Thursday, 16 January 2025

 🇮🇳 *भारत की अर्थव्यवस्था क्या (?) बांगला देश / श्रीलंका / पाकिस्तान की समान बडे खस्ताहाल की ओर बढ़ रही है या बढी है ?*

       *डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल 

एक्स व्हिजिटिंग प्रोफेसर, डॉ बी आर आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ महु म प्र 

मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२


         अभी अभी समस्त विश्व के कुछ देशों की *"Stable Economy"* यादी प्रकाशित हुयी है. उन *"World Stable Economy"* यादी में, *"४० देशों का जिक्र"* रहा है. और उस यादी में, *"भारत"* देश यह कही भी नहीं है. पहिले नंबर पर UAE देश / दुसरे नंबर पर Switzerland देश / तिसरे नंबर पर Germany यह देश / चवथे नंबर पर Canada देश / पाचवे नंबर पर Japan देश है. *"अमेरिका"* (USA) यह अहं महाशक्तीशाली देश *"तेरहवे"* स्थान पर / *"इंग्लंड"* (UK) यह देश *"सोलहवे"* स्थान पर / *"चायना"* यह देश *"उन्नीसवे"* स्थान पर / और *"रशिया"* (पुर्वाश्रम का महाशक्तीशाली Soviet संघ) यह देश *"इकतीस"* वे स्थान पर है. एक जमाने में *"अमेरिका और सोव्हिएत संघ"* इन दो देशों में, *"महाशक्ती स्पर्धा"* हुआ करती थी. अमेरिका द्वारा कुटनीति से *"सोव्हिएत संघ"* को बिखरकर रखा है. आज महाशक्ती की लढाई यह *"अमेरिका और चायना"* इन दोनो देशों के बिचं है. वैसे देखा जाए तो, *"चायना"* देश की आर्थिक स्थिती यह *"अमेरिका"* देश की तुलना में, अच्छी कही जा सकती है. और चायना देश *"महाशक्ती"* बनने की ओर बढ़ रहा है. भारत के महामहिम राजनितीज्ञ हमें *"विश्व महागुरू"* बनाने का,*"बडा हसिन सपना"* युं ही दिखा रहे है. सन २०२४ में, भारत की अर्थव्यवस्था यह - *"५ ट्रिलियन डॉलर"* (विश्व की पाचवी अर्थव्यवस्था) बनाने का बडा लक्ष, सन २०१८ के *"World Economic Forum"* में, प्रधानमंत्री *नरेंद्र मोदी* कह गये है. परंतु सन २०२४ में भारत की अर्थव्यवस्था *"३.९४ ट्रिलियन डॉलर"* बतायी गयी है. और भारत पर *"विदेशी कर्ज ७१८.८ अरब डॉलर"* बताया जाता है. और वह विदेशी कर्ज तो जुन २०२४ साल के मुकाबले में, २९.६ अरब डॉलर ज्यादा है. भारत की सन २०२४ की सार्वजनिक वित्त *"आय"* (Income) यह *८६.०९ अरब डॉलर* और *"व्यय"* (Expenditure) यह तो *१०१.१ अरब डॉलर* बताया गया है. हमारे भारत सरकार के *"आर्थिक बजेट"* (२०२३ - २४) में,  *कुल व्यय"* (Expenditure) - *४५,०३,०९७ करोड रुपये* बतायी गयी है. जो २०२२ - २३ की तुलना में, *"७.५%"* अधिक है. *राजस्व व्यय - ३५,०२,१३६ करोड रुपये (१.२% वृध्दी) / पुंजीगत व्यय - १०,००,९६१ करोड रुपये (३७.४% वृध्दी)* बतायी जाती है. सन २०२४- २५ मे *"रू. १५,००० करोड रुपये"* के *वित्तीय सहायता* की व्यवस्था की गयी है. हमारी भारत सरकार को *"शुध्द कर प्राप्तीया"* ( Income) - *२५.८३ लाख करोड रुपये* / तथा उधार के अलावा *"कुल प्राप्तीया "* (Income) - *३२.०७ लाख करोड रुपये* बताया गया है. और *"कुल व्यय"* (Expenditure) - *४८.२१ लाख करोड रुपये* है. *"सकल घरेलु उत्पाद घाटा"* *४.९%* रहने का अंदाज बताया गया है. अर्थात *"आय से व्यय ज्यादा"* दिखाई देता है तो, हम *"विदेशी कर्ज"* कैसे चुकायेंगे ? यह भी प्रश्न है. भारत की कुल लोकसंख्या यह तो *"१४५ करोड"* है. और *"८१.४ करोड"* लोग, यह *"फ्री अनाज / स्वस्त अनाज"* पर जी बसर करते है. महत्वपूर्ण विषय यह की सन २०२४ साल में, भारत का *"सकल घरेलु उत्पाद दर"* (GDP) यह, *"८.२ %"* (२०२३-२४) बताया गया है. भारत के इस *"आर्थिक बदहाली"* में भी, २२ उद्दोगपतीयों का, नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा *"१६ लाख करोड"* का कर्ज माफ किया गया है. जब की ४० लाख किसानों का केवल *"२ लाख करोड"* का कर्ज माफ किया गया है. हमारी  *वित्त मंत्री* निर्मला सितारमण के अनुसार - *"भारत का सबसे सबसे बडा आय स्त्रोत यह कार्पोरेट टैक्स है."* यहां तो वह टैक्स ही नहीं आ रहा है. अर्थात *"उद्योगपती वर्ग की यह कर्जमाफी,"* यह हमारे अपनी ही *"टॅक्स पुंजी"* का दुरुपयोग है. तो भारत में *"मंहगाई बढना"* यह सहज विषय है. और उन *"उद्योगपती वर्ग"* को, क्यौ *"कर्जमाफी राहत"* दिया जाए ? क्या वह वर्ग *"देशभक्त श्रेणी"* में आते है ? यह भी तो अहं प्रश्न है. अत: भारत की अर्थव्यवस्था, यह क्या *"पाकिस्तान / बांगला देश / श्रीलंका"* की ओर, बढ रही है या बढ चुकी है ? यह भी तो हमे देखना है.

