👌 *दीक्षाभूमी भुमिगत पार्किंग संदर्भ के १ जुलै २०२४ एल्गार में, क्या दीक्षाभूमी के पुर्ववत समानीकरण की एक निवं है ? क्या महाराष्ट्र सरकार कृषी विभाग तथा आरोग्य विभाग की जमिन दीक्षाभूमी को हस्तांतरीत करने की कार्यवाही करेगी ???* एक अहं प्रश्न.
*डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर १७
राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
एक्स व्हिजिटिंग प्रोफेसर, डॉ बी आर आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ महु म प्र
मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२
१ जुलै २०२४ का आंबेडकरी - बौध्द जनता ने, *"दीक्षाभूमी भुमिगत पार्किंग के विरोध का एल्गार"* यह इतिहास में दर्ज होगा. जैसा कि - *"बाबरी रामजन्मभूमी विवाद"* में कुछ धर्मांधी ताकतों द्वारा, अयोध्या की गिरायी गयी वो (?) बाबरी मश्जीद...! जब की, अयोध्या का मुल नाम *साकेत* है, जो बुद्ध धर्म का केंद्र था. और हमारे मा. सर्वोच्च न्यायालय के पांच न्यायाधीशो द्वारा, *"बिना किसी प्रायमा फेसी"* रामजन्मभूमी प्रकरण सलटाया गया. दीक्षाभूमी भुमिगत पार्किंग प्रकरण भी, तमाम आंबेडकरी - बौध्द समुदायों के भावना का प्रतिक है. जिसे आंतरराष्ट्रीय पहचान है. महत्वपूर्ण विषय यह है कि, दीक्षाभूमी यह केवल *"धार्मिक केंद्र"* नहीं है, वह *"वैचारिक क्रांती केंद्र"* भी है. दीक्षाभूमी यह तो *"वैश्विक बौध्द विद्यापीठ"* बनना चाहिये था, वह बन नहीं पाया. ना ही उस पावन दीक्षाभूमी से, *"कोई राष्ट्रिय तथा आंतरराष्ट्रीय स्तर की कुछ गतिविधियां"* भी, चलती दिखाई देती है. परंतु खेद के साथ कहना पडता है, *"दीक्षाभूमी स्मारक समिती सदस्यों"* के पास, ना कोई दुरदर्शी व्हिजन है, ना ही वह करने की पात्रता...! मुझे याद है कि, *सन २०२० में कोरोना काल* के पहले, दीक्षाभूमी स्मारक समिती के कुछ सदस्य साथी से मिलकर, *"अखिल भारतीय आंबेडकरी विचारविद परिषद"* (दो दिन की) का आयोजन करने हेतु, मेरी राष्ट्रिय संंघटन - *"सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल"* के माध्यम से, मैने एक प्रयास किया था. तब मुझे एक दिन का *सभागृह का किराया एक लाख राशी* मांगी गयी थी. दुसरी समस्या *"खानपान व्यवस्था"* की भी रही थी. भारतीय रेल मंत्रालय के माजी सचिव तथा आंबेडकरी चिंतक - *इंजी. विजय मेश्राम* साहाब ने भी, समिती के कुछ सदस्यों को फोन किया था. परंतु वह बात कुछ बनी नहीं, और मुझे वह परिषद अन्य जगह लेनी पडी थी. मेरे *सीआरपीसी* संघटन ने, २००५ / २०१३ / २०१४ / २०१५ में, *"जागतिक बौद्ध परिषद / जागतिक बौद्ध महिला परिषद"* का सफल आयोजन किया है. यहां प्रश्न, दीक्षाभुमी समिती के व्हिजन का रहा है. तो दीक्षाभूमी यहां *"वैश्विक बौध्द विद्यापीठ"* बनना तो, बहुत दुर की बात है.
