✍️ *इंग्रजो की अनैतिक औलाद (?) दिनेश सिंघ, घुटना दिमाग सिख के डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर इन पर विखारी लिखाण का करारा जबाब...!!!*
*डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर १७
राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
एक्स व्हिजिटिंग प्रोफेसर, डॉ. बी.आर. आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ महु, म.प्र.
मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२
*"इंग्रजो की अनैतिक औलाद (?)"* कहना, अर्थात किसी स्त्री द्वारा *इंग्रज व्यक्ति के साथ,* अनैतिक रुप से गैर संबंध बनाकर, उस व्यक्ती के द्वारा बच्चा पैदा करना होता है. और किसी भी समुदायों के स्त्री पर, इस तरह के गंदे आरोप करना, यह नैतिक दृष्टीकोन से उचित भी नहीं है. परंतु एड. दिनेश सिंघ इस घुटना सिख ने, पिछले कही दिनों से, हमारे बडे मार्गदाता *डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर* इन पर, बहुत ही गंदे आरोप लगायें है. और सिख धर्मगुरु यहां खामोश बैठे हुयें है. तो फिर *"सिख समुदायों"* (अस्पृश्य सिख छोडकर) की भारत से गद्दारी, लढाई में हारी हुयी डरपोक कौम, और लढाई में हारने के बाद सिख औरतों का ज्योहार (सती जाना), *और जों स्त्री सती ना गयी हो, उसने इंग्रजो के साथ समागन करना, शायद दिनेश सिंघ उसी अंग्रेजो की अनैतिक औलाद होने की संभावना,* जालियनवाला बाग हत्याकांड में उच्च वर्गीय सिखों द्वारा इंग्रजों को भटकाना... आदी आदी विषयों पर, इसके पहले के मेरे लेख में, मैने स्वयं प्रकाश डाला है. और एड दिनेश सिंघ को उत्तर भी दिया है. फिर भी वो लिखने से बाज नहीं आ रहा है. अभी अभी एड. दिनेश सिंघ ने तो, बहुत अती कर डाला है. अब हम दिनेश सिंघ के लिखाण पर आते है.
इस लेख में दिनेश सिंघ लिखता है कि, *"डॉ आंबेडकर नेहरू और कांग्रेस के पिट्टु थे."* और आगे वो २ सितंबर १९५३ के राज्यसभा का संदर्भ देता है. जब किसी राज्यसभा सदस्य ने कहा था कि, *"Oh, you are the maker of the Constitution."* (अरे ! आप तो संविधान निर्माता है.) इस पर आंबेडकर अपनी मर्जी से सच उकल दिया और कहा कि, *"My answer is I was a Hack. What I was asked to do, I did much against my will. But I am quite prepared to say that I shall be the first person to burn it out."* (मैं संविधान सभा में भाडे का दट्टु हुं. मुझ से जो करने को कहा गया था, मैने अपनी इच्छा के विरूध्द बहुत कुछ किया. लेकीन मैं यह कहने के लिये बिलकुल तैयार हुं कि, मैं इसे जलानेवाला पहला व्यक्ति बनुंगा.) बाबासाहेब आंबेडकर के इस बयाण की समिक्षा करते हुये एड दिनेश सिंघ कहता है कि, *"आंबेडकर ने कहा था की, संविधान सभा में मैं भाडे का टट्टु था - आंबेडकर को जब यह बात पता थी तो, इस आदमी ने यह बात उस समय क्यौं नहीं कही ? और इस आदमी ने देश को क्यौं नहीं बताया कि, इसे भाडा कौन देता था ? इस आदमी ने यह क्यौं नहीं बताया कि, उसे भाडे में कितना पैसा मिलता था ? और ये तो बहुत पढा लिखा आदमी था, ये भाडे का टट्टु बना क्यौं ? इसे क्या लालच था ? और इस आदमी ने, देश को क्यौं नहीं बताया कि, ये भाडा किससे लेता था ? आंबेडकर के बयाण "मैने अपनी इच्छा के विरूध्द बहुत कुछ किया" इस विषय पर, दिनेश सिंघ कहता है कि, "ऐसा कौनसा आदमी था कि, जो आंबेडकर से उनकी ईच्छा के विरुद्ध काम करवा रहा था ? और आंबेडकर को क्या लालच था कि, जो किसी के कहने पर, अपने इच्छा के विरूध्द काम कर रहे थे ? इस लालच के बारे में, आंबेडकर ने देश को क्यौं नहीं बताया ? जब आंबेडकर ने सब कुछ सत्यानाश संविधान पर हस्ताक्षर करके कर दिया...... आंबेडकर के बयाण "अब मैं इस संविधान को जलाऊंगा" इस पर दिनेश सिंघ कहता है कि, "आंबेडकर ने संविधान जलाने के लिये कहा, लेकिन जलाया नहीं अखिल क्यौं...? आंबेडकर को लॉ मिनीस्टर क्यौं बनाया ? चुनाव हारने के बाद भी. सरदार वल्लभभाई पटेल ने कहा था कि, आंबेडकर के लिये संविधान सभा के दरवाजे तो क्या खिडकियां तक बंद कर दी है ? जब घुसने के लिये खिडकीयां और दरवाजे बंद कर ली हो तो, अब सवाल उठता है कि, कांग्रेस ने इस भाडे का टट्टु क्यौं और क्या करवाने के लिये बनाया ???.....!"* अब दिनेश सिंघ द्वारा उठाये गये घुटने मुद्दों को, हम सही उत्तर देने की ओर बढते है.
डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर इनकी टिप्पणी *"My answer is I was a Hack. What I was asked to do, I did much against my will. But I am quite prepared to say that I shall be the first person to burn it."* इस संदर्भ को, वो बिन-अकल घुटना सिख *एड. दिनेश सिंघ* को समझना, यह उसकी औकात के बाहर का विषय है. और वो वकिली करने के लायक भी नहीं है. और दिनेश सिंघ की सदर समिक्षा, किसी भी देशभक्त व्यक्ति को, क्रोध लानेवाला है. बाबासाहेब आंबेडकर साहाब के इस संदर्भ को *"राजकीय तथा व्यंगात्मक दृष्टी"* से लेना जरुरी है. बाबासाहेब आंबेडकर इनके इस कहने का संदर्भ, उनके *"संविधान सभा"* में दिये गये २६ नंवबर १९४९ के भाषण से भी जोड सकते हैं. उस भाषण में बाबासाहेब कुछ बिंदुओं पर प्रकाश डालते है. वे कुछ बिंदु है - *"On 26th January 1950, India will be independent country.(Cheers) What would happen to her Independence ? Will she maintain her Independence or will she lose it again ?......... Will history repeat itself ? It is this thought which fills me with anxiety......... If we wish to maintain democracy not merely in form, but also in fact, what must we do ? ........... The third thing we must do is not to be content with mere political democracy. We must make our political democracy a social democracy as well. Political democracy cannot last unless there lies at the base of it Social democracy. What does Social Democracy mean ?........ On 26th January 1950, we are going to enter into life of contradiction. In politics we will have equality and in social and economic life we will have inequality.......... Independence is no doubt a matter of joy. But let us not forget that this independence has thrown on us great responsibilities......... If we wish to preserve the constitution in which we have sought to enshrine the principle of Government of the people, for the people, and by the people......."* और ऐसे बहुत से बिंदु है, जो बाबासाहेब आंबेडकर साहाब के बडी विद्वत्ता तथा देशभक्ती का परिचय कराती है. डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर इनकी टिप्पणी *"My answer is I was a Hack. What I was asked to do, I did much against my will. But I am quite prepared to say that I shall be the first person to burn it."* इस संदर्भ को, वो बिन-अकल घुटना सिख *एड. दिनेश सिंघ* को समझना, यह उसकी औकात के बाहर का विषय है. और वो वकिली करने के लायक भी नहीं है. और दिनेश सिंघ की सदर समिक्षा, किसी भी देशभक्त व्यक्ति को, क्रोध लानेवाला है. बाबासाहेब आंबेडकर साहाब के इस संदर्भ को *"राजकीय तथा व्यंगात्मक दृष्टी"* से लेना जरुरी है. बाबासाहेब आंबेडकर इनके इस कहने का संदर्भ, उनके *"संविधान सभा"* में दिये गये २६ नंवबर १९४९ के भाषण से भी जोड सकते हैं. उस भाषण में बाबासाहेब कुछ बिंदुओं पर प्रकाश डालते है. वे कुछ बिंदु है - *"On 26th January 1950, India will be independent country.