         भारत में *"मंदिरो का अर्थशास्त्र"* भी तो, अलग थलग दिखाई देता है. भारत में *"मंदिरो की इकोनामी भी ३ लाख करोड"* रुपयों से ज्यादा बतायी जाती है. तिरुवनंतपुरम केरल का *"पद्मनाभ स्वामी मंदिर"* में हिरे / सोना / चांदी की मुर्ती समवेत *२० अरब डॉलर* की संपत्ती है. तिरुपती आंध्र प्रदेश का *"बालाजी मंदिर"* को, हर साल दान में *६८० करोड रुपये* आते है. मंदिर में *९ टन सोना और १४ हजार करोड* रुपया बैंक में जमा है. शिर्डी महाराष्ट्र के *"साई मंदिर"* में, हर साल *३८० करोड रुपये* दान में आते है. ४६० किलो सोना / ५४२८ किलो चांदी / डॉलर - पाऊंड आंतरराष्ट्रीय मुद्रा को मिलाकर *१८००० करोड रुपये* बैंक में जमा है. शक्तिपीठ में से एक जम्मु कश्मीर के *"माता वैष्णोदेवी मंदिर* को हर साल, *५०० करोड रुपये* दान में आते है. उज्जैन मध्य प्रदेश के *"महाकाल मंदिर"* में हर साल, *८१ करोड रुपये* दान में आते है. ३४ लाख का सोना / ८८ लाख ६८ हजार की चांदी यह संपत्ती मंदिर के पास है. मदुराई तामिलनाडू के *"मिनाक्षी मंदिर"* में हर साल, *६ करोड रुपये* दान में आते है. प्रयागराज उत्तरप्रदेश के ४५ दिन चलनेवाले *"कुंभ मेला"* खर्च के बारें में क्या कहे ? इन तमाम मंदिरो के *"रुम बंदिस्त संपत्ती"*  तथा *"बॅंक जमा संपत्ती"* का, *"भारत राष्ट्र विकास"* में  क्या योगदान है ? उन *"तमाम अचल संपत्ती"* का, भारत सरकार ने उपयोग किया तो, *"भारत की माली आर्थिक स्थिती सुधार"* सकती है. भारत *"विदेशी कर्ज से निपात"* पा सकता है. भारत की *"बेरोजगारी समस्या "* को सुलझा सकता है. भारत का बुद्ध कालीन प्राचिन *"प्रजातंत्र व्यवस्था"* को मजबूती देकरं, *"पुंजीवाद"* का खात्मा कर सकता है. भारत के *"किसी भी धार्मिक मंदिर संस्थानो"* पर *"किसी भी टैक्स का कोई प्रावधान नहीं है."* धार्मिक संस्थानो की दान को, *"आय नहीं माना जाता."* अत: यह रियासत देना तो हमारी मुर्खता है. अत: यहां बडा सवाल तो, *"भारत सरकार के इच्छाशक्ती"* का भी है. *"धर्मांध / देवांध राजनिति"* भी एक कारण है. *"भारत राष्ट्रवाद - भारत देशभक्ती"* भी मन में होना बहुत जरुरी है. यहां तो *"नंगे - गद्दार - देशद्रोही - चोर - भ्रष्टाचारी - वेश्या - व्यभिचारी"* का राज है. कांग्रेस के द्रोणाचार्य *मोहनदास गांधी* - RSS संघवादी *के. सुदर्शन* - प्राचिन इतिहास नायक *भर्तृहरी* इन्होने तो, *"भारतीय राजनीति को वेश्यालय"* की उपमा दी है. हमारे भारतीय संविधान की *"वॉच डॉग,"* हमारी *"मा. सर्वोच्च न्यायालय"* भी, उपरोक्त अवगुणों से अछुती नहीं है.

