Saturday, 18 February 2023

 👌 *HWPL (H.Q.: Korea) इस विश्व स्तरीय आंतरराष्ट्रिय संघटन की ओर से, २३ अक्तूबर २०२२ को झुम पर आयोजित, "विश्व शांती शिखर सम्मेलन" इस विषय पर, "आंतरधर्मीय परिसंवाद" कार्यक्रम...!*

* *डा. मिलिन्द जीवने,* अध्यक्ष - अश्वघोष बुध्दीस्ट फाऊंडेशन, नागपुर *(बुध्दीस्ट एक्सपर्ट / फालोवर)* इन्होंने वहां पुछें दो प्रश्नों पर, इस प्रकार उत्तर दिये...!!!


* प्रश्न - १ :

* *अपने‌ धार्मिक शास्त्र में, विश्वासियों को किन आशिषों का वादा किया गया है ? क्या इसमें आशिर्वाद के स्त्रोत के बारें में दर्ज भी है ?*

* उत्तर : - भगवान बुध्द‌ की मुर्ती के सम्मुख शारिरीक रुप से नतमस्तक होना, नमन करना यह कोई धर्मांधी भक्तिभाव नही है. किसी भी प्रकार की अंधश्रध्दा या अन्धविश्वास नही है.  बल्की उनके उच्च आदर्शों के प्रति सम्मान जताना है. इससे हमारे अन्त:करण में उठने वाली खुशी व प्रीति की उमंगों की अनुभूति की अभिव्यक्ति होती है.

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बुध्द की पाली भाषा की गाथाए कहना या पठन करना यह विश्वासीयों को, सन्मार्ग का बोध कराती है. उन सन्मार्ग की ओर जाने का बोध कराती है. उसका पालन करने की प्रेरणा देती है. वह गाथाएं आशिषों का  कोई वादा नही है. बल्कि मानव कल्याण का वह मार्गदर्शक है. 

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तथागत "महामंगल सुत्त गाथा" में कहते है 


*असेवना च बालानं पण्डितानञ्व सेवना |*

*पुजा च पुजनियानं एतं मंङ्गलमुत्तमं ||*

(अर्थात : - मुर्खों की संगत नही करना, विद्वानों की संगत करना एवं पुज्यों की पुजा करना, यह उत्तम मंगल है. )


*पतिरुप देसवासो च पुब्बे च कतपुञ्ञता |*

*अत्तसम्मापणिधि च मंङ्गलमुत्तमं ||*

(अर्थात :- उचित स्थान पर निवास करना, पुण्य कार्यों का संचय करना तथा सम्यक आत्म निरिक्षण यह उत्तम मंगल है.)


*बाहुसच्चं च सिप्पंच विनयो च सुसिक्खितो |*

*सुभाषिता च या वाचा एतं मंङ्गलमुत्तमं ||*

(अर्थात :- बहुश्रुत होना, शिल्पादि कलाएं सिखना, शिष्ट व्यवहार करना, श्रेष्ठ शिक्षा लेना, सुभाषित युक्त वाणी होना, यह उत्तम मंगल है.


*माता-पितु उपट्ठानं पुत्तदारस्स संङ्गहो |*

*अनाकुला च कम्मन्ता एतं मंङ्गलमुत्तमं ||*

(अर्थात :- माता पिता की सेवा करना, बच्चों‌ व पत्नी का पालन पोषण करना, कोई गलत कार्य न करना, यह उत्तम मंगल है.

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तथागत "करणीयमेत्त सुत्त गाथा" मे कहते है 


*करणीयमत्थ कुसलेन, यन्तं‌ सन्तं पदं अभिसमेच्च |*

*सक्को उजु च सुजु च, सुवचो चsस्स मुदु अनतिमानि ||*

(अर्थात‌ :- शान्त पद (निर्वाण) प्राप्त करना चाहने वाले, कल्याण साधन में निपुण व्यक्ति को चाहिये कि वह योग्य, सरल व अत्यन्त सरल बने. उसकी बात सुन्दर, मधुर और विनित हो.)


* समय अभाव के कारण केवल एक ही गाथा बतायी है.

