💥 *तिसरे महायुध्द छाया की एक बडी सिख है - "बुध्द"....!!!*
*डाॅ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर १७
राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
मो. न. ९३७०९८४१३८ / ९२२५२२६९२२
हमारा वो बचपन हो, या आज कल भी, एक श्लोगन बडा ही प्रचलीत है. वह श्लोगन है - *"युध्द या बुध्द !"* और *"रशिया - युक्रेन युध्द"* ने, युक्रेन में फंसे *"भारतीय विद्यार्थी समुहों के बेहाल"* को देखकर, उनकी वह *"दर्दभरी चिखें"* सुनकर, उस कहावत की सही अनुभुती हमें हुयी है. इसके पहले हम ने *"भारत - चायना युध्द"* (सन १९६२) हो या, *"भारत - पाकीस्तान का युध्द"* (सन १९७५) एवं बांगला देश की निर्मिती हो या, आज कल की *"भारत - चायना सीमा सरहद विवाद"* से चल रही झडप हो, वह हम ने देखी है. और सुनी भी है. परंतु हमारा मन कभी उतना दहला नहीं, जितना की हम ने, *"रशिया - युक्रेन युध्द"* में, हमारे बच्चों की बडीं चीखें सुनकर / बेहालों को देखकर, वह बहुत कटु अनुभुती हम ने ली है. उनकी दर्द कहानी सुनकर, *हमारे आखों से आसुं बहने लगे* या कहें, हमारे आखें ही नम हो गयी. और मेरे इस विचारों से, सभी के सभी लोग सहमत ना हों, परंतु जादातर लोग, मेरे इस विचारों से, बिलकुल ही सहमत होंगे. वही *"देश को उध्वस्त होने में, बहुत कम समय लगता है. परंतु वह देश बसाने में और घडाने में, कई साल लगेंगे...!"* यह बडी सिख भी, *"रशिया - युक्रेन युध्द"* से, हमे मिल रही है, या दी है. तो आप सभी लोग, जरा यह सोचों कि, अगर वह *"तिसरा महायुध्द"* हम पर लादा गया तो, *"हमारा अगला भविष्य (?) क्या होगा ?"* इस लिए हमारे महामानव, जो हमे बता गये है कि, *"देश का शासक यह लायक हो. वो बडा दुरदर्शी हो...!"* यह उनका वचन बिलकुल ही सही है. जो की उन सभी के सभी *"सत्ता शासकों"* लागु है, *"जो जन मन के दिलों पर, सही राज ना करता रहा हो. वो लोगों पर, अपनी तानाशाही चलाता हो."* अत: यह वचन भारत के प्रधानमन्त्री *"नरेंद्र मोदी"* को भी पुरा लागु है. सवाल है, *"अगर देश ही नही रहा तो, ये राज किस पर करोंगे, जनाब ?"* यें आवारा कुत्ते - बिल्ली - भेंडिया समान जानवरों पर ! शायद वे भी ना जीवित बचेंगे...!
