Tuesday, 26 March 2024

 🌳 *पर्यावरण बदलाव में जनसंख्या बढोत्तरी का दुष्परिणाम एवं लद्दाख आंदोलन की एक उचित पहल ....!*

   *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल

एक्स व्हिजिटिंग प्रोफेसर, डॉ बी आर आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ महु (म. प्र.)

मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२


        *"पर्यावरण बदलाव"* अर्थात *Climate Change* इस महत्वपूर्ण विषय पर, मेरे लिखने का, मैने पिछले कुछ दिनों से, अपना खास मन भी बना चुका था. और "पर्यावरण" इस गंभीर विषय संदर्भ में, मेरा वाचन भी चल रहा था. इसी बिच मॅगेसेसे पुरस्कार विजेता, पर्यावरण के प्रेमी तथा *"थ्री इडियट"* इस फिल्म के फिल्मांकन रहे लद्दाख क्षेत्र से संबंधित, *मि. सोनम वांगचुक* इनका ६ मार्च २०२४ से, मायनस डिग्री वातावरण के, खुले हिमालय आकाश में, आमरण उपोषण सुरु करने की एक बडी न्युज, सोशल मीडिया से, मेरे सुनने में भी आयी थी. आठ दस साल पहले, *"महाबोधी सोसायटी लद्दाख"* द्वारा आयोजित, *"आंतरराष्ट्रीय धार्मिक कार्यक्रम"* के लिये, पुज्य *भदंत संघसेन* द्वारा मुझे बुलावा आया था. तब मेरा लेह लद्दाख क्षेत्र में, जाना भी हुआ था. और *सोनम वांगचुक* इनसे जुडे हुये संस्थान को भी, मैने अपनी भेट भी दी थी. साथ ही *परम पावन - ड्रायकंग कैबगान चेटसंग* इन्होने भी, मुझे उनके मानेस्ट्री में बुलाया था. और परम पावन चेटसंग जी भी, मेरे द्वारा आयोजित *"जागतिक बौद्ध परिषद - २०१३"* के प्रमुख अतिथी भी‌ रहे थे.‌ लद्दाख क्षेत्र में *सोनम वांगचुक* ये एक बडा नामचीन नाम है.

      "पर्यावरण बदलाव / क्लायमेट चेंज" इस विषय के अंदर जाने के पहले, हम *मि. सोनम वांगचुक* इनके उपोषण आंदोलन की चर्चा करेंगे. *"जम्मु कश्मिर - लेह लद्दाख में लागु कलम ३७०"* (विशेष दर्जा) को, भाजपा मोदी सरकार ने, संसद में प्रस्ताव लाकर हटा दिया. तथा जम्मु कश्मिर एवं लेह लद्दाख का - *"राज्य का दर्जा"* को भी हटाकर, उन दोनों भुभाग को, *"केंद्र शासित प्रदेश"* इस श्रेणी में सम्मिलीत किया है. अब *सोनम वांगचुक* इन्होने, दो हजार से उपर लोगों के साथ में लेकर, मायनस आठ से बारा अंश सेल्सिअस डिग्री बर्फ पडनेवाले थंडे वातावरण में, हिमालय के खुले आसमान में, आमरण उपोषण सुरु किया है. उनकी प्रमुख मांगे है - *"लेह लद्दाख को पुर्ण राज्य का दर्जा मिले / संविधानीक षटवी अनुसुची अनुसार उन्हे अधिकार मिले / जमिन अधिकार - वन अधिकार - जल अधिकार - शेति अधिकार - आरोग्य सेवा अधिकार / लेह - कारगील ये लोकसभा के दो स्वतंत्र मतदारसंघ बने / स्वतंत्र लोकसेवा आयोग बने* आदी उनकी मांगे है. और वे पर प्रांतिक उद्दोगपति लोगों के, लद्दाख क्षेत्र में उद्योग लगाने तथा *किसी भी प्रकार के खनन करने का,* लेह लद्दाखी आवाम विरोध कर रहे है.‌ इसका विरोध करने का कारण भी रहे हैं. *दक्षिण लद्दाख* की जमिन यह, परप्रांतिक उद्योगपती लोग हथवा रहे हैं. *उत्तर लद्दाख* के जमिन पर, चायना ने कब्जा किया है. और वह दोनो जमिन जानवरों की *"चराऊ जमिन"* है. और उस जमिन में, *"मिनरल्स धातु"* होने की बात सामने आयी है. अगर उस जमिन पर उत्खनन होने पर, *"निसर्ग का समतोल बिघडने का खतरा,"* वहां जादा दिखाई दे रहा है. और भविष्य में उस कारण *गंभिर परिणाम* भी हो सकते हैं.‌ महत्वपूर्ण विषय यह कि, नरेंद्र मोदी सरकार ने, उनकी वे मांगे पुरी करने को आश्वस्त किया था.‌ और अब ?????