        भारत की *"Stable Economy"* (?) अवस्था, *"विश्व की अर्थव्यवस्था"* मे भारत का *"पाचवा स्थान"* पाना, वही *"सकल घरेलु उत्पाद दर"* को ८.२% बताना, *क्या यह भारत की एक Political Economy राजनीति तो नहीं ?* यह प्रश्न खडा होता है. दिनो दिन *"भारत का रुपया"* मे, अमेरिका *"डॉलर की तुलना में गिरावट"* दिखाई देती है. क्यौं की, भारत के *"निर्यात (Export) दरो में कमी"* होना, यह भी एक कारण है‌. भारत की *"निर्यात"* (Export) यह अक्तुबर २०२४ साल में, *"३९.२० बिलियन अमेरिकन डॉलर"* रहा है. वही विदेशी वस्तु *"आयात"* (Import) अक्तुबर २०२४ साल में *"६६.३४ बिलियन अमेरिकन डॉलर"* तथा नवंबर २०२४ में वह बढकर *"६९.९५ बिलियन अमेरिकन डॉलर"* हो गया है. भारत में विदेशी *"मुख्य आयात वस्तु"* - खनीज इंधन तेल, मोम तथा बिटुमियन पदार्थ - २७% / मोती, किमती और अर्ध किमती पत्थर, आभुषण - १४% / विद्युत उपकरण, मशिनरी - १०% / न्युक्लिअर रिएक्टर, बायलर, मशिनरी, मेकॅनिकल उपकरण - ८% / आर्गनिक केमिकल्स - ४%  यह दिखाई देता है. भारत से कुछ देशों को *"पेट्रोलियम उत्पादो"* की सबसे ज्यादा निर्यात (Export) होती है.जो भारतीय *"अर्थव्यवस्था का आधार"* है. यहां अहं प्रश्न खडा होता है कि, क्या भारत उस *"पेट्रोल उत्पादन का उत्पादक देश"* है ? अगर नहीं तो, वह *"कच्चा तैल"* भारत में कहां से आता है ? *"रुस"* यह देश भारत को *"कच्चे तेल"* की आयात (Import) करता है. भारत के अलावा भी *"चीन / युरोपीय संघ / तुर्की"* भी, रुस से कच्च्या तैल आयात करता है. भारत में प्रति दिन *"२.०७ मिलियन प्रति बैरल"* रुस से ही, कच्चे तैल की आयात होती है. जब की चायना रुस से, *"१.७६ मिलियन प्रति बैरल"* कच्चा तैल आयात होता है. वही *"अमेरिकी राष्ट्राध्यक्ष - डोनाल्ड ट्रम्प"* की शासन काल सुरु होने पर, *"रुस से कच्च्या तैल"* खरीदने पर, *"पांबदी लगने"* की ज्यादा ही संभावना है. रुस यह *"कच्च्या तैल आयात"* कर, अपनी *"अर्थव्यवस्था को मजबुत"* करने का प्रयास कर रहा है. भारत में *"कोल"* भी विदेशों से ही आयात (Import) होता है. क्या यहां *"अडानी अर्थनीति"* ही, कोई बडा कारण तो नहीं है ? अर्थात  *"पुंजीवाद को बढावा"* देना रहा हो ! जो *"महागाई "* बढने का कारण है. *"आयात / निर्यात"* का यह तफावत असर, भारत के अर्थव्यवस्था पर, पडता हुआ नजर आता है. *"रुपया यह डॉलर की तुलना में कमजोर"* होता जा रहा है. *"बेरोजगारी का दर"* बढ रहा है. भारत में *"प्रोडेक्शन क्षमता की कमी,"* बेरोजगारी का एक कारण रही है. *"आयात / निर्यात"* का यही *"तफावत Ratio हाल"* रहा तो, हम केवल *"अनाज उत्पाद"* पर ही निर्भर रहेंगे.

