🎓 *न्याय व्यवस्था के विवादपुर्ण निर्णय पर समाज मन विरोध (?) बनाम न्याय व्यवस्था की वॉचडॉगिता...!*
*डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर १७
राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२
हमारे भारतीय न्याय व्यवस्था द्वारा दिये गये बहोत से न्यायालनीय संदर्भ निर्णय पर, भारतीय समाज मन का तिव्र विरोध होता आया है. वह बहुत से विवादपुर्ण निर्णय है - *"रामजन्मभूमी मंदिर प्रकरण, मागासवर्ग समुदायों का मागास आरक्षण प्रकरण, आयसोलेटेड पोष्ट प्रकरण, राहुल गांधी का गुजरात प्रकरण, नरोदा (गुजरात) प्रकरण के सभी आरोपीओं का निर्दोषता देना भी हो, राफेल प्रकरण"* आदी बहुत से प्रकरण रहे है. वही दुसरी ओर *"बिल्किस बानो (गुजरात) प्रकरण, वकिल वर्ग द्वारा संप करने का अधिकार प्रकरण"* में, मा. सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय *"भारतीय न्याय व्यवस्था की वॉचडॉगीता"* के जिंदा होने का, एक बडा सबुत भी दिखाई देता है. हमारे न्याय व्यवस्था में बैठनेवाले मान्यवर, यह कोई सुपर पावर ब्रेन नही है, बल्की एक मानव ही है. और मानव से गलतीयां होती रही है. इंग्लिश में कहावत है, *"To err is human being. (गलती करना यह तो मानव स्वभाव गुण है)"* हमारे बचनम में सिखायी गयी वह कहावत, आज हम समज पा रहे है. पर बडा सवाल है कि, क्या वह गलती मुद्दाम से की गयी है ??? क्या वह गलती करने में, कोई बडा षडयन्त्र रहा है ? क्या वह गलती, विचारों की कोई दुविधा रही है ? या न्याय व्यवस्था पर, *"ब्राम्हणी"* (?) अल्पसंख्याक समुदाय का अधिपत्य होने से, *"बहुसंख्याक समाज"* यह सदियों तक गुलाम बना रहे, यह कोई साजीश भी...!!! ऐसे बहुत सारे प्रश्न खडे दिखाई देते है. पर एक महत्वपुर्ण प्रश्न है, *"क्या भारतीय न्याय व्यवस्था, हमारे भारतीय बहुसंख्याक समाज को, सही न्याय देने में सफल हुयी है या नहीं ?"* अगर सफल नहीं हुयी हो तो, इस का क्या सही कारण है ? इस का सही हल क्या है ? और अगर वह सफल हुयी है, तो वह कैसे ? यह राष्ट्रिय चर्चा का महत्वपुर्ण विषय है.
अब हम न्याय व्यवस्था द्वारा गये कुछ महत्व के विवादपुर्ण निर्णय पर चर्चा करेंगे. *"रामजन्मभूमी प्रकरण निर्णय"* लो. इस प्रकरण में *प्रायमा फेसी* कहां दिख रही है. प्राचिन बौध्द अवशेष संदर्भ तो, बौध्द नगरी *"साकेत"* होने का संदर्भ बयाण करती है. वह प्राचिन शहर - बिना युध्द किया जितने के कारण *"अयोध्या"* नाम पड गया. वही बौध्द समुदायों द्वारा दायर उस याचिकां पर, निर्णय दिया बिना *"रामजन्मभूमी मंदिर"* बांधकाम शुरु भी किया गया. क्या राम का अस्तित्व सिध्द हो पाया है ? या *"रामायण"* यह महाकाव्य, कवि वाल्मिकी की केवल एक कल्पना तो नहीं है ? क्या राम यह कोई, काल्पनिक पात्र तो नही है ? बहुत सारे प्रश्नों के उत्तर, क्या सर्वोच्च न्यायालय हमें दें पायी है ? यह भी प्रश्न है. हमे किसी की भावना को, आहत करने का बिलकुल मंशा नही है. सवाल यह न्याय व्यवस्था के गरिमा