भारत के संदर्भ में कहा जाएं तो, भारत यह राष्ट्र (Nations) नही, बल्की वो देश (Country) है. *"व्यक्ती से समाज बनता है. और समाज से राष्ट्र बनता है."* परंतु आज का भारत, वह राष्ट्र ना बनना, इस के लिए व्यक्तियों के *"मुलभुत अधिकारों का हनन"* यह प्रमुख कारण रहा है. *"धर्मवाद - जातवाद - देववाद की मजबुत जडें ही,"* मुलभुत अधिकारों को रोकने की, वह एक मजबुत दिवार रही है. और यह *"ब्राम्हणी व्यवस्था,"* उस मजबुत दिवार की एक ईट है. जहां पत्थर को फोडकर, तराशा जाता है. लोहे को काटा जाता है. पिघलाया जाता है. तो क्या इस ईट को तोडना, अ-संभव ऐसी बात है...? सवाल तुम्हारे ईच्छाशक्ती का है. तुम्हारे मानसिक गुलामी का है. तुम्हारे गहरे अज्ञान का है. तुम्हारे *"विघटन वादीता"* का है. तुम्हारे *"देशभक्ती अभाव"* का है...!!! *डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर* साहेब ने इस मुलभुत अधिकार हनन पर, स्पष्ट कहां कि, *"मुलभुत अधिकारों का अगर उल्लंघन हो तो, वहां बिलकुल ही माफी नही हो. और सभी के सभी संसद सदस्यों ने, अपनी व्यक्तिगत निष्ठा बाजु में रखकर, उस का विरोध करना चाहिये. परंतु दु:ख से कहना पडता है कि, इस समीक्षात्मक दृष्टी का अभाव है."* (केंद्रिय विधीमंडल, १९ मार्च १९५५) कांग्रेस हो या, भाजपा हो या, अन्य कोई भी राजनीतिक दल हो, वहां जुडे हुये सभी *"सांसद / विधायक* क्या वे, समाज के प्रति निष्ठावान रहे है ? यह प्रश्न आप स्वयं को पुछो. *फिर आप का दायित्व क्या है ?* यह भी अहं दुसरा प्रश्न, आप के सामने खडा होता है. *"उन दोषी सांसद / विधायकों को, चौराहों पर खुले आम फाशी पर चढा दो,"* यह मेरा कहना नही है. आप समाज घटक, उन पर दबाव ला सकते है. *काम ना करने पर,* उन नेताओं को या उनके दल को, वापस घर भेजने की शक्ती कहे या अधिकार, *"प्रजातंत्र "* के माध्यम द्वारा, *"भारतीय संविधान"* से हमे मिली है. आप सरकार शक्ती हो.
उपरोक्त पैरा लिखने का तात्पर्य यह है कि, विश्व मे *"सोवियत महासंघ / युरोप महासंघ / अमेरिका महासंघ* इनके कुटील राजनीति में, छोटे - कमजोर देश पिसते चले आये है. "सोवियत महासंघ" यह २५ दिसंबर १९९१ को, बिखर कर तुट चुका था. पंधरा देश उससे अलग हो गये. वही वे छोटे - छोटे देश, अमेरिका / युरोप महाशक्ती के कुटील राजनीति के, शिकार हो गये. वही शिकार हुआ एक देश है - *"युक्रेन...!"* और यह देश युक्रेन भी, कोई दुध का धुला हुआ नही है. उसने *NATO* की सदस्यता मांगी थी. और रशिया के विरोध कारण वह सदस्यता नही मिली. अभी *"रशिया - युक्रेन युध्द"* के दौर में, *"युरोपिय महासंघ"* की सदस्यता युक्रेन को मिल गयी है. अब सवाल यह है, *"उस मिली सदस्यता का, युक्रेन देश को, क्या फायदा हुआ है...?"* अगर युक्रेन यह देश, "सोवियत महासंघ" मे बना रहता, अमेरिका समान देशों के हाथ का, वो खिलौना ना बना होता तो, *"क्या वह इस तरह से पुर्ण तबाह होता...?"