Monday, 13 January 2025

 ‌👌 *सिंधु घाटी सदृश्य सभ्यता तामिलनाडु के शिवगलाई तथा किझाडी ग्राम खुदाई में मिलने से प्राचिन भारत की खोज में एक नया आयाम !* (सिंधु घाटी सभ्यता की लिपी पढनेवालो को एक करोड डॉलर का पुरस्कार देने की तामिलनाडु सरकार की घोषणा)

      *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल 

एक्स व्हिजिटिंग प्रोफेसर, डॉ बी आर आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ महु म प्र 

मो‌ न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२


       सिंधु घाटी सभ्यता या हडप्पा सभ्यता यह विश्व में, प्राचिन भारत का इतिहास बयाण करता है. सिंधु घाटी सभ्यता में मिली *"लिपी"* आज तक पढी नही गयी है. सिंधु घाटी सभ्यता यह *"पुराना पंजाब से लेकरं बलुचीस्तान (पाकिस्तान) / पंजाब / हरियाना / राजस्थान / गुजरात"* तक फैली हुयी दिखाई देती है. सिंधु सभ्यता का कुछ भाग *"पाकिस्तान / अफगाणिस्तान"* तक फैला हुआ भी दिखाई देता है. सिंधु घाटी सभ्यता यह *"विकसित नगरीय सभ्यता"* रही थी. सिंधु घाटी सभ्यता में *"ध्यानस्थ राजा"* की मुद्रा एवं अलग प्रकार का पहरावा दिखाई देती है. बिलकुल वैसे ही मुद्रा तथा पहनावा *"शाक्यमुनी बुद्ध"* इनका भी दिखाई देता है. धोलावीरा में जमिनपर *"चक्राकार स्तुप"* दिखाई देता है. वैसाही चक्राकार स्तुप यह पंजाब प्रांत के *संगोल* में दिखाई देता है. सिंधु घाटी में *"स्तुप के समिप तरणताल"* दिखाई देता है. वैसा ही स्तुप तथा समिप में तरणताल यह *"वैशाली"* में दिखाई देता है. सिंधु घाटी में कप पर *"बैठी हुयी सिंह मुद्रा"* दिखाई देती है. सिंधु घाटी में एक *"वृषभ"* मिला है. वैसे ही वृषभ हमें आंध्र प्रदेश के *"अमरावती"* में दिखाई देती है.‌ सिंधु घाटी सभ्यता में एक चित्र में *"स्वस्तिक चिन्ह"* मिला है. वैसे ही स्वस्तिक चिन्ह हमें *"बुद्ध पाद"* पर दिखाई देते है. अत: यह प्रमाण हमें इसा पुर्व २२ - २२ शती के पहले बुद्ध - *ताम्हणकर बुध्द* का बोध कराता है. और वह बुद्ध परम्परा २८ वे बुद्ध - *"शाक्यमुनी बुध्द"* तक चलते दिखाई देती है. *"मुझे स्वयं (डॉ जीवने) उन कुछ प्राचिन जगह जाने का"* / अध्ययन करने का अवसर भी मिला है. और मेरी प्राचिन जगह भ्रमण में बडी रूची भी है. सिंधु घाटी सभ्यता की खोज सन १९२१ की गयी. वही *"तामिलनाडू राज्य"* के तुत्तुकुटी जिलें में *"शिवगोलाई"* ग्राम तथा *किझाडी* ग्राम के खुदाई में, सिंधु घाटी सदृश्य सभ्यता की बडी खोज सन २०२४ में की गयी है. भारत की इस प्राचिन सभ्यता का महत्व समझकर, तामिलनाडू के मुख्यमंत्री *स्टॅलिन* इन्होने, *"जो कोई भी विचारविद सिंधु घाटी सभ्यता में प्राप्त लिपी को पढेगा, उसे एक करोड डॉलर (भारतीय करिब रू. ८५ - ८६ करोड राशी) का पुरस्कार घोषित किया है."* हमारे भारत सरकार ने इस तरह के *"एक करोड डॉलर"* पुरस्कार देने की घोषणा नहीं की है. यह भारतीय *"ब्राह्मण्य वाद वैचारिक अवदशा"* का बोध कराता है.

