Wednesday, 17 July 2024

 🇮🇳 *भारत - चायना १९६२ का वो युध्द ४०० वर्षीय (?) बौध्द लामा को पाना था और उस लामा का मृत शरिर मिलने के बाद चायना के एक तरफा युध्द बंदी का रहस्य : आज के भारत की राजकीय सत्ता नीति ???*

   *डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर ४४००१७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल 

एक्स व्हिजिटिंग प्रोफेसर, डॉ बी आर आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ महु म.प्र.

मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२


     *"पहिला महायुध्द"* का कालखंड २८ जुलै १९१४ से ११ नवंबर १९१८ तक रहा था. वही *"द्वितीय महायुध्द"* काछ कालखंड १ सितंबर १९३९ से २ सितंबर १९४५ तक रहा है. ये दोनो भी महायुध्द, जमिन विस्तारवाद से जुडे हुये थे.‌ *"तिसरा अघोषित महायुध्द (?)"* कहे या तो, *"कोरोना संक्रमण"* का कालखंड ३० जनवरी २०२० से लेकर १६ नवंबर २०२१ यह भारत के संदर्भ में भी, हम कह सकते हैं. परंतु आनेवाला *"तिसरा महायुध्द"* ये *"पाणी संघर्ष"* का कारण होने वाला है. इन सभी दु:खद घटनाओं बिच ही, द्वितीय महायुध्द की फलश्रुती, यह *"भारत देश के प्रजासत्ताक"* (२६ जनवरी १९५०) की ओर जाती हुयी, हमें दिखाई देती है. द्वितीय महायुध्द खत्म होने के बाद भी, *"भारत को आजादी २ साल देरी से क्यौं मिली ?"* मोहनदास गांधी या कांग्रेस दल की, अदुरदर्शी राजनीति कहे या तो, भारत के धर्म संघर्ष का दुष्परिणाम ? यह एक संशोधन का विषय है. *"भारत आजादी"* (१५ अगस्त १९४७) इस विषय पर, प्रश्न चिन्ह भी लगायें जाते रहे है.‌ वह दिन *"पुर्ण स्वातंत्र्य दिन"* ना होकर, वह केवल *"सत्ता हस्तांतरण दिन"* भी कहा जाता है. *"गोरे अंग्रेज तो भारत से चले गये, काले अंग्रेजो का शासन भारत में आ गया."* गोरे अंग्रेजो के शासन में, अच्छा प्रशासन, नियम बध्दता - शिस्त, अ-भ्रष्टाचार रहा था. अब तो उन बातों का बंट्याधार हो गया है. *"भारत में देशभक्ती एवं भारतीयत्व भावना"* का, कही भी लवलेश दिखाई नहीं देता. केवल *"देववाद, धर्मांधवाद"* का बडा बोलबाला, यहाँ चल रहा है.‌ खैर छोडो, अब हम मुल विषय पर आते हैं.

      स्वतंत्र भारत (?) की पहिली अपनी सरकार (अंतरीम सरकार) १५ अगस्त १९४७ को बनना, वही *"भारतीय संविधान सभा"* की स्थापना ६ सितंबर १९४६ (आजादी के पहले) को रखी गयी थी, और २४ जनवरी १९५० को वह *"संविधान सभा"* भंग हुयी थी, इसे भी हमें समझना होगा. *"भारत - चायना युध्द"* (२० अक्तुबर १९६२ से २१ नवंबर १९६२ - एक माह) की ओर जाने के पहले, सन १९५० में *"भारत - चायना के राजनैतिक संबंध,"* यह बहुत ही सौहार्दपुर्ण रहे थे. सीमा वाद शांत था. या कहे था ही नहीं. भारत सरकार के प्रधानमंत्री *जवाहरलाल नेहरू* के अधिन भारत सरकार ने, *"चीनी - हिंदी भाई भाई"* का नारा दिया था. *चक्रवर्ती सम्राट अशोक मौर्य* का *"अखंड विशाल विकास भारत"* को, दृष्ट बामणी ऋषी *पतंजली* के कहने पर, मौर्य वंश का आखरी *सम्राट ब्रहद्रथ* की हत्या, बामणी सेनापती *पुष्यमित्र शृंग* (सम्राट ब्रहद्रथ का साला) द्वारा की जाती है. और यह *"अखंड विशाल विकास भारत"* फिर खंड खंड हो जाता है. वे खंड खंड देश है - अफगाणिस्तान (१८७६) / नेपाल (१९०४) / भुतान (१९०६) / तिब्बत (१९०७) / श्रीलंका (१९३५) / म्यानमार (१९३७) / पाकिस्तान - बांगला देश - १९७१ (१९४७)....!!! और यह भी कह जाता है कि, भारत प्राचिन इतिहास में‌ *'चायना"* भी अखंड भारत का हिस्सा रहा था. परंतु अब चायना इस देश ने, *"पुर्वी तुर्कस्तान / तिब्बत / इनर मंगोलिया / ताइवान / हान्गकान्ग / मकाऊ"* इन छ: देशों को, अपने अधिपत्य में लिया है. इन छ: देशों का क्षेत्र, चायना के कुल क्षेत्र के, ४३ % अधिक बताया जाता है. अर्थात *तिब्बत* यह स्वतंत्र देश (१९०७) बन जाता है. और *चायना* इस देश पर, तिब्बत के सम्राट ने, अपना अधिपत्य जमा लिया था, यह भी इतिहास कसा जाता फिर तिब्बत यह स्वतंत्र देश, *चायना* देश के अधिन कैसे बना ? भारत सरकार की राजनीति क्या रही ? नेहरू कांग्रेस सरकार की भुमिका कैसे थी ? और *"अमेरिका - सोव्हिएत संघ - ब्रिटन"* इन देशों की, इन तमाम छोटें देशों को गुलाम बनाने में, क्या कुटिल राजनीति रही थी ? इस सभी विषयों पर, मैं फिर कभी लिखुंगा.