      *"पर्यावरण बदलाव तथा क्लायमेट चेंज"* यह गंभिर विषय, केवल भारत की समस्या नहीं है, बल्की वह विश्व की समस्या है. उसका बुरा असर केवल *"जीवन खाद्य वस्तुओं"* पर ही ना होकर, *"पिने का पाणी"* पर भी होने वाला है. *"प्रथम महायुध्द / द्वितीय महायुध्द यह तो, जमिन के लिये लढे गये थे. और तिसरा महायुध्द ये पाणी के लिये होने की संभावना है."* अत: हमे *"पर्यावरण बदलाव"* (Climate Change) इस गंभीर विषय को समझना, तथा उसके उपायों पर भी कृतिशील होना, यह बहुत जरुरी हो गया है. एक अनुमान है कि, विश्व के ८०० करोड लोगों के लिये, खाने की समस्या आने वाली है. विश्व में ३०० करोड लोगं, ठिक से भरपेट खाना नहीं खाते.‌ वही ८० करोड लोग भुखे सोते है. अकसर हम देखते है कि, *"पर्यावरण बदलाव से, हमारे फसलों पर (गेहु, चावल, मका, बाजरा आदी) गंभीर प्रभाव होता है."* और हम जानते है कि, *"अर्थशास्त्र नियम"* अनुसार - *"उत्पादन कम‌ हो गया तो, उस वस्तु की किंमत बढ जाती है."* वही खेती करने वाला सामान्य व्यक्ती, यह केवल मौसम पर निर्भर दिखाई देता है. और मौसम की साथ ना मिली तो, वह व्यक्ति आर्थिक खस्ता हो जाता है. अर्थात *"यह मौसम अर्थात वातावरण बदलाव का परिणाम, वहां हो जाता है."* और हमारे फसलों की, निश्चित तापमान पर, पैदावार होती है. इस हालात में भी, अमिर आदमी कभी भुखा नहीं सोता. बल्की गरीब आदमी के घर में तों, चुल्हा जलते हुये नज़र नहीं आता. और *भारत में तो ८० करोड लोगों को, मुफ्त अनाज देने की बातें,* हमारी ये *नरेंद्र मोदी सरकार* कर रही है. अर्थात हमारे देश की आर्थिक - सामाजिक स्थिती ???

