👌 *HWPL (H.Q.: Korea) इस विश्व स्तरीय आंतरराष्ट्रिय संघटन की ओर से 25 एप्रिल 2023 को झुम पर आयोजित, "विश्व शांती शिखर सम्मेलन" इस विषय पर, "आंतरधर्मीय परिसंवाद" कार्यक्रम...!*
* *डा. मिलिन्द जीवने,* अध्यक्ष - अश्वघोष बुध्दीस्ट फाऊंडेशन, नागपुर *(बुध्दीस्ट एक्सपर्ट / फालोवर)* इन्होंने वहां पुछें दो प्रश्नों पर, इस प्रकार उत्तर दिये...!!!
* प्रश्न - १ :
* *आप के शास्त्र में, परमेश्वर या प्रबुब्ध दिव्य प्राणी का नाम क्या है, और नाम का अर्थ क्या है ?*
* उत्तर : - बुध्द ने *"किसी परमेश्वर या प्रबुध्द दिव्य प्राणी"* की संकल्पना पर, अपने कोई विचार व्यक्त नही किये है. बल्की बुध्द ने, *"मानव का शरिर यह पृथ्वी, आप (जल), तेज (अग्नि), वायु इन चार महाभुतों से, बनने की संकल्पना दी है."* बुध्द ने "आकाश" महाभुत को नकारा है. और उस का कार्य *"चेतना (Vitality)"* द्वारा निरंतर शुरु रहता है. नैसर्गिक नियम के अनुसार, जब यह चेतना शक्ति शरिर से बाहर निकल जाती है, तब शरिर थंडा होने लगता है. और व्यक्ति निर्जिव (मृत) हो जाता है.
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जब व्यक्ति यह मृत को प्राप्त होता है, तब वह चार ही महाभुत - पृथ्वी, आप (जल), तेज़ (अग्नि), वायु यह अपने समगुण धर्मीय महाभुतों में, विलिन हो जाते है. अग्नी महाभुत अग्नी में, वायु महाभुत वायु में विलिन हो जाता है. योग्य परिस्थिती निर्माण होने पर, पिता का विर्यजंतु तथा माता का रजकण एकत्र आने पर, चेतना का उदय होता है. और जीव निर्मिती होती है.
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बुध्द ने *"आत्मा"* इस भाव को पुर्णत: नकारा है. आत्मा के अजर - अमरत्व को नकारा है. आत्मा नामक अपरिवर्तनशील - अमर कहनेवाली (?) वस्तु, यह मर्त्य शरिर हें रह ही नही सकती. (A permanent thing cannot reside in the impermanent body.)
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बुध्द ने आत्मा के बिना ही पुनर्जन्म संकल्पना की बात कही है. जैसे एक दिपक जलाने पर, दुसरा दिपक जलाया जाने पर, पहिले दिपक ने दुसरे दिपक का संसरण किया है. इस प्रकार पुनर्जन्म का विचार बुध्द कहते है. आत्मा नाम की कोई वस्तु, अस्तित्व में ही नही है.
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बुध्द ने मानव शरिर में, आत्मा को नकारते हुयें *"नाम / रूप"* गुणभाव को माना है. इस संदर्भ में पाली मे गाथा है.
*"नामं च रुपं च इथ अत्थि सच्चतो,*
*न हेत्थ सत्तो मनुजो इव अभिसंखात*
*दुक्खस्स पुञ्ञो विणकठ्ठसदिसो ||"* (विशुध्दीमग्ग)
(अर्थात : नाम - रूप यह जोडी एकमेक पर आश्रित होती है. जब एक भंग हो जाती है, तब दुसरी भी भंग हो जाती है. और मृत्यु आता है.)
