Wednesday, 2 March 2022

 💥 *तृतीय महायुध्द की छाया में, विश्व एवं भारत का अर्थ-गाडा रहस्य...?*

    *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल

मो. न. ९३७०९८४१३८ / ९२२५२२६९२२


      दिनांक २ मार्च २०२२. रशिया के विदेश मंत्री *लावरोव* ने, खुलेआम चेतावणी देते हुये कहा कि, *"तिसरा महायुध्द ये परमाणु हमले का होगा. युक्रेन‌ को हम परमाणु हथियार नहीं लेने देंगे.‌ और अमेरिका के इशारों पर, चल रहा युक्रेन...!"* वही युक्रेन‌ के नागरिकों ने, रशियन सेना कों रोकने की पुरेपुर कोशिश की है. साथ ही उन्होने अपने हाथ, हथियार थाम लिये है. इस लिये रशिया कहता है कि, *"अब वे आम नागरिक नही रहे.‌ वे हमारे दुश्मन है. और उनसे वही सलुख किया जाएगा, जो हम सैनिकों से किया जाता है. अत: रियासी इलाकें में भी, बमबारी की जाएगी."*

     विश्व का सशक्त न. १ देश - अमेरिका ने, युक्रेन को *"आर्थिक मदत"* देने की बातें भी कही है.‌ परंतु *"सैनिकी मदत"* संदर्भ में, वे चुप्पी साधे हुये है.‌ वही अमेरिकी राष्ट्राध्यक्ष *बायडेन* ने, रशिया को धमकी देते हुये कहा है कि, *"इस युध्द से रशिया को, भारी किंमत चुकानी पडेगी...!"* और साथ ही अमेरिका और कुछ युरोपिय देशों द्वारा, रशिया पर आर्थिक निर्बंध भी लादे गये है. *जर्मनी* भी रशिया को चेतावणी दे रहा है. साथ में, *"United Nations"* के "विशेष सभा" का आयोजन, *"ब्रसेल्स"* में चल रहा है.‌ *विश्व बैंक* ने, युक्रेन को *"२२७ करोड डॉलर"* देने की भी घोषणा की है. और रशिया के सर्वेसर्वा *ब्लादिमिर पुतिन"* ने भी, अपने उद्यमीयों को कहा है कि, *"उन देशों को कुछ सप्लाय ना किया जाए, जो देश आर्थिक निर्बंध में, रशिया विरोधी है."* महत्वपुर्ण विषय यह है कि, *"उस विशेष सभा में, युक्रेन‌ को "युरोपिय महासंघ" की सदस्यता अभी अभी दी गयी है."* जो कि रशिया के नब्ज को, खुली तरह खुदेरना है. जब की रशिया चाहता है कि, *"सोवियत महासंघ"* की पहले की तरह, पुन: स्थापना हो. और युक्रेन देश, वो उसका एक घटक बने, या वो उसके अधिन रहे. अर्थात दोनों महाशक्तीओं‌ के तरफ से, कडा रुख अपनाया जा रहा है. शायद आगे हमें *"तृतीय महायुध्द"* होने का, अंदेशा हो रहा है...!!!

      अब सवाल यह है कि, अगर *"तृतीय महायुध्द"* होता है तो, उसका असर विश्व के अर्थव्यवस्था पर क्या होगा ? *"क्या भारत ऐसी स्थिती आने पर, अपना काबु पा सकेगा...?"* यह अहं प्रश्न है. अत: हमे विश्व की एवं भारत की भी *"अर्थव्यवस्था"* को, पुर्णत: समझना होगा. *"मँकेन्झी एंड कंपनी"* ने विश्व के दस देशों के *"बँलेन्स शीट"* का अध्ययन किया है. वे दस देश है - *"चायना / अमेरिका / जर्मनी / फ्रांस / ब्रिटन / कँनडा / आस्ट्रेलिया / जापान‌ / मेक्सिको / स्वीडन."* उनके अहवाल के अनुसार, सन २०२० में *चायना* का आर्थिक संपत्ती *१२० ट्रिलियन डॉलर* बतायी गयी और *अमेरिका* की आर्थिक संपत्ती *९० ट्रिलियन डाॅलर* है. वही *"क्रेडिट सुस"* के "ग्लोबल वेल्थ रिपोर्ट" नुसार सन २०१९ में, *भारत* की कुल संपत्ती *१२.६ ट्रिलियन डाॅलर* बतायी गयी है. अर्थात हमारी संपत्ती, *"चायना से आठ गुना कम है."* और सन २०१९ के बाद, भारत ने अपनी संपत्ती जाहिर ही नही की है. सन २०१४ में, *नरेंद्र मोदी* सरकार बनने के बाद, *"French Court allows Cairn to saize 20 Indian Government Properties in Paris."* (अर्थात ब्रिटिश ऑयल कंपनी -  केयर्न एनर्जी ने, पेरिस मौजुद २० भारतीय संपत्ती जब्त कर‌ ली है.) यह न्युज सुनने में आयी है.  भारत की वह संपत्ती *"१.७२ ब्रिलियन डाॅलर"* (करिबन १२,६०० करोड) वसुली के लिए, अमेरिका में *"रेट्रोस्पेक्टिक टैक्स"* संदर्भ में, एक मुकदमा दर्ज किया गया था. वही दुसरी और भी एक बुरी खबर यह है कि, *"अमेरिकी कौंसिल की मिसेस नाडर"* ने, अमेरिकी कौंसिल में स्पष्टत: कहा है कि, *"नरेंद्र मोदी सरकार, ये भारत के संविधानिक संस्थानों को बेच रही है. वह "राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ" और हिंदुत्ववादी संघटनों के माध्यमों से भारत पर, नाझीवाद / हिटलरशाही लाद रही है. वो सरकार कट्टरपंथी और तानाशाही है. "पचास बिलियन" गरिबी रेखा के निचे लोगों पर, वे अन्याय कर रही है.‌ वही अमेरिका मे, "हिंदु कौंसिल ऑफ अमेरिका" यह उनका संघटन भी, अमेरिकी राजनीति मे दखलंदाजी कर रहा है. और सांस्कृतीक कार्यक्रमों के नाम पर, वे सांप्रदायिकता फैला रहा है. मै स्वयं भी हिंदु हुं. फिर भी यह बातें कह रही हुं...!"*

