसी व्यवहार में थी. अर्थात इन पांच सालों में, *"उस मुल्य का आधा घटना,"* रिझर्व बैंक के सामने प्रश्न खडा हुआ.‌ शायद *"काला पैसा रैकट"* की कमाल ...! रिझर्व बैंक ने *रु. २०००/- करंसी बंद कराने* के कारण, ३० सितंबर २०२३ तक नोट बदली कर सकते है, यह आवाहन आवाम को किया है. परंतु एक दिन में, व्यक्तियों को *सिर्फ रु.‌२०,०००/- मर्यादा* (केवल १० नोट) भी रखी है.‌ आगे का कमाल, फिर हमे देखना होगा.

      हमारी सरकार एक ओर, *"काले धन की रोक"* के लिए *"नोटबंदी"* लाती है. वही दुसरी ओर सरकार, *"सरकारीकरण का खाजगीकरण"* करती है. पुंजीवादीयों को, सिधे आय.ए.एस.‌ समकक्ष (बिना संघ लोक सेवा आयोग परिक्षा पास) नियुक्ती दी जाती है.‌ *पुंजीवादी व्यापारी, क्या खाक देश की सेवा करेंगे ?* यह दोनो भी विषय, परस्पर भिन्न विषय है. बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर पुंजीवाद के बारे में कहते है कि, *"एक बार अंग्रेज भारत छोडकर चले जाएंगे. परंतु गरिब आवाम को लुटनेवाला, जलौका समान खुन चुसनेवाला यह पुंजीवादी (धनिक वर्ग), इस देश से जानेवाला नही है."* (सातारा, दिनांक ६ नवंबर १९३७) डॉ. बाबासाहेब का यह वक्तव्य, भारत आजादी के पहले का है.‌ गणराज्य भारत में, पुंजीवाद के हात में *"ब्युरोक्रासी"* भी दी जा रही है. *सत्ता पर कब्जा* पहले से है ही...! अर्थात "पुंजीवाद व्यवस्था की गुलामी...!!" *पहले हम गोरे अंग्रेजों के गुलाम बने थे.‌ अब पुंजीवादी काले अंग्रेजों के गुलाम...!!!"*

        हम आजादी के ७५ साल गुजरने के बाद भी, गणराज्य भारत - *"विकसनशील देश"* (Under Development Country) है. गणराज्य भारत - *"विकास देश"* (Developed Country) नही बन पाया...! भारत आज भी *"देश‌"* (Country) है.‌ वह *"राष्ट्र"* (Nation) नही बन पाया है.‌ इसका कारण *"बंधुत्व का अभाव...!"* और हमारे मुख्य दुश्मन है - *"देववाद, धर्मवाद, जातवाद, धर्मांधवाद...!!!"* यहां *"भारत राष्ट्रवाद / भारतीयत्व भावना"* मर गयी है. अब तक *"भारत राष्ट्रवाद मंत्रालय एवं संचालनालय"* नही बन पाया है. ना ही, बजेट में उसके लिए कोई प्रावधान. भारत का स्वयं का *"राष्ट्रगान"* तक नही है.‌ *"जन गन मन अधिनायक जय हे. भारत भाग्य विधाता...."* यह अंग्रेज शासक जार्ज पंचम के गुणगान गाते है. *"वंदे मातरम्"* भी, देवी दुर्गा के सुंदरता का बखाण है. *"मंदिरो / खेती / उद्दोगों का राष्ट्रियकरण"*  होना ही, *"विकास भारत"* की निव है...! क्या हमारी *सरकार* अब जाग पायेगी...!! क्या *सर्वोच्च न्यायालय भी,* स्वयं होकर इस महत्वपुर्ण विषय को संज्ञान लेगी ? नही तो *"नोटबंदी / देशभक्ती के बोल"* यह सब, सत्ता प्राप्ती के धकोसले है.


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* *डॉ. मिलिन्द  जीवने  'शाक्य'* नागपुर १७

       (भारत राष्ट्रवाद समर्थक)

नागपुर, दिनांक २१ मई २०२३

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