         प्राचिन सिंधु घाटी सभ्यता के *हडप्पा / मोहेंजोदडो/ कालीबंगा/ लोथल / धोलवीरा / राखीगडी / बनावली / नागेश्वर / रंगपुर"* यह प्रमुख केंद्र है. और सिंधु घाटी सभ्यता के *"प्राचिन नगर / शहर,"* यह पाकिस्तान देश स्थित *"चिनाब नदी / झेलम नदी"* पर बसे हुये थे. नैसर्गिक आपदा में वे शहर उध्वस्त हो गये. परंतु उन शहरों के निशाण आज भी, प्राचीन इतिहास बयाण करते दिखाई देते है. *"सरस्वती नदी"* का वहां कोई अस्तित्व ही नहीं है.  फिर भी भारतीय इतिहासकार *"सरस्वती नदी"* का बखाण कर देते है. वही *प्रा. मिसेस जैन* नामक एक स्त्री विचारविद (?) स्वयं को इतिहासकार बताकर, *"रामायण / महाभारत"* का कालखंड सिंधु घाटी सभ्यता के पहले, वह खोजती नज़र आती है. और *चक्रवर्ती सम्राट अशोक* कालिन प्राचिन धरोहर बनाने का श्रेय, सम्राट अशोक को ना देकरं, श्रमिक मजुर को देती है. जैसे उस जैन नामक महामहिम (?) ने स्वयं का घर भी, स्वयं के श्रम से ही बनाया हो. सिंधु घाटी सभ्यता का कालखंड इ. पु. ३३०० - १९०० रहा है.  (पुर्व सिंधु घाटी सभ्यता इ. पु. ७५०० - ३३०० / सिंधु घाटी सभ्यता इ. पु. ३३०० - २६०० / परिपक्व सिंधु घाटी सभ्यता इ. पु. २६०० - १९००) तथा पाषाण काल (पुरा पाषाण काल इ. पु. २५००० - १२००० /  मध्य पाषाण काल कालखंड इ. पु. १२००० - १०००० / नव पाषाण काल इ. पु. १०००० - ३५००) / कांस्य काल कालखंड इ. पु. ३३०० - १२०० तथा लौह काल कालखंड इ. पु. १२०० - ५५० यह रहा है. *अलब्रुनी* इस विचारविद (कालखंड इसवी ७ - ८ वी शती) इनकी लिखी किताब में, *"महाभारत"* का उल्लेख नहीं है. सम्राट अशोक कालीन शिलालेख में भी *"रामायण / महाभारत"* का उल्लेख नहीं है.  सम्राट अशोक के दरबार में रहे *मैगानस्थिज"* (इ. पु. ३६५) इस युनानी द्वारा लिखित *"इंडिका"* इस पुस्तक में भी उल्लेख नहीं है. मैगानस्थिज के बाद *एरियन* द्वारा इ. पु. ९५ से इसवी १७६ लिखित *"इंडिका"* पुस्तक में भी *"वर्णाश्रम / जातीव्यवस्था"* का उल्लेख नहीं है. बौध्द धर्म के *"महायान संप्रदाय"* से *"वज्रयान संप्रदाय"* और वज्रयान संप्रदाय से *"तंत्रयान संप्रदाय"* का उदय हुआ. और वज्रयान तथा तंत्रयान संप्रदाय से *"शैव पंथ / वैष्णव पंथ / शाक्त पंथ"* का निर्माण हुआ. इसवी ८५० में *शंकर* नामक *"स्वच्छंद बौध्द"* द्वारा महायान बौध्द विहारों पर, उस *"पंथ वर्ग"* ने कब्जा किया. आगे जाकर *"चार पीठ"* - श्रृंगेरी पीठ (रामेश्वरम्, केरल - यजुर्वेद) / शारदा पीठ (द्वारका, गुजरात - सामवेद) / ज्योतीर्मठ (बद्रिकाधाम, उत्तराखंड - अथर्ववेद) / गोवर्धनमठ पीठ (पुरी, ओरीसा - ऋग्वेद) तथा *"१२ ज्योतिर्लिंग"* का निर्माण भी हुआ. *केदारनाथ* में आदी शंकराचार्य की समाधी है. यह सभी वेद / उपनिषद *"कागद"* पर लिखे गये है. और कागद का शोध यह *"चायना"* में इसवी *दसवी शती* में लगा. यह हमें समझना भी बहुत जरुरी है.