       पर्यावरण को देखे तो, ३६५ दिन में से ३१४ दिन यह, *"Extreme Weather"* के होते है. इस एक्स्ट्रीम पर्यावरण में हम, जादा गर्मी / ज्यादा थंडी / ज्यादा बारिस के साथ, Cyclone को भी जोड सकते हैं. विश्व में ५० - ६० करोड बच्चे, ये कुपोषण के शिकार होने का एक बडा अनुमान है. और पर्यावरण बदलाव यह *"भुखे मरणे का कारण"* भी बताया जाता है. विश्व के *"३० समुद्री तटवर्ती बडे शहर, सन २०३० में जलसमाधी"* होने का अनुमान लगाया गया है. और *"मुंबई - चेन्नई"* इन समुद्री तटवर्ती शहर पर, भविष्य में डुबने का खतरा मंडरा रहा है. पर्यावरण बदलाव यह *"पाणी के समस्या"* भी कारण माना जाता है. *जयपुर / इंदौर / ठाणे / बडोदरा / बंगलोर* ये पांच शहर, पाणी समस्या की लिस्ट में *"पहले पांच"* में सामिल है. अमिर आदमी पाणी की बोटल खरिदकर पी जाएगा. प्रश्न तो यहां गरिब आवाम का है. *"हिमालय पर्वत"* के पर्वतीय नदीयों पर, उत्तर भारत के बहुत से प्रदेश के शिवाय, १४० करोड आवाम यह आश्रीत है.‌ *"हिमालय ग्लेशियर"* पिघलने से, बाढ आने का खतरा मंडराता है. लद्दाख की झिले, तालाब भी भर जाते है. और भरने के बाद वो फटने की संभावना बनी होती है. *"बाद में सुखा भी...!"* बर्फ का रंग सफेद होता है. बर्फ पिघलने के बाद, निचे की चट्टाने एक्सपोज होती है. पाणी की बाफ बन जाती है. H2O Gas निकलने की संभावना होती है, जो *"ग्रीन हाऊस गॅस"* कहलाती है. और पाणी ये CO2 को भी सोखता है. लद्दाख में बर्फ पिघलने से, नाजुक स्थिती हुती है. *"जंगल तोड / वृक्ष तोड / जंगली प्राणीयों की कमी होना / पक्षी आदी जीवजंतुओं का खत्म हो जाना,"* यह सभी पर्यावरण बदलाव का कारण है. यह सभी क्रिया तो, बडी चिंता का विषय है. कभी हम *"चिऊ ताई (Sparrow) / बाज - चिल"* यह पक्षी देखा करते थे.‌ आज उन पक्षीयों का अस्तित्व ? प्राचिन काल में *"बडे डायनासोर / बडे कछुए / बडे बिंचु"* हुआ करते थे. परंतु आज ??? हम इन सभी प्रजातीयों को खत्म कर, हमारे बच्चों को किस दुनिया में ले जा रहे है ??? *"पर्यावरण बदलाव के कारण, मुट्टीभर लोग ही बच पायेंगे."* और हम केवल मनोरंजन में / राजनीति में / देव आदी धर्मांधता में ही व्यस्त / मस्त है.

        हमें *"पर्यावरण की रक्षा"* करने के लिये आगे आना है. जंगल तोड - वृक्ष तोड को रोकना है. पशु -  पक्षी - जीवजंतु आदी की बचाना है. *"जनसंख्या नियंत्रण"* की ओर बढना है. क्यौं कि, यही तो घटक *"पर्यावरण बदलाव"* का मुख्य कारण होता है. हमारी सत्ता नीति ने भी, इस गंभीर विषय की ओर, अपना लक्ष केंद्रित करना जरुरी है. *"सिमेंट जंगल शहरों"* पर नियंत्रण लांना, बहुतही जरुरी है. नहीं तो हम, नदी को देखने को भी तरसेंगे. *बाबासाहेब डॉ आंबेडकर* इन्होने सन १९३२ में, *रोहन दादा* इनके माध्यम सें, *"कुटुंब कल्याण नियोजन बिल"* लाने का प्रयास, गुलाम भारत काल में किया था. परंतु हमारे देश के धर्मांधी मानसिकता ने, उस बील का विरोध किया था. हमें *"कुटुंब कल्याण नियोजन कानुन"* को मुर्त रुप देना होगा. *"शिक्षा का मौलिक अधिकार कानुन"* लाकर, सभी वर्ग को, सभी अभ्यासक्रम शिक्षा मुफ्त में देनी होगी. *"खेती का राष्ट्रियकरण - औद्योगीक क्षेत्र का राष्ट्रियकरण - मंदिरों का राष्ट्रियकरणं"* कराकर, भारत की अर्थव्यवस्था मजबुत करनी होगी.  *"भारत देशभक्ती कानुन"* लागु कर, सभी के मन में राष्ट्र प्रेम जगाना होगा. *"भारत भ्रष्टाचार निर्मूलन कानुन"* को बहुत ही कडा कर, भ्रष्टाचार पर नियंत्रण लांना होगा.*"वृक्ष रोपन एवं संवर्धन कानुन"* को लागु करना होगा. इस प्रकार की पहल, हमारे सरकार की ओर से, कडे से लागु होती है तो, हम *"पर्यावरण बदलाव"* पर खास नियंत्रण कर सकते है. जय भीम...!!!


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*डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*

भारत राष्ट्रवाद समर्थक - पर्यावरण प्रेमी

मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२

नागपुर, दिनांक २६ मार्च २०२४

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