✍️ *दीक्षाभूमी नागपुर मे धम्म चक्र प्रवर्तन दिन पर, कार्यक्रम करना / गेट खुला करने के लिये, स्मारक समिती को मा. उच्च न्यायालय दिशा निर्देश नहीं दे सकता...!!!*
(डॉ. मिलिन्द जीवने विरुद्ध प.पु. डॉ बाबासाहेब आंबेडकर समिती एवं अन्य पांच इस याचिका में, अॅड. डॉ. मोहन गवई ने पैरवी की. अॅड. संदिप ताटके ये सहयोगी वकिल थे.)
दीक्षाभूमी नागपुर में, हर साल *"धम्म चक्र प्रवर्तन दिन"* पर, ऐतिहासिक समारोह होते आया है. इस साल प. पु. डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर स्मारक समिती नें, *"कोरोना संक्रमण अर्थात कोविड - १९ डर"* के कारण, हर साल समान आयोजित कार्यक्रम को रद्द कर दिया. जब कि, कोरोना संक्रमण यह बहुत विवादीत विषय है. एवं दीक्षाभूमी समिती ने, धम्म दीक्षा दिन - १४ अक्तुबर २०२० तथा अशोका विजया दशमी - २४ / २५ / २६ अक्तुबर २०२० को, दीक्षाभूमी स्मारक के प्रवेश द्वार से लेकरं, सभी द्वार बंद करने की बात कही है. दीक्षाभूमी यह भारत ही नहीं तो, समस्त विश्व के समस्त बौध्दों का *"आस्ता का केंद्र"* है. और उस पावन भुमी पर आकर, अभिवादन करना यह समस्त बौध्द समुदाय का अधिकार है. *"सदर दीक्षाभूमी समिती के पदाधिकारी, यह केवल ट्रस्टी है. सदर जगह के या समिती के मालक नहीं..!"* अत: उस विरोध में सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल के "राष्ट्रीय अध्यक्ष" एवं CRPC वुमन विंग / CRPC एम्प्लाई विंग / CRPC वुमन क्लब के "राष्ट्रीय पेट्रान" *डॉ. मिलिन्द जीवने विरुद्ध दीक्षाभूमी स्मारक समिती / विभागीय आयुक्त / जिलाधिकारी / मनपा आयुक्त / पोलिस आयुक्त"* इन को पार्टी बनाकर *मा. उच्च न्यायालय नागपुर खंडपीठ में, रिट याचिका क्र. /२०२०* दाखल की गयी. सदर याचिका की सुनवाई, सोमवार दिनांक १२ अक्तुबर २०२० को, दोपहर ४.०० बजे रखी गयी.
डॉ. मिलिन्द जीवने की ओर से, *अॅड. डॉ. मोहन गवई* इन्होने, २० मिनिटं तक सदर केस की, ऑनलाईन पैरवी की. *अॅड. संदिप ताटके* ये उनके सहपाठी वकिल थे. सदर सुनवाई *न्यायमूर्ती द्वय रवी देशपांडे एवं पुष्पा गणोडीवाला* इनके समक्ष हुयी. सदर सुनवाई में, याचिकाकर्ते डॉ मिलिन्द जीवने की ओर से बाजु रखते हुये अॅड. डॉ. मोहन गवई ने, *"Fundamental Rights अंतर्गत कलम १९ एवं २५ के उल्लंघन होने का जिक्र किया."* उस पर मा. उच्च न्यायालय ने मौखिक रुप में कहा कि, भारतीय संविधान के कलम २२६ / २२७ अंतर्गत सदर केस नहीं आता. प. पु. डॉ बाबासाहेब आंबेडकर समिती यह , बाम्बे पब्लिक अॅक्ट के अंतर्गत पंजीबध्द है. अत: आप को *मा. धर्मादाय आयुक्त* के सामने, वह केस दाखल करते हुये न्याय मांगना चाहिये. अत: उच्च न्यायालय स्मारक समिती को दिशा निर्देश नही दे सकता. और वह रिट याचिका डिसमिस की.
याचिकाकर्ता डॉ. मिलिन्द जीवने इन्होने एक वक्तव्य में कहा कि, *"दीक्षाभूमी के विरोध में, वह लढाई अब खत्म नहीं हुयी है. अब तो शुरुवात है...!"* कोई भी हालात में धम्म दीक्षा दिन / धम्म चक्र प्रवर्तन दिन २०२० पर, दीक्षाभूमी के द्वार खुले करने के लिये, *"अब उचित न्यायालय में केस दाखल कर, समस्त बौध्द समुदाय को उनका अभिवादन करने का अधिकार, हम मिलाने के लिये आवश्यक केस जल्द ही दाखल की जाएगी...!"* एवं दीक्षाभूमी पदाधिकारीयों को, ट्रस्टी पद से हटाने के लिये आवश्यक कदम उठाये जायेंगे. सवाल यह है कि, महाराष्ट्र के उर्जा मंत्री एवं नागपुर के पालक मंत्री - *डॉ. नितिन राऊत* दीक्षाभूमी के सदर दिन के संदर्भ में, क्या भुमिका रखते है. हम केंद्रीय मंत्री भाजपाई नेता *नितिन गडकरी* हो या, महाराष्ट्र के मंत्रीद्वय कांग्रेसी *अनिल देशमुख / सुनिल केदार* से कुछ भी उम्मीद नहीं रख सकते. परंतु *डॉ. नितिन राऊत* ये स्वयं को आंबेडकरी (?) कहता हो तो, अब देखना है कि वो गांधी सहारा / आसरा छोडता है या नहीं...???
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