Sunday, 2 July 2023

 🇮🇳 *नरेंद्र मोदी की सामाजिक, आर्थिक - विदेश नीति : भ्रम और वास्तव...!*

  *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल (सी. आर.‌ पी.‌ सी.)

   मो.न.‌ ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२


     भारत की वित्तमंत्री *निर्मला सितारमण नरेंद्र मोदी सरकार* का, *"वित्त (आर्थिक) बजेट"* पेश‌ करती रही है. और सन २०२२ के आर्थिक बजेट में, *"क्रिप्टो (आभासी) करंसी"* पर रोक लगने के बदले, सरकार ने उस पर *"टैक्स लगाकर"* उसे एक प्रकार से, मान्यता दी है. इस क्रिप्टो करंसी के कारण,  ही *"भारत की अर्थव्यवस्था"*  पर, गंभिर दुष्परीणाम होते आया है. भारत का रुपया यह दिनो दिन गिरता आया है. और क्रिप्टो करंसी का वापर, आम आदमी कभी नही करता. *"क्रिप्टो (आभासी) करंसी यह पुंजीवादी व्यवस्था का प्रतिक है."*‌ दुसरी बात यह है कि, रिझर्व बैंक के *"डिजिटल करंसी"* से कारण, आम आदमी को कितना लाभ होगा ? यह प्रश्न है. भारत की *"जन आबादी"* में, विश्व का *"नंबर वन देश"* बन गया है. *"गरिबी / भुखमरी / बेरोजगारी"* यह भारत की, बडी समस्या रही है. वही अमिर वर्ग (पुंजीपती) का *"कार्पोरेट टैक्स"* को, १८% से घटाकर १५% किया गया. वही मध्यम वर्ग के लिए, *"इंकम टैक्स"* में, कोई विशेष प्रावधान दिखाई नही दिये है.‌ यही नहीं, मध्यम वर्ग की *"बैंक में जमा सेव्हिंग राशी"* पर, *"व्याज दर"* घटा दिया गया है. जब कि, *"पुंजीवादीयों"* का व्यवहार यह *"करंट अकाउंट"* से होता है. सरकार का *"तेल की किंमत"* पर, अंकुश नही रहा.  तो फिर *"मंहगाई पर रोक लाना,"* क्या भारत सरकार के बस में है ? यह अहं प्रश्न‌ है.

    नरेंद्र मोदी सरकार ने, *"आय. ए.‌ एस. कैडर पध्दती"* में बदलाव करते हुये, बिना परीक्षा दिये, *"पुंजीवादी प्रतिनिधी"* को सीधे *"सचिव"* पद पर बिठाकर, *"पुंजीवाद व्यवस्था"* दरवाजे खुले किये है. *"पुंजीवादी वर्ग"* द्वारा लिये *"करोंडो रूपयों का कर्ज"* को, पुरी तरह माफी दी गयी है. जब कि, गरिब / मध्यम वर्गीय आवाम, बैंक कर्ज में पिसते आया है.‌ वही कुछ पुंजीपती, बैंक से कर्ज लेकर, *विदेश‌ भागे* जा रहे है. यहा प्रश्न है कि, *"उन डुबित कर्ज की भरपाई,"* भारत सरकार *"किस सें / कहां से"* करती है ? सरकारी संस्थाओं का *"खाजगीकरण"* करने का काम, मोदी सरकार ने जोर शोर से किया है.‌ वही केंद्र सरकार नें, *"कामगारों के ४४ कानुनों को बरखा्स्त कर, केवल ४ नये कामगार कानुन"* लाये है.‌ और कहा जाता है कि, वह ४ नये कानुन पूंजीवाद के सहाय्यक है. वही तत्कालिन प्रधानमन्त्री *इंदिरा गांधी* इन्होने सन १९६९ में, *"१४ खाजगी बैंको का राष्ट्रीयकरण"* कराकर, भारत की अर्थव्यवस्था को मजबुती प्रदान की थी. खेती / मध्यम उद्दोग / लघु उद्दोंगों‌ को चालना दी थी. जब कि, *नरेंद्र मोदी सरकार* उससे विपरीत दिशा में, वो काम कर रहा है.‌ *"पुंजीपती व्यवस्था"* का सशक्त *"मजबुतीकरण"* कर रहा है.

