Sunday 30 January 2022

 ✍️ *सरकारी ऑफिस किसी के बाप का नही....! इति देवेंद्र फडणवीस.*

   *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल

मो.न. ९३७०९८४१३८ / ९२२५२२६९२२


     *"माहिती के अधिकार में, हम किसी भी कार्यालय जाकर, मालुमात ले सकते है. भाजपा नेता आयु. किरिट सोमय्या ये मालुमात लेने, किसी सरकारी कार्यालय गये थे. वह सरकारी कार्यालय, किसी के बाप का नही है...!"* यह टिप्पणी महाराष्ट्र विधानसभा नेता *देवेंद्र फडणवीस* इन्होने प्रजासत्ताक दिन पर, नागपुर आने पर कही. देवेंद्र फडणवीस ये बिलकुल सही कह गये कि, सरकारी ऑफीस यह किसी के बाप की बकौती नही. सरकारी कार्यालय यह राष्ट्र की संपत्ति है. वहां के दरवाजे, सभी भारतीय नागरिकों के लिए खुले है.

     माजी मुख्यमंत्री *देवेंद्र फडणवीस* का एक दुसरा बयाण, जो की सर्वोच्च न्यायालय के १२ विधायकों के निलंबन पर है, वह भी बहुत महत्वपुर्ण है. वे कहते है, *"महाराष्ट्र सरकार ने पहले ही, १२ विधायकों का निलंबन पिछे लिया होता तो, विधान सभा की इज्जत बच गयी होती. विधान सभा की कारवाई, न्यायालय कक्ष के बाहर होना चाहिये. परंतु भारतीय संविधान की पायमल्ली होती हो तो, न्यायालय का हस्तक्षेप भी बहुत जरूरी है. महाराष्ट्र सरकार ने, १२ विधायकों‌ के क्षेत्र के मतदार नागरिकों की, जाहिर माफी मागणी चाहिये...! "* देवेंद्र फडणवीस के ये दोनो ही बयाण, *"भारतीय प्रजातंत्र"* की दृष्टिकोण से, बहुत महत्वपुर्ण है. अब हमे उपरोक्त दोनो ही बयाण के, उनकी असली नियत -  करणी और वास्तविकता को भी देखना होगा. अब हम उनके असली नियत - करणी - वास्तविकता पर भी चर्चा करेंगे.

     उपरोक्त विषय के अंतरंग में जाने के पहले, हम *"भारत देश के मुल निवासी कौन है ?"* (नागरिकता) इस संदर्भ मे, उडती उडती चर्चा करेंगे. कांग्रेस का बहुमत होने पर भी, कांग्रेसी सर्वोच्च नेता *"सोनीया गांधी,"* भारत की प्रधानमन्त्री नही बन पायी थी. बामणी रक्त के *पी. व्ही. नंरसिहराव* / बाद में *सरदार मनमोहन सिंग,* ये भारत के प्रधानमन्त्री बन गये है /थे. क्यौं कि, सोनिया गांधी ये विदेशी नागरिक होने की चर्चा, उस समय बहुत जोरों शोर पर थी. वही बामनी तबका / वर्ग ने, सोनिया गांधी को विदेशी होने के कारण, प्रधानमन्त्री बनने में पर, विरोध शुरू किया था. यह इतिहास है. फिर वो विदेशी नागरिक सोनिया गांधी *"सांसद"* बनना, क्यौं स्विकार किया गया है ? यह प्रश्न अब भी अनुत्तरीत रहा है. दुसरी बात बाल गंगाधर तिलक से लेकर महात्मा ज्योतिबा फुले तक, सभी मान्यवर / विचारविदों ने *"बामण वर्ग विदेशी होने की बात की, पुरी वकालत की है."* और वैज्ञानिक संशोधन से भी, भारत में रहनेवाले समस्त‌ बामणी समुह का *"डी.एन.ए."* ये विदेशी है, यह सिध्द भी हुआ है. फिर भारत के प्रधानमन्त्री / केंद्रिय मंत्री / सर्वोच्च पदों पर, विदेशी नागरिक बामणी वर्ग विराजमान कैसे ? यह दुसरा अहं प्रश्न है.‌ *"विदेशी बामन भगाओ...! अपना भारत देश बचाओ...!!"* क्या यह आंदोलन / अभियान, भारत के बहुसंख्यक नागरिकों ने करना चाहिये...? क्यौं की, भारत के लोगों को अधिकार, इन बामनी वर्ग समुह द्वारा छिने गये है. यह वास्तविकता भी है. बामनी समुह के पुरखों का, प्राचिन अखंड भारत से गद्दारी करने का, पुराना इतिहास भी रहा है. अखंड विशाल भारत का *महान चक्रवर्ती सम्राट अशोक* के पुरखों की हत्या हो, *छत्रपती शिवाजी महाराज / छत्रपती संभाजी महाराज का विषय हो,* प्राचिन भारत का गुलाम बनाने का विषय हो, आज के भारत का, अधोगती का भी विषय हो, इन सभी के पिछे, केवल और केवल *"बामनी षडयंत्र"* ही, हमे कारण दिखाई देता है.

