🌎 *विश्व की मंदी अर्थव्यवस्था मे भारतीय अर्थव्यवस्था का खस्ताहाल तथा श्रीलंका - बांगला देश - पाकिस्तान समान आर्थिक परिस्थिती की ओर आगेकुच ?*
*डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर १७
राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
एक्स व्हिजिटिंग प्रोफेसर, डॉ बी आर आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ महु म प्र
मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२
आज विश्व की अर्थव्यवस्था मंदी के दौर से गुजर रही है. *"वैश्विक जीडीपी"* में गिरावट होना / *"मुद्रास्फीती दर"* जादा होने से *"व्याज दरो में वृध्दी"* का होना / *"कोविड २०१९"* महामारी से वैश्विक विकास में वापसी का घीमा होना / वही विश्व के कुछ देशों में *"युद्ध और जलवायु परिवर्तन"* से, वैश्विक विकास में बाधा आना, इन तमाम कारणों से *"विकासशील देशों"* के उबारने में दिक्कते होना और उन देशों पर *"ऋण का बोझ"* ज्यादा होकर *"निवेश में कमी"* होना, इन दौर से विश्व गुजर रहा है. वही भारत के संदर्भ में *"वित्त मंत्रालय"* अनुसार विदेशी कर्ज सितंबर २०२४ में *"७११.८ अरब डॉलर"* होना, जो जुन २०२३ की तुलना में ४.३% अधिक (६३७.१ अरब डॉलर) दिखाई देता है. *"रिझर्व्ह बँक ऑफ इंडिया"* (RBI) के अनुसार ९ साल में विदेशी कर्ज *"१८१%"* तक बढ गया है. और सन २०२३ (६६३.८ अरब डॉलर) की तुलना में मार्च २०२४ तक *"३९.७ अरब डॉलर"* बढ गया है. भारत का *"सकल घरेलु दर"* (GDP) सन २०२३ - २४ में ८.२ % बताया गया. *"मुद्रास्फिती दर"* ३.८% बताया गया है. *"रोजगार दर"* यह १९.१९% बताया गया. वही *"रोजगार क्षमता"* यह ४७९६३.२ करोड बतायी गयी है. सार्वजनिक वित्त संदर्भ में *"आय"* (Income) यह ८६.६९ अरब डॉलर है. वही *"व्यय"* (Expenditure) यह १०१.१ अरब डॉलर है. *"पुंजी व्यय"* यह १३.५ अरब डॉलर है. *"वित्तीय सहायता ग्रहण"* यह २.९ अरब डॉलर है. सन २०२४ में *"सकल घरेलु उत्पाद"* दर यह ८.०० % बताया गया है. भारत में *"१२१ से ज्यादा"* सरकारी कंपनीया बेची गयी है. जो ३०० से घटकर केवल *"दो दर्जन तक सरकारी कंपनीया "* शेष रहेगी. और इन कंपनीया को बेचकर करिब *"साढे तिन लाख करोड"* की कमाई की गयी. जब सरकार किसी सार्वजनिक कंपनीयों को बेचती (PSU) है, जो इसे *"विनिवेश"* (Disinvestment) कहते हैं. भारत की यह आर्थिक स्थिती भारत का *"भारत का आर्थिक दिवालापन"* बयाण करती है.
