🌾 *बुध्द मन का आवरण...!*
*डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*
मो. न. ९३७०९८४१३८
मेरे सुंदर जीवक बगिचें का
मै तो बाग़वान बना हुं
फुल - फल आदी झाडों को
बडे प्यार से सिंचता रहा हुं
और सवारतें भी रहा हुं
परंतु उन कोमल - सुंदर झाडों को
जड़ से उख़ाडकर फेखने की
शत्रु वर्ग की हिन मानसिकता से
मै विचलित हों जाऊंगा !
शत्रु की यह हिन निष्क्रिय सोंच
मेरे अटल - अतुट विश्वास को
ना कभी वो तोड सकते है
ना कभी झुका सकते है
ना ही मेरे विचार को बदल सकते है
क्यौं कि मेरा उन से यह रिस्ता
अतुट प्रेम बंधन का बना है
साथ ही बुध्द मन का आवरण
ना ही इतना कमजोर रहा है...!
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