✝️ *येशु ख्रिस्त का बौध्द अभ्यास अध्ययन में येरूसलेम से भारत - लद्दाख आगमन ...!*
*डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर १७
राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
एक्स व्हिजिटिंग प्रोफेसर, डॉ बी आर आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ महु म प्र
मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२
जब कभी *"यरुसलम"* शहर का नाम आता है, तब *"यहुदी"* यह शब्द कानों में गुंजता रहता है. साथ ही इसाई धर्म के *"येशु ख्रिस्त"* इनसे भी जुडा वह शहर है. *"सुलेमान"* - इस्लाम धर्म के पैगंबर से भी जुडा वह शहर है. और सुलेमान *"इसवी ८५० में भारत"* आने का एक इतिहास रहा है. यरुसलम यह शहर *इजराईल* (इब्रानी / येरुसलयिम) की राजधानी है. परंतु उसे *"संयुक्त राष्ट्र संघ"* की मान्यता ना मिलने का उल्लेख मिलता है. वह शहर *"यहुदी धर्म / ईसाई धर्म / इस्लाम धर्म"* इन तिनो धर्म का वह पवित्र शहर है. *"मुसा"* का संबंध यहुदी धर्म से आता है. और यरुसलम में *रोमण साम्राज्य* का इतिहास रहा है और यहुदी धर्म के प्रभाव में *"येशु ख्रिस्त"* को हमें देखना, एक प्रश्न रहा है. येशु ख्रिस्त (मुल नाम - *जोशुआ बेन जोजेफ* का जन्म *"यहुदी धर्मी"* परिवार में होने पर भी, कुछ विवाद दिखाई देता है. अत: हिंदी बायबल में (युहन्ना १:११-१२ तथा ४:२२) इसका संदर्भ हमें देखना भी उचित रहेगा. परंतु येशु ख्रिस्त (बालक - जोशुआ बेन जोजेफ) का *"१३ साल से २९ साल काल तक वो भारत"* में रहा है. *क्या बायबल में, येशु के इस काल का वर्णन है ?* यह भी एक प्रश्न है. तथा येशु ने लद्दाख के *हेमिस बुध्द मानेस्ट्री में कार्यरत एक बौध्द कन्या"* इनसे (मुलत: वह यहुदी थी. परंतु भारत में बसी थी) *"प्रेम विवाह"* किया था. और उस स्त्री से येशु को एक पुत्र भी हुआ. *येशु ख्रिस्त* तथा यहुदी धर्मी *मुसा* इनका महानिर्वाण भारत में होने का जिक्र भी मिलता है. और इसका प्रमाण *"हेमिस बुध्द मानेस्ट्री"* कही जाती है. मुझे (डॉ जीवने) जब *"महाबोधी सोसायटी ऑफ लद्दाख "* के प्रमुख *भदंत संघसेन* जी ने *"आंतरराष्ट्रीय बौध्द परिषद"* के लिये, लद्दाख को निमंत्रित किया गया था, तब हमें मा. भदंत संघसेन जी के साथ *"हेमिस बुध्द मानेस्ट्री"* यहां भेट देने का सु-अवसर भी मिला. और *हेमिस बुध्द मानेस्ट्री* की ओर से हमारे लिये *"भोजन का निमंत्रण"* के साथ साथ *"सांस्कृतिक कार्यक्रम"* का भी आयोजन किया गया था. अत: *"लद्दाख संस्कृति"* को समझने का हमें अच्छा अवसर मिला.