* यह प्रश्न है. दुसरा अहं विषय है कि, *"युध्द में युक्रेन की जो जीवित हानी, मालमत्ता हानी और बरबादी हुयी है, क्या उसकी भरपाई की जा सकती है. युरोप / अमेरिका / रशिया / चायना यह बलाढ्य देश, क्या वह पुर्तता कर सकते है ?"* उन देशों से आर्थिक मदत मिल भी जाएं, पर वो हो गयी हानी, कभी भरी नही जा सकती है. इस लिए *"शासक यह हुशार और दुरदर्शी होना, बहुत जरुरी है...!"* नही तो, उसका युक्रेन होता है. अत: यह सिख आप को, एवं भारत सत्तावादीयों को सिखनी है. आजादी के इस ७५ साल में भी, *"भारत यह UNO का, "कायम स्वरूपी सदस्य देश" नही बना है."* और चायना का विरोध लगातार चल रहा है. और कांग्रेस हो या, आज की भाजपा शासन हो, उनकी *"आंतरराष्ट्रिय पॉलिसी"* भी कभी दुरदर्शी नही रही. *नरेंद्र मोदी सरकार* ने तो, भारत देश को पुर्णत: *भिखारी* बना दिया है...! दुसरे अर्थ में कहा जाएं तो, *"राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ"* (RSS) की विचारधारा ने, भारत को *"पुंजीवाद"* के हवाले कर दिया है. और *"तानाशाही सत्ता"* की कडी भी, उनसे जुडी हुयी है. वे लोग कभी प्रजातंत्र वादी थे ही नही.*"हिटलर / नाझीवाद "* विचारों से, वे प्रभावीत रहे है. यह इतिहास है. अर्थात *"प्रजातंत्र "* को धत्ता बताकर, *"शोषण व्यवस्था"* के गहरी खाई में आप फस चुके हो. अब वहां से निकलना कैसे ? यह आप को सोचना है.
भारत की एवं विश्व की अर्थव्यवस्था का संदर्भ भी, हमे समझना बहुत जरुरी है. *"मँकेन्झी एंड कंपनी"* ने विश्व के दस देशों के अर्थव्यवस्था का, जो अहवाल दिया है, उस रिपोर्ट के अनुसार, सन २०२० इस साल में *"चायना"* की आर्थिक संपत्ती यह *"१२० ट्रिलियन डॉलर"* / *"अमेरिका"* की आर्थिक संपत्ती *९० ट्रिलियन डॉलर* बतायी गयी है. जब की *"क्रेडिट सुस"* इनके "ग्लोबल वेल्थ रिपोर्ट" के नुसार सन २०१९ में, *"भारत"* की आर्थिक संपत्ती यह *१२.६ ट्रिलियन डॉलर* बतायी गयी है. अर्थात *"वह संपत्ती चायना से, आठ गुना कम दिखाई देती है. और चायना देश,आर्थिक स्थिती में नंबर एक पर है."* और सन २०१९ के बाद, भारत ने, अपनी संपत्ती जाहिर ही नही की है. सन २०१४ में, *नरेंद्र मोदी* सरकार आने के बाद, *"French Court allows Cairns to saize 20 Indian Government Properties in Paris."* (अर्थात ब्रिटिश आयल कंपनी केयर्न एनर्जी ने, पेरीस स्थित भारत सरकार की मौजुद, २० कंपनीयों की संपत्ती जब्त कर ली है.) यह न्युज विदेशी वर्तमानपत्र से, हमे पढने को मिली है. वह जब्त की गयी संपत्ती में, *"एयर इंडिया के हवाई जहाज, शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया से जुडे बंदर, अलग अलग देशों मे मौजुद भारत के आयल एंड गैस कार्गो, सार्वजनीक क्षेत्रों की कंपनियां"* आदी का समावेश बताया गया है. और भारत सरकार की वह संपत्ती करीबन *"१.७२ ट्रिलियन डॉलर"* (करीबन १२,६०० करोड) वसुली के लिए, अमेरिका में *"रेट्रोस्पक्टिव्ह टैक्स"* संदर्भ में, वहां एक मुकदमा दर्ज किया गया था. प्रश्न यह है कि, भारत सरकार का लक्ष कहां केंद्रीत था ? *विरोधी दल* एवं *भारत की मिडिया* इस प्रकरण पर, खामोश क्यौ बैठी है ? और हमारे भारत के मा. *सर्वोच्च न्यायालय* की, *"वॉच-डॉगीता"* (Watch Dog) कहां गयी है...? *शायद कुंभकर्णी निंद मे, वो सोयी हुयी है.*