      अब हम *"सरकारी ऑफिस किसी के बाप का नही....!* इस देवेंद्र फडणवीस के बयाण पर, चर्चा करेंगे. अब सवाल है कि, *"क्या सरकारी ऑफीस देवेंद्र फडणवीस या बामनी समुहों के बाप का है...?"*  भारत में बामनी समुह हो या उच्च जातीय वर्ग हो, वे *"अल्पसंख्यक* है. उनका प्रमाण भारत की लोकसंख्या के अनुसार *प्रमाण ४℅ से अधिक नही.* फिर भारत की *"समस्त न्यायपालिका हो, कार्यपालिका हो, मिडिया हो, संसद सदस्य हो, विधान सभा - परिषद सदस्य हो, मंत्री वर्ग हो, राज्यपाल हो, प्रशासन हो,"*. हर जगह - बहुसंख्यक जाती विशेष लोकसंख्या के अनुपात की तुलना में, बामनी समुह संख्या जादा दिखाई देती है. उन हर जगह वे उच्च वर्गीय समुह के लोक, *"बिना आरक्षण - अल्पसंख्यक उच्च वर्ग"* नियुक्त हुये दिखाई देते है. जब की भारतीय संविधान से *"आरक्षण प्रणाली"* निव रखी गयी. परंतु उसका अमल भारत आझादी पुर्व / भारत आजादी बाद भी, आज तक कमी अमल में नही लाया गया. वही देवेंद्र फडणवीस ने दुसरे भाग में *"सर्वोच्च न्यायालय की जो दुहार दी है."* क्या उस *"मा. सर्वोच्च न्यायालय हो या, तमाम उच्च न्यायालय के तमाम उच्च वर्गीय न्यायाधीश हो, उस पद पर बैठने के लायक है...?"* यह भी अहं प्रश्न है. क्या उन तमाम उच्च वर्गीय मा. सर्वोच्च / उच्च न्यायालय के, आजी / माजी न्यायाधीशों ने, निरपेक्ष / मेरिट के आधार पर, न्याय दिया हुआ है...? मै उन आजी / माजी न्यायाधीशों के कई जजमेंट बता सकता हुं. *"बाबरी मस्जिद / राम मंदिर (?) का जजमेंट ही लो."* क्या मेरिट है, उस जजमेट में ? ऐसे कई विवादित जजमेंट है, जो निरपेक्ष / मेरिट के आधार पर, हमे दिखाई नही देते. ऐसे कई विवादीत जजमेंट्स भी है, जिस का बुरा असर, बहुसंख्यक समाज पर हुआ है. अगर न्यायाधींशो के नियुक्ती का *""कोलोजीयम सिस्टम"* ना होती तो, वे *"चपराशी पदों के स्पर्धा परिक्षा मे भी, वे पास होंगे या नही...?"* यह प्रश्न है.

      भारत में समस्त बामनी समुह विदेशी है. तथा वह अल्पसंख्यक समुह, भारत का उच्च वर्गीय समुह भी बन गया है. उनके पुरखों का, प्राचिन गद्दारी का इतिहास है. और आज का बामनी समुह परिवार भी, कोई देशभक्ती के झंडे नही गाड़ रहा है. उन्होने बिना आरक्षण, देश के ९०% जगह पर, अपना अनैतिक कब्जा बनाये रखा है. भारत के बहुसंख्यक समुह को, उनके अधिकारों से वंचित कर दिया है. *क्या भारत की जम़ीन, केवल तुम्हारे बाप की बकौती है...?* यह प्रश्न है. क्या इस का उत्तर, देवेंद्र फडणवीस दे पायेगा...? अगर देवेंद्र के पास इस का उत्तर ना हो तो, किसी अन्य लोगों का बाप निकालने का, देवेंद्र फडणवीस को या किसी अन्य बामनी समुह / वर्ग को, यह अधिकार किसने दिया ?