     द्वितीय महायुध्द के लिये, *"धुरी राष्ट्र"* तिन हुकुमशाह प्रमुख कारण बने थे. जर्मनी देश का *एडाल्फ हिटलर* / इटली देश का *बेनितो मुसोलिनी* / जापान देश का सम्राट *हिराहोतो - शोओवा तेन्नोओ.* उन तिनों प्रमुख हुकुमशहा मे से, जापान के सम्राट *हिराहितो* को ही ज्यादा जीवन मिल पाया. परंतु द्वितीय महायुध्द में हुये पराजय के बाद, जर्मनी के हुकुमशहा *हिटलर* ने, अपनी प्रेमिका *एवा ब्राऊन* के साथ आत्महत्या की. वही इटली के हुकुमशहा *बेनितो मुसोलिनी* और उसकी प्रेमिका *क्लारा पेटीचा* को, सैनिको ने गोली से भुनकर, चौराहों पर फाशीं पर लटका दिया. उन *दोनों हुकुमशहा का अंत बहुत ही दुर्दर होकर भी,* उन दोनो की प्रेमिका आखिर समय तक, उन हुकुमशहा के साथ ही रही. वही चायना का हुकुमशहा (?) *माओ त्से - तुंग* (माओ जेदोंग - माओ) यह तो, द्वितीय महायुध्द में *"मित्र देश"* के साथ खडा था. वे मित्र देश थे - *अमेरिका / सोव्हिएत संघ / चायना / ब्रिटन* आदी. भारत द्वितीय महायुध्द में" मित्र देशों" के साथ था. चायना के हुकुमशहा - *माओ* की चार पत्नीया थी. लुओ यिशिथ (१९२० - १९३०) / यांग काइहुड (१९२० - १९३०) / हे जिझेन (१९३० - १९३९) / जांग चिंग (१९३९ - १९७६) परंतु उन चारो पत्नियों का, माओ के जीवन‌ मे आने का कालखंड भी अलग अलग रहा है. माओ एक गरिब किसान का बेटा था. माओ की *"एक कवि, दार्शनिक, दुरदर्शी, महान प्रशासक"* के रुप में, उसकी पहचान बनी. चीनी क्रांतीकारी, राजनैतिक विचारक, साम्यवादी (कैम्युनिस्ट) के रुप में भी, माओ जाना जाता था. मार्क्सवादी - लेनिनवादी विचारधारा को, माओ ने सैनिकी राजनीति से जोडकर, माओ ने *"माओवाद"* इस नये सिध्दांत को जन्म दिया. उसका कार्यकाल ९ सितंबर १९७६ (जन्म २३ दिसंबर १८९३) तक रहा. अब हम *माओ त्से - तुंग और बौध्द लामा* (आयु ४०० साल ?) की कहानी पर चर्चा करेंगे.