*"अमेरिका कौंसिल"* की एक सदस्या *मिसेस नाडर* ने, अमेरिकी कौंसिल को उसके भाषण मे, नरेंद्र मोदी सरकार संदर्भ में अमेरिका चेतावणी दी कि, *"नरेंद्र मोदी सरकार, यह भारत के संविधानिक संस्थानों को, बेच रही है. वह "राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ" (RSS) और हिंदुत्ववादी संघटनों के माध्यमों से, भारत पर नाझीवाद / हिटलरशाही लाद रही है. वो सरकार कट्टरपंथी और तानाशाही है. "५० ब्रिलियन" गरिबी रेखा के निचे लोगों पर, वे अन्याय कर रही है. अमेरिका में "हिंदु कौंसिल ऑफ अमेरिका" (HCA) यह उनका, कट्टर हिंदु संघटन भी, अमेरिका राजनीति मे हस्तक्षेप कर रहा है. और सांस्कृतीक कार्यक्रमों के नाम पर, वे यहां सांप्रदायिकता फैला रहा है. मै स्वयं भी हिंदु हुं. फिर भी यह बातें, मै कहे जा रही हुं...!"* अमेरिका कौंसिल के इस भाषण से, नरेंद्र मोदी / RSS पर असर होना तो स्वाभाविक है. उसका वर्णन आगे आयेगा ही. परतुं नरेंद्र मोदी के विदेशी दौरे में, *अमेरिका* हो या, *ब्रिटेन* में, नरेंद्र मोदी का विरोध होता रहा. *"Go Back Modi"* यह घोषणा हो, या *"हाय हाय मोदी"* यह भी घोषणा हो, या *"नरेंद्र मोदी"* का पुतला बनाकर, उसको *"चप्पल - जुतों"* से मारना, लाथों से मारना, इसे हम क्या कहे ? हद हो गयी. *आजादी के इन ७५ सालों* में, किसी भारतीय प्रधानमन्त्री का, इस तरह जन - मन ने विरोध, कभी नही किया है. *"क्या RSS हो या, नरेंद्र मोदी सरकार, इससे क्या सिख लेगी ?"* यह प्रश्न है. दुसरा अहं प्रश्न यह है कि, *"क्या इस कारण, विदेश में भारत की साख, नही गिर रही है...?"* उपरोक्त घटना सुनकर ही, हमारा मन सुन्न हो रहा है. क्यौ की, भारत के प्रती हमारा बहुत ही प्यार है.
भारत की *"बे-किमती संपत्ती विदेशी हाथों"* मे जाना हो या, और नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा, *"रिझर्व बैंक ऑफ इंडिया के रिझर्व फंड"* पर, अपना हाथ डालना हो, *"रॉफेल मामले"* में सरकारी अलग रूख अपनाना हो, *इंडियन एयर लाईन्स"* टाटा समुहों के हाथों बेचना हो, *"सार्वजनीक क्षेत्रों"* की कंपनीओं का *"खाजगीकरण"* करना हो, भारत की तमाम आवाम ने, उस घटना को, किस रूप में लेना चाहिये ? क्या भारत सरकार का, नैतिक दायित्व नही है कि, उन सभी कंपनियों को, सही ढंग से चलायें और बेचे नही. महत्वपुर्ण विषय यह कि, उन तमाम संस्थानों की उभारणी हो या, भरभराटी में भी, नरेंद्र मोदी सरकार का, कोई भी योगदान नही रहा है / था. ना ही, उन्होने भारत की *"अर्थ व्यवस्था को बडी मजबुती"* प्रदान की है. तमाम गरिबों को *"मुफ्त में अनाज वितरण"* के पिछे का कारण, कुछ और ही है. *"वह हमेशा के लिए मुफ्त देने का,"* यह कोई प्रावधान नही है. फिर तमाम गरिबों को, फुकट में खाने की मानसिकता, क्यौं बनायी गयी है ? यह गंभिर प्रश्न है. क्या यह तमाम गरिबों के स्वाभिमान से, बडी खिलवाड़ नही कही जा सकती है...?