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तथागत "रतन सुत्त गाथा" में कहते है

(वैशाली नगरी में‌ जब अकाल पडा था, जनता दुर्भिक्ष रोग और अमनुष्यों से पिडित थी, तब कहां था)


*यानिध भुतानि समागतानि, भुम्मानि वा यानि व अन्तलिक्खे |*

*सब्बे' व भुता सुमना भवन्तु, अथो 'पि सक्कच्च सुणन्तु भासितं ||*

(अर्थात :- इस प्रकार पृथ्वी पर या आकाश में जीतने भी प्राणी उपस्थित है, वे सभी प्रसन्न हो और हमारे इस कथन‌ को आदरपूर्वक सुने.)


*तस्मा हि भुता निसामेथ सब्बे, मेत्तं करोथ मानुसिया पजाय |*

*दिवा च रत्तो च हरन्ति ये वलिं, तस्मा हि ने रक्खथ अपमत्ता ||*

(अर्थात :- इसलिये सभी प्राणी सुने. मनुष्य मात्र की प्रति मैत्री करे. ज्यो कि, वे रात दिन उसका प्रतिपालन करते है. और इसलिये अप्रमत्त होकर उनकी रक्षा करे.)


*यं किञ्चि वित्तं इध वा हुरं वा, रतनं पणितं |*

*न नो समं अत्थि तथागतेन, इदम्पि बुध्दे रतनं पणितं |*

*एतेन सच्चेन‌ सुवत्थि होतु ||*

(अर्थात :- इस लोक में या परलोक में, जो भी धन है, अर्थात स्वर्गो में उत्तम रत्न है, उनमें से कोई भी बुध्द के समान (श्रेष्ठ) नही है. यह भी बुध्द में उत्तम रत्न है. इस सत्य वचन से कल्याण हो.)


* समय अभाव के कारण सभी गाथा सुनाना और उसका अर्थ बताना संभव नही है.)

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तथागत "धम्मपालन‌‌‌ गाथा" मे कहते है


*सब्ब पापस्स अकरणं, कुसलस्स उपसंपदा |*

*सचित्तपरियोदपनं, एतं बुध्दान सासनं ||*

(अर्थात: - सभी पापों को न करना, कुशल कर्मों को करना, तथा स्वयं के (अपने) मन (चित्त) की परिशुद्धी करना, यही बुध्द की शिक्षा है.)


*धम्मं चरे सुचरितं, न तं दुच्चरितं चरे |*

*धम्मचारि सुखं सेति, अस्मिं लोके परम्हिच ||*

(अर्थात: - सुचरित धर्म का आचरण करे, दुराचार न करे, धम्मचारी इस लोक और परलोक दोनो जगह सुखपुर्वक सोता है.)


* समय अभाव के कारण भी इस सुत्त के गाथा का पठण संभव नही है.

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अंत में "शुभेच्छा गाथा" की एक ही गाथा सुनाकर मेरे शब्दों को विराम देता हुं.


*इच्छितं पत्थितं तुय्हं खिप्पमेव स़मिज्झतु |*

*सब्बे पुरेन्तु चित्तसंकप्पा चन्दो पन्नरसो यथा ||*

(अर्थात: - तुम्हारी चाह हुयी या मांगी गयी सभी वस्तुएं तुम्हे शिघ्र प्राप्त हो. तुम्हारे चित्त के सभी संकल्प पुर्णिमा के चंद्रमा के समान पुरे हो.)


* * * * * * * * * * * * * * * * *

* प्रश्न - २ :

* *इन आशिषों को प्राप्त करने के लिए, क्या शर्ते है ? और कृपया किसी भी उदाहरण या मामलों को पेश‌ करे. जिन्होने आशिर्वाद प्राप्त करने के लिए, उन शर्तों की योग्यताओं को पुरा किया है.*

* उत्तर : - इस प्रश्न का उत्तर मेरे पहले प्रश्न‌‌ के उत्तर मे ही आया हुआ है. *"महामंगल सुत्त / "करणीयमेत्त सुत्त / रतन सुत्त तथा धम्मपालन‌ गाथा"* इस में आप को बताया गया है. वही गाथायें मै फिर से दोहराता हुं.