        विश्व के *"बैलंस शीट"* का अभ्यास करनेवाली *"मैकंझी एंड कंपनी"* इस द्वारा, प्रकाशीत अपने अहवाल में, *"पिछले बीस सालों में, विश्व की संपत्ति में, तिस गुणा बढोत्तरी हुयी है.‌ और उस बढोत्तरी में, एक तृतीयांश‌ (३३%) सहभाग ये केवल चायना का है.‌ इसके साथ ही चायना के संपत्ति में, १६% बढोत्तरी हुयी है."* विश्व का महाकाय देश‌ *अमेरिका* (२०२० में कुल संपत्ति ९० ट्रिलियन डालर) पिछाडी पर आया है. चायना सबसे अमिर देश बन गया है. विश्व की आर्थिक संपत्ति *५१४ ट्रिलियन डालर*  हुयी है. और *चायना* की आर्थिक संपत्ति *"१२० ट्रिलियन डालर"* बतायी गयी है. जब की भारत की कुल संपत्ति (२०१९) यह *१२.०६ ट्रिलियन डालर* बतायी गयी. बाद में, भारत ने संपत्ति जाहिर ही नही की है.‌ भारत का नाम *"भुख निर्देशांक एवं कुपोषण में, विश्व के १२१ देशों में, १०७ वे स्थान पर है."* जब हम *"GDP Growth Rate"* ( सकल घरेलु उत्पाद विकास दर) पर चर्चा करते है, तब भारत का विकास दर *"८.७%"* है. जब की अन्य देश - अमेरिका (५.९) / चायना (८.१) / जापान (१.७) / श्रीलंका (३.३) / थायलंड (१.५) / सिंगापुर (७.६) / रशिया (४.७) दिखाई देता है. भारत का *"बेरोजगारी / इंटरनेट युजर दर"* भी, बहुत ही विचार करनेवाला है.

     अब हम नरेंद्र मोदी सरकार के *"विदेश नीति"* पर भी, हम चर्चा करेंगे. नरेंद्र मोदी द्वारा पिछले ९ साल के *"विदेश भ्रमण"* से, *"भारत का आऊट पुट / डील"* को भी हमे देखना होगा. और उस विदेश भ्रमण पर, *"विमान खर्च / सुरक्षा खर्च"* को भी जोडना होगा. तब ही हम *"आऊट पुट / डिल का मुल्यांकन"* कर सकते है. उस विदेशी डील से, भारत का कितना फायदा / कितना घाटा हुआ है, यह मुल्यांकन तब ही हम कर सकते है, अन्यथा बिलकुल नही...! अभी अभी‌ हुआ प्रधानमन्त्री *नरेंद्र मोदी* इनका *"अमेरिका दौरा,"* यह बहुत ही चर्चा का विषय रहा है. अमेरिका के भुतपुर्व अध्यक्ष *बराक ओबामा* इनसे लेकर, एक महिला पत्रकार ने नरेंद्र मोदी को पुछे प्रश्न ने, अमेरीका दौरा भी बहुत विवादपुर्ण रहा है. और उस *"दौरे का फलित,"* हमे जल्द ही दिखाई देगा. अब हम भारत के पहिले प्रधानमंत्री *जवाहरलाल नेहरू* तथा पहिले कानुन मंत्री / समाजविद / अर्थविद *डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर* इनकी आर्थिक - विदेश‌ नीति पर, संक्षिप्त चर्चा करेंगे.

     स्वतंत्र भारत के पहिले प्रधानमंत्री *पंडित जवाहरलाल नेहरु* इनके *"समाजवाद"* की तुलना *"फैबियन समाजवाद"* से की जाती है. और वह विचार *कार्ल मार्क्स* के क्रांतीकारी सिध्दांतो को नकारता रहा है. नेहरु का सिध्दांत उदार दृष्टिकोणवादी बताया जाता है.‌ नेहरु ने *"सुरक्षा मामलें"* को, *"औद्दोगीकरण / आत्मनिर्भरता के साधन"* के रुप में नही देखा. *"लोगों की खपत"* की जरुरतों के लिए, *"प्रॉडक्शन बास्केट"* को समायोजित करना ही, यह दोहरा उद्देश प्राप्त करना, बताया जाता है. जवाहरलाल नेहरू ने, *"डिसकव्हरी ऑफ इंडिया"* इस अपने ग्रंथ में कहा कि, *"हम ना तो साम्राज्यवादी शक्ती के शिकार होना चाहते है, और ना ही ऐसी प्रवृत्तियों को विकसित करना चाहते है."* जवाहरलाल नेहरू ने *"आर्थिक सुधार नीति"* के रुप में, *"योजना आयोग"* को स्थापित करना, यह विशेष योगदान देने की, बातें कही जाती हैं. ८ दिसंबर १९५१ में, नेहरु ने ही *"पंचवर्षीय योजना"* की शुरुवात की थी.

