Wednesday 10 August 2022

 👊 *एक राजनितीक दल - एक नेता यह कोई परिवर्तन नही कर सकता...! * इति डॉ. मोहन भागवत*

   *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल

मो. न. ९३७०९८४१३८ / ९२२५२२६९२२


    ‌‌‌‌  *"देश के सामने बहुत सारी चुनौतीयां है.‌ और कोई भी एक दल या, कोई एक नेता इन सभी चुनौती पर, मात नही कर सकता. वो अकेला देश में परिवर्तन नही ला सकता. जब देश की आवाम, यह देश की सेवा करने के लिए, मरने - मिटने के लिए आगे आयेंगी, तब ही देश में सही परिवर्तन आता है......!"* यह खुले विचार है, (हिंदुस्तान - उन्हे *"भारत वा इंडिया,"* यह शब्द मान्य नही है) संघवाद (राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ) के राष्ट्रिय सर्वेसर्वा *डॉ. मोहन भागवत* इनके. वे नागपुर में "विदर्भ साहित्य संघ" के "शतक महोत्सव पर्व" पर, बोल रहे थे. डा मोहन भागवत जी का यह बयान, भारत के आजादी पुर्व एवं आजादी पश्चात, आज तक की स्थिती के संदर्भ में, बहुत महत्वपुर्ण कहा जा सकता है.‌ दिनांक १५ अगस्त २०२२ को, हम सभी भारत के आवाम, *"भारत आजादी अमृत महोत्सव"* सहर्ष मनाने जा रहे है. भारत आजादी मे, "राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ" (RSS) इनका योगदान क्या है ? या भारत को, १५ अगस्त १९४७ को‌ सही आजादी मिली थी या, वह *"सत्ता का हस्तांतरण"* (Transfer of Power) था ? इन दो विषयों को, हम थोडा बाजु में हटा देते है.‌ वैसे देखा जाएं तो, *"गोरे अंग्रेज, ये भारत देश‌ को छोड गये. परंतु काले अंग्रेज, ये सत्ता पर आ गये."* यह कहना भी, कोई अतिशयोक्ती नही होगी. वही यह सत्य भी है कि, गोरे अंग्रेज काल में, भारत में अच्छा प्रशासन / अच्छी न्याय व्यवस्था / अ-भ्रष्टाचार था. काले अंग्रेज काल में तो, उस से भिन्न स्थिती, हमें दिखाई देती है. फिर भी हम *"आजादी का जश्म"* मना रहे है.

    अब हमे डॉ. मोहन भागवत इनका यह बयान, दुसरे संदर्भ में देखेंगे.‌ क्या भागवत का वह बयान, कांग्रेस द्वारा *मोहनदास गांधी* इनको, एकमात्र *"आजादी का नायक"* बनाने के विरोध में है ? या फिर प्रधानमन्त्री *नरेंद्र मोदी* इनको, *"भारत का युगपुरुष"* के रुप में, मिडिया द्वारा प्रसारीत किये जाने की एक‌ खिंचाई है ? यह दो प्रश्न, हमारे सामने दिखाई देते है.‌ अंत में, मै *डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर* इनका, आजादी के संदर्भ में, कहा गया‌ एक महत्वपुर्ण कथन बताना चाहु़ंंगा. बाबासाहेब कहते है की, *"सुभाषचंद्र बोस, यही केवल आजादी मिलाने के लिए मुख्यत: कारण रहे है.‌ हिंदी सेना की निष्ठा पर, ब्रिटिश सरकार निर्भर थी.‌ बोस इन्होने उस निष्ठा / पराकाष्ठा को धक्का देकर, भारतीय सेना में अंसतोष फैला दिया. एवं आजाद हिंद सेना की स्थापना की. यह देखते हुये, ब्रिटिशों ने भारत से पलायन कर गये."* (मुंबई, २३ दिसंबर १९५१)

     भारत को आजादी मिलाने मे, एक ओर मोहनदास गांधी जी, इन्होने कांग्रेस की ओर से, कमान संभाली हुयी थी. वही दुसरी ओर क्रांतीकारी नेता भी, प्राण की बाजी लगा रहे थे. तो तिसरी ओर, सुभाषचन्द्र बोस इनकी आजाद हिंद सेना भी. इन सभी संदर्भ के साथ ही,*"द्वितिय महायुद्ध"* होने से, ब्रिटिशों की आर्थिक हालात बहुत पतली होना भी, आजादी मिलने के एक कारण रहा है. प्रश्न यह है की, *दुसरा महायुद्ध खत्म होने बाद भी, भारत को तुरंत आजादी क्यौ नही मिली ? भारत को आजादी, चार - पांच साल देरी से मिलने के, दोषी शुक्राचार्य कौन है ? वह आजादी देरी से मिलने का, सही कारण क्या रहा है ?*  इन सभी प्रश्नों का हमे, आजादी के इन अमृतमहोत्सव पर्व पर, विचार करना बहुत जरुरी है....!


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(नागपुर, दिनांक १० अगस्त २०२२)

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