👌 *HWPL (H.Q.: Korea) इस विश्व स्तरीय आंतरराष्ट्रिय संघटन की ओर से, १२ मार्च २०२२ को झुम पर आयोजित, "आंतरधर्मीय परिसंवाद" कार्यक्रम...!*
* *डा. मिलिन्द जीवने,* अध्यक्ष - अश्वघोष बुध्दीस्ट फाऊंडेशन, नागपुर *(बुध्दीस्ट एक्सपर्ट / फालोवर)* इन्होंने वहां पुछें दो प्रश्नों पर, इस प्रकार उत्तर दिये...!!!
* प्रश्न - १ : *प्रत्येक धार्मिक ग्रंथ में, दर्ज लोगों में से, कृपया किसी ऐसे व्यक्ती / अस्तित्व का परिचय दे. जिनका आप के संबधित शास्त्र में से, धार्मिक लोगों को पता होना चाहिये.*
* *उत्तर* : बुध्द के धर्मग्रंथ में, ऐसे बहोत सारे व्यक्तीयों का, और उनके द्वारा किये गये बडे योगदान का, हमें उल्लेख मिलता है. उन सभी के सभी बडे मान्यवरों मे से, मै आज यहां *"अनाथपिंडिक"* इनके बारे में, आप को बताना चाहुंगा.
अनाथपिंडिक इनका असली नाम *"सुदत्त"* था. वह बडा दानप्रिय, गरिबों को मदत करनेवाला होने के कारण, लोगों ने उसे वह उपाधी दी. वह कोसल जनपद में, (आज का उत्तर प्रदेश) श्रावस्ती में रहता था. कोसल नरेश - राजा प्रसेनजीत का, वो कोषाध्यक्ष था.
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एक दिन *सुदत्त* अपने बहन को मिलने के लिए, *"राजगृह"* आया था. वहां उनके बहन के पती / श्रेष्ठी, किसी भिक्खु के भोजन के कामों मे बडे ही व्यस्त थे. और वहां की तयारी किसी विवाह समारंभ जैसी / किसी राजा को, निमंत्रण देने के समान दिखाई दी. और वो वस्तुस्थिति देखने के बाद, सुदत्त बुध्द को मिलने चला गया.
तथागत, अनाथपिंडिक के अंत: मन का भाव समज गये. और उसे बैठने को कहकर, उसको पुछा कि, *"सुदत्त, बोलो तुम्हे क्या पुछना है."*
अनाथपिंडिक ने पुछा, *"भगवान, मै आप का उपदेश सुनने आया हुं."*
तब बुध्द ने अपना उपदेश सुनाना सुरु किया. और कहा कि, *"कौन हमारा जीवन बनाता है ? कोई ईश्वर है क्या ? कोई सृष्टिकर्ता / निर्माणकर्ता है क्या ?"* इस विषय पर बुध्द ने उपदेश सुरु किया.
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बुध्द आगे कहने लगे, "अगर ईश्वर यह निर्माणकर्ता हो तो, सभी प्राणीमात्राओं ने उसके अधिन रहकर, उसके साथ ही चलना चाहिये. अगर ईश्वर ने सृष्टी का निर्माण किया हो तो, दु:ख / आपत्तीयां / पाप इसकी रचना क्यौं की है ? सभी अच्छाई और बुराई भी, क्या उसने ही निर्माण की है, यह हमने कहना चाहिये ? अगर दु:ख एवं पाप इस का स्त्रोत ईश्वर ना हो तो, उसका दुसरा कोई कारण भी मानना होगा. अत: ईश्वर सर्व - शक्तिमान है, इस कल्पना का मुल रुप ही खतम हो जाता है."
आगे बुध्द कहते है, *"ये ब्रम्हा भी, सृष्टी का निर्माणकर्ता नही है...!"* जैसे की, बीज से झाड का निर्माण होता है, उस प्रकार ही, सभी वस्तुओं की उत्पत्ती हुयी है. अगर ये ब्रम्हा, सर्वव्यापी हो तो, वो निर्माता कभी नही हो सकता. वही बात *"आत्मा"* की भी है. प्रश्न यह है कि, निर्माण की गयी सभी वस्तुएं, सुखकर क्यौ नही बनायी गयी ? सुख एवं दु:ख यह वास्तव सत्य है. और उसका बाह्य अस्तित्व है. "
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बुध्द कहते है, "सभी के सभी वस्तुओं का निर्माण, यह कोई ना कोई कारण से होता है. ये समस्त विश्व का निर्माण, *"कार्यकारण भाव सिध्दांत अर्थात प्रतित्यसमुत्पाद नियम"* पर आश्रित है. जैसे कि, कोई वस्तु यह स्वर्ण से बनी हो तो, वे वस्तु आदी से अंत तक केवल स्वर्ण की ही होती है. अन्य धातु की नही.