      अभी देवेंद्र फडणवीस के दुसरे मुद्दे पर भी चर्चा‌ करना जरूरी है. सबसे अहं सवाल यह कि, *"क्या निर्वाचित संसद सदस्य हो या, विधान सभा / विधान परिषद का सदस्य / विधायक, हाऊस मे जन मन के हित के लिए, कौनसे बडे झंडे गाडते हुये दिखाई दे रहे है...?"* और महाराष्ट्र विधानसभा के निलंबित १२ सदस्य का, देश‌ के विकास में, अहं योगदान क्या रहा है...? उन १२ सदस्य नें हाऊस में जो कृत्य किया, *क्या उस कृत्य के लिए, उन्हे पद्मश्री पुरस्कार देना चाहिये ?* किसी विधान सभा / विधान परिषद / संसद सदस्यों को, *"हाऊस से इसके पहले लंबे समय तक, निलंबित नही किया गया ?"* अगर किया गया हो तो, उस संदर्भ में सर्वोच्च / उच्च न्यायालयों ने, स्वयं होकर उसकी दखल, क्यौं नही ली है...? *नरेंद्र माेदी सरकार कृतीभाव संदर्भ में, बहुत से केस में, न्यायालय का रूख क्या रहा है ?* शिक्षा यह विषय, राज्य सरकारों का विषय है. फिर *"केंद्रिय शिक्षा प्रणाली"* को, हम किस संदर्भ में ले ...? *"भारतीय संविधान की धारा २१, ३७, ३८, ३९ और ३०० के तहत, केंद्र सरकार निजीकरण नही कर  सकता."* ना ही निजीकरण संदर्भ में, कानुन बना सकती है. पर इस का सरकार की ओर से, कितने बार उल्लंघन होता रहा है. संविधान का उल्लंघन, यह देशद्रोह है.‌ उस उच्च वर्ग के समुह‌ के एक तबको ने, *"भारत का संविधान,"* दिल्ली के चौराह पर जलाया था. यह तुम्हारी फितरत...! *क्या कोई भी निजीकरण, भारत के आम आदमी के हित में है....?* यह प्रश्न है. सरकार को चलाना, देश को चलाना, यह संविधानिक प्रक्रिया है. भारत में प्रजातंत्र रूजाना है. भारत देशभक्ती जगाना है. परंतु आज तक किसी सरकार ने, *"भारत राष्ट्रवाद मंत्रालय एवं संचालनालय"* की स्थापना नही की. ना ही *सर्वोच्च न्यायालय* ने इसकी स्वयं होकर पहल की. *"कहां गयी हमारे न्यायपालिका की, नैतिक वाचडॉगीता...!"* भारत सरकार द्वारा, *बहुत से सरकारीकरण संस्था का, निजीकरण किया गया.‌ उस संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय का, क्या रूख है ?"* सवाल यह भी है कि, वह संस्थाएं घाटें में क्यौं आयी है ? तुम्हारा मेरिट उसे फायदे मे लाने में, असफल दिखाई देता है.‌ क्या हमारी भारत सरकार, कोई बडा व्यापारी है.‌ जो नफा - नुकसान का हिसाब - किताब देख रही है...? इन प्रश्नों का भी उत्तर, देवेंद्र फडणवीस को देना होगा.