      अभी आप सभी समज गये होंगे कि, नरेंद्र मोदी सरकार ने, *"रिझर्व बैंक के रिझर्व फंड"* पर, अपना हाथ क्यौं डाला ? नरेंद्र मोदी सरकार ने, *"राफेल* मामलें में ऐसा रूख क्यौ अपनाया ? *"इंडियन एयर लाईन्स"* टाटा समुह को, क्यौ बेच दिया ? भारत की कहीं संविधानिक संस्थानों का, *"खाजगीकरण"* क्यौं किया ? और भारत के तमाम गरिबों को, *"फुकट मे अनाज"* क्यौ दिया ? और पुंजीवाद / तानाशाही के माध्यम से, भारत पर अपना कब्जा, क्यौं रखना चाहता है ? भारत की *"सर्वोच्च न्यायालय,"* क्या खामोश रहेगी या अपनी *"Dog Watch"* भी भुमिका अदा करेगी ? या भारत का न्यायालय *"कोलोजीयम"* को बचाने के लिए, इस तरह का कोई सौदा तो, नही कर रही है. क्या *"भारत राष्ट्रवाद"* के संदर्भ मे हीं, वह न्यायालय कुछ उचित कदम उठायेगी ? बहुत सारे प्रश्न है. अर्थात यह सभी सच्चाई, भारत की मिडिया नही बता रही है. इसके पिछे का, असली राज क्या है ???

       रशिया यह देश *"सोवियत महासंघ"* की *पुनर्स्थापना,* सफलता से कर पायेगा या नहीं ? यह तो वक्त ही बतायेगा. परंतु "सोवियत महासंघ" की पुनर्स्थापना होना, *"यह किसी भी हालात में, चायना के हित में‌ नही रहेगा...!"* यह उतना ही पुर्ण सत्य है. रशिया भी, *अमेरिका* द्वारा "सोवियत महासंघ" को सन १९७० में तोडना, वह भुला नही है. अत: चायना की रशिया से दोस्ती, एक राजनीतिक षडयंत्र ही कहना होगा. वही चायना ने *"OBOR"* (One Belt One Road) अर्थात *"BRI"* (Belt and Road Initiative) के माध्यम से, मेन कॉरिडोर बनाकर, आशियाई देशों पर - जैसे की - *नेपाल / पाकिस्तान / श्रीलंका / बांगला देश / अफगानिस्तान* में, अरबों डॉलरों का निवेश कर, अपने पक्ष में कर चुका है. द्वितिय महायुध्द में, *"अमेरिका - चायना दोस्ती"* वह भी, *"भु-विस्तारवादी"* अमेरिकी पहल ही थी. चायना ने भी, उसका पुरेपुर फायदा लेकर, *"तिब्बत* को अपने अधिपत्य में लिया था. रशिया ने भी, द्वितिय महायुध्द में, "भु- विस्तारवादी" रोल निभाया था. *"तायवान"* भी चायना के (ROC - Republic of China) अधिन है. *"उत्तर कोरिया"* की, चायना से अच्छी मित्रता है.‌ क्यौ कि, उत्तर कोरिया के‌ सर्वेसर्वा - *किम जोंग उन* को, *"अमेरिका दादागिरी"* के समय, चायना की मदत वो कभी भी भुलेंगे नही. अत: भविष्य में, *"केवल चायना यह देश‌ विश्वशक्ती बनेगा...!"* और अमेरिका / रशिया की वह दुश्मनी ही, उसके रास्ते खुले करेगा.‌ आज चायना ही *"आर्थिक "* रुप में, नंबर वन है ही...!!! तब हमारे *"भारत देश"* का, क्या हाल होगा...? यह प्रश्न है.