     बुध्द धर्म में, तथागत बुध्द के महापरिनिर्वाण के बाद - *"महायान / हिनयान / वज्रयान"* संप्रदाय का उदय हो चुका था. चायना / तिब्बत में, *"महायान / वज्रयान"* का प्रभाव विशेषतः दिखाई देता है. चायना के सर्वेसर्वा *माओ त्से तुंग* को, एक लामा ने भविष्यवाणी बतायी थी कि, *"माओ का मृत्यू.... इस दिन होगा."* और कहा जाता है कि, माओ का मृत्यु उस बताये दिन ही हुआ है. वही *माओ त्से तुंग* के कुछ  जानकारों ने, माओ को बताया था कि, *जेम्स हिल्टन* इनकी उपन्यास के बताये गये *"शांग्रीला घाटी"* में, *"आदमी ४०० - ५०० साल तक जीवित"* रह सकता है. और माओ के जानकारों अनुसार, वह घाटी तिब्बत देश में मौजुद है. वही एक *"बौध्द लामा"* चायना के पेंकिंग में, संदिग्ध रुप से, भिक्षाटन करते हुये दिखाई दिया. चायना पुलिस ने, उसे पकडकर उस लामा की वैद्यकीय परिक्षण किया.‌ उस मेडिकल परिक्षण में, उस *"लामा की उम्र ४०० साल"* की बतायी गयी थी. परंतु वह दिखने पर, *"बौध्द लामा ४० साल"* का ही दिखाई दे रहा था. चायना पुलिस ने, उस लामा को, इस संदर्भ के खास राज को पुछा. तथा उस घाटी की जानकारी मांगी.‌ उस बौध्द लामा को बहुत वेदनाएं दी. इतनी सारी वेदनाएं सहने पर भी, उस बौध्द लामा ने, कुछ नहीं बताया. चायना का शासक *माओ त्से तुंग* यह चायना पर, बहुत साल तक राज करना चाहता था. परंतु उस बहुत आयु लामा ने, उस *"लंबी आयु घाटी"* संदर्भ में, कुछ ना बताने के कारण, उस लामा को छोडने का आदेश दिया. और उस लामा को छोडने के बाद, चायना शासन ने, उसके पिछे गुप्तचर लगा दिये. ता कि, उस *"बहु आयु घाटी"* का रहस्य जान सके. चायना पुलिस से छुटने के बाद, वह बौध्द लामा तिब्बत के मार्ग होते हुये, अरुणाचल प्रदेश (भारत) के *"तवांग"* क्षेत्र की ओर वो बढा. और *"तवांग बुध्द मठ"* में रहने के बाद, वहां उस *"घाटी का नकाशा"* रखने का, चायना सरकार को संदेह रहा. अब उस बौध्द लामा को पकडने के लिये, *"चायना - भारत युद्ध"* ही, एकमात्र पर्याय था. वह साल था सन १९६२...!

      हमने इस लेख में पढा है कि, सन १९५० में *"भारत - चायना के बीच संबंध, यह बडे ही सौहार्दपुर्ण"* थे. तथा कोई सीमा विवाद नहीं था. यही नहीं, भारत के *प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू* इन्होने दिया हुआ नारा - *"चीनी - हिंदी भाई भाई"* ये बडे जोरों शोरों पर था. यही नहीं सन १९१४ में, *"तवांग"* यह भुभाग, तिब्बत देश का हिस्सा था. और सन १९१४ में, *"शिमला समझौता"* के तहत *"मैकमोहन रेखा"* (अंग्रेज विदेश सचिव - हेनरी मैकमोहन ने महत्वपूर्ण भुमिका अदा करने के कारण, उस रेखा को उसका नाम दिया गया) को, ब्रिटिश भारत और तिब्बत की बीच‌ हुये समझौतों ने, *"नयी सीमा के रुप में, तवांग को , ब्रिटिश भारत का भुभाग"* परिभाषित किया गया. जब कोई भी सीमा विवाद, दो देशों की बीच होता रहा है, तब *"समझौते के बिच"* ही, उस समस्या का हल किया जाता है. और उसे आंतरराष्ट्रीय मान्यता मिल जाती है. तवांग का विवाद भी, वैसा ही रहा है. *"भारत की सबसे बडी गलती, "तिब्बत देश" को, चायना के अधिपत्य में, विरोध ना करना रही है."* और संविधान निर्माता *डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर* इन्होने, जवाहरलाल नेहरू सरकार पर उस संदर्भ में, अपनी आपत्ती दर्ज की थी.  सन १९५९ के *"चायना - तिब्बत विद्रोह"* के बाद, तिब्बत के धर्मगुरु *परम पावन दलाई लामा"* इन्होने, तिब्बत से पलायन कर, भारत में शरण ली है. तब से तिब्बती समुह, भारत में शरणार्थी के रूप में रहते है. परंतु नेहरू सरकार की तिब्बती के प्रति राजनीति ??? और आज मात्र  *"चायना तिब्बत अधिपत्य के कारण ही,"* सैन्य में शक्तिशाली हुआ है. *"विश्व की सब से बडी शक्ति रूप में, चायना उभरा है."* अमेरिका को वो ललकार रहा है. सोव्हिएत संघ देश भी लाचार खडा है. और चायना कभी भी तिब्बत से, भारत पर *"केमिकल आक्रमण"* कर सकता है. *"भारत सरकार‌ का, चायना डर का प्रमुख कारण यह है."* सन १९४७ के *"भारत - पाकिस्तान विभक्तकरणं"* के बाद, पाकिस्तान से भारत में बहुत संख्या में आयें *"सिंधी समुहों"* को, दिल्ली - नागपुर समान शहरों में, शरणार्थी के रूप में बसाया गया. और आर्थिक मदत भी करायी गयी.‌ परंतु आगे चल कर उसी *"सिंधी समुहों"* ने, भारतीय व्यापार में *"डुप्लिकेट वस्तुओं का निर्माण"* कर, भारतीय अर्थव्यवस्था को बडी हानी पहुचायीं है / और पहुंचा रहे है. परंतु तिब्बती शरणार्थी लोगों कों, शहरों से बहुत दुर *"दुर्धर क्षेत्र"* में बसाया गया. और कोई खास आर्थिक मदत भी नहीं की गयी. यह दुर्धर स्थिती होकर भी, तिब्बती शरणार्थी लोगों ने, अपनी इमानदारी - मेहनत से, अपने क्षेत्रों का विकास किया. वही स्थिती बांगला देशी *"चकमा बौध्द"* शरणार्थी समुहों की रही हैं. उनकी त्रिपुरा - असम राज्यों में, आर्थिक स्थिती बहुत ही खस्ता दिखाई देती है.‌ *"यह दोहरी हिन नीति - नेहरु कांग्रेस की थी या कांग्रेस ब्राह्मणवाद की...!"* यह तो संशोधन का विषय है. और भारत के कुछ प्रदेशों में, *"नागरिकता कानुन विवादों"* (CAA / NRC) का कारण भी ??? *"हमारे भारत सरकार की अ-दुरदर्शी राजनीति - विदेश नीति....!!!"*