*"रशिया - युक्रेन युध्दबंदी"* की खबर, रशिया के सर्वेसर्वा *ब्लादिमिर पुतिन"* एवं भारत के प्रधानमन्त्री *नरेंद्र मोदी* के चर्चा का हवाला देकर, Times of India and Indian Express समान बडे एवं कुछ नामांकित दैनिकों के हवाले सें आयी है. परंतु *"पुतिन - मोदी केवल चर्चा"* का जिक्र होने पर भी, भारत सरकार ने उस गलत न्युज का, *कोई खंडन ना करना, इसे हम क्या कहे ?* अगर उस गलत खबर के आधार पर, युक्रेन में फंसे हमारे बच्चों ने, कुछ पहल की होती तो ? क्या कोई बडा अनर्थ नही होता ? वही *"एडवयर्झरी जारी करने में भी"* हमारे भारत सरकार की एवं युक्रेन के भारत दुतावास की, कोई स्पष्ट भुमिका नही रही. *"सुमी, खारकिव्ह, किव्ह"* और अन्य शहरों में, आज भी हजारों छात्र फसें है. *"खाने की किल्लत है, पीने को पाणी नही है, बिजली काट दी गयी है, बाहर निकलो तो गोलियों की भयाण आवाज़"* यह सारी दु:खभरी दास्तानों को सुनकर, हमारा मन सुन्न हो जाता है. आंखो से आसुं बहना सुरु होता है. और भारत के महा - महिम प्रधानमन्त्री *नरेंद्र मोदी ने नयी दिल्ली में ना बैठकर,"* उस पर पुरी नज़र फोकस करना, कोई उचित हल खोजना, संपुर्ण व्यवस्था को अपने हाथों में रखना, *"यह सभी बातें छोडकर,"* वे उत्तर प्रदेश के चुनावी आखाडें में, *"बडा रोड शो"* कर रहे है. हाथ हिलाकर अभिवादन कर रहे है. मैने इस तरह का, भारत का पहिला प्रधानमन्त्री देखा है, जो इतना *"अ-संवेदनशील"* हो. दुसरे अर्था में *"ना - लायक"* प्रधानमन्त्री - *नरेंद्र मोदी.* रशिया युक्रेन युध्द के कारण युक्रेन मे फसें हमारे बच्चे, पडोसी देशों में पैदल पहुंच कर, वे विमान से भारत आने पर, उनके कुछ मंत्री हवाई अड्डा पंहुंच कर, वे अपना फोटो खिंचने में ही, बडी उपलब्धी महसुस करा रहे है. अगर भारत सरकार ने, हमारे छात्रों को भारत लाने की पहल, अगर पहलें ही की होती तो, यह कोई समस्या ही नही आती. *"कोरोना संक्रमण काल"* में भी, *"नरेंद्र मोदी सरकार ने निर्णय लेने में, दो महिने की देरी की थी."* और उसका खामाजा देश ने सहा है. मेरे खयाल से, नरेंद्र मोदी हो या, संघवादी वे *"बामनी समुह"* हो, वह देश चलाने के *"लायक"* ही नही है. और महत्व का विषय यह भी है कि, *"अब भारत सरकार के पास अपनी, कोई भी विमान यातायात कंपनी नही रही है."* अब मदार दुसरों के हवाले...!
