Thursday, 14 March 2024

 ✊ *मोदी सरकार के नागरीकता अधिकार कानुन का बडा झोल और भविष्य का भारत कैसे होगा : एक प्रश्न*

     *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल

एक्स व्हिजिटिंग प्रोफेसर, डॉ बी आर आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ महु म. प्र.

मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२


      *नरेंद्र मोदी सरकार* के भारतीय सत्तानीति ने, *"रामजन्मभूमी"* नाम का, एक धार्मिक कार्ड खेला था. पर वह राजनैतिक बेडा पार करने में पुर्णतः सफल नहीं रहा. अब दुसरा राजनैतिक कार्ड - *"नागरीकता अधिकार कानुन"* फेका गया है. क्या यह दुसरा राजनैतिक कार्ड *"सत्ता सफलता"* दे पायेगा ? यह तो वक्त ही बतायेगा. परंतु राज सत्तानीति के इस कुटील राजनीति में, देश का बंट्याधार जरुर हो जाएगा. इस संदर्भ में कुछ चर्चा करने करने के पहले *CAA* - The Citizen Amendments Act (नागरीकता अधिकार कानुन) तथा *NRC*  - The National Register of Citizens (भारतीय नागरिकों की सुची) इन दो शब्दों को समझना बहुत ही जरुरी है. क्यौं की, *"हमारे राजसत्ता नेता, धर्म के नाम पर रक्षक है या वे भक्षक है,"* इस विषय के रासायनिक क्रिया का, अब हमें इंतजार करना है. *"नागरिकता कानुन में, धर्म का आधार लिया गया है, जब की धर्म का विषय, वहा था ही नही."* क्या हमारी *"भारतीय सत्तानीति"* नागरीकता विषय में, बहुत उदार है, बहुत सहिष्णू है ? और उसके दुरगामी परिणामों का भी ? इस विषय को भी हमें देखना है. अर्थात *"भविष्य का भारत"* यह विकसनशील भारत रहेगा, या विकसित भारत बनेगा, या तो रक्तरंजित भारत बनेगा !!! यह सारे प्रश्न भविष्य में क्यौं उभरेंगे, यह भी हमें देखना है. इस विषय के अंतरगर्भ में जाना, हमें क्यौ जरुरी हुआ है ? यह विषय उसके अंदर जाने पर ही, हमे समझ पायेंगे.

      *"नागरीकता अधिकार"* यह विषय *"असम आंदोलन"* से (१९७९ - १९८५) उभरा हुआ है. सन १९६३ में *"बांगला देशी कुछ नागरीक असम राज्य में पाये जाना, मतदार सुची में उनका नाम समाविष्ट होना,"* यह विषय आगे जाकर असम आंदोलन का एक कारण रहा है. इधर *"पाकिस्तान के सिंध प्रांत से भी सिंधी - सिखों का भारत में पलायन सन १९४७ में,"* भारत - पाकिस्तान विभाजन के बाद हुआ है.‌ अब यहां प्रश्न खडा हुआ है कि, *"मोहनदास गांधी और कांग्रेस सरकार ने, सन १९४७ का विभाजन करते समय, क्या उन मुल भारतीय विस्थापितों की राय ली थी ?"* तब पाकिस्तान - भारत के बीच *"४९:५१ फार्मुला"* यह तय हुआ था. क्या वह फार्मुला *डॉ बाबासाहेब आंबेडकर इनका अपना मतदार संघ (खुलना, जेस्सोर, बारीसाल)* को लागु किया गया था ? जब की वहा ५१% उपर हिंदु समुदाय मौजुद होने के बाद भी, वह मतदार संघ पाकिस्तान के हवाले किया गया था. *आगे जाकर बांगला देशी हिंदु और चकमा बौध्द समुदायों ने, भारत के असम, त्रिपुरा आदी राज्यों में शरण ली थी.* परंतु उन्हे उचित सहाय्यता नहीं दी गयी, जैसे पाकिस्तान से आयें सिंधी - सिख समुदायों को दी गयी थी. और यहा तो धर्म यह विषय कभी था ही नहीं. जो आज मोदी सरकार नागरीकता संदर्भ में, धार्मिक आधार खोज रही है. *"असम विदेशी विरोधी आंदोलन"* सन १९८५ में, राजीव गांधी इनके सत्ताकाल में, *"असम समझौते"* के तहत समाप्त हुआ. परंतु *नरेंद्र मोदी भाजपा सरकार* तो नागरीकता संदर्भ में, *असम राज्य में अलग की राजनीति करती दिख रही है. और बंगाल प्रांत में अलग राजनीति !* वही नरेंद्र मोदी सरकार के *"नागरीकता अधिकार कानुन"* को बंगाल प्रांत के अलावा कुछ गैर भाजपा सरकारों ने विरोध किया है. जो भावी सत्ता विवाद संघर्ष का कारण हो सकता है.