विश्व का कोई भी देश हो, वह तो कर्ज के तले दबा हुआ है. चाहें वह *"विश्व शक्ती देश"* क्यौ ना हो ! *अमेरिका* देश पर अक्तुबर २०२४ तक *"३५.७ मिलियन डॉलर का कर्ज"* बताया जाता है. सन २०२४ की तिमाही में तो, *"अमेरिका"* की अर्थव्यवस्था मे, एक साल पहले समान ही २.७% वृध्दी बतायी है. *"विश्व अर्थव्यवस्था"* मे अमेरिका यह *"नंबर १ स्थान"* पर है. *"अमेरिका"* की GDP दृष्टी से २६.७८ ट्रिलियन डॉलर पर बताया गया है. दुसरे स्थान पर *"चायना"* की अर्थव्यवस्था है. चायना की GDP दृष्टी से १८.५३ ट्रिलियन डॉलर बतायी गयी है. वही चायना पर *"१४.६९ ट्रिलियन डॉलर कर्ज"* है. चायना का GDP यह ५.२ % है. तिसरे स्थान पर *जर्मनी"* की अर्थव्यवस्था यह GDP की तुलना में, ४.५९ ट्रिलियन डॉलर है. चवथे स्थान पर *"जापान"* की अर्थव्यवस्था यह GDP की तुलना में, ४.११ ट्रिलियन डॉलर है. वही *"भारत"* की अर्थव्यवस्था GDP की तुलना में, पाचवे स्थान पर *"३.९४ ट्रिलियन डॉलर"* बतायी गयी है. महत्वपूर्ण विषय यह कि, *"रशिया"* की अर्थव्यवस्था यह GDP की तुलना में *"५.३२ ट्रिलियन डॉलर"* बतायी जाती है. फिर भी चायना की अर्थव्यवस्था यह *"तिसरे स्थान"* पर क्यौं नहीं है ? यह बडा प्रश्न है. रुस यह *"कृषी / उद्योग / सेवा"* इन क्षेत्र के कारण, अपनी अर्थव्यवस्था को संभाले खडा है. *"युक्रेन युद्ध"* के कारण रुस पर आर्थिक प्रभाव भी पडा है. और रुस पर आर्थिक प्रतिबंध भी लगने के कारण, *"रुसी निर्यात"* पर भारी गिरावट भी आयी है. GDP की दृष्टी से सन २०२३ की तुलना (३.६ %) में, सन २०२४ में ३.९% वृध्दी भी दिखाई देती है. भारत तो रुस से ही *"कच्चा तेल"* खरिद कर, उस पर प्रक्रिया कर अन्य देशों कों *"तेल निर्यात"* करता है. यहाँ भारत का तो, अपना स्वयं का प्रोडेक्शन कहा है ? *"कृषी / उद्योग / सेवा"* इन क्षेत्रो में, भारत कहां खडा है ??? जब हम उन देशों पर *"कर्ज"* का बोजा देखते है तो, उन देशों के *"अर्थव्यवस्था बजेट"* यह चिंता का विषय हो जाता है. वही भारत देश के प्रधानमंत्री *नरेंद्र मोदी* इन्होने, सन २०१८ के *"World Economic Forum"* में दिये भाषण में, *"भारत की अर्थव्यवस्था ५ ट्रिलियन डॉलर कर, तिसरे स्थान पर आने की बात कही थी."* अब हम सन २०२५ पदार्पण करत चुके है. *"पांच ट्रिलियन डॉलर "* का लक्ष ??? वही आज भारत की अर्थव्यवस्था कहां खडी है ? यह भी अहं प्रश्न है. *"अमेरिका डॉलर की तुलना में भारतीय रुपया की गिरावट"* भी, भारत के सामने एक बडी चुनौती है. *"महाराष्ट्र राज्य "* के संदर्भ में कहां जाए तो, सन २०२३ २४ में *"राजस्व घाटा"* यह ३४०९ करोड रूपये है. सन २०२४ - २५ राजस्व घाटा (GSDP) २.६% बढने का अंदाज है. वही महाराष्ट्र पर *"कर्ज"* बढकर ७.८ लाख करोड हो गया है. अर्थात हमारा महाराष्ट्र राज्य भी, *"कंगाल आर्थिक स्थिती"* की ओर जाते हुये नज़र आता है. अत: हमें *"मोफत योजना"* बंद करते हुये, *"रोजगार / कृषी / उद्योग"* की ओर बढना होगा. *"अगर देश ही सुरक्षित नहीं रहेगा"* तो, आदमी का क्या अस्तित्व होगा ? यह प्रश्न ही आज खडा है.