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अनाथपिंडिक फिर बुध्द से, *"परिव्रज्या एवं गृहस्थ जीवन* पर, उपदेश सुनना चाहता है. और कहता है कि, *"मेरे पास अमाप संपत्ती, अच्छा घर एवं व्यापार भी है. क्या मैने उसे छोडना चाहिये ?"*
बुध्द फिर सुदत्त को कहते है, "जो व्यक्ती 'अष्टांग मार्ग' का पालन करता है, उसके धार्मिक जीवन में आनंद होता है. जो व्यक्ती संपत्ती को चिपक कर रहता है, जहर के समान उसे मन में भर देता है, तो उसका त्याग करना, कभी भी अच्छा है. परंतु जो व्यक्ती संपत्ती को चिपक कर नही रहता हो, और उसका अच्छा उपयोग करता हो तो, वह अपने सभी बंधुजनों के लिए, वरदान हो जाता है."
बुध्द आगे कहते है, *"इस लिये सुदत्त, तुम्हे गृहस्थ जीवन में ही रहना है. तुम्हारा जो व्यापार है, उसे आगे जारी करते हुये अप्रमादी रहना है. जीवन, संपत्ती एवं सत्ता यह व्यक्ती को गुलाम नही करती. बल्की गुलाम करती है, जीवन, ऐश्वर्य एवं अधिकार इसके प्रती आसक्ति."*
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बुध्द का यह उपदेश सुनकर, *अनाथपिंडिक* को अनुभुती हो जाती है की, बुध्द ने केवल सत्य का दर्शन कराया है. और बुध्द के प्रती, उसकी आस्था और बढ जाती है. और वो बुध्द के शरण जाकर, वो *"उपासक"* की दीक्षा लेता है.
बुध्दं सरणं गच्छामी
धम्मं सरणं गच्छामी
संघं सरणं गच्छामी !!!
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* प्रश्न - २ : *वर्तमान समय में रहनेवाले धार्मिक लोगों लिए, उस व्यक्ती / अस्तित्व का अर्थ या महत्व है ?*
* *उत्तर* : बौध्द धर्म के इतिहास में, *"अनाथपिंडिक"* - सुदत्त इनका स्थान, सर्वोतम उपासक के रुप में लिया जाता है. उनके दानशीलता के लिए, किसी भी शब्दकोष में, कोई शब्द नही है. अत: मै अनाथपिंडिक के दानशीलता के बारे में, आप को बताना चाहुंगा.
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अनाथपिंडिक ने, तथागत से उपासक की दीक्षा लेने के बाद, एक दिन वो बुध्द को मिलने चला गया. और आसनस्थ होने के बाद, बुध्द को कहने लगा कि, *"तथागत, मै कोसल राजा प्रसेनजीत का कोषाध्यक्ष हुं. श्रावस्ती में रहता हुं. और वहा एक विहार बांधकर, आप को दान में देने की, मेरी ईच्छा है. अत: आप श्रावस्ती आकर, मेरे उस दान का स्विकार करे."*
बुध्द ने सुदत्त के उस विनंती का स्विकार किया. बाद में सुदत्त अपने शहर निकल पडा.
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निराधरों का मित्र, अनाथों का आश्रयदाता, जब वह अपने शहर की ओर जा रहा था, तब उसका लक्ष *"कोसल राजकुमार जेत"* के, हरे वृक्षों से फुले हुये, जल प्रवाहों से परिपुर्ण उस उद्दान की ओर गया. और सुदत्त ने उस जगह *"बुध्द के विहार"* बांधने का निश्चय लिया. अत: सुदत्त वो उद्दान को खरिदने के लिए, राजकुमार जेत के पास चला गया. और राजकुमार से वह उद्दान खरीदने की, उसने ईच्छा प्रकट की.
राजकुमार जेत ने, वह उद्दान बेचने सें सुदत्त को मनाई की.
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अनाथपिंडिक सुदत्त किसी भी हालात में, वह उद्दान खरीदने का मन बना चुका था. अत: उसने राजकुमार जेत से, मुह मांगी किंमत देने की भी ईच्छा जाहिर की.
राजकुमार जेत ने, वह पिछा छुडाने के लिए कह दिया कि, *"तुम उस जमीन पर, जहां तक सुवर्णमुद्रा (काषार्पण) बिछा लोंगे, उतनी जमीन तुम्हारी होंगी."*
अनाथपिंडिक उसके लिए भी तयार हो गया.
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फिर *राजकुमार जेत,* अब पिछे हट गया. और सुदत्त को कहने लगा की, उसे वह उद्दान बेचना ही नहीं है.