दीक्षाभुमी स्मारक समिती अंतर्गत *"उपयोगी जगह क्षेत्र"* के साथ साथ ही, *"७/१२ पर"* भी प्रश्न खडे हुये है. वही कॉलेज का परिसर कितना व्याप्त रहा है, यह भी प्रश्न है. और *"भुमिगत पार्किंग"* का संबंध, यह कॉलेज से ही संबंधित दिखाई देता है. साथ में आजु-बाजु के परिसर संबंधित, कार्यालय से भी जुडा है. *"दीक्षाभूमी स्मारक"* में, लोंगों के *"भीम अभिवादन संदर्भ"* का, वह बिलकुल ही प्रश्न नहीं है. और हर साल होने वाले *"धम्म चक्र प्रवर्तन दिन समारोह "* के लिये, *"कितनी जगह बची है ?"* यह भी प्रश्न है. और दीक्षाभूमी पार्किंग की, कोई समस्या ही नहीं थी. अत: २३ नवंबर २०२३ को, *"भुमिगत पार्किंग"* के लिये, जब बडे बडे गड्डे बनाना शुरु हुये थे, तब *"सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल"* के राष्ट्रिय अध्यक्ष *डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* इनके साथ, सेल की टीम - इंजी. गौतम हेंदरे / शंकरराव ढेंगरे / डॉ. मनिषा घोष / डॉ. भारती लांजेवार, इन्होने घटना स्थल पर भेट देकरं, मैने एक लेख लिखकर, *"भुमिगत पार्किंग "* सुचना, आंबेडकरी आवाम को दी थी. वही जब बडे बडे सिमेंट पिलर खडे हुये है, तब आवाम का विरोध बढ गया था. इसे भी हमे समझना होगा. सन २०२० के *"कोरोना संक्रमण काल"* में, *"धम्म चक्र प्रवर्तन दिन समारोह"* का ना होना, तथा दीक्षाभूमी के समस्त दरवाजे बंद होना, इसे हम *"राष्ट्रिय आपदा"* मानकर, हम उसका पालन कर रहे थे. वही ओरीसा के *"जगन्नाथ पुरी रथ"* का आयोजन को, *"सर्वोच्च न्यायालय"* की अनुमती मिलना तथा नागपुर के संघ मुख्यालय में विजया दशमी के अवसर पर, *"शस्त्रास्त्र का पुजन"* होने की मिडिया खबर से, हमें भी *"दीक्षाभूमी के दरवाजे"* खोलने की मांग करनी पडी. और दीक्षाभूमी स्मारक समिती ने, जब हमारी मांग मानने से मना किया था, तब *"सी.आर.पी.सी."* इस संघटन को, धर्मादाय कार्यालय / मा. उच्च न्यायालय में, मुझे स्वयं (डॉ. जीवने) केस दायर करनी पडी थी. तथा सी.आर.पी.सी. द्वारा *मेरे ही नेतृत्व* में, टीम के - *सुर्यभान शेंडे / प्रा. नितीन तागडे / शंकरराव ढेंगरे / डॉ. राजेश नंदेश्वर / प्रा. वंदना मि. जीवने / डॉ. किरण रा. मेश्राम / दिपाली शंभरकर / डॉ. मनिषा घोष / डॉ. भारती लांजेवार / ममता वरठे / चैताली रामटेके / कल्याणी इंदुरकर / इंजी. माधवी जांभुलकर / प्रा. डॉ. नीता मेश्राम / ममता गाडेकर* इनका मुझे साथ रहा था. हमारे आंदोलन को सफलता भी मिली. और दीक्षाभूमी के दरवाजे खुल गये थे. *"भुमिगत पार्किंग"* के विरोध एल्गार में, जन सैलाब ने भी हमें बडी सफलता दी है. मेरे साथ सीआरपीसी की टीम - *इंजी. गौतम हेंदरे / प्रा. नितीन तागडे / एड. विष्णू पानतावणे / डॉ. राजेश नंदेश्वर / दिगांबर डोंगरे / मिलिंद धनवीज / नंदकिशोर पाटील / डॉ. मनिषा वसंत घोष / डॉ. भारती लांजेवार / करुणा रामटेके / सुरेखा खंडारे / रेशमा सहारे* आदी सहपाठी मेरे साथ खडे हुये दिखाई दिये. और *"दोनो ही एल्गार"* का, एक बडा इतिहास रचा गया.
