👌 *प्रेम कण बुध्द के .....!*
*डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*
मो.न. ९३७०९८४१३८
प्रेम कण बुध्द के, ख़िल गये है जहां
करुणा का सागर, उम़ट पडा है वहां...
धर्म के नाम पर, तु लढ़ता है जहां
नफ़रत की चिंगारी, बोता है तु वहां
आदमी का यें जुनुन, पागल ही रहा
अरे कब तु बने़गा, सच्चा इंसान वहां...
यें बादल का छाना, युं नही है जहां
बिज़ली का गिरना, वो धोका है वहां
यह कब समजेगा, जाने मन तु जहां
ये बारिस का आना, हे चमन है वहां...
फुलों के साज़न का, बग़िचा है जहां
प्रेम मन का आनंद, मिलता है वहां
ये पंछिओं की उड़ान, युं नही है जहां
आगे बढ़ने का संदेश, दे रहा है वहां...
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