जब हम *येशु ख्रिस्त* इनकी जीवनी की ओर बढते है, तब *येशु ख्रिस्त* इनके पर बनी *"BBC Documentary"* हो या, *"जीसस लिव्ह इन इंडिया - होल्गर केर्स्तन / जीसस इन इंडिया - मिर्झा गुलाम अहमद / अननोन लाईफ ऑफ जेसीस ख्राईस्ट - निकोलस नोटिवीच / दो लास्ट इयर ऑफ जीसस - एलिझाबेथ क्लेयर प्रोफेट"* इन चार अंग्रेजी पुस्तकों का संदर्भ लेना बहुत ही जरुरी है. जब *निकोलस नोटिवीच* इनकी पुस्तक प्रकाशित हुयी थी, तब *"इसाई पाद्री / विद्वानो"* में बडी खलबली मची थी. उन्होंने निकोलस को पैसों का लालच भी दिया था. परंतु *"सत्यवादी / इमानदार / निष्ठावान व्यक्ति, प्रलोभन के सामने कभी भी झुकता नहीं."* निकोलस ने अपने विचारों से, कभी भी समझौता नहीं किया.अत: उन पर बडे गंभिर आरोप भी लगे. निकोलस की उस किताब का, बहुत से भाषाओं में अनुवाद किया गया. वही *"न्युयॉर्क वेदांत सोसायटी"* इनके अध्यक्ष *स्वामी अभेदानंद* सन १९२२ को, *"बुध्द धर्म* अध्ययन हेतु *"हेमिस बुध्द मानेस्ट्री लद्दाख"* यहां पधारे थे. उन्होने भी *निकोलस नोटिवीच* द्वारा हेमिस बुध्द मानेस्ट्री में स्थित *"तिब्बती भाषा पांडुलिपीया / पाली भाषा में अनुवाद"* अध्ययन का जिक्र कर, उन्होने भी उस पांडुलिपीयों का अध्ययन किया था. और *"येशु ख्रिस्त इनके भारत आगमन"* को उचित माना. परंतु उसके बाद *"हेमिस बुध्द मानेस्ट्री"* में वह *"पांडुलिपीयां"* दिखाई ना देने का संदर्भ है. अब हम निकोलस वा अन्य लेखकों ने, येशु ख्रिस्त इनकी जीवन पर लिखे, कुछ बिंदुओं पर चर्चा करेंगे.
*जोयाखिमा - आत्रे* इस दाम्पत्ती को कोई संतान नहीं थी. उन्होंने ईश्वर को प्रार्थना की थी कि, अगर उन्हे कोई दाम्पत्य हुआ तो, वे उसे महान हस्ति बनायेंगे. उन्हे एक कन्यारत्न हुआ. उसका नाम *"मेरी"* रखा गया. जब मेरी ये तिन - चार साल की हुयी थी, तब मेरी के साथ उसके माता पिता *यरुसलम* आये. उनका एक रिस्तेदार *"साईनगॉग यहुदी मंदिर"* में पुरोहित था. *मेरी* ने यहुदी मंदिर से शिक्षा का प्रारंभ किया. यहुदी मंदिर में कर्मकांड सिंखाया जाता था. उसी ही दरम्यान, मेरी के माता - पिता चल बसे. मेरी ने अपनी शिक्षा उस पुरोहित के मार्गदर्शन में चालु रखा. परंतु १६ वर्षीय मेरी को यह अहसास हो गया कि, *"वह गर्भवती है."* तब वह *"करेना"* ये उसकी मौसी एलेझाबेथ के गाँव पास चली गयी. येरूसलेम में एक *"कानुन"* था कि, अगर *"बिना ब्याह कोई महिला गर्भवती"* होती हो तो, उसे पत्थर से मार दिया जाता था. तब मेरी की मौसी ने, *१६ वर्षीय मेरी* का विवाह, *नाजरेथ* गाव के ४६ साल के विधुर *जोजेफ* से कर दिया. कुछ समय बाद जोजेफ अपने जन्मगाव *"बेथलेहम"* जाता है. जोसेफ *"राजमिस्त्री"* होने के कारण, सम्राट हेरोड इनके आदेश पर, यरुसलेम स्थित *"यहुदी मंदिर"* के पुनर्निर्माण करने, अपनी पत्नी मेरी के साथ चला जाता है. जोजेफ द्वारा मंदिर पुनर्निर्माण से खुश होकर सम्राट हेरोड उसे एक मुल्यवान हार भेट देता है. उस हार पर यहुदी मंदिर का नाम लिखा होता है - *"हीरोसोलियम."* जोजेफ ये यरुसलम से ही अपनी गर्भवती पत्नी *मेरी* और सेविका *रूथ* इनके साथ, तांगा से - *बेथलहम* की ओर निकलते है. अपने साथ में कुछ कपडे, चमडे का थैला, भेड का सुखा मासं, सुखे फल आदी चीजें साथ ले जाते हैं. *जैसे ही तांगा बेथलहम* पहुंचता है, ओले और बारिश सुरू होती है. उधर मेरी को पेट में दर्द शुरु होता है. जोजेफ को कोई जगह नहीं मिलती, जहां वे रूके. एक सराय दिखाई देती है. सराय मालिक चांदी के शिक्के के बदले, *"घोडों के अस्तबल"* में उनकी व्यवस्था करता है. *"मेरी ये घोडे के अस्तबल में पुत्र को जन्म"* देती है. उसी समय आसमान में एक *"चमकता तारा प्रकट"* होता है. पुत्र का नाम *"जोशुआ बेन जोजेफ"* रखा जाता है. येशु के जन्म के ३० दिन बाद, मेरी और जोजेफ ये यरुसलम के *"यहुदी मंदिर"* में जाकर, पुजा कराकर कुर्बानी देते है. उसके बाद मेरी और जोजेफ ये *"नाजरेथ"* अपने घर चले जाते है.