पावन *"दीक्षाभूमी"* की पहचान समुचे जगत में, *"धम्म दीक्षा भुमी"* के नाम पर ही परिचीत है. ना कि, *"शिक्षा केंद्र"* के रुप में वो परिचित है. परंतु *"दीक्षा स्मारक समिती"* द्वारा, उस पावन भुमी से आंतरराष्ट्रीय / स्तर पर, *"डॉ बाबासाहेब आंबेडकर विचार - बुद्ध धम्म प्रसार - प्रचार केंद्र"* का स्वरूप कभी नही दिया गया. ना ही उस तरह के, किसी *"कार्यालय का गठण"* भी किया गया एवं उस दिशा में कोई पहल की गयी है. यहां सवाल *"धम्म दीक्षा समारोह"* के लिये, कितनी जगह शेष बची है, इसका भी रहा है. दीक्षाभूमी का जादातर परिसर, यह केवल *"शिक्षा का केंद्र"* बन कर रहा है. और उसी उद्देश में दीक्षाभूमी का क्षेत्र व्याप्त रहा है. सदर *"भुमिगत पार्किंग का निर्माण,"* इसी प्रमुख उद्देश का ही, वो परिपाक दिखाई देता है.*"दीक्षाभूमी स्तुप"* में अभिवादन जन - मन से, उसका कोई भी संबंध नहीं है. ना ही *"भुमिगत पार्किंग"* की, कोई आवश्यकता दिखाई देती है. और *"दीक्षाभूमी की सुंदरता"* को नष्ट करने का वह प्रयास रहा है. यही नही, *"दीक्षाभूमी भुमिगत पार्किंग"* के कारण, बहुत सारे दुष्परिणाम होने की संभावना है. *"भुमिगत खनन कंपन"* के कारण / भूमिगत पार्किंग में *"पाणी का बहाव"* होने की संभावना / भुमिगत पार्किंग के *"रख - रखाव का बडा प्रश्न"* भी रहा है, और इस कारणवश *"दीक्षाभूमी स्तुप की आयु"* बहुत कम होने की बडी संभावना बनी है. दीक्षाभूमी समिती सदस्य को, इस से कोई लेना - देना नहीं है. दीक्षाभूमी स्मारक समिती के किसी सदस्यों के, *"व्हीजन"* पर भी, बहुत सारे प्रश्न खडे होते है. दीक्षाभूमी समिती के सदस्य, केवल *"विश्वस्त"* (विश्वास करने योग्य व्यक्ती) है, ना कि वे दीक्षाभूमी के *"मालक".* अगर जनता का उन समिती सदस्यों पर विश्वास ना हो तो, उन समिती के सदस्यों ने बाहर पडना चाहिए.
पावन दीक्षाभूमी, यह विश्व के *"आंबेडकरी - बौध्द समुदायों"* का भावना का केंद्र है. और वहां आंतरराष्ट्रीय स्तर की सुविधाएं बनाना तथा कार्यक्रमों के लिये, *"जगह की कमी"* है. परंतु उस पावन भुमी के लिये, *"कृषी विभाग तथा आरोग्य विभाग"* की *"सरकारी जमिन का आबंटन"* ना होना, यह आंबेडकरी नेताओं के साथ साथ, आंबेडकरी जन - मन के *शक्ति की हार* है. वही *"कांग्रेस हो या भाजपा"* उन सभी राजकीय दलों के *"सत्ता राजनीति"* का, जाती - धर्मीय कुटनीति है. वे राजकीय दल केवल *"व्होट की राजनीति"* करते आये है. अगर हमने हमारी *"आंबेडकरी - बौध्द शक्ति"* बतायी होती तो, कांग्रेस / भाजपा यह घुटनों पर, हमारे सामने ही गिडगिडायी होती. *"लोकसभा का चुनाव"* भी, अभी अभी हो गया है. किसी भी राजकिय दलों को, *"पुर्ण बहुमत ना मिलने"* के कारण, भविष्य में *"लोकसभा मध्यावधी चुनाव"* होने की संभावना को, हम नकार नहीं सकते. वही महाराष्ट्र के *"विधान सभा चुनाव"* भी, बहुत ही पास रहे है. साथ ही *"धम्म चक्र प्रवर्तन दिन समारोह"* का आयोजन भी. अगर दो - तिन माह के अंदर, *"कृषी विभाग तथा आरोग्य विभाग की जमिन,"* दीक्षाभूमी के नाम हस्तांतरण ना की गयी हो तो, हम सभी जन - मन को, इस विषय पर कोई तो भी निर्णय करना होगा. और हो सके तो हमें, सभी *'राजकीय दलों से संघर्ष"* भी. इस पर उचित निर्णय लेने का, यही उत्तम समय है. जैसा कि, हम ने *"दीक्षाभूमी भुमिगत पार्किंग का विरोध"* संदर्भ में, १ जुलै २०२४ का एल्गार, वह उचित निर्णय रहा है. और एक इतिहास रचा गया. अब दीक्षाभूमी की जमिन का, *"पुर्ववत समानीकरण"* करना है. *"धम्म चक्र प्रवर्तन दिन समारोह "* बहुत ही पास है. जय भीम !!!
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▪️ *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर १७
(नागपुर - पुणे - नासिक - नागपुर प्रवास में)
दिनांक ४ जुलै २०२४
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