      अब हम जवाहरलाल नेहरू की *"विदेश नीति"* पर चर्चा करते है. नेहरु के *"विदेश नीति"* पर कहां जाएं तो, *"विश्व शांती को बनाए रखना, युध्द की संभावनाएं को खत्म करना, विवादों की मध्यस्थता करना, जातिभेद - रंगभेद - साम्राज्यवाद का विरोध करना, असलग्न नीतिओं को बनाए रखना, राष्ट्रिय हितों की रक्षा करना, अंतरराष्ट्रीय मामलों में भारत का स्वतंत्र दृष्टिकोण अभिव्यक्त करना"* बताया जाता है. वह काल विनाशकारी ऐसे *"द्वितिय महायुध्द"* का काल रहा था. और *"अंतरिम सरकार"* की स्थापना के कुछ समय पश्चात, ७ दिसंबर १९४६ को *आकाशवाणी* में प्रसारित *" प्रथम घोषणा"* में, नेहरु ने कहा कि, *"हम अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में, एक स्वतंत्र राष्ट्र के अपनी मौलिक नीति के रुप में सहभागी होंगे. अन्य राष्ट्र के उपग्रह के रुप में कभी नही. हमारा विचार यथासंभव गुटों की सत्ता की राजनीति से, अलग रहना है. एक दुसरे के विरूध्द संघटीत इन गुटों ने, अतित में भी विश्व युध्द करवाये है. और भविष्य में भी, ये संसार को विनाश की ओर ले जा सकते है."* वही हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री *नरेंद्र मोदी "* इन सभी विचारों से, बहुत कोसों दुर नज़र आते है. नरेंद्र मोदी तो *" पुंजीवाद / साम्राज्यवाद"* के समर्थक दिखाई देते है. पंडित नेहरु *"साम्राज्यवाद / उपनिवेशवाद / फासीवाद"* के घोर विरोधी थे. महत्वपूर्ण विषय यह रहा है कि, भारत आजादी के बाद, भारत की विदेश नीति यह दो मुख्य विचारधाराओं पर निर्भर थी. पहला - *"अमेरिका की पुंजीवादी गुट"* और दुसरा - *"सोव्हियत संघ का साम्यवादी गुट."* अत: दोनो नीति से दुर रहकर, अपनी स्वयं की *"विदेश नीति"* बनाना, यह तो बडा एक आवाहन था. और *"कठिण संघर्ष के बाद प्राप्त संप्रभुता को बनाये रखना, क्षेत्रीय अखंडता को बनायें रखना, तेज रफ्तार सें आर्थिक विकास करना"* यह ही प्रमुख उद्देश हमारे सामने थे.

     जवाहरलाल नेहरू इन्होने अंतरराष्ट्रीय विदेश नीति में, *"पंचशील"* के सिध्दांत का प्रतिपादन किया. इस कारणवश नेहरू को *"आदर्शवादी"* कहा गया. परंतु *"तिब्बत के प्रश्न"* पर, चायना को वह हवाले करना, यह नेहरु की बडी भुल थी. जिस की आलोचना *डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर* इन्होने की थी. और उसका असर सन १९६२ के *"भारत - चायना युध्द"* में दिखाई दिया. परंतु वह युध्द चायना द्वारा छेडा गया. और चायना द्वारा, किसी भी बातचित के बिना वो रोका भी गया. कहा जाता है कि, वह युध्द *"एक बौध्द लामा"* के लिए छेडा गया. *"जो लामा ४०० साल का होकर भी, ४० साल का दिखाई देता था."* और चायना का सर्वेसर्वा *माओ त्से तुंग* बहुत साल तक, चायना पर राज करना चाहता था. यह बात इसके पहले लिखे गये, मेरे एक लेख में आया है.