का है. देश की न्याय व्यवस्था के प्रामाणिकता का भी है. *"राफेल प्रकरण"* भी विविध सबुतों के आधार का भी विषय है. *"राहुल गांधी गुजरात न्याय प्रकरण"* भी, यह क्या न्याय व्यवस्था के गरिमा को बढानेवाला विषय है ? अगर राहुल गांधी दोषी भी हो तो, क्या इतनी बडी शिक्षा को, क्या जायज माना जा सकता है ? *"फौजदारी प्रक्रिया संहिता"* में स्टे देने संदर्भ में, कानुन में स्पष्ट लिखा नही है. परंतु मा. सर्वोच्च न्यायालय ने कलम ३८९ के संदर्भ में, रामा नारंग विरुध्द रमेश नारंग इस केस में कहा कि, "आरोपी (?) को दी गयी शिक्षा को सदर कलम कें अंतर्गत स्टे अपवाद स्वरुप दिया जा सकता है. परंतु आरोपी (?) को स्टे नही दिया गया हो तो, उसके होनेवाले कुछ गंभिर परिणामों को, न्यायालय को बताना जरुरी है." अब दुसरा अहं सवाल यह भी है कि, *"शिक्षा को स्टे (स्थगिती) देना हो और दोषी के रुप में निर्णय होने पर स्टे देना, क्या दोनो भी विषय एक ही है ?"* इसके साथ ही राहुल गांधी का वास्तव्य गुजरात का नही है. तो फिर दंड संहिंता का कलम २०२ का भी वहां प्रश्न है. राहुल गांधी द्वारा नियुक्त वकिल के बुध्दी से, यह विषय संबधित है.
*"आयसोलेटेड पोष्ट पर मागास वर्ग आरक्षण"* तथा *"मागासवर्ग समुदाय कें आरक्षण प्रकरण"* पर, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गये निर्णय भी, बहुत विवादीत तथा चर्चा के रहे है. सवाल यह भी है कि, अगर *"आयसोलेटेड"* पोष्ट पर मागासवर्ग समुदाय को आरक्षण नही दिया गया तो, वह कभी उस पोष्ट पर कभी नियुक्त होंगे क्या ? यह प्रश्न है. मागास वर्ग समुदायों का सीआर खराब कराकर, उन्हे उस पोष्ट पर पदोन्नत करने से रोकने का प्रयास होगा और प्रयास भी हो रहा है. *"मागासवर्ग आरक्षण"* यह तो विवादपुर्ण विषय होते जा रहा है. भारत में विभिन्न शेड्यूल्ड जैसे कि - *"शेड्यूल्ड कास्ट, शेड्यूल्ड ट्राईब, ओबीसी"* आदी शेड्युल्डों में, विभिन्न जाती वर्गो को और से जोडा जा रहा है. और *"आरक्षण की सीमा ५०% निर्धारीत की गयी है."* अब सवाल यह है कि, मागास वर्ग जनसंख्या ५०% ही है क्या ? अगर वह जनसंख्या और जादा हो तो...! *"ओबीसी समुदायों की जनगनणा ना होने के कारण,"* उनके आरक्षण की मर्यादा, यह विषय बहुत विवादपुर्ण रहा है. अर्थात उन समस्त शेड्यूल्ड समुदायों का, कुल जोडा जाएं तो, वह समुदाय बहुसंख्यक दिखाई देगा. *"वही भारत के उच्च समुदाय की जनसंख्या ४% के उपर ना होकर भी,"* अर्थात वह अल्पसंख्याक समुदाय होकर भी उनका वर्चस्व होना, यह विचार *"द्वि-राष्ट्र सिध्दांत"* की एक याद दिलाता है. अत: डॉ. बाबासाहेब आम्बेडकर इनके यह बोल *"हमारे भारत देश में (सही कहे तो) दो अलग अलग राष्ट्र समाये हुये है. एक सत्ताधारी वर्ग का राष्ट्र और दुसरा जिस समुदायों पर शासन किया जा रहा है, उस समुदायों का राष्ट्र. सभी के सभी मागासवर्ग समुदाय यह दुसरे राष्ट्र के लोग है. (राज्य सभा नयी दिल्ली, दिनांक ६ सितंबर १९५४)"* हमे बहुत कुछ संदेश दे जाता है.