(Cheers) What would happen to her Independence ? Will she maintain her Independence or will she lose it again ?......... Will history repeat itself ? It is this thought which fills me with anxiety......... If we wish to maintain democracy not merely in form, but also in fact, what must we do ? ........... The third thing we must do is not to be content with mere political democracy. We must make our political democracy a social democracy as well. Political democracy cannot last unless there lies at the base of it Social democracy. What does Social Democracy mean ?........ On 26th January 1950, we are going to enter into life of contradiction. In politics we will have equality and in social and economic life we will have inequality.......... Independence is no doubt a matter of joy. But let us not forget that this independence has thrown on us great responsibilities......... If we wish to preserve the constitution in which we have sought to enshrine the principle of Government of the people, for the people, and by the people......."* और ऐसे बहुत से बिंदु है, जो बाबासाहेब आंबेडकर साहाब के बडी विद्वत्ता तथा देशभक्ती का परिचय कराती है. बाबासाहेब आंबेडकर इन्होने कांग्रेसी नायक मोहनदास गांधी को कहा था कि, *"Mr. Gandhi, I have no mother land."* (मि. गांधी, मुझे मेरी मातृभुमी नहीं है) बाबासाहेब आंबेडकर इनके, इस राजकीय तथा व्यंगात्मक अर्थ को हम ने कैसे लेना है ? यह प्रश्न भी है. वही भारत देशभक्ती पर, बाबासाहेब आंबेडकर कहते हैं कि, *"भाषा, प्रांतवाद, संस्कृति, आदी भेदनीति को मैं नहीं मानता. पहले हिंदी, बाद में हिंदु या मुसलमान यह विचार भी मुझे मान्य नहीं है. सभी लोगों ने पहले भारतीय, अंततः भारतीय और भारतीय के अलावा कुछ नहीं, यही मेरी भावना है."* (मुंबई, १ अप्रैल १९३८) और ऐसे बहुत सारे बाबासाहेब आंबेडकर के कथन और कर्तृत्व रहे है, जो दिनेश सिंह के, घुटना औकात के बाहर के विषय है.
अब हम दिनेश सिंघ को ही, उसके मां के समागम संदर्भ में, या उसके पैदा होने के संदर्भ में, कुछ अनैतिक प्रश्न पुछ रहा हुं. और दिनेश सिंघ इसका सही सही उत्तर दे. नैतिक दृष्टीकोन से इस तरह के अनैतिक प्रश्न करना, किसी भी स्त्री वर्ग के चारित्र्य का हनन है. और ऐसी बातें लिखना भी उचित नहीं है. परंतु दिनेश सिंघ अपनी आदतों से बाज ना आने के कारण, और हमारे मार्गदाता बाबासाहेब आंबेडकर इनका चारित्र्य हनन करने के कारण, उसे कडवे डोज पिलाना बहुत जरुरी हो गया है. *"सिख समुदायों का इतिहास गद्दारी और हारने का रहा है."* और उनकी सिख स्त्री वर्ग ने, ज्योहार (सति जाना) को स्वीकार किया था. और जो सिख स्त्री ज्योहार को प्राप्त नहीं हुयी थी, वह कैसे जीवित रही है ? यह प्रश्न है. क्या वह सिख स्त्री अंग्रेजो के साथ समागम में रही है ? क्या उच्च वर्गीय सिखों (मागास वर्ग सिख छोडकर) का जन्मदाता अंग्रेज या मुस्लिम शासक है ? दिनेश सिंघ ने क्या अपनी मां से यह पुछा था कि, वो किस प्रकार के समागम (मौखिक समागम, गुद समागम, गुप्तांग समागम आदी...) से पैदा हुआ है ? *बामणी ग्रंथ में मुह़ं से, बाहु सें, पैर से व्यक्ति के पैदा होने का संदर्भ है."* क्या दिनेश सिंघ ने क्या अपनी मां से पुछा था कि, वो किस भाग से पैदा हुआ है ? सबसे पहले दिनेश सिंघ को यह समझना होगा कि, *"वह बडे व्यक्ति के लिखाण को या कर्तृत्व की समिक्षा करने के योग्य है या नहीं ?"* अंत में, मैं स्त्री वर्ग से माफी मांग कर, अपने लिखाण को पुर्ण विराम देता हुं.
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नागपुर, दिनांक १२ मार्च २०२४
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