तब सुदत्त ने राजकुमार जेत से कहा कि, *"आप ने सौदा तय किया है. अब आप पिछे हट नही सकते. अब आप को, वह उद्दान बेचना ही पडेगा."*
इस तरह राजकुमार जेत से, सुदत्त ने उस उद्दान का सौदा पक्का किया.
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राजकुमार जेत एवं सुदत्त के इस विशेष सौदे की, बडी चर्चा लोगों में होने लगी. तथा अनाथपिंडिक के रईसपन, ईमानदारी, दानशीलता की भी चर्चा, राजकुमार जेत के पास चले गयी. जब राजकुमार जेत को पता चला कि, सुदत्त ने यह सब बुध्द के लिए विहार बांधने लिए किया है. वह चकित हो गया.
अत: राजकुमार जेत ने भी, फिर सुदत्त से कहा कि, *"जमिन आप की होगी. और वृक्ष मेरे होंगे. मै भी बुध्द को, वृक्ष दान करना चाहता हुं."*
अनाथपिंडिक सुदत्त ने, राजकुमार जेत के इस अट का सहर्ष स्विकार कर, उस उद्दान का नामकरण *"जेतवनाराम या जेतवन"* रख दिया. जो आज भी श्रावस्ती में, हम देख सकते है.
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श्रावस्ती में जब उस *"जेतवनाराम विहार"* का निर्माण पुर्ण हुआ, तब अनाथपिंडिक ने, बुध्द को आने का निमंत्रण भेजा. बुध्द उस दान का स्विकार करने के लिए, कपिलवस्तु से श्रावस्ती आये.
बुध्द को वह विहार दान में देते समय, अनाथपिंडिक ने, बुध्द एवं उनके संघ पर, फुलों का वर्षाव किया. सुगंधमय धुप जलाया. स्वर्णमय झारी सें बुध्द के हाथों पर, पाणी डालते हुये कहां *"अखिल जगत के भिक्खु संघ के लिए, मै यह जेतविहार तथागत को, दान करता हुं."*
बुध्द ने अनाथपिंडिक के उस दान का, सहर्ष स्विकार किया.
अनाथपिंडिक के इस दान पारमिता को, हम अद्भुत दान पारमिता भी, कह सकते है.
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अनाथपिंडिक सुदत्त ने, श्रावस्ती का जो जेतवन विहार, बुध्द को दान मे दिया था, श्रावस्ती के उस विहार में, *"बुध्द सब से जादा २५ बार आयें थे."* बाकी अन्य जगह बुध्द - १ बार, २ बार, ६ बार गये है. *"अर्थात बुध्द का सब से जादा समय, श्रावस्ती के जेतविहार में बिता है."* इस लिए, इतिहास में उस जगह को, बहुत बडा महत्व प्राप्त है.
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* परिचय : -
* *डाॅ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*
(बौध्द - आंबेडकरी लेखक /विचारवंत / चिंतक)
* मो.न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२
* राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी वुमन विंग
* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी एम्प्लाई विंग
* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी ट्रायबल विंग
* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी वुमन क्लब
* अध्यक्ष, जागतिक बौध्द परिषद २००६ (नागपूर)
* स्वागताध्यक्ष, विश्व बौध्दमय आंतरराष्ट्रिय परिषद २०१३, २०१४, २०१५
* आयोजक, जागतिक बौध्द महिला परिषद २०१५ (नागपूर)
* अध्यक्ष, अश्वघोष बुध्दीस्ट फाऊंडेशन नागपुर
* अध्यक्ष, जीवक वेलफेयर सोसायटी
* माजी अध्यक्ष, अमृतवन लेप्रोसी रिहबिलिटेशन सेंटर, नागपूर
* अध्यक्ष, अखिल भारतीय आंबेडकरी विचार परिषद २०१७, २०२०
* आयोजक, अखिल भारतीय आंबेडकरी महिला विचार परिषद २०२०
* अध्यक्ष, डाॅ. आंबेडकर आंतरराष्ट्रिय बुध्दीस्ट मिशन
* माजी मानद प्राध्यापक, डाॅ. बाबासाहेब आंबेडकर सामाजिक संस्थान, महु (म.प्र.)
* आगामी पुस्तक प्रकाशन :
* *संविधान संस्कृती* (मराठी कविता संग्रह)
* *बुध्द पंख* (मराठी कविता संग्रह)
* *निर्वाण* (मराठी कविता संग्रह)
* *संविधान संस्कृती की ओर* (हिंदी कविता संग्रह)
* *पद मुद्रा* (हिंदी कविता संग्रह)
* *इंडियाइझम आणि डाॅ. आंबेडकर*
* *तिसरे महायुद्ध आणि डॉ. आंबेडकर*
* पत्ता : ४९४, जीवक विहार परिसर, नया नकाशा, स्वास्तिक स्कुल के पास, लष्करीबाग, नागपुर ४४००१७
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