Thursday, 17 March 2022

 👌 *सारा जहां बुध्द है ...!*

        *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*

        मो.‌ न.‌ ९३७०९८४१३८


ये तन बुध्द है, ये मन बुध्द है

हे सारा संसार‌ ही तो बुध्द है

बुध्द ही बुध्द है, सारा जहां बुध्द है ....


ये मन तुटता है, ये तन भी झुकता है

आंसुओं का सैलाब, जब कभी आता है

ना राह होती है, ना ही मंजिल होती है

तब बसं हमे, बुध्द ही बुध्द दिखते है ...


यहां गिध्द होते है, और वृध्द भी होते है

सहारो की भाव में, वो तडफ़ जाते है

लहु के गंध को, वो भुल भी जाते है

तब हमारा वाली तो, बसं बुध्द होते है ...


आवाम की सीमा है, मुलुख की सीमा है

सीमा की सीमा मे, तुम क्रुध्द होते है

फिर बस यहां तो, युध्द ही युध्द होते है

वहीं शांती पहल में, बुध्द ही दिखते है ...


* * * * * * * * * * * * * * * *

(नागपुर, दिनांक १३ मार्च २०२२)

टीप : जो कोई भी मान्यवर, मेरे इस

शब्दभाव का व्यवसायिक प्रयोग करना 

चाहता है.‌ वो पहले मेरी अनुमती ले.

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