*"रशिया युक्रेन युध्द"* इस युध्द की वह भीषणता, हम ने स्वयं ना झेली हो, परंतु युक्रेन स्थित हमारे बच्चों की वेदनाएं, हम ने देखी है. और महसुस भी की है. अगर गलती से भी, *"तिसरा महायुध्द"* हम पर लादा गया हो तो, भारत के *तमाम पडोसी देशों* की तरफ से , *"चायना का आक्रमण"* हम पर आ गया हो तो, हमारी स्थिती, *"युक्रेन देश की तरह ही होगी...!"* बस जब हम, वो केवल कल्पना ही कर सकते है. तो हमारे शरिर में, कंपन आना सुरु हो जाएगा. अत: हम केवल प्रार्थना ही कर सकते है कि, हमारे उपर वह दिन ना आयें. परंतु युध्द के इस भयाण परिस्थिती में, *"हमारे भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उत्तर प्रदेश के शहरों में, डंबरु बजाते हुये नज़र आये."* जहां हमे दु:ख जताना है, वहां मोदी खुशियां मना रहे है. अर्थात हमे दु:खी मन से, यह कहना पड रहा है कि, *"मोदी है तो मजबुरी है. मोदी है तो मग्रुरी है."* अत: हमे *"युध्द या बुध्द"* इनमें से, एक अहम पर्याय को स्विकारना होगा. भारत के प्रधानमंत्री हो या अन्य मंत्री गण, जब वे कभी विदेश *"बौध्द देश"* जाते है, तब वे अपने आप को, *"बौध्द बताया करते है."* और यह अनुभुती हमें, विदेश मे होनेवाले कई *"जागतिक बौध्द परिषदो"* में, पुर्णत: हो चुकी है. इस भाव से, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री *आदित्यनाथ योगी* भी नही छुटें. उनके जीवनी पर लिखी गयी *"The Definitive Biography of Yogi Adityanath"* इस पुस्तक में ही, उन्होने स्वयं को "The Monk Who Became Chief Minister" इस रह का, स्पष्ट उल्लेख है. विश्व में *"हिंदु देश"* यह एकमेव *"नेपाल"* ही था. भारत यह देश, *"सेक्यूलर देश"* के श्रेणी मे आता है. भारत यह निधर्मी देश है. परंतु *"नेपाल"* ने नये संविधान की बुनीयाद रचकर, हिंदु राष्ट्र होने से, अपना पल्ला झाडा है. वहां का राष्ट्रिय धर्म, अब *"हिंदु"* नही रहा...!
विदेश में कई बौध्द सेक्ट्स की मान्यवरों से, मेरी चर्चा होती रहती है. तब मुझे कभी मोहनदास गांधी का जिक्र मिला, तो कभी अन्य *हिंदु महानुभावों* का भी, जो *बुध्द* के फालोवर के रुप में, विदेशों मे दिखाई दिए. इस विषय पर, फिर कभी मै लिखुंगा. *"विश्व हिंदु परिषद"* द्वारा, दिनांक ७ मार्च २००८ में नागपुर में, *"सर्व धर्म सभा"* का बडा आयोजन किया गया था. उस परिषद के RSS के संघनायक *डॉ मोहन भागवत* उदघाटक, *प्रविण तोगडिया* प्रमुख अतिथि एवं मैं *(डॉ. मिलिन्द जीवने)* सदर परिषद का *"अध्यक्ष"* था. उस परिषद में मैने खुले रूप में, डॉ. मोहन भागवत जी को कहा कि *"डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर साहेब ने, बौध्द धम्म की दीक्षा क्यौं ली ? और इस पर किसी भी आंबेडकरी - बौध्द संशोधको ने, उचित संशोधन नही किया है. अत: डॉ. आंबेडकर साहेब के लिखाण एवं कार्यों को, हम ने न्याय नही दिया. ठिक है, हम ना-लायक है. परंतु आप लोगों ने भी, कहां डॉ. आंबेडकर साहेब को न्याय दिया है. आप भी कहां लायक हो. अगर बाबासाहेब ६ दिसंबर १९५६ हमे छोडकर ना जाते, और जवाहरलाल नेहरू नें बौध्द धर्म की दीक्षा ली होती तो, वे बौध्द हो जाते. और आप हिंदु समुहों ने भी, बौध्द धर्म की दीक्षा ली होती तो, आप भी बौध्द. और हम भी बौद्ध. फिर यह "जाती संघर्ष" ना होता. "धर्म संघर्ष" ना होता. मै "सत्ता संघर्ष" की बात नही करता. अगर हम हुशार होंगे तो, डॉक्टर - इंजीनियर - ऑफिसर बनेंगे. और गब्बु होंगे तो, चपराशी - मजुर बनेंगे. इस लिये डॉ मोहन भागवत जी, आप बौध्द बनो. अब दुबारा कोई बाबासाहब होनेवाला नही है. और "विश्व हिंदु परिषद" का नाम बदलकर, "विश्व बौद्ध परिषद" कर लो. अगर आप लोक तयार हो तो, मै उस का आयोजन करुंगा...!"