अभी अभी गुजरात विशेष न्यायालय ने *नरोदा (गुजरात) ग्राम दंगल प्रकरण"* के सभी आरोपीयों को, निर्दोष बताया है. फिर जो ११ लोग दंगल मे मारे गये थे, उन सभी को मारनेवाले कौन सैतान है ? तत्कालिन नरेंद्र मोदी सरकार की मंत्री माया कोडनानी तथा बजरंग दल का बाबु बजरंगी सहीत ६७ आरोपीओं विशेष न्यायालय के *न्यायाधीश एस. के. बक्षी* द्वारा मुक्तता ...! क्या बात है ??? न्यायमुर्ती बक्षी को तो, भारत रत्न पुरस्कारअहसानद्दीनए !!! वही मा. सर्वोच्च न्यायालय के *न्यायाधीश द्वय न्या. के. एम. जोसेफ तथा न्या. बी. व्ही. नागरत्ना* इन विद्वत मान्यवरों ने, *"बिल्किस बानो (गुजरात) प्रकरण"* में केंद्र सरकार तथा गुजरात राज्य सरकार को आडो हाथ लेकर, चेतावणी भरें शब्दों ने कहां कि, *"गुजरात बिल्किस बानो बलात्कर प्रकरण के ग्यारह दोषीयों को शिक्षा माफ कराकर, क्या देश को संदेश देना चाहती है ? यह बलात्कार प्रकरण एवं सामुहिक हत्या प्रकरण यह कोई साधारण कलम ३०२ नही है. आज वहां है. कल आप और हम भी हो सकते है."* उसी प्रकार भारत की मा. सर्वोच्च न्यायालय ने दुसरे एक प्रकरण में, न्यायामुर्ती द्वय *न्या. एम. आर. शहा तथा न्या. अहसानुद्दीन अमानुउल्लाह* इनके खंडपीठ ने कहां कि, *"बार कौंसिल का कोई भी सदस्य संप पर नही जा सकता. वकिल अगर संप (Strike) पर गया तो, न्यायालयीन कामों में बाधा आयेंगी."* इस प्रकार के न्याय व्यवस्था द्वारा स्थापित योग्य निर्णय से, न्याय व्यवस्था की गरिमा बढी है. अर्थात भारत की मा. सर्वोच्च न्यायालय ने, अपने वॉचडॉगीता का सही परिचय दिया है. जो काबिले - ए - तारिफ है.
अब हम भारत के सर्वोच्च न्यायालय के सरन्यायाधीश *धनंजय चंद्रचूड* इनकी मुख्य अध्यक्षता में लिये गये दो निर्णय पर चर्चा करेंगे. सरन्यायाधीश धनंजय चंद्रचूड का वह निर्णय, भारत के सशक्त न्याय व्यवस्था की वह एक कहानी बयाण करता है. *"महाराष्ट्र के तत्कालिन महा महिम राज्यपाल भ. कोश्यारी - शिवसेना फुट प्रकरण"* पर सरन्यायाधीश धनंजय चंद्रचूड कहते है कि, *"राज्यपाल ने अपने प्रदत्त अधिकारों का, उचित ऐसा निर्णय लेना अपेक्षीत है. क्यौं कि, विश्वासदर्शक ठराव (?) के कारण सरकार गिर भी सकती है."* वही दुसरा एक प्रकरण और भी बहुत चर्चा का विषय रहा है. वह विवादीत प्रकरण है *"मल्यालम वृत्तवाहिनी बंदी प्रकरण."* इस विवादीत प्रकरण पर, सरन्यायाधीश धनंजय चंद्रचूड की अध्यक्षता के पीठ ने सरकार को पुछा कि, *"सरकार विरोधी भुमिका रखना यह देशविरोधी बातें कैसी हो सकती है ? लोकतंत्र को मजबुत रखने के लिए, हर मिडिया का स्वतंत्र होना बहुत जरुरी है. आप मिडिया से यह कैसे अपेक्षा करते है कि, वो आप की बातें सुने."* भारत के मा. सर्वोच्च न्यायालय के सरन्यायाधीश धनंजय चंद्रचूड की अध्यक्षता की पीठ के यह दोनो निर्णय, *"भारत के सशक्त वॉचडॉगीता"* का परिचय कर गये है. जो *"काबिले - ए - तारिफ"* विषय कहा जा सकता है. आज कल न्याय व्यवस्था संदर्भ में, यह भी चर्चा होती रही कि, सरकार के पक्ष में निर्णय दो. और रिटायरमेंट के बाद भारत सरकार द्वारा *"किसी राज्य का राज्यपाल बनना हो या, किसी भी आयोग का अध्यक्ष बनना हो या, राज्यसभा में सिधा प्रवेश...!"* इस कारणवश भारत की न्याय व्यवस्था बदनाम भी हो गयी है. सर्वोच्च पद का लाभ लेने के पश्चात, *"सरकार का भिखारी"* बनना यह बहुत बडा शर्म का विषय है. फिर वेश्या और इनमे क्या फर्क रहा है ? अब हमें भारत के सरन्यायाधीश धनंजय चंद्रचूड की अध्यक्षता के पीठ से, *"शिवसेना बिखराव प्रकरण"* पर सही निर्णय की अपेक्षा बनी है. क्यौ कि, *"मा. सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय यह राजनितिक भ्रष्टाचार रोकने की, वह एक मजबुत कडी हो सकती है."* साथ ही हमारे भारत का लोकतंत्र मजबुती का कारण भी !