.संयुक्त राष्ट्र (UN) की *"वर्ल्ड पापुलेशन प्रास्पेक्ट"* रिपोर्ट के आधार पर, भारत यह देश दुनिया में *"सबसे ज्यादा आबादीवाला देशो"* में *"नंबर १"* स्थान पर है. भारत की लोकसंख्या *"१४५ करोड"* बतायी गयी है. वही *"साक्षरता दर ७४%"* बताया गया है. उपरोक्त लोकसंख्या को देखे तो, *"८१.४ करोड लोगों को मुफ्त / सस्ता अनाज"* दिया जाता है. अर्थात यह आकडा *"भारत की बेकारी - बेरोजगारी / गरिबी / भुखमरी"* की ओर इशारा करता है. अत: भारत का GDP आकडा बढते दिखाना ? यह समज से परे विषय है. *"इंडियन कौन्सिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनैशनल इकोनामिक्स रिलेशन्स"* (ICRIER) रिपोर्ट के आधार पर, सरकारी अनाज का बहुत बडा हिस्सा, *"२ करोड टन"* (गेहु / चावल) या तो *"खुले बाजार"* में बिक जाता है या *"दुसरे देशों में निर्यात"* किया जाता है. अत: यह बडा चिंता का विषय है. *"भारत के मंदिर अर्थशास्त्र"* भी अलग कहानी बयाण करता है. *"राष्ट्रिय नमुना सर्वेक्षण संघठण"* (NSSO) इस सरकारी संघटन रिपोर्ट अनुसार *"सकल घरेलु उत्पाद"* (GDP) में *"धार्मिक यात्राओ"* की कुल हिस्सेदारी २.३२ % बतायी गयी है. *"भारत में मंदिरो की इकोनामी ३ लाख करोड है."* भारत में सबसे धनी मंदिर देखे तो - तिरुवनंतपुरम (केरला) का *"पद्मनाभ स्वामी मंदिर"* के खजाने में, *"२० अरब डॉलर"* की हिरे / सोने / चांदी यह संपत्ती है. गर्भगृह में ५०० करोड रुपयो की भगवान विष्णू की मुर्ती है. तिरुपती (आंध्र प्रदेश) का *"बालाजी मंदिर,"* यह दान के मामले में सबसे अमिर मंदिर है. हर साल ६८० करोड रुपये दान में आता है. बालाजी मंदिर के पास *"९ टन सोना / रू. १४,००० /- करोड"* रुपये बैंक में फिक्स डिपोजिट है. शिर्डी (महाराष्ट्र) का *"साई बाबा मंदिर"* में, *"रू.३८० करोड दान"* में आते है. बैंक में *"४६० किलो सोना / ५४२८ किलो चांदी / रू. १८,००० करोड डॉलर - पाऊंड"* आंतरराष्ट्रीय मुद्रा जमा रखी है. *"शक्तीपीठ "* में से एक *"माता वैष्णोदेवी मंदिर"* (जम्मू - कश्मिर) में, हर वर्ष *"रू. ५०० करोड दान"* आता है. उज्जैन (मध्य प्रदेश) का *"महाकाल मंदिर"* समिती के अनुसार, *"रू. १०० करोड"* के ऊपर दान आता है. महाकाल मंदिर के पास *"३४ लाख का सोना / ८८ लाख ६८ हजार की चांदी"* जमा है. मदुराई (तामिळनाडू) के *"मिनाक्षी मंदिर "* की सालाना कमाई *"रू. ६ करोड"* बतायी जाती है. प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) के ५० दिन के *"कुंभ मेले"* के खर्च के बारें में क्या कहे ? किसी भी *" धार्मिक संस्थान"* पर, *"कोई भी टैक्स"* लगाने का कोई प्रावधान नहीं है. धार्मिक संस्थानो को मिले दान को, *"आय नहीं माना जाता."* अत: इस पर *"ना इन्कम टॅक्स लगता है, ना ही सेल्स टॅक्स / सर्विस टॅक्स !"* यहाँ प्रश्न है कि, इस संपत्ती का *"राष्ट्रिय विकास मे क्या योगदान है ?"* वह संपत्ती कमरों में *"डंब पडी"* हुयी है. हमारी भारत सरकार *"तमाम मंदिरो का राष्ट्रियकरण"* कराकर, उस संपत्ती का उपयोग *"राष्ट्र विकास में क्यौ नहीं कराती ?"*
भारत सरकार का सन २०२३ - २४ का *"आर्थिक बजेट"* देखे तो, *"कुल व्यय"* यह रू. ४५,०३,०९७ करोड खर्च, यह २०२२ - २३ की तुलना में, ७.५ % अधिक रहा है. *"राजस्व व्यय"* - रु. ३५,०२,१३६ करोड (१.२ वृध्दी) तथा *"पुंजीगत व्यय* - रु. १०,००,९६१ करोड (३७.४ वृध्दी) बतायी है. वित्त वर्ष २०२४ - २५ में, *"रु. १५,००० करोड"* राशी की *"वित्तीय सहायता"* का प्रावधान बताया गया है. भारत के वित्त मंत्री के अनुसार सन २०२४ - २५ में उधार के अलावा *"कुल प्राप्तीया"* - रु. ३२.०७ लाख करोड तथा *"कुल व्यय"* - रु. ४८.२१ लाख करोड बतायी है. *"शुद्ध कर प्राप्तीया"* - रु. २५.८३ लाख करोड तथा *"राजकोषीय घाटा"* यह *"सकल घरेलु उत्पाद"* (GDP) का *"४.९%"* रहने का अनुमान बताया है. भारत का सबसे बडा आय स्त्रोत *"कार्पोरेट टैक्स"* बताया है. यहाँ सवाल तब आता है कि, भारत के *"२२ उद्दोगपतीयों के १६ लाख करोड रुपये माफ किये जाते है ."* यह माफ किया पैसा किस खाते से जुडा है ? जो *"आम जनता के टैक्स"* का ऐसा दुरुपयोग होता हो तो, हम क्या कहे ??? वही *"४० लाख किसानों"* का केवल *"२ लाख करोड"* माफ होता है. *"उंट के मुह में जिरा "* (?) समान यह प्रकार दिखाई देता है. *"मंदिरो का अर्थशास्त्र"* हमने उपर की पैरा में देखा है. अत: भारतीय अर्थव्यवस्था, यह किस दिशा की ओर जा रही है, इसका अनुमान हो जाता है. भारत में *"पुंजीवाद की जड़े मजबुतीकरण"* का यह दौर है. अत: भारत का *"प्रजातंत्र खतरे की घंटी"* अब दिखाई दे रही है.