     नरेंद्र मोदी सरकार ने *"नागरीकता अधिकार कानुन"* डिसेंबर २०१९ में पारीत किया था. और उसे १० जनवारी २०२० को अधिसुचित किया था. ८ बार उसका विस्तार हुआ है. और ११ मार्च २०२४ को इसे लागु किया है. यहां प्रश्न खडा हुआ है कि, *"वह कानुन लागु करने में ४ साल का समय क्यौं लगा है ?"* केवल वहां नियम ही तो बनाने थे. इसके पिछे की भी राजनीति समझनी होगी. *"नागरीकता अधिकार कानुन में, धार्मिक आधार क्यौं लिया गया ?"* जब की नागरीकता देना यह धर्म का विषय बिलकुल ही नहीं है. भाजपा सरकार *"भारत का संविधान"* बदलने की भाषा करता है.‌ *भारत का संविधान बनाने में, डॉ बाबासाहेब आंबेडकर इन्होने २ साल ११ महिने १७ दिन का समय लिया.* और यही नहीं *"संविधान सभा"* (Constituent Assembly) में संविधान पर, *३२ दिनों तक चर्चा* चली. उस अवधी में विभिन्न सदस्यों द्वारा *७६३५ संशोधन प्रस्ताव सादर* किये गये. और उनमें से केवल *२४७३ प्रस्तावों पर चर्चा* हुयी थी. वह संविधान सभा ९ दिसंबर १९४६ को बनी थी. और *२४ जनवरी १९५० को भंग* हुयी. नरेंद्र मोदी सरकार ने अभी अभी *४ कानुन में बदलाव* किये है. *उन चार कानुनों पर, कितने दिन संसद में चर्चा चली ?* कितने संसद सदस्यों ने चर्चा में भाग लिया ? विरोधी दल सदस्यों को, क्यौं संसद से बाहर निकलवा दिया था ? भाजपा मोदी सरकार को *"नागरीकता कानुन"* के केवल नियम ही बनाने में, ४ साल लग गये. तो *"नया संविधान"* बनाने में, कितने साल लगायेंगे. और नये संविधान पर चर्चा....??? क्या *"मनुस्मृती संविधान"* लागु करने की कोई कुटील राजनीति तो नहीं है ? हिंदु राष्ट्र बनाने की आड में *"ब्राम्हण मनुवादी राष्ट्र"* का निर्माण...!!! *"नरेंद्र मोदी हुकुमशाही सरकार"* के नयी पहाट का उदय...!

      "नागरीकता अधिकार कानुन" को *सर्वोच्च न्यायालय* में सन २०२२ में आवाहन दिया गया था. तत्कालीन न्यायाधीश ललीत इनकी अध्यक्षतावाली पीठ के सामने वह विषय आया था. परंतु उस पर सुनवाई नहीं हुयी. आगे जाकर सर्वोच्च न्यायालय के *डी. वाय. चंद्रचुड* इनके पीठ के सामने दिसंबर २०२३ को सुनवायी पुरी हुयी. अभी तक सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय *"नागरीकता अधिकार"* पर नहीं आया है. अभी तो सर्वोच्च न्यायालय के सामने २०० से अधिक याचिकाएं प्रलंबित है. *अगर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला प्रतिकुल आ गया तो, मोदी सरकार द्वारा लिये गये उन निर्णयों का, क्या होगा ?* यह भी प्रश्न है. क्यौं कि, भारतीय संविधान के आर्टिकल १४ के तहत चुनौती दी गयी है. *"भारत का संविधान सभी नागरीकों को, समान अधिकार देता है."*  धर्म के आधार पर भेदभाव ??? *सन १९५५ के नागरीकता अधिकार कानुन* की धारा ६ए के तहत, असम समझौता होने की बात कही जाती है. वही भारत सरकार ने *"विदेशी नागरीकता के आधार की सीमा ३१ दिसंबर २०१४"* यह मानी है. सन २०१४ का कटअप, किस आधार पर लिया है ? यह भी प्रश्न है. *सन १९७१ के कटअप* का भी विवाद यहां दिखाई देता है. धार्मिक भेदभाव का विषय भी महत्वपूर्ण है. NRC के मामलों में, अब तक *१६०० करोड रुपये फुंक* दिये गये है. और *४० करोड लोग नागरीकता के बाहर* होने की बात कही गयी है. सन २०१८ में फिर से NRC के तहत *१९ लाख लोग बाहर* होने की चर्चा है. जो लोग स्वयं की नागरीकता सिध्द नहीं कर पाये है. *सुप्रीम कोर्ट के आधार पर, जो रजीस्टर बनाया गया है, उसे सरकार ने नहीं माना.* अब सरकार का रजीस्टर कब बनेगा, यह भी प्रश्न है. *"हिंदु बंगाली - मुस्लिम बंगाली"* यह भी बडा विवाद उभरा है. बार्डर लाईन के कुछ प्रदेशों में *"Inner line Permit"* लेना अनिवार्य होता है. वहां NRC लागु करना भी तो, यह तेढी खीर है. बंगाल के राजवंशी समुदायों को खुश‌ करने की, क्या कोई राजनीति खेली जाएंगी ? यह भी प्रश्न है. भारत के पडोसी देश श्रीलंका, म्यानमार आदी देशों को भी, भारत सरकार को संभालना है. अभी तक *"भारत की जनगणना"* नहीं हुयी है. विदेशी नागरिक कहलानेवाले लोग, भारतीय सेना भी काम कर चुके हैं. अब सवाल उन सभी विवादीत विदेशी लोगों के, नोकरी पाने का, स्कुल में प्रवेश पाने का भी रहा है. *तालिबान से या अन्य देशों से आया हुआ सिख समुदाय,* भारत से लौटना भी चाहता है. क्यौं की, उन्हे भारत में नौकरी नहीं मिल रही है. अब सरकार के सामने बहुत सारे प्रश्न भी है - उन विदेशी लोगों को बसाना, नोकरी देना आदी आदी. समस्या बढती ही जा रही है *"शांती की तलाश में....!!!"*


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नागपुर, दिनांक १४ मार्च २०२४

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