      दिनांक २५ दिसंबर १९९१ को, अगर वे पंधरा देश *"सोवियत महासंघ"* से, अलग ना हुये होते तो ? यह अहं प्रश्न है. रशिया ने सन २०१४ को *"क्रिमिया"* को अपने अधिन किया था.‌‌ रशिया हो या, अमेरिका हो या, चायना हो, उन देशों‌ की *" भु- विस्तारवादी राजनीति,"* इन छोटे - कमजोर देशों‌ नें, ना समझना, इसे हम क्या कहे ? *"अगर वह राजनीतिक समझ युक्रेन को होती तो,"* और वो अमेरिका हो या युरोपीय देशों के, चक्रव्युह में ना फंसता तो, *"क्या युक्रेन‌ इस तरह तहस - नहस होता ?"* यह भी प्रश्न‌ है. युक्रेन‌ को बचाने के लिए, *"कोई मित्र देश नही आया."* फिर भी राजनीति का अंदाज भापकर, युक्रेन‌ ने रशिया से वार्तालाप किया होता तो...? और भी प्रश्न निर्माण होता है. *"युरोपिय महासंघ"* की सदस्यता हो या *"नाटो"* की सदस्यता हो, युक्रेन‌ को क्या फायदा मिला ? *"केवल तहस - नहस ही."* देश उध्वस्त होने में, कोई समय नही लगता.‌ परंतु वो पक्का खडा करने में, बहुत समय लगनेवाला है. यह सिख *"युक्रेन - रशिया युध्द है."* अत: यह सिख *भारत* के लिए भी, उतनी ही तंतोतंत लागु है.‌ क्यौं कि भारत, आज तक एकसंघ देश नही हुआ है. जाती - धर्म - देववाद की राजनीति में, संपुर्णत: बिखरा हुआ है. *"अंतर्गत विचार युध्द"* के कारण, *"भारत को आजादी चार - पाच साल देरी से मिली."* द्वितिय महायुध्द (१९३९ - १९४४) के समय में, वह आजादी हमे ना मिलना ? इसे हम क्या कहे.

     भारत के गुलामी का जिक्र करते हुये, *"भारत के संविधान"* को अमली जामा पहनाते समय, डॉ. आंबेडकर कह गये कि, *"On 26th January 1950,, India will be an independent country. (Cheers) What would happen to her independence ? Will she maintain her independence or will she lose it again ? This is the first thought that comes to my mind. It is not that India was never an independence country. The point is that she once lost the independence she had. Will she lost it a second time ?"* (संविधान सभा २६ नवंबर १९४९) यह संदर्भ देने का कारण यह कि, भारत आज फिर गुलामी के दलदल में, फंसता जा रहा है.‌ और हमारे घटनाकार के शब्दों को, हम भुल रहे है. उस समय डाॅ. आंबेडकर जी ने आगे कहां था कि, *"On the 26th January 1950, we are going to enter into a life of contradictions. In politics we will have equality and in social and economic life we will have inequality. In politics we will be recognising the principle of one man one vote and one vote one value. In our social and economic life, we shall, by reasons of our social and economic structure, continue to deny the principle of one man one value. How long shall we continue to live this life of contradictions. How long shall we continue to deny equality in our social and economic life ? If we continue to deny it for long, we will. "* भारत को प्रजासत्ताक होते हुये, आज ७२ साल गुजर चुके है. परंतु हमारे मन में, अभी तक *"भारत राष्ट्रवाद"* की भावना नही जागी. और आजादी के इस ७५ साल‌ में, ना ही किसी दल के सरकार में *"भारत राष्ट्रवाद मंत्रालय"* बनाया है, ना ही तो वह *"संचालनालय"* बना है. फिर भारत के बजेट में प्रावधान तो, बहुत दुर की बात है.‌ हमारे *"सर्वोच्च न्यायालय"* न्यायविदों ने, *"रामजन्मभूमी विवाद"* को तवज्यो देकर, उस भावनात्मक विषय के पक्ष में निर्णय दिया. *"भारत के संविधान"* को, दिल्ली में भर चौक में, खुलेआम जलाया गया था. राष्ट्रपती, प्रधानमंत्री, सरकार, न्यायालय, विरोधी दल, मिडिया सभी के सभी खामोश थे. नंपुसक थे. परंतु राष्ट्रभक्ती पर कोई नेता कुछ नही बोला. यह कारण लिखने का यह कि, *"युक्रेन* के राष्ट्राध्यक्ष ने, देश को बचाने के लिए, राष्ट्रभक्ती का सहारा लिया. युक्रेन‌ के राष्ट्राध्यक्ष *ब्लाजिमिर झिल्येन्स्की* ने कहा था कि, *"अपने मातृभूमि के रक्षा के लिए, आप आगे आये.‌ हम आप सभी को शस्त्र देंगे...!"* सवाल यहां भारत के प्रधानमन्त्री क है.  *"क्या आजाद भारत के प्रधानमन्त्री, यह कहने के अधिकारी रहे है ?"* ो किस मुंह से ...? अगर बेशर्मी तुम्हारे लहु में भरी हो तो, वह बात अलग है. क्यौ कि, नैतिकता भी कोई चीज है. वह एक गहना है.