* सदर परिषद की न्युज, नागपुर के सभी दैनिकों के, मेन पेज की हेडलाइन रही थी. परंतु हमारे अपने कुछ विद्वान महाशयों ने, *"मुझे RSS वाला कहना शुरु कर दिया है / था."* मेरा डॉ. मोहन भागवत के साथ का फोटो, मिडिया में इधर उधर छापकर, मेरी बदनामी भी की गयी. सवाल यह है कि, *"डाॅ. बाबासाहेब आंबेडकर साहेब का सपना, "बौध्दमय भारत" हम अन्य समाज को बौध्द नही करेंगे तो, वह संभव कैसे होगा ?"* हम "जातीविहिन समाज" की बुनीयाद, कैसे रच पायेंगे ? सन १९५६ के बाद *"बौध्द धम्म दीक्षा समारोह"* का आयोजन थम सा गया था. *"हमारी ही वो युवा टीम* थी, हम ने सन १९८२ में *"बौध्द धम्म दीक्षा समारोह"* का आयोजन किया था. ब्राम्हण धर्म की संस्कृत प्राध्यापिका *डॉ. रुपा कुलकर्णी* / ओबीसी के *प्रा. प्रभाकर पावडे* / दिल्ली के दलित साहित्यकार *मोहनदास नैमिशराय* समान कई हिंदु मान्यवरों ने, बौध्द धम्म की दीक्षा, हमारे मंच पर ली है...!
हमारे युवा टीम के *"बौध्द धम्म दीक्षा समारोह"* का प्रभाव ही था, नामांकित मराठी कवि *सुरेश भट* इन्होने फिर, भदन्त आर्य नागार्जुन सुरेई ससाई इनके हाथों, बौध्द धम्म की दीक्षा ली. और फिर सन १९८४ बाद, *भदंत आर्य नागार्जुन सुरई ससाई* जी ने, वह कमान अपने हाथों ली. *"दलित व्हाईस"* बंगलोर के नामांकित ओबीसी नेता *व्हि. टी. राजशेखर* को भी, हमारे कारण ही बौध्द धर्म की दीक्षा, पटना (बिहार) में लेनी पडी. बिहार के पोलिस आय. जी. *"मैकुराम जी"* समवेत कई हिंदु लोगों ने, बौद्ध धर्म की *"सामुहिक दीक्षा"* ली थी. इस लिए मेरा बिहार, उत्तर प्रदेश, गुजरात प्रदेशों मे प्रवास रहा है. *"जागतिक बौद्ध परिषद"* का आयोजन भी २००६ / २०१३ / २०१४ / २०१५ मे, *सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल* इस हमारे राष्ट्रीय स्तर की संघटन द्वारा सफलता से किया गया. *"जागतिक बौद्ध महिला परिषद"* का आयोजन भी, सन २०१५ में हम ने किया है. *"अखिल भारतीय आंबेडकरी विचार परिषद / महिला परिषदो"* का आयोजन, सन २०१७ / २०१९ / २०२० में हम ने किया है. *HWPL* (Republic of Korea) इस आंतरराष्ट्रिय संघटन एवं *CRPC India* (Civil Rights Protection Cell) के संयुक्त तत्वाधान में, २८ जनवरी २०२२ को, ऑन लाईन (आभासी) *"World Peace Conference"* का आयोजन मेरे ही *(डाॅ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य')* अध्यक्षता में सफलतापूर्वक किया गया. और HWPL के आंतरराष्ट्रिय अध्यक्ष *Hon. Man Hee Lee* इन्होने, सदर परिषद का उदघाटन किया था. यह सभी लिखने का कारण यह कि, *"स्वातंत्र - समता - बंधुता - न्याय - शांती - देशभक्ती "* यह सुत्र ही, आवाम की गरज है. *"जो आदर्श व्यक्ती - आदर्श समाज - आदर्श राष्ट्र घडाने की, एक सही बुनीयाद है."* और वह मार्ग है - बुध्द का धम्म." अभी अभी रशिया युक्रेन युध्द के पर्व पर, *"युक्रेन की संसद"* ने केवल और केवल *"देशभक्ती"* जगाने की पहल की है.