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बुध्द ने कात्यायन को आत्मा संदर्भ में कहा की,
*"सब्बं अत्थिति खो कच्चान अयमे को अंतो |*
*सब्बं नत्थिति अयं दुतियो अंता |*
*एत ते उभो अंते अनुपगम्म मज्झेन धम्मं देसेति अविज्जापच्चया संखारा ||"*
(अर्थात :- हे कात्यायना, सभी है (आत्मा नित्य है) यह एक अंत. सभी नही है (आत्मा नही है) यह दुसरा अंत है. इन दोनो अंत से हटकर, बुध्द ने मध्यम मार्ग बताते हुये, आत्मा का अस्तित्व नही है. आत्मा का संसरण नही होता. परंतु जीवन प्रवाह है. यह धर्मोपदेश इषस प्रकार करता है. अविद्या से संस्कार, संस्कार से विज्ञान, इत्यादी. (प्रतित्यसमुत्पाद))
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बुध्द ने प्रतित्यसमुत्पाद नुसार आत्मा (जीव) यह शाश्वत या अशाश्वत वस्तु को नकारते हुये, *"कार्यकारण भाव"* नियम की वकालत की है. उस संदर्भ में पाली में गाथा है.
*"इदं सति इदं होति, इदं असति इदं न होति |"*
(अर्थात : कारण रहा तो, कार्य होता है. कारण ना हो तो, कार्य कभी नही होता.)
इस प्रकार बुध्द ने अपने विचार बताये है. और कोई असामान्य अग्नि की बात को नकारा है.
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बुध्द ने पृथ्वी, आप (जल), तेज (अग्नी), वायु केवल इन चार ही महाभुतों को मानने का कारण, रासायनिक गुणधर्म रहे है. आकाश में कोई रासायनिक गुणधर्म नही होते है. इसलिये उसे महाभुत नही माना है.
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बुध्द ने *"परमेश्वर"* को नकारते है. परमेश्वर के *"स्वयंभु"* होने पर, प्रश्न उठाते हुये कहा कि, अगर परमेश्वर स्वयंभु है तो, सृष्टी स्वयंभु क्यौं नही है ?" बुध्द ने स्वयं को मार्गदर्शक माना है. उस संदर्भ में एक पाली गाथा बतायी है. वह गाथा -
*"तुम्हेहि किच्चं आतप्पं, अक्खातारो तथागता |*
*पटिपन्ना पमोक्खन्ति, झायिनो मारबंधना ||"*
(अर्थात :- तुम्हारे कार्य के लिए, तुम्हे ही उद्दोग करना है. तथागत का कार्य केवल मार्ग दिखाना है. तुम्हे उस मार्ग पर आरूढ होकर, ध्यानमग्न होकर, मार के बंधनों से मुक्त होना है.)
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बुध्द के दृष्टीकोन से, परमेश्वर या कोई प्रबुध्द दिव्य प्राणी को कोई स्थान - महत्व नही है.अत: बुध्द ने किसी भी प्रकार के अंधश्रध्दा को, पुर्णत: नकारा है. अत: *"कोई असामान्य व्यक्तिविशेष"* इस विषय का, बुध्द धर्म में, कोई औचित्य ही नही है. तो फिर उस दिव्य शक्ती के नाम का कोई सवाल ही नही है.
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* प्रश्न - २ :
* *क्या अपने शास्त्र के अनुसार परमेश्वर या प्रबुद्ध प्राणी का नाम जानना महत्वपुर्ण है ? यदी हां, तो नाम जानना क्यौं महत्वपुर्ण है ?*
* उत्तर :- मेरे पहले प्रश्न के उत्तर में, परमेश्वर या प्रबुद्ध प्राणी के अस्तित्व को बुध्द ने नकारने की बात कही है. और बुध्द ने सृष्टी के निर्माण मे भी, परमेश्वर का योगदान को नकारा है. इस पर पाली में एक गाथा है.
*"न हेत्थ देवो ब्रम्ह संसारस्य अत्रि कारको |*
*बुध्दधम्मा पवत्तन्ति हेतुभारपच्चया ति ||*
(अर्थात :- यहां कोई भी विश्व का कर्ता नही है. सृष्टी के नियम के अनुसार, अपने आप सृष्टी का चक्र निरंतर सुरू रहता है.)