     भारत में *"साम्राज्यवाद"* की वकालत करनेवाले कुछ हमारे विचारविदों की, *डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर* इन्होने आलोचना करते हुयें, *"ईस्ट इंडिया कंपनी का प्रशासन और वित्तीय प्रबंध"* इस अपने प्रबंध में, तथ्यो और आकडों के आधार पर, यह साबित किया है कि, *"ब्रिटिश शासन भारत की जनता की बर्बादी और गरिबी का वाहक है. इसकी सारी नीति भारत की धन-संपदा बाहर ले जानेवाली रही है. भारत के औद्दोगिक ढाचें को बरबाद करना, और इसे ब्रिटन को कच्चे सामुग्री देनेवाला देश बनाना, यह उनका लक्ष रहा है......!"* सन १९२५ में, डॉ बाबासाहेब आंबेडकर इन्होने *"ब्रिटिश भारत में प्रांतिय वित्त व्यवस्था का विकास"*  इस अपने पुस्तक में, केंद्र और प्रांतो के १८३३ से १९२१ तक के आर्थिक रिस्तों की समिक्षा में लिखा कि, *"आधुनिक भारत की वित्तीय प्रबंधन व्यवस्था, टैक्स के सिध्दांत, प्रांतिय राजस्व की समस्या और केंद्र - राज्य के अधिकार और रिस्ते, यह महत्वपूर्ण कार्य है. ब्रिटिश शासन की टेक्स प्रणाली, सिर्फ किसान और गरिबों पर, राजस्व का भार डालती है. और जनकल्याण के बजाए, जमिनदारों और संभ्रांत तब की जीवन शैली और ब्रिटिश शासन को पोषित करने के लिए निर्मित है....!"* सन १९२३ में डॉ. आंबेडकर इन्होने लिखी, *"रुपयों की समस्या - उद्भव और समाधान"* इस अपने ग्रंथ में, १९ वे शताब्दी से *"भारतीय मुद्रा प्रणाली"* के विकास का विवेचन और  किस प्रकार भारतीय मुद्रा प्रणाली की उपयुक्तता है. इसका सुझाव दिया है. *"रिझर्व बैंक आफ इंडिया"* के स्थापना की  निव भी, इस ग्रंथ से जुडी है. डॉ. आंबेडकर इन्होने *"भारत में कृषी निवेश पुंजी"* की आवश्यकता भी बतायी है. क्यौं कि, ब्रिटिश राज में यह पुंजी निवेश पुरा गिर गया था. भारत आजादी के बाद, सत्तर के दशक में *"कृषी पुंजी निवेश"* को प्रोत्साहन दिया गया.‌ जिसका नतिजा *"हरित क्रांति"* के रुप में दिखाई दिया.

      *"प्रच्छन्न बेरोज़गारी सिध्दांत"* भी डॉ.‌ बाबासाहेब आंबेडकर इन्होने चिन्हित किया था. और तिन दशक के बाद, नोबेल प्राईज विजेता अर्थशास्त्री - *आर्थर लुईस* ने इसे प्रसारीत किया. डॉ बाबासाहेब आंबेडकर इसका समा़धान देते हुये स्पष्ट कहते है कि, *"औद्दोगिकरण. (Industrialisation). औद्योगीकरण ही कृषी में लगी अतिरिक्त श्रमिक आबादी को, रोजगार दे सकता है. और गरिबी से निकलने में सहाय्यक हो सकता है."* बाबासाहेब आंबेडकर इनके *"आर्थिक क्षेत्र"* के योगदान को, *"दों भागों"* में बाटा जा सकता है. पहला - *अकादमिक* स्तर पर और दुसरा - *प्रशासक* स्तर पर.‌ डॉ आंबेडकर साहाब उन्होने *"दामोधर - हिराकुंड"* जैसे नदी परियोजना बनानें में, महत्वपुर्ण योगदान दिया है. डॉ बाबासाहेब आंबेडकर इनके *"विदेश नीति"* के बारें में कहा जाएं तो, *"उन्होने भारत - चायना के बफर झोन के रुप में, तिब्बत देश के रणनीतिक मुल्यों और भारत सुरक्षा और तिब्बत के स्वतंत्रता के बिच घनिष्ठ संबंध पर जोर दिया था."* परंतु जवाहरलाल नेहरु इन्होने, चायना को तिब्बत (ल्हासा - तिब्बत की राजधानी) पर, नियंत्रण करने की अपनी अनुमती देकर, प्रधानमन्त्री नेहरु ने चायना को मदत ही की है. आज हम देख रहे है कि, चायना - भारत सीमा पर तनाव‌ जारी है. *नरेंद्र मोदी राज* में, भारत की अर्थव्यवस्था  *"खस्ताहाल"* की ओर बढती जा रही है. कल भारत में, *"पाकिस्तान - श्रीलंका"* के समान हालात ना हो...! इसी आशा के साथ...!!!!


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* *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल‌ (सी. आर.‌ पी.‌ सी.)

मो. न.‌ ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२

नागपुर, दिनांक २ जुलै २०२३

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