येशु ख्रिस्त की प्रारंभिक शिक्षा *नाजरेथ* के यहुदी मंदिर में होती है. येशु को तोरा अध्ययन, डेव्हिड के काव्य, सुलेमान इस का वक्तव्य का अध्ययन में रुची होती है. येशु ७ वर्ष की आयु में, अपने सहपाठीयों के साथ तर्क वितर्क करता है. यहुदी धर्म ग्रंथ पर भी, येशु तर्क वितर्क करता है. एक दिन येशु कहता है कि, *"मुसा को ईश्वर कानुन लिखा हुआ नहीं मिला....."* यहुदी पुरोहित में अपनी मनमानी बातें लिखते है. येशु ये बिना डरे इसके विरोध में, आवाज उठाता है. लोगों का समर्थन येशु को मिलता है. फिर येशु *"येरुसलम अकादमी* में शिक्षा प्राप्त करता है. वहा युनानी, वेबोलिनियम, फारसी, कलामसुत्त की शिक्षा प्राप्त करता है. येशु के एक शिक्षक, येशु को उच्च शिक्षण लेने के लिये, *"जार्डन के डेसिथेयोस बुद्ध मानेस्ट्री"* पढने की सलाह देता है. येशु जब *"स्काईपोलिस"* नगर के पास *"समारिन साईनगॉग"* इस के बडे दरवाजे पर पडी. अंदर जाने पर लाल वस्त्र पहने सिर मुंडन किये, स्त्री - पुरुष बौध्द भिक्खु दिखाई देते है. और *"ओम मणि पद्मे हुम"* यह आवाज सुनाई देती है. जल रहे दिपक के बिच, बुद्ध की शांत मुद्रा मे मुर्ती दिखाई देती है. बौध्द भिक्खु ये येशु को कहता है, *"यह बुद्ध है जिन्होने लाखो लोगो का जीवन बदल दिया."* येशु पुछता है कि, *"क्या डेसिथेयोस बुद्ध मानेस्ट्री"* आप की है ? उत्तर मिलता है, हां. येशु फिर डेसिथेयेस को जाता है, जहां उसके संबंधी भी शिक्षा प्राप्त करते हुये दिखाई देते है. जार्डन के *"डेसिथेयैस बुद्ध विहार"* में ध्यान, योग, चिकित्सा, तर्क, बुद्ध दर्शन की शिक्षा येशु प्राप्त करता है. यहुदी पुरोहित येशु का खुलकर विरोध करते है. उस बुद्ध विहार में येशु की भेट, तक्षशिला के पार्थी राजा *गोंडेफिरोस* इनके पुत्र *राय अन्नान* से होती है. राजकुमार अन्नान येशु को, भारत के *"तक्षशिला"* में अध्ययन करने का निमंत्रण देता है. येशु के एक शिक्षक *हिलेल* यह येशु के माता - पिता की अनुमती मांगता है. और माता - पिता की अनुमती मिलने पर, येशु ये जहाज से *"कलिंग दरगाह"* पहुंचता है. वहां से येशु ये *लुंबिनी* फिर *बुद्धगया* जाता है. इन जगहों पर *"गुप्त साधनाएं"* सिखने के बाद, *"कश्मिर के दइंद बुध्द मानेस्ट्री"* में जाता है. वहां