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तथागत "महामंगल सुत्त गाथा" में कहते है 


*असेवना च बालानं पण्डितानञ्व सेवना |*

*पुजा च पुजनियानं एतं मंङ्गलमुत्तमं ||*

(अर्थात : - मुर्खों की संगत नही करना, विद्वानों की संगत करना एवं पुज्यों की पुजा करना, यह उत्तम मंगल है. )


*पतिरुप देसवासो च पुब्बे च कतपुञ्ञता |*

*अत्तसम्मापणिधि च मंङ्गलमुत्तमं ||*

(अर्थात :- उचित स्थान पर निवास करना, पुण्य कार्यों का संचय करना तथा सम्यक आत्म निरिक्षण यह उत्तम मंगल है.)


*बाहुसच्चं च सिप्पंच विनयो च सुसिक्खितो |*

*सुभाषिता च या वाचा एतं मंङ्गलमुत्तमं ||*

(अर्थात :- बहुश्रुत होना, शिल्पादि कलाएं सिखना, शिष्ट व्यवहार करना, श्रेष्ठ शिक्षा लेना, सुभाषित युक्त वाणी होना, यह उत्तम मंगल है.


*माता-पितु उपट्ठानं पुत्तदारस्स संङ्गहो |*

*अनाकुला च कम्मन्ता एतं मंङ्गलमुत्तमं ||*

(अर्थात :- माता पिता की सेवा करना, बच्चों‌ व पत्नी का पालन पोषण करना, कोई गलत कार्य न करना, यह उत्तम मंगल है.

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तथागत "करणीयमेत्त सुत्त गाथा" मे कहते है 


*करणीयमत्थ कुसलेन, यन्तं‌ सन्तं पदं अभिसमेच्च |*

*सक्को उजु च सुजु च, सुवचो चsस्स मुदु अनतिमानि ||*

(अर्थात‌ :- शान्त पद (निर्वाण) प्राप्त करना चाहने वाले, कल्याण साधन में निपुण व्यक्ति को चाहिये कि वह योग्य, सरल व अत्यन्त सरल बने. उसकी बात सुन्दर, मधुर और विनित हो.)


* समय अभाव के कारण केवल एक ही गाथा बतायी है.

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तथागत "रतन सुत्त गाथा" में कहते है

(वैशाली नगरी में‌ जब अकाल पडा था, जनता दुर्भिक्ष रोग और अमनुष्यों से पिडित थी, तब कहां था)


*यानिध भुतानि समागतानि, भुम्मानि वा यानि व अन्तलिक्खे |*

*सब्बे' व भुता सुमना भवन्तु, अथो 'पि सक्कच्च सुणन्तु भासितं ||*

(अर्थात :- इस प्रकार पृथ्वी पर या आकाश में जीतने भी प्राणी उपस्थित है, वे सभी प्रसन्न हो और हमारे इस कथन‌ को आदरपूर्वक सुने.)


*तस्मा हि भुता निसामेथ सब्बे, मेत्तं करोथ मानुसिया पजाय |*

*दिवा च रत्तो च हरन्ति ये वलिं, तस्मा हि ने रक्खथ अपमत्ता ||*

(अर्थात :- इसलिये सभी प्राणी सुने. मनुष्य मात्र की प्रति मैत्री करे. ज्यो कि, वे रात दिन उसका प्रतिपालन करते है. और इसलिये अप्रमत्त होकर उनकी रक्षा करे.)


*यं किञ्चि वित्तं इध वा हुरं वा, रतनं पणितं |*

*न नो समं अत्थि तथागतेन, इदम्पि बुध्दे रतनं पणितं |*

*एतेन सच्चेन‌ सुवत्थि होतु ||*

(अर्थात :- इस लोक में या परलोक में, जो भी धन है, अर्थात स्वर्गो में उत्तम रत्न है, उनमें से कोई भी बुध्द के समान (श्रेष्ठ) नही है. यह भी बुध्द में उत्तम रत्न है. इस सत्य वचन से कल्याण हो.)


* समय अभाव के कारण सभी गाथा सुनाना और उसका अर्थ बताना संभव नही है.)