      ‌‌हमने उपरी पैरा पढा ही हैं कि, *"बहु आयु बौध्द लामा"* चायना सें, भारत के *"तवांग मठ"* में, भागकर आया था. और उसे पकडने के लिये, चायना ने २० अक्तुबर १९६२ को, भारत पर एक तरफा आक्रमण *"तवांग भुभाग"* (अरुणाचल प्रदेश) से सुरु किया. अब दुसरा प्रश्न खडा होता है कि, *"फिर चायना द्वारा, लद्दाख भुभाग के अक्साई चीन से भी, भारत पर एक तरफा आक्रमण क्यौं किया गया ?"* युध्द की एक राजनीति है कि, "अगर तुम्हे युध्द को जीतना हो तो, अपने शत्रु का लक्ष विचलित करना." चायना का असली लक्ष *"बहु आयु बौध्द लामा "* (४०० साल आयुवाला लामा) को पाना था. और वह तवांग भुभाग (अरुणाचल प्रदेश) की और चला गया था.‌ इसलिए *"चायना - भारत १९६२ का युद्ध"* यह भारत की सीमा पर, भुतान के पुर्व में, भारत के नार्थ - इस्ट फ्रंटियर एजेंसी में, नेपाल के पश्चिम में, लद्दाख के अक्साई चीन में लढा गया. चायना की सेना *"तवांग भुभाग"* की ओर बढने लगी, तब तवांग बौध्द मठ के प्रमुख ने, उस *"बहु आयु बौध्द लामा"* को, घोडे पर बिठाकर, असम की ओर भेज दिया. उस समय (१९६२) असम से अरुणाचल जाने के लिये, यातायात मार्ग / रेल मार्ग नहीं था.  केवल घोडे पर प्रवास / हेलिकॉप्टर से वायु मार्ग द्वारा साधन थे. दुसरा हवाई मार्ग साधन की उपलब्धता, ना के बराबर थी. *तवांग भुभाग* यह पर्वतीय क्षेत्र है. वो भुभाग ४००० मीटर से अधिक (१३०० फीट) उंचाई पर स्थित है. अत: वो बौध्द लामा घोडे पर बैठकर, असम प्रदेश की ओर जाते समय, उस लामा का घोडा गहरी खाई में गिर पडा.‌ और उस लामा की मृतू हो गयी.‌ चीनी सेना तवांग होते हुये, असम की ओर बढने लगी. और चीनी सेना को, खाई में उस *"बहु आयु बौध्द लामा"* (४०० साल आयुवाले) का मृत शरीर दिखाई दिया. उन्होंने इसकी खबर, चीनी वरिष्ठ अधिकारी को दी गयी. *"और उस लामा के मृत शरीर को, चायना सेना अपने साथ ले गयी. और २१ नवंबर १९६२ को, चायना ने एक तरफा युद्ध बंदी भी घोषित की.‌"* इस युद्ध में जीत चायना की हो चुकी थी.