कुछ महिने अध्ययन करता है. उस विहार के सामने सुलेमान का सिंहासन होता है. यहुदी राजा से परेशानी से, कुछ यहुदी लोक *"मुसा"* के समय में, कश्मीर बसने की / तथा *"मुसा की कब्र"* भी पहाडी पर होने जानकारी येशु को मिलती है. बुध्द विहार में पहलगाम की रहनेवाली एक *"बौध्द महिला अनुयायी"* से, येशु को प्रेम होता है. वह महिला भी येशु से प्रेम करती है. वहां इस प्रकार विवाह की अनुमती नहीं मिलती. परंतु *येशु ये तक्षशिला राजा का अतिथी* होने के कारण, उसे अनुमती मिलने के बाद, येशु का विवाह होता है. येशु की पत्नी *'गर्भवती"* रहते समय, येशु ये पत्नी के साथ *"तक्षशिला "* जाता है. वहां येशु का बडा स्वागत होता है. येशु ने राजा को *येरुसलम* जाने की अनुमती मांगता है. येशु अपनी गर्भवती पत्नी को तक्षशिला रखकर, फारसं - बेबिलोना होते हुये येरूसलेम जाता है. येशु के पिता जोजेफ की पहले ही मृत्यु होती है. मां और उसके सौतेले पुत्र अलग अलग रहते हुये दिखाई देते है. येशु ये अपनी मां को लेकरं, भारत लौटता है.
येशु की पत्नी तक्षशिला छोड देती है. उसे पुत्र हो जाता है. इस विषय पर चर्चा फिर कभी. येशु फिर जार्डन के *"डेसिथेयोस बुद्ध मानेस्ट्री"* में जाता है. वहां येशु का संबंधी जॉन भी होता है.
डेसिथेयोस छोडने का निर्णय लेते है. येशु और जॉन फिर *"मृत सागर"* के उत्तर पश्चिम स्थित, *"ऐसेनो संप्रदाय"* के बुध्द भिक्खु़ंओं से शिक्षा लेने, *"कुमराना"* चले जाते हैं. यहां से येशु एक गुंफा में चले गये. *"आठ सप्ताह कठोर तपस्या"* के बाद, *"येशु को ज्ञान प्राप्ती"* होती है. और येशु ये *"क्राईस्ट"* (मसिहा) बन जाते है. येशु का क्राईस्ट बनने के बाद, येशु के कार्य का वर्णन, ये *"बायबल"* में वर्णित दिखता है. अत: इस विषय पर चर्चा, हम फिर कभी करेंगे. येशु को पहिली शती (इसवी ३० - ३३) में *यहुदिया* (येरुसलम) में, *"सुली पर चढाया"* जाता है. *"येशु वहां से बच निकलता है."* येशु कैसे बच निकलता है ? इस पर चर्चा फिर कभी. येशु फिर भारत में आता है. येशु का संबंध *"हेमिस बुध्द मानेस्ट्री लद्दाख"* से रहता है. येशु का *"निर्वाण भारत"* में ही होता है. भारत के लद्दाख प्रांत में *"येशु की कब्र"* होने का जिक्र है. यह येशु का जीवन काल रहा है.