युध्द का आक्रमण होने पर भी, *"युक्रेन संसद के ३०० सदस्यों"* ने, गोपनिय रुप से संसद में इकठ्ठा होकर, अपना *"राष्ट्रगान"* गाते हुये, राष्ट्रभावना जगाने की, अपनी एक कोशिश की है. जो कि, काबिल - ए - तारिफ है. क्या इस तरह के संवेदनशील माहोल मे, *"हमारे भारत के सांसद / विधायक / नेता लोग, अपनी देशभक्ती निभाने की हिम्मत कर सकते है ?"* यह अहं प्रश्न है. बस, हमारे भारत के सांसद / विधायक / नेता लोग, देश को *"दुय्यम भाव"* मानते हुये, और *"जातवाद / धर्मवाद / देववाद"* की दलदल में फसें हुये, अकसर नजर आयेंगे / या आते रहे है. भारत आजादी के इस ७५ साल में, *"भारत राष्ट्रवाद मंत्रालय"* एवं संचालनालय स्थापन के दिशा में, किसी भी दल ने, कोई पहल ही नही की...! बजेट में प्रावधान तो, वह बहुत दुर की बात है. अयोध्या की *"राम जन्मभूमी मंदिर"* (?) विवाद संदर्भ में, *"मा. सर्वोच्च न्यायालय"* के न्यायाधीश भी, अपनी *"न्याय नैतिकता"* भुल गये है / थे. भारत का प्राचिन इतिहास, अपना अतित बताता रहा है कि, *"वह बुध्द की नगरी साकेत है."* बुध्दगया का मंदिर भी, *"बुध्द की धरोहर"* है. वहां भी बामनी नायको का अनैतिक कब्जा किया है. क्या इन सभी अनैतिकता से परे होकर, आज तो भी, *"भारत की बामनी व्यवस्था",* बुध्द की नैतिकता में शरण जाएगी ? क्या *नरेंद्र मोदी,* डमरु बजाने छोडेगा ? महायुध्द की इस दलदल में, कोई देव - देवी, आप का तारण करनेवाली नही है. केवल बुध्द ही, तुम्हारी रक्षा करेगा. *"शांती - अहिंसा का सन्मार्ग देकर ...!"* तुम्हे नैतिकता की ओर बढ़ना है. क्यौ कि, *"Buddha needs no Passport nor Visa."*
(दिनांक ४ - ५ मार्च २०२२)
(टीप : - अगर यह लेख आप को अच्छा लगा तो, वो आगे फारवर्ड करो. और जो बंधुओं को, यह छपाने की ईच्छा हो, वे इस लेख को छपा सकते है. केवल वें मुझे वह प्रत भेजें)
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* *डाॅ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर १७
(भारत राष्ट्रवाद समर्थक)
राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
मो.न. ९३७०९८४१३८ / ९२२५२२६९२२
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