      सवाल यह भी है कि, कांग्रेस ने भी आजादी के बाद, बहुत अच्छाई के झेंडे नही गाडे है. भारत आजादी के बाद, केवल एक बदलाव आया है. *"गोरे अंग्रेज भारत छोडकर चले गये. और काले अंग्रेज सत्ता पर आ बैठे...!"* गोरे अंग्रेजों के शासन काल में अनुशासन था. इमानदारी भी थी. *काले अंग्रेज तो, सत्ता चलाने के काबिल दिखाई नही दिये.* काले अंग्रेजों के शासन काल में, भ्रष्टाचारी / नफाखोरी / अनैतिकता / कमीनापण चरम सीमा पर है. भारत प्रजासत्ताक होने पर भी, प्रजातंत्र ढुंडने पर भी दिखाई  नही देता है. *"हाऊस में बैठे निर्वाचित सदस्यों को, वेश्या कहने में भी शर्म महसुस होती है...! वेश्या ये अपने काम के प्रती वफादार होती है. ये नेता लोग तो, बहुत गये गुजरे दिखाई देते है."* यहां इमानदार /देशभक्त / हुशार लोगों की , कोई कदर नही है. क्यौ कि, *"हमाम में हम सभी नंगे है."* यह कहावत, उन नेताओं के लिए, तंतोतंत फिट बैठती है. भारत में नंगो का राज है.

     अ-ब्राम्हण मोहनदास गांधी हत्या को, *"गांधी वध"* कहा गया. *"वध"* यह शब्द पशु के लिए, प्रयोग में लाया जाता है ? *"क्या गांधी पशु थे ?"* भारत को आजादी मिलने के बाद, बामनी मानसिकता अ-ब्राम्हण गांधी को, झेलने की स्थिती में दिखाई नही देती. बामनी- बाल गंगाधर तिलक के नेतृत्व मे, आजादी आंदोलन जन जन फैला हुआ, हमे नही दिखाई देता. तब अ-ब्राम्हण गांधी की गरज दिखाई देती है. गांधी हत्या में, बामनी *गोडसे से लेकर विनायक दा. सावरकर* तक, बामनी प्रतिनीधी केस में आरोपी थे. *"बामनी व्यक्तींद्वारा गांधी हत्या"* होने के कारण, तब बामनी समुह को, लोगों के दहशत का सामना करना पडा. *बामनी पुरुष अंडरग्राऊंड हो गये थे. वही महिलाएं, अपनी इज्जत बचाने की भींख मांगती दिखाई देती थी.* क्या बामनी समुह, बहुसंख्यक को गुलाम बनाने के पिछे, वह पुराना बदला ले रहा है. माफी-वीर, गद्दार-वीर, चरित्रहीन-वीर लोंगो को, स्वातंत्रवीर / देशभक्ती पुरस्कार से नवाजा जाता है. शिवाजी महाराज - उनके वंशज, महात्मा ज्योतिबा फुले, इन सभीओं का बामनी मानसिकता का अनुभव, अच्छा नही रहा. बामनी पुरुष *रामदास स्वामी* यह छत्रपती शिवाजी महाराज का, कैसे गुरु बन गया...? पुनश्च प्रश्न है. कारण *संत तुकाराम महाराज* शिवाजी महाराज के गुरु थे. *चाणक्य* का, चक्रवर्ती सम्राट अशोक के वंश से जोडा गया संबंध भी, प्रश्न निर्माण करता है. *"पेगँसस प्रकरण"* पर, 'द न्युयॉर्क टाईम्स' ने *"नरेंद्र मोदी सरकार"* को, दोषी के कटघरें में खडा किया है. क्या बामनी सरकार, सर्वसामान्य लोगों के हेरगिरी करने में लगी है...? पुनश्च प्रश्न खडा है. *"देववाद - धर्मांधवाद"* यहां समाज मन मे, रुजाया गया है. क्षत्रीय - *राम* लो या, यादव वंशी - *कृष्ण* लो, वे अ-ब्राम्हण पात्र बामनी देवों की यादी में कैसे...? या बहुजन पात्र को देव बनाने की संकल्पना, बामनी षडयंत्र को समझना, यह बहुत जरुरी है. *"क्या यह बहुजनों को, मानसिक गुलाम बनाने का षडयंत्र था..?"* यह भी प्रश्न है. भारत का बहुसंख्यक समाज, यह अपनो को सुरक्षीत कैसे समझे ? यह भी प्रश्न है. सवाल यहां गलत इतिहास, पढने का भी है. अब हमे नया इतिहास रचना होगा. नया भारत...! स्वच्छ भारत...!! सुंदर भारत...!!! विकास भारत...!!!! आदर्श भारत के लिए...!!!!!


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