        तामिलनाडू राज्य के तुत्तुकुटी जिला स्थित *"शिवगलाई"* तथा *"किझाडी"* के खुदाई में, ७०० से अधिक अद्वितीय कलाकृतीया मिली है. *"कार्नेलियम / मनका / गोमेद / काले और लाल रंग के मिट्टी के बर्तन / सुत कातने का उपकरण / धुम्रपान के लिये मिट्टी का पाईप / कांच की चुडिया / शंख"* इन वस्तुओं के साथ ही *"१२० दफन कलश"* मिले है. और उस दफन कलशों में *धान का भुसा"* मिला है. और उसकी *"कार्बन डेटिंग"* करने पर, वह ३२०० साल से पुराने बताये गये है. १४० पुरातात्वीक स्थलों से १५००० से उपर, *"भित्तीचित्र युक्त बर्तन"* के तुकडे मिले हैं. और उसका *"डिटीजलीकरण"* किया गया. तुलनात्मक दृष्टी से अध्ययन करने पर, *"सिंधु घाटी सभ्यता"* और *"दक्षिण भारत सभ्यता"* के *"लौह युग"* कालखंड बस्तीयों के बिच, *"सांस्कृतिक आदान प्रदान"* का बोध होता है. सिंधु घाटी सभ्यता में मिली यह *"लिपी आज तक पढी नहीं"* गयी है. और तामिलनाडू राज्य के उत्खनन से मिले, *"प्राचिन धरोहर"* को देखकर, तामिलनाडू राज्य के मुख्यमंत्री *स्टॅलिन* इन्होने, *"जो कोई विचारविद सिंधु घाटी लिपी को पढेगा, उसे "एक करोड डॉलर"* (भारतीय रू. ८५ - ७६ करोड) का पुरस्कार देने की बडी घोषणा की है. पुरातत्त्व विध के अनुसार सिंधु घाटी सभ्यता *"लिपी"* तथा बुद्ध कालिन (इ. पु. ६ - ५ वी शती) *"ब्राम्ही लिपी"* (धम्म लिपी) के बिच, *"भित्तीचित्र लिपी"* यह सिंधु लिपी से विकसित हुयी हो. अर्थात ब्राम्ही लिपी के उद्गम का वह अग्रदुत के रुप में,वह लिपी काम कर रही होगी. उन भित्तीचित्र को महज खरोच के रुप में, देखा नहीं जा सकता. सिंधु घाटी के तरह इस भित्तीचित्र लिपी को भी, आज तक समजा नहीं गया है. आनुवंशिक अध्ययन आधार पर, सिंधु घाटी के लोगों में *"स्टेपी चरवाह"* का DNA एक नहीं था. इस प्रकार की सभ्यता *"भारत उपमहाद्वीप"* में, *"इंडो युरोपियन भाषी लोगों"* के आने के पहले विद्यमान रही होगी. सिंधु घाटी सभ्यता के लोग *"द्रवीड मुल"* के भी हो सकते हैं, ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है. पुरातत्त्व खोज में, तामिलनाडू के *"वैगई नदी"* के तट पर, एक शहरी सभ्यता फुल फली रही होगी और वह *"संगम युग"* माना जाता है, ऐसा भी एक कयास लगाया जा रहा है. अत: यह उत्खनन *"प्राचिन भारत का स्वर्णीम इतिहास"* बखाण करने की हम आशा करते है.


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▪️ *डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*

      नागपुर दिनांक १३ जनवरी २०२५

      मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२

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