अचानक मुझे मेरे ( *डॉ. मिलिन्द जीवने* विरुध्द *संविधान फाऊंडेशन - इ. झेड. खोब्रागडे)* ही मा. उच्च न्यायालय मुंबई नागपुर बेंच के याचिका क्र. ३९४०/२०१९ की याद आ गयी. *"भारतीय संविधान यह साहित्य नही है. वह कानुनी दस्तावेज है. कानुनी किताब नही है. अत: संविधान को साहित्य के श्रेणी मे लाना, भारतीय संविधान का अपमान है."* और संविधान साहित्य सम्मेलन पर, रोक लाने के लिए वह याचिका *न्या. आर. के. देशपांडे / न्या. विनय जोशी* इस पीठ के सामने सुनवायी के आयी थी. तब वह विद्वत महोदय पुछ रहे थे कि, *"वह सम्मेलन का होने से, आप को क्या हानी हो सकती है ?"* और वह याचिका निरस्त की गयी. क्या मैने वह रिट याचिका, मेरे लाभ - हानी के डाली हुयी थी. भारत के संविधान की गरिमा रखना, यह हर भारतीय नागरिक का कर्तव्य है. अगर *न्या. आर. के. देशपांडे / न्या. विनय जोशी* समान ना-लायक (Non- qualified) लोग न्याय व्यवस्था हो तो, न्याय व्यवस्था बदनाम होने की संभावना बनी रहेगी. अत: ऐसे ना-लायक न्यायाधीशों की वापसी का प्रबंध होना बहुत जरुरी है. अगर *"न्यायालय कोलोजीयम"* ना होता, और स्पर्धा परिक्षा में उन्हे बिठाया गया होता तो, वे लोग कभी चपराशी बनने की पात्रता रखते होते, यह संशोधन का विषय है. अत: न्याय व्यवस्था से *"ब्राम्हण्यवाद"* दुर करना जरुरी है. मेरा ब्राम्हण समुदाय से व्यक्तिगत द्वेष नही है. मैं प्रवृत्ति संदर्भ में बोल रहा हुं. इस संदर्भ में, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के शब्द बताना चाहुंगा. वे कहते है कि, *"ब्राम्हणशाही इस शब्द का अर्थ स्वातंत्र, समता एवं बंधुता इन तत्वों का अभाव, यह व्याख्या मुझे अभिप्रेत है. इस अर्थ से, उन्होने सभी क्षेत्र में कहर मचाया है. और ब्राम्हण उसके जनक भी रहे है. परंतु यह अभाव अब केवल ब्राम्हण वर्ग के सिमित नही रहा है. इस ब्राम्हणशाही का संचार सभी वर्ग में फैला हुआ है. और उन्होने उन वर्गों के आचार - विचारों को नियंत्रीत किया है. यह एक सत्य भी है."* (मनमाड दि. १३ फरवरी १९३८)
मुझे ब्राम्हण समुदायों से बिलकुल द्वेष नही है. मेरे मिडिया से लेकर राजनीति और कई क्षेत्रों में, मेरे अच्छे ब्राम्हण मित्र बने है. उनके घर के विवाह आदी कार्यक्रमों मे, मुझे निमंत्रण भी रहता है. वे मुझे भी मिलने आते रहते है. ना ही उन्होने मुझे हानी पहुचाई है. हमारी बहुत से विषयों पर चर्चा भी होती है. *कभी कभी तो, हमारे अपने ही दगाबाजी कर जाते है.* इसलिये मै डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जी का कथन, हमेशा याद करता आया हुं. और मै अपने बाबासाहेब मिशन की ओर, आगे बढ रहा हुं. जय भीम !
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(नागपुर, दिनांक २० अप्रेल २०२३)
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