       *"भारत के संविधान"* के अनुच्छेद क्र. १ में स्पष्ट तौर पर लिखा है कि, *"India, that is Bharat, shall be a Union of States."* और हम *"हिंदुस्तान"* कहकर, "भारत के संविधान" की तोहिम करते है.‌ क्या हमारी सर्वोच्च न्यायालय, इस विषय को प्रथम संज्ञान‌ लेगी ? यह प्रश्न है. *"अगर लायक न्यायाविद होंगे तो, वह खुद होकर सज्ञान लेंगे. अन्यथा नही...!"* दुसरा विषय यह, भारतीय भावना का रहा है. डाॅ. आंबेडकर कहते है कि, *"भाषा, प्रांतभेद,, संस्कृती आदी भेदनीति मुझे मंजुर नही. प्रथम हिंदी, बाद में हिंदु या मुसलमान, यह विचार भी मुझे मंजुर ही. सभी लोगों ने प्रथम भारतीय, अंततः भारतीय, भारतीयता के आगे कुछ नही, यही मेरा विचार है."* (मुंबई, १ अप्रेल १९३८) क्या यह भावना, आजादी इस ७५ साल में, हमारे जहन में बसीं है ? अगर नही तो, इस का सही कारण क्या ? वही भारत में‌ *"मुलभुत अधिकारों"* का, खुलेआम हनन होता रहा है. आज भी हो यहा है.‌ इस संदर्भ में डॉ. आंबेडकर कहते है कि, *"मुलभूत अधिकारों का अगर उल्लंघन होता हो तो, वहां बिलकुल माफी नहीं हो. और सभी संसद सदस्यों ने, अपनी व्यक्तिगत निष्ठा बाजु मे रखकर, उस का विरोध करना चाहिये. परंतु दु:ख से कहना पडता है कि, इस समीक्षात्मक दृष्टी का अभाव है."* (केंद्रिय विधीमंडल, १९ मार्च १९५५)

      अंत में, यह लेख लिखने का तात्पर्य यह है कि, भारत के तमाम पडोसी देश, जैसे कि - *पाकिस्तान / नेपाल / बांगला देश / श्रीलंका / तिब्बत* यह सभी के सभी देश, चायना से मित्रता पाले (तिब्बत छोडकर - वह तो चायना अधिन है) हुये है. और चायना भी खुद यह चाहतां है कि, *"तृतीय महायुध्द"* हो.‌ ठिकरा तो रशिया पर जाएगा. और *"इस माध्यम से चारों दिशाओं सें, युध्द में भारत को घेर सके."* रशिया हो या, अमेरिका हो, कोरोना के नाम पर, उनकी अर्थव्यवस्था का बुरा हाल है. *"भारत के बारें में, क्या कहे ?"* अगर यह युध्द लादा गया तो, *"भारत में भुखमरी - बेकारी - महंगाई आकाश‌ को छु सकती है."* क्या हम चायना का सामना करने में, उतने सक्षम होंगे...? यह प्रश्न‌ है. *क्या हम जातीगत / धर्मगत / देवगत राजनीति से, उपर उठ सकते है ?* खेती - तमाम मंदिर - बडे उद्योग - तमाम बैंक इन सभी के *"राष्ट्रियकरण"* के दिशा में, पहल कर सकते है.‌ डॉ. आंबेडकर साहेब का *"बौध्दमय भारत"* बनाने का संकल्प, यह भारत मे *"धर्म संघर्ष / जाती संघर्ष मिटाने का रहा था."* आजाद भारत में *"जातीविहिन समाज का निर्माण "* का था. अब सवाल, देश को बचाने का है.‌ नहीं तो, युक्रेन‌ के समान तहस - नहस की याद में...!!!


(नागपुर दिनांक २ मार्च २०२२)

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* *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर १७

         (भारत राष्ट्रवाद समर्थक)

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल

मो‌. न. ९३७०९८४१३८ / ९२२५२२६९२२

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