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तथागत "धम्मपालन‌‌‌ गाथा" मे कहते है


*सब्ब पापस्स अकरणं, कुसलस्स उपसंपदा |*

*सचित्तपरियोदपनं, एतं बुध्दान सासनं ||*

(अर्थात: - सभी पापों को न करना, कुशल कर्मों को करना, तथा स्वयं के (अपने) मन (चित्त) की परिशुद्धी करना, यही बुध्द की शिक्षा है.)


*धम्मं चरे सुचरितं, न तं दुच्चरितं चरे |*

*धम्मचारि सुखं सेति, अस्मिं लोके परम्हिच ||*

(अर्थात: - सुचरित धर्म का आचरण करे, दुराचार न करे, धम्मचारी इस लोक और परलोक दोनो जगह सुखपुर्वक सोता है.)


* समय अभाव के कारण भी इस सुत्त के गाथा का पठण संभव नही है.

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"शुभेच्छा गाथा" की एक ही गाथा सुनाता हुं -


*इच्छितं पत्थितं तुय्हं खिप्पमेव स़मिज्झतु |*

*सब्बे पुरेन्तु चित्तसंकप्पा चन्दो पन्नरसो यथा ||*

(अर्थात: - तुम्हारी चाह हुयी या मांगी गयी सभी वस्तुएं तुम्हे शिघ्र प्राप्त हो. तुम्हारे चित्त के सभी संकल्प पुर्णिमा के चंद्रमा के समान पुरे हो.)

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अंत में, मै यह बताना चाहता हुं कि, जिन्होने बुध्द के विचारोंनुसार आचरण किया है,   उन बुध्द के शिष्यों ने *"अर्हत अवस्था"* प्राप्त की थी. वो बुध्द का काल *"सवर्ण काल"* माना जाता है. जो *"स्वातंत्र / समता / बंधुता / न्याय तथा प्रज्ञा / शील / करुणा"* का युग भी कह सकते है. सभी मानव उस काल में, बहुत सुखमय / समृध्द जीवन यापन करते थे.


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* परिचय : -

* *डाॅ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*

    (बौध्द - आंबेडकरी लेखक /विचारवंत / चिंतक)

* मो.न.‌ ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२

* राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल

* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी वुमन विंग

* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी एम्प्लाई विंग

* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी ट्रायबल विंग

* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी वुमन क्लब

* अध्यक्ष, जागतिक बौध्द परिषद २००६ (नागपूर)

* स्वागताध्यक्ष, विश्व बौध्दमय आंतरराष्ट्रिय परिषद २०१३, २०१४, २०१५

* आयोजक, जागतिक बौध्द महिला परिषद २०१५ (नागपूर)

* अध्यक्ष, अश्वघोष बुध्दीस्ट फाऊंडेशन नागपुर

* अध्यक्ष, जीवक वेलफेयर सोसायटी

* माजी अध्यक्ष, अमृतवन लेप्रोसी रिहबिलिटेशन सेंटर, नागपूर

* अध्यक्ष, अखिल भारतीय आंबेडकरी विचार परिषद २०१७, २०२०

* आयोजक, अखिल भारतीय आंबेडकरी महिला विचार परिषद २०२०

* अध्यक्ष, डाॅ. आंबेडकर आंतरराष्ट्रिय बुध्दीस्ट मिशन

* माजी मानद प्राध्यापक, डाॅ. बाबासाहेब आंबेडकर सामाजिक संस्थान, महु (म.प्र.)

* आगामी पुस्तक प्रकाशन :

* *संविधान संस्कृती* (मराठी कविता संग्रह)

* *बुध्द पंख* (मराठी कविता संग्रह)

* *निर्वाण* (मराठी कविता संग्रह)

* *संविधान संस्कृती की ओर* (हिंदी कविता संग्रह)

* *पद मुद्रा* (हिंदी कविता संग्रह)

* *इंडियाइझम आणि डाॅ. आंबेडकर*

* *तिसरे महायुद्ध आणि डॉ. आंबेडकर*

* पत्ता : ४९४, जीवक विहार परिसर, नया नकाशा, स्वास्तिक स्कुल के पास, लष्करीबाग, नागपुर ४४००१७

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