       चीनी सैनिक उस *"बहु आयु बौध्द लामा"* का मृत शरिर, अपने साथ ले गये. और एक माह तक चले *"भारत - चायना युद्ध"* का, २१ नवंबर १९६२ को एक तरफा युध्द बंदी, चायना द्वारा घोषित की गयी. वह युध्द एक तरफा भारत पर लादा भी गया. चायना की युध्द में जीत भी हुयी. अत: बहुत सारे प्रश्न भी खडे हो जाते हैं. *"चायना ने एक तरफा युद्ध करना तथा एक तरफा युद्ध बंदी घोषित करना ? युध्द बंदी पर, दोनो देशों के राजनैतिक चर्चा दिखाई देती है क्या ? हम इसे क्या कहे. सन १९६२ के बाद, भारत - चायना सीमा वाद पर, कितने युध्द लढे गये ? चायना देश, तवांग भुभाग (अरुणाचल प्रदेश) के बदले, लद्दाख का अक्साई चीन भुभाग, भारत को देने के पक्ष में क्यौं है ? तवांग बौध्द मठ की विशेषता क्या है ? ल्हासा (चायना) के पोताला महल के बाद,  तवांग बौध्द मठ, यह विश्व का सबसे बडा मठ है, क्या यह कारण सही माना जा सकता है ?"* और यह सत्य है कि, *"लद्दाख क्षेत्र के अक्साई चीन भुभाग की अपेक्षा, तवांग भुभाग यही सेना शक्तीबल में,"* बहुत अधिक उपयोगी है. लद्दाख क्षेत्र - तवांग क्षेत्र यह दोनों क्षेत्र बौध्द बहुल क्षेत्र है. और बौध्द लोग शांतीप्रिय होते है. इमानदारी - सत्य निष्ठा - सत्य प्रेम - देश भक्ति आदी गुण, उन बौध्द समुह में कुट-कुटके भरे है.‌ बौध्द बहुल विदेशी क्षेत्र -  *थायलंड / श्रीलंका / मलेशिया / सिंगापुर / नेपाल / कोरीया / व्हिएतनाम* आदी देशों में, मेरा प्रवास *"कवि - लेखक - चिंतक - बौध्द अभ्यासक - संशोधक"* के रुप में रहा है. मैने उन देशों के संस्कृति को, बहुत करिब से देखा है. *श्रीलंका सरकार* ने तो, मुझे *"बुध्द परिषद"* को बुलाकर, खास व्हीआयपी की व्यवस्था की थी. *श्रीलंका* के परिचीत भंतेजी ने, मुझे अपने *"अष्टकोनी बौध्द विहार"* में ले जाकर, मुझे अपने साथ एक रात्र रखा था. और सुबह नहाने के बाद, उनके विहार के पहिली मंजिल ले जाकर, वहां  *"बुध्द अस्थी"* बतायी थी. अर्थात मेरी संपुर्ण रात्र, उन पवित्र अस्थी परिसर में ही रही है. वह मेरे जीवन की, सबसे बडी यादें है. *दक्षिण कोरीया* देश‌ के प्रवास में, मैने *"द्वितीय महायुध्द"* की वो यादें देखी है.‌ भारत देश में भी मेरा अकसर प्रवास होता है. लेकीन *"कश्मिर / लद्दाख / दार्जिलिंग / गोहाटी / शिलांग  / जोरहाट  / कन्याकुमारी"* आदी क्षेत्र का प्रवास हो या, तथागत बुध्द से जुडे हुये पावन स्थल - *"सारनाथ /बुद्धगया / राजगीर / श्रावस्ती / कुशीनगर / सांची / कपिलवस्तु / लुंबिनी"* आदी हो, मेरे इस प्रवास में, मुझे प्रवास जीवन के खट्टे - मिठे अनुभव रहे है. महाराष्ट्र राज्य के गोंदिया जिले के *'गोठणगाव - तिब्बती कैम्प"* में भी मुझे निमंत्रित किया  गया. पहले मेरे प्रवास में, उन्होंने मुझे *"तिब्बती विधानसभा"* दिखाई थी.‌ तथा तिब्बती बुध्द प्रजातंत्र को, मैने बहुत करिबी से समजा है / था. 