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बौध्द तत्वज्ञान में, मानवी चमत्कार को कोई स्थान नही है. मनुष्य जो बीज बोता है, वही फल उसे मिलता है. कर्म का कर्ता कोई आत्मा नही है. इस संदर्भ में बुध्दघोष ने विशुध्दीमग्ग में कहा है -
*"कम्मस्स कारको नत्थि विपाकस्स च वेदको |*
*सुध्दधम्मापवत्तन्ति एव ऐतं सम्पादस्सनं ||"*
(अर्थात :- कोई कर्ता नही, जो कर्म करे. अवयव वस्तुघटक चक्र अपने आप घुमते रहता है. आत्मा की कल्पना बुध्द ने नकारी है. कोई आत्मा कर्म करता है, यह बुध्द ने नकारा है. बुध्द धर्म के अनुसार, चेतना (Will or Volition) कर्म करता है. वेदना (Feelings) यह स्वयं के कर्म का उपभोग लेती है. उसे छोडकर कोई करनेवाला, कोई उपभोग घेणेवाला नही है. (Thoughts themselves are the thinkers.)
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इस संदर्भ में, एक ब्राम्हण पंडित और बुध्द के बिच हुआ एक वार्तालाप बताना चाहुंगा. ब्राम्हण पंडित ने बुध्द से कहा - *"आप आत्मा को नकारते है. स्वर्ग भी नही मानते. पुनर्जन्म भी नही.* इस पर आप खुलकर बताये.
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बुध्द ने कहा, मै लोगों को सत्य बताता हुं. आदमी को पाचं बाह्य ज्ञानेंद्रिये है. *आंखें* ( हम देखते है) , *कान* (हम सुनते है) , *नाक* (सुंगध लेते है) , *जीभ* (आस्वाद लेते है), *त्वचा* (स्पर्श अनुभुती करते है). कभी कभी हम दो या तिन ज्ञानेंद्रिय से भी सत्य जान लेते है.
फिर पंडित बोला, वह कैसे ?
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बुध्द ने कहां, पाणी यह आंख से देखते है. परंतु वह गरम या थंड है, इसके लिए त्वचा की मदत लेते है. मिठा है या नमकिन, यह जानने के लिए जीभ का उपयोग करते है.
फिर पंडित बोला, इससे देव होने या न होने का क्या संबंध ?
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बुध्द ने कहा, *"क्या हवा तुम देख सकते हो ?"*
पंडित बोला, *"नही."*
बुध्द बोलने लगे, *"फिर हवा नही ऐसा कहें ?"*
पंडित बोला, *"नही."*
बुध्द ने फिर कहां, *"हवा ना दिखने पर भी, हम उसका अस्तित्व मानते है. इसका संबंध श्वास लेने से है. वारा आने से है. झाड की पत्ती हलने से है."*
पंडित ने कहा, यह सत्य है.
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बुध्द ने पंडित से पुछा की, *"आप ने परमेश्वर को देखा है क्या ?"*
पडिंत बोला, नही. हमारे मां - बाप ने बताया.
बुध्द ने कहा, तुम्हारे पुरखों ने प्रत्यक्ष देखा है क्या ?
पंडित बोला, नही.
बुध्द बोले, *"तुम्हारे पुरखों ने नही देखा. और ज्ञानेंद्रिय से भी हम समझ नही सकते. फिर वह सत्य कैसे हो सकता है."*
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पंडित खामोश हो गया. फिर आत्मा के बारे में पुछा. उसके बिना हम जिवित कैसे रहेंगे ?
बुध्द ने उत्तर दिया, *"तुम कहते हो आत्मा अमर है. वह कभी नही मरता."* फिर बुध्द ने प्रश्न किया कि, *"आत्मा यह शरिर छोडता है, या शरिर आत्मा छोडता है? "*
पंडित बोला कि, आत्मा शरिर छोडता है.