           आज *"विश्व की अर्थव्यवस्था"* यह, मंदी के दौरा से गुजर रही है. वैश्विक *"सकल घरेलु उत्पाद दर"* (GDP) में गिरावट होना / *"मुद्रास्फिती"* दर ज्यादा होने से, *"व्याज दरों में वृध्दी"* दिखाई देती है. *"कोविड महामारी"* से वैश्विक विकास घिमा दिखाई देता है. *"युध्द सदृश्य स्थिती तथा जलवायु परिवर्तन"* की वह से, वैश्विक विकास में बाधाएं दिखाई देती है. विकासशील देशों पर *"ऋण का बोझ"* पडने से, *"निवेश में कमी"* आना तो लाजमी है. इस आर्थिक मार से, अमेरिका समान विकसित देश भी अछुते नहीं है. अक्तुबर २०२४ में, *"अमेरिका"* पर *३५.७ ट्रिलियन डॉलर* कर्ज है. *"चायना"* पर *१४.६९ ट्रिलियन डॉलर* कर्ज है. *रूस"* पर *५८० बिलियन डॉलर* कर्ज है. वही *"भारत"* पर *७११.८ अरब डॉलर* का कर्ज है. यह जुन २०२४ के मुकाबले *२९.६ अरब डॉलर* ज्यादा है. जो *"सकल घरेलु उत्पाद दर "* (GDP) अनुपात से, १९.४% दिखाई देता है. अत: यह भारत के संदर्भ में, बडा ही चिंता का विषय है. महाराष्ट्र भी उसी राह पर जा रहा है. महाराष्ट्र का २०२३ - २४ में, *"राजस्व घाटा ३४०९ करोड रुपये"* दिखाई देता है. और सन २०२४ - २५ में, GSDP का २.६% होने का अनुमान है. महाराष्ट्र पर कर्ज यह बढकर *"७.८ लाख करोड रुपये"* दिखाई देता है. अर्थात हमारे भारत देश को, *"सभी प्रकार के कर्ज माफी"* से बचना जरुरी है. *"सांसद / विधायक"* वर्ग की पेंशन बंद करना होगा. धर्मांध / देवांध राजनीति से उपर उठकर, *"राष्ट्र विकास"* हमारा लक्ष होना जरुरी है. *"उद्योग उत्पादन बढाना"* जरुरी है. भारत सरकार *"निर्यात"* (Export) को बढावा दे. ता की *"आर्थिक मुद्रा"* में वृध्दी हो. *"मोफत योजना"* से कार्यक्षमता में कमी आयी है, अत: कार्यक्षमता बंढाने के हेतु *"रोजगार"* देना होगा. इस से रोजगार को बढावा मिलेगा. *"केवल शिक्षा और स्वास्थ इसमे ही रियासत दे‌"* बाकी नहीं. भारत के *"चुनाव व्यवस्था "* में समस्त *"उमेदवार का खर्च"* सरकार द्वारा तय करे. ता की *"आर्थिक मनमानी"* पर लगाम लगा सके. समस्त *"उद्योगपती वर्ग"* को दी गयी *"कर्ज माफी वसुल"* की जाए. *"मंदिर अर्थनीति"* पर लक्ष केंद्रित कर, *"मंदिरों में डंब पडी संपत्ती"* को राष्ट्र विकास में खर्च करना चाहिए. मंदिर के *"चल - अचल संपत्ती पर टैक्स"* लगाना बहुत जरुरी है. हो सके तो, *"मंदिर / उद्योग / खेती का राष्ट्रियकरण"* करना बहुत जरुरी है. अगर *"देश ही नहीं बचा"* तो, भारतीय आवाम की *"आर्थिक स्थिती यह बदतर"* होगी. आज हम *"तिसरे महायुध्द"* की ओर बढ रहे है. तिसरा महायुध्द यह *"पाणी समस्या"* से भी जुडा होने की ज्यादा संभावना है. अगर तिसरा महायुध्द हुआ तो, भारत में *"भुखमरी / बेरोजगारी / महंगाई बढना / अराजकता होना / अशांती"* यह तो सहज विषय है. अत: हमें तो *"भारत राष्ट्रवाद / भारत देशभक्ती "* भावना को, मन में जगाना होगा. *"भारत राष्ट्रवाद मंत्रालय  तथा संचालनालय "* का निर्माण करना भी जरुरी है. और इसलिए बजेट में आर्थिक प्रावधान करना बहुत जरुरी है. नहीं तो, हम पाकिस्तान / बांगला देश / श्रीलंका समान देशों के *"आर्थिक स्थिती"* से गुजरेंगे, इस में मुझे कोई संदेह नही दिखाई देता है.


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▪️ *डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*

       नागपुर दिनांक १६ जनवरी २०२५

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