       दुसरी एक घटना तो, मैं मेरे जीवन में कभी भी नहीं भुल सकता. वहां के *"तिब्बती प्रमुख लामा के निर्वाण"* की. उन प्रमुख लामा (गुरुजी)  को, नागपुर के नामांकित डॉक्टर ने, मृत घोषित किया था.‌ परंतु तिब्बती लोगों का, लामा के मृत प्रमाणपत्र पर विश्वास नहीं था.‌ अत: तिब्बती लोगों ने, वे लामा (गुरुजी) जहां बैठा करते थे, उस जगह उस मृत शरीर को रखा था. *"सात दिन तक उस मृत शरीर से, ना ही कोई दुर्गंध आयी थी."* सातवे दिन जब नाक से खुन बहने लगा,  तब उनका विश्वास हुआ कि, अब गुरुजी नहीं रहे. *(वे अर्हत अवस्था में थे.)* और उनका निर्वाण संस्कार करने का निर्णय लिया गया.‌ मैं मेरी कार से, मेरे एक मित्र के साथ, दो - तिन दिन लगातार गोठणगाव जाते रहा. यह घटना जब मेरी पत्नी *वंदना* को बतायी, तब वह भी वहां जाने के जिद करने लगी. तब मेरी बेटी *स्टेफी* ८ - ९ साल की और बेटा *अॅलेक्स* ७ - ८ माह का था.‌ मेरा पुरा परिवार, मेरे ड्रायव्हर के साथ हम गोठणगाव गये. और *"निर्वाण संस्कार"* में उपस्थित हुये. वहां कोई भी तिब्बती मुझे रोते हुये दिखाई नहीं दिया. एक तरफ उनके निर्वाण स्थान पर, तिब्बती बांधव‌ उनकी स्थिती नुसार अपनी मौलिक वस्तुंए अर्पण कर रहे थे.‌ तो दुसरी ओर भोजन चल रहा था. तब मैने मेरे परिचीत तिब्बती मित्र को पुछा कि, *"लामा (गुरुजी) के निर्वाण पर, कोई भी तिब्बती बांधव रोते हुये, मुझे दिखाई नहीं दे रहा है. इस का कारण क्या ?"* तब वो परिचित तिब्बती मित्र मुझे कहने लगा कि, *"महान लोक आते रहते है, और हमें छोडकर चले जाते है. इस में रोना क्या ?"* उस घटना ने मुझे तो, बहुत कुछ जीवन का अनुभव सिखा दिया.

       चायना के *"बहु आयु लामा"* (४०० वर्ष) का विषय हो या, *"गोठणगाव के तिब्बती लामा"* का विषय, यह एक बडा संशोधन का विषय है.‌ और हम जब *"युध्द"* के विषय संदर्भ में चर्चा करते है, तब यह युध्द भी दो तरह का दिखाई देता है.‌ *"एक देश सीमा पर युध्द और दुसरा देश अंतर्गत युध्द."* देश सीमा पर लढाई युध्द में, सैनिक दिखाई देते है. वे देश की रक्षा करने के लिये, रात दिन अपनी प्राण की बाजी लगायें रहते है. परंतु *"देश अंतर्गत युध्द"* - इस में तो, *"बहुत‌ गंधी राजनीति"* की बु‌ हमे दिखाई देती है.‌ कभी कभी तो, इन गंधी राजनीति के कारण ही, *"देश सीमा पर युध्द"* लादे जाते है.‌ वे राजनैतिक दल चाहें कांग्रेस हो या, भाजप हो या, वंचित आघाडी हो या, बसपा हो या, वाम पंथी दल हो, शिवसेना हो....! दलों की यादी बहुत लंबी हो सकती है.‌ *"सवाल उन सभी दलों के, देशभक्ती का है या, भारत राष्ट्रवाद का भी है या, भारत विकास का भी है या, भारतीय अर्थव्यवस्था के मजबुती का है या, देववाद - धर्मांधवाद को खत्म करने का भी है...!"* क्या वे सभी राजनैतिक दल, अपनी नैतिक जबाबदारी, पुरी इमानदारी - सत्य निष्ठा से निभा रहे है.‌ बाबासाहेब डॉ आंबेडकर इन्होने हमें *"भारतीय संविधान"* देकरं, *"संविधान संस्कृति"* (संस्कृति संविधान को खत्म कर दिया) की निव २६ जनवारी १९५० को रखी थी. क्या हम *"संविधान संस्कृति"* की सच्ची भावना की ओर, बढते जा रहे है ? यह प्रश्न है. *एड प्रकाश आंबेडकर* इन्होने तो, *"रिपब्लिकन संकल्पना"* को ही तिलांजली दी है. *"बहुजन आघाडी से लेकर वंचित आघाडी"* की ओर बढ रहा है. प्रकाश आंबेडकर ने "कोरोना काल" में "पंढरपूर मंदिर खोलने" का आंदोलन खडा किया था.‌ बाबासाहेब डॉ आंबेडकर का *"काळाराम मंदिर सत्याग्रह"* यह देवदर्शन का नहीं, *"अधिकार प्राप्ती का - समता प्राप्ति"* का आंदोलन था. प्रकाश आंबेडकर हो या आनंद तेलतुंबडे इन्होने *"१४ अप्रैल"* को, राजगृह पर *"काले झंडे"* लगायें थे.‌ *"आंबेडकर भवन"* का विषय भी लो...! चुनाव में अकेले लढकर, बसं केवल मत खाकर पैसे कमाना, प्रकाश आंबेडकर का, क्या धंदा बन गया है ??? यह बडा प्रश्न है. *प्रकाश आंबेडकर हमारे आंबेडकरी समाज को, किस दिशा की ओर ले जा रहा है ???* वही विषय बसपा सुप्रीमो *मायावती* का भी रहा है. अन्य तुकडे रिपब्लिकन दलों के बारें में‌, हम क्या कहे ? *रामदास आठवले* तो, राजनीति का *"महा-जोकर"* बन बैठा है. *जब की "संविधान संस्कृति" रक्षा दायित्व यह हमारा कर्तव्य है.* तब ही अन्य दलों पर, अपना दबाव बना सकते  हैं.‌ *"विकास भारत - समृध्द भारत - सृदृढ भारत"* की ओर, हम बढ सकते हैं. और आज भारत देश‌ आर्थिक - सामाजिक - सांस्कृतिक क्षेत्र में, बडे खतरें में‌ है...! और हमारे नेता ??? *"फिर देश सुरक्षित कैसे रहेगा ?"* यह भी हमें सोचना है. *"देश है तो हम है, अगर देश ही ना बचेगा तो ....???"*

