Sunday, 6 August 2023

 ✍️ *नामचीन लोकगायक गदर का जाना बडा ही खेदपुर्ण...!*

    *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईटस् प्रोटेक्शन सेल (सी.आर.पी.सी.)

मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२


    वो ३० - ३५ साल पहले की बात रही है. वह हमारा विद्यार्थी काल रहा था. आंध्र के वो नामचिन कार्यकर्ता, *'गदर'* उर्फ गुम्मडी विठ्ठल राव नागपुर भी आये थे. *वे विद्रोही कवि तथा लोकगायक भी रहे थे.* हात में *"डफली लेकर की फोटो,"* आज भी बहुत याद आ गयी. तथा *भुतकाल और वर्तमान की यादें, कभी भी भुलायी नही जाती.* अचानक उनका ६ अगस्त २०२३ को, दुनिया को छोड चले जाना, मेरा मन बडा सुन्न कर गया. वैसे मानव यह भावनिक प्राणी है. भले ही हमारा माओवादी मुव्हमेंट से, कोई भी संबंध ना रहा हो, *"मानवता भी कोई एक चीज होती है."* गदर जी का व्यक्तित्व बहुत प्रभावी और अलग था. आगे जाकर उन्होने, कुछ कारणवश माओवादी मुव्हमेंट से दुर होना ही लाजमी समझा और वे भारत लोकतंत्र के मुख्य प्रवाह में सामिल हुये. जो हम वह, लोकतंत्र की बडी जीत भी कह सकते है.

     *गदर* का माओवादी मुव्हमेंट रहने के‌ कारण, वे चुनावी मतदान‌ से दुर रहे भी हो, परंतु सन २०१८ के चुनाव में, उन्होने पहली बार‌ मतदान किया था. *"माओवाद"* यह शब्द, जब भी हम सुनते है, तब *"बंदुक की धार"* यह रिस्ता, चर्चा में रहता है. हिंसा की यादे दिखाई देती है. *"भारत का संविधान"* इसकी इजाजत नही देता. हमारा संविधान जहां *"व्यक्ति स्वातंत्र"* देता है, वही व्यक्ति के *"अति पण"* को, वो रोकता भी है. गदर का *"भारत के मुलधारा आना ही,* इसी बात को इंगित करता है. अभी अभी २ जुलै‌ के आंध्र के खम्मम के *"कांग्रेस के मेला"* में, *गदर* का होना भी, वो लोकतंत्र की याद दिलाता है. *राहुल गांधी* ने, उस मेला को संबोधित भी किया था.

    सन १९९० का वो काल था. *गदर* पर हुये, वो *"कातीलाना हमला"* बडा चर्चा में रहा. और उस हमले में, एक गोली उनके पिठ से कभी निकली ही नही. अभी अभी हृदय पिडा के कारण, उन पर *"बायपास सर्जरी"* की गयी थी. तथा‌ गुर्दे / मुत्राशय के त्रास के कारण, उन पर इलाज चल रहा था. अचानक उनके चले जाने से, *"गदर के सामाजिक कामों की यादें,"* हमेशा याद रहेगी. मेरे ओर से तथा मेरे संघटन की ओर से, *गदर* को हमारी भावपुर्ण आदरांजली...!


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नागपुर, दिनांक ७ अगस्त २०२३

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