बुध्द ने फिर पुछा, आत्मा शरिर क्यौं छोडता है?
पंडित बोला कि, आयुष्य के खत्म होने पर.
बुध्द बोले, *"फिर आदमी ने सौ साल जीना चाहिये. बिमारी मे या अपघात होने पर भी, बिना उपचार के व्यक्तिजीवित होना चाहिये.
पंडित बोला, आप का कहना सत्य है.
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बुध्द ने पंडित से पुछा, दिया कब बुझता है ?
पंडित ने कहां, तेल खत्म होने पर या वात खत्म होने पर.
बुध्द ने फिर पुछा, और कब.
पंडित खामोश हो गया.
फिर बुध्द ने कहां कि, *" पाणी गिरने पर, हवा आने से, दिवा फुटने पर, दिया बुझ जाऐगा."*
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बुध्द ने फिर कहा कि, "मानव का शरीर यह एक दिया ही है. और जीव का अर्थ आग (उर्जा). और मानव का शरीर पृथ्वी (घनरुप पदार्थ - माती), आप (द्रवरूप पदार्थ - पाणी, स्निग्ध तैल), वायु (वारा), तेज (उर्जा, उष्णता) इन चार महाभुतों से बना है. इन चारों महाभुतों से एक भी महाभुत अलग हुआ कि, माणुस मर जाता है. यहां आत्मा का कोई अस्तित्व नही है.
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अत: बुध्द के उपरोक्त वार्तालाप से समझ गये होंगे की, परमेश्वर या प्रबुध्द दिव्य प्राणी यह कोई अस्तित्व नही है.
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* परिचय : -
* *डाॅ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*
(बौध्द - आंबेडकरी लेखक /विचारवंत / चिंतक)
* मो.न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२
* राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी वुमन विंग
* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी एम्प्लाई विंग
* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी ट्रायबल विंग
* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी वुमन क्लब
* अध्यक्ष, जागतिक बौध्द परिषद २००६ (नागपूर)
* स्वागताध्यक्ष, विश्व बौध्दमय आंतरराष्ट्रिय परिषद २०१३, २०१४, २०१५
* आयोजक, जागतिक बौध्द महिला परिषद २०१५ (नागपूर)
* अध्यक्ष, अश्वघोष बुध्दीस्ट फाऊंडेशन नागपुर
* अध्यक्ष, जीवक वेलफेयर सोसायटी
* माजी अध्यक्ष, अमृतवन लेप्रोसी रिहबिलिटेशन सेंटर, नागपूर
* अध्यक्ष, अखिल भारतीय आंबेडकरी विचार परिषद २०१७, २०२०
* आयोजक, अखिल भारतीय आंबेडकरी महिला विचार परिषद २०२०
* अध्यक्ष, डाॅ. आंबेडकर आंतरराष्ट्रिय बुध्दीस्ट मिशन
* माजी मानद प्राध्यापक, डाॅ. बाबासाहेब आंबेडकर सामाजिक संस्थान, महु (म.प्र.)
* आगामी पुस्तक प्रकाशन :
* *संविधान संस्कृती* (मराठी कविता संग्रह)
* *बुध्द पंख* (मराठी कविता संग्रह)
* *निर्वाण* (मराठी कविता संग्रह)
* *संविधान संस्कृती की ओर* (हिंदी कविता संग्रह)
* *पद मुद्रा* (हिंदी कविता संग्रह)
* *इंडियाइझम आणि डाॅ. आंबेडकर*
* *तिसरे महायुद्ध आणि डॉ. आंबेडकर*
* पत्ता : ४९४, जीवक विहार परिसर, नया नकाशा, स्वास्तिक स्कुल के पास, लष्करीबाग, नागपुर ४४००१७
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