      भारतीय सत्ता नीति *"विश्व गुरु"* होने का, बडा दंभ भरा करती है. चक्रवर्ती सम्राट अशोक का *"अखंड भारत"* बनाने की, खोकली बाते करती है. और हमारी ना ही सीमाएं सुरक्षीत बनी है, ना ही हम, उस संदर्भ में गंभीर है.  *"भारतीय अर्थव्यवस्था हो या,  सामाजिक व्यवस्था हो,"* वह पुर्णतः ध्वस्त है. अत: *"भारत को एकसंघ बनाने"* के बदले, सत्ता नीति के लिये, *"धर्म संघर्ष - धर्म युध्द"* करने में, हमारे नेता धन्यता मानते है. सशक्त चायना बनाने के लिये, *माओ त्से - तुंग* ने, अपने आप को नौछावर किया था. चायना में, *"माओवाद - बुध्द वाद संघर्ष"* होकर भी, चायना यह देश, *अमेरिका* को ललकार रहा है. चायना की अर्थव्यवस्था, यह अमेरिका से बेहतर करने का, चायना का प्रयास रहा है. *और भारत की अर्थव्यवस्था - समाजव्यवस्था ???* हमारा प्रयास कहां है. आंबेडकरी (?) राजकीय नेता तो, अपनी अलग अलग डफली बजा रहा है. तो हमे अपने देश के सारे में, कुछ सोचने का, वक्त ही कहां है. वही बात हमारी धार्मिक संघटन - *"The Buddhist Society of India"* (भारतीय बौद्ध महासभा) का है. सभी ट्रस्टी मर चुके हैं. और सन २००९ से, *चंद्रबोधी पाटील हो / मीराताई आंबेडकर हो / भीमराव आंबेडकर हो या / राजरत्न आंबेडकर भी हो,"* इन्होने "भारतीय बौद्ध महासभा" इसका, *"वार्षिक आर्थिक अहवाल"* ही नहीं दिया है. और भारतीय बौध्द लोगों को, वे गुमराह कर रहे है. इस मनमानी चक्कर में, कहीं *"भारतीय बौद्ध महासभा की मान्यता ही, ना रद्द हो जाए ?"* बाबासाहेब डॉ आंबेडकर इन्होने, "भारतीय बौद्ध महासभा" को, *"सोसायटी एक्ट"* अंतर्गत पंजीकरण कराकर, हर तिन सालों में, चुनाव का प्रावधान किया था. बाद में के महारथीयों ने, *"सोसायटी एक्ट"* पंजीकरण रद्द कर, *"ट्रस्ट एक्ट"* अंतर्गत *"चुनाव पध्दती"* ही खत्म कर डाली. और मरते दम तक, वे पदाधिकारी बन बैठे है. चाहे वे काम करने के लायक ना भी हो...! *"मैने स्वयं उस संदर्भ में, एक याचिका दायर की है. और सोसायटी एक्ट के तहत, चुनाव कराने तरतुद की मांग की है"* ये तमाम *"स्वयंघोषित पदाधिकारी"* वर्ग का असली लक्ष, सरकारी तिजोरी (Treasury) में जमा, *"रु. १२ करोड के उपर"* के राशी पर है. तो फिर, हमारे देश की समस्या समझने के लिये, उनके पास समय ही कहां है. देश जाए भाड में...! उन्हे युध्द से भी कोई मतलब नहीं है. *"पर्यावरण बदलाव"* (Climate Change) से भी, उन्हे कोई मतलब नहीं....!