*येशु ख्रिस्त* इनका *"बालपण से लेकर ज्ञान प्राप्ती"* का सम्पुर्ण कालखंड, यह *"बुध्द धर्म अध्ययन"* से जुडा हुआ दिखाई देता है. तो फिर *येशु ख्रिस्त* की विचारधारा का *"बुध्द की विचारधारा"* से भिन्नता क्यौ ? यह प्रश्न है. बुध्द *"सृष्टी निर्माण"* संदर्भ में कहते हैं, *"न हेल्थ देवो ब्रम्ह संसारस्य अत्थि कारको | बुध्दधम्मा पवत्तन्ति हेतुसंभारपच्चया ति ||"* (अर्थात - यहां कोई विश्व का कर्ता नहीं है सृष्टी के नियम अनुसार अपने आप सृष्टी चक्र शुरु रहता है.) *"कम्मस्स कारणों नत्थि विपाकस्स च वेदको | सुधम्मापवत्तन्ति एव ऐतं सम्पादस्सनं ||"* (अर्थात - कोई कर्ता नहीं है, जो कर्म करता हो. मानवी अवयवों के वस्तुघटक चक्र अपने आप घुमते रहता है.) *"आत्मा"* का अस्तित्व को नकारते हुये, *"पुनर्जन्म "* संदर्भ में बुद्ध कहते हैं, "एक दिया से दुसरा दिया जला दिया तो, हम यह नहीं कह सकते हैं की, पहले दिया ने दुसरे दिया का संस्करण किया है. इसी तरह संस्करण बिना *"पुनर्जन्म"* होता है. यथार्थ दृष्टी से देखे तो, *"आत्मा"* नाम की कोई वस्तू अस्तित्व में नहीं है. बुध्द ने *"देव"* इस संकल्पना को नकारते हुये कहा कि, *"तुम्हेहि किच्चं आतप्पं, अक्खातारो तथागता | पटिपन्ना पमोक्खन्ति झायिनो मारबंधना ||"* (अर्थात - कार्य करने के लिये, तुम्हे ही उद्दोग करना है. तथागत (बुध्द) का कार्य यह मार्ग दिखाना है. उस मार्ग पर आरुढ होकर, ध्यानमग्न होकर, मार के बन्धनो से मुक्त होना है.) बुध्द कहते हैं, *"अत्त दिपो भव|"* (अर्थात - स्वयं को शरण जाओ. दुसरे अन्य को शरण जाना नहीं है.) तथागत बुध्द *"कार्यकारण भाव सिध्दांत"* में कहते हैं, *"इदं सति इदं होति, इदं असति इदं ना होति |"* (अर्थात - कारण रहा तो कार्य होता है. कारण ना रहा तो, कार्य नहीं होता.) बुध्द इस तरह के अपने विचार जन जन तक भिक्खु संघ के माध्यम से पहुंचाने के कहते हैं, *"चरथ भिक्खवे चारिकं बहुजन हिताय बहुजन सुखाय.....|"* (अर्थात - हे भिक्खुओ, बहुजन हित के लिये, बहुजन सुख के लिये....!) इस लेख के अंत में, बुध्द को एक शिष्य ने प्रश्न पुछा कि, *"अन्तो जटा बहि जटा, जटाय जटिता पजा | तं तं गोतं च पुच्छामि, को इमं विजटये जटं ||"*(अर्थात - इस संसार में अंतर्गत एवं बहिर्गत ऐसे समस्या का निवारण कौन कर सकता है ?) इस प्रश्न का उत्तर देते हुये बुद्ध कहते हैं, *"सीले पतिट्ठायो नरो, सम्पञ्ञो चितं पञ्ञचं भावयं | आतापि निपको भिक्खु, सो इमं विजटयं जटं ||"* (अर्थात - जो व्यक्ती शिल पर प्रतिष्ठित है, ऐसे संपन्न एवं जिसने चित्त और प्रज्ञा की भावना की है, ऐसा उद्योगी भिक्खु यह उस समस्यांओं का निवारण कर सकता है.) परंतु *येशु ख्रिस्त* इनके विचारों में, उस बदलाव का कारण क्या रहा होगा ? यह प्रश्न है. जैसे की - भारत में ब्राम्हणी व्यवस्था ने बुध्द के विचारों में छेडछाड की गयी है. *"महायान / हिनयान / वज्रयान / तंत्रज्ञान"* इन बुध्द संप्रदायों ने भी, अपना अलग - अलग अस्तित्व निर्माण किया है. उस ही प्रकार का प्रयत्न *येशु ख्रिस्त* इनके साथ भी हुआ हो. शायद येशु ख्रिस्त ये *"बोधिसत्व"* भी रहे हो...!!! इस संदर्भ में संशोधन होना बहुत जरुरी है.
नमो बुध्दाय...!!! जय भीम...!!!
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▪️ *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*
नागपुर, दिनांक २७ जुलै २०२४
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