१९ जुलै १९६९ में, ५० करोड की उपर के जमा राशी वाले, अनुसुचित वाणिज्यिक (Scheduled Bank) *"१४ निजी स्वामित्व बैंक"* इसका, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी इन्होने *"राष्ट्रियकरण"* (Nationalization) किया था, जो आर्थिक क्षेत्र मे *"मिल का पत्थर"* साबित हुआ. सन १९६९ पहले तमाम निजी बैंको की अलग अलग नितीया हुआ करती थी. और उनका उद्देश यह केवल और केवल अधिका-अधिक लाभ कमाना रहा था. और इन निजी बैंको के शेयरधारक इने गिने *"पुंजीवादी"* हुआ करते थे. सदर बैंको का *"राष्ट्रियकरण"* होने के पश्चात, उसका लाभ सभी *"कमजोर वर्ग"* सहीत सभी क्षेत्र को मिला हुआ दिखाई देता है. टाटा ग्रुप से *"इंडियन एयरलाईन"* का भी, सरकारीकरण किया गया था. आज *"नरेंद्र मोदी सरकार"* ने, उस एयरलाईन्स का *"निजीकरण"* (Privatization) कर, टाटा समुह हस्तांतरित कर दिया हैं. BPCL / LIC / IDBI Bank / पवन हंस समान कुछ कंपनीयो का *"निजीकरण"* करना, यह *"पुंजीवादी व्यवस्था"* का उदारीकरण कहा जा सकता है. सरकार यह व्यवसायिक संस्थान नही है. अगर *"लोकतान्त्रिक राजसत्ताए खराब राजनीति को बढावा देगी / अच्छी अर्थनीति को किनारा करेगी / अधिनायकवादी हुकुमत का बोलबाला होगा तो / आम नागरिकों की तकलीफें बढनेवाली है."* ऐसे हालात में कारोबारो विशेष रुप से - मध्यम आकार के उद्दमों को कर्ज देने की क्षमता पर, दबाव डाला जाएगा. चुंकी बैंको का रुख जोखिम से परहेज करने वाला हो भी, तो भी वो पैमाने और अदायगी की क्षमता के साथ साथ, ऋण को सहारा देने के लिये *"जमानत"* की भी वो चाह रखेंगे. लिहाजा बडे ऋण का रुख विशाल निगमों की ओर रहेगा. और *"छोटे कारोबारो"* को बंद होने या उनकी खरीद हो जाने के बाद, *"उची मुद्रा स्फीती और उची लागतवाली अर्थव्यवस्था"* में, बेरोजगारी जैसे संबंधित कुछ सीयासी मामले सीर उठा सकते हैं. नए शीत युद्ध का खतरा, गठजोड की नयी धुरीयो का निर्माण और पिछले दो - चार वर्षों में, *"साधन या लक्ष"* के तौर पर, *"शांती की विलुप्ती"* हो जाने से, विश्व में हर नागरिकों को प्रतिकुल स्थितीयों का सामना करना पड सकता है. *"ग्लोबल वार्मिंग"* से विश्व जुझ रहा है. *"आर्थिक मारामारी"* (?) भी दिखाई देती है. *"श्रीलंका / बांगला देश / पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था"* की ओर, हमारी भारतीय अर्थव्यवस्था बढ रही है. और *"तिसरे महायुध्द"* की दिशा की ओर, विश्व आगे बढता जा रहा है. अत: हम सबका भविष्य ??? यह एक प्रश्न है.
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▪️ *डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*
नागपुर, दिनांक ४ जनवरी २०२५