      लद्दाख क्षेत्र *"पर्यावरण सुरक्षा"* के लिये, थ्री इडियट फिल्म संबंधित *सोनम वांगचुक* इन्होने, थंडी (मायनस डिग्री) खुले आसमान में, *"आमरण अनषण"* किया था. मुझे स्वयं लद्दाख क्षेत्र में जाने का अवसर भी आया. मैने उस वातावरण को महसुस किया है.  *"युध्द को टालने"* के लिये, दक्षिण कोरिया स्थित संघटन - *"HWPL H.Q. Korea"* तथा उसके अध्यक्ष *Man He Lee* समुचे देशों में प्रवास करते हुये, संबंधित राष्ट्राध्यक्षों को मिल रहे है. *"World Peace Conference"* (विश्व शांती परिषद) का आयोजन कर रहे है. *"पर्यावरण की सुरक्षा"* से संबंधित भी वह विषय है. *मुझे स्वयं,* दक्षिण कोरीया के *"विश्व शांती परिषद २०२३"* में सहभागी होने का निमंत्रण होने से, मैं चार दिन दक्षिण कोरीया रहा हुं. मेरी राष्ट्रिय संंघटन - *"सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल"* की माध्यम से, हमने जागतिक / राष्ट्रिय कार्यक्रम - *"जागतिक बौद्ध परिषद २००६ - २०१३ - २०१४ - २०१५ / जागतिक बौद्ध महिला परिषद २०१५ / अखिल भारतीय आंबेडकरी विचारविद परिषद २०१७ - २०२० / अखिल भारतीय आंबेडकरी महिला विचारविद परिषद २०२० / विश्व शांती रैली - २००७ - २०१८ - २०२०"* को सफल आयोजन किया था.  कोरोना संक्रमण काल २०२२ में, *"कोरीया की संघटन HWPL तथा मेरी संघटन CRPC"* के संयुक्त तत्वज्ञान में, मेरे (डॉ मिलिंद जीवने) ही अध्यक्षता में, ऑनलाईन *"जागतिक शांती परिषद"* का आयोजन हुआ था. दक्षिण कोरीया के Man He Lee इन्होने उसका उदघाटन किया था. मेरी अपनी सामाजिक - धार्मिक कृतीशीलता के कारण - *परम पावन दलाई लामा / परम पावन कर्माप्पा लामा / परम पावन‌ ड्रायकंग कैबगान चेटसंग (तिब्बत) / परम पावन बुध्द मैत्रेय (अमेरिका) / परम पावन त्सोना रिंपोचे (बोमडिला) / महान विचारविद - लामा - थीक नैट हैन (व्हिएतनाम) / भदंत बनागल उपतिस्स नायका महाथेरो (श्रीलंका) / भदंत संघसेन (लद्दाख) / भदंत आनंद कौशल्यायन (बुध्द भुमी) / भदंत आर्य नागार्जुन सुरेई ससाई* समान बहुत से महान मान्यवरों सें मिलने का / उनके संपर्क में रहने का अवसर, मुझे मिला है. अत: मैं अपने आप को गौरवित समजता हुं. जब *लामा - थिक नैट हैन* नागपुर में आ रहे थे, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री *डॉ. मनमोहन सिंग* जी, उनसे मिलना चाहते थे.‌ परंतु समय की व्यस्तता के कारणवश, उन्होंने प्रधानमंत्री को समय नहीं दे पाये. विभिन्न देशों के प्रमुख भी, लामा जी को मिला करते थे. आज वे लामा जी, हमारे बीच नहीं है. *भदंत बनागल उपतिस्स नायका महाथेरो* (श्रीलंका) इन्हे भी मिलने के लिये, *श्रीलंका के प्रधानमंत्री हो या राष्ट्राध्यक्ष,* उनके विहार जाया करते है. अंत में, भारत देशभक्ती - देश प्रेम की ओर बढते हुये, मेरी कविता *"वो बुध्द फुल हो...!"* शब्द के साथ, मेरे अपने लेख को, पुर्ण विराम देता हुं.

हम में देशभक्ती कहे या प्रेम

वो सच्चे मन का हो

सत्य निष्ठा से भरा हुआ हो...

देश दगाबाजी - गद्दारी

झुट की किसी बुनियाद पर

खडा किया महल ढ़ह जाता है...

मन की शांती हो या वो सुख शांती

उसे कभी ना मिल पाती है

ना ही वो चैन से सो पाता है...

जब कभी भी हम मर जाएं

बसं जमिन में ही दफ़ना देना

वहां से जब कोई फुल खिलें

वो सत्य भावना का फुल हो

सत्य निष्ठा का फुल हो

वो बुध्द फुल हो....!!!


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*डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*

मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२

नागपुर, दिनांक १२ अप्रैल २०२४

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