Wednesday, 9 March 2022

 👌 *बुध्द इतिहास के पन्नों पर....!*

*डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर १७

मो. न. ९३७०९८४१३८


बुध्द इतिहास के पन्नों 

अमर शहर वासी सुमेध के कृती ने

हमें पुरी तरह झंझोर दिया.

सुमेध के रईसपण - विद्वता और व्यापार में

उस समय उसका बडा ही नावलौकिक था.

एक दिन सुमेध के मन मे विचार आया

क्या यह संपत्ती मेरे साथ अंत मे जाएगी ?

क्या यह किर्ती भी अंत में मेरे साथ जाएगी ?

अत: इस विचार के द्वंद्व काहुर में

सुमेध प्रत्यक्ष निर्णय लेता है

वो पुरी संपती लोगों में बाट़ देता है

और सम्यक मुक्ती के मार्ग पर चलने को

उस दिशा में प्रत्यक्ष तत्पर होकर 

हिमालय की ओर निकल जाता है

वहां दिपांकर बुध्द के आने पर

बडा उत्सव मनाया जा रहा है

साफ सफाई रंगोटी चल रही थी

सुमेध को लगा कि मै भी कुछ काम करू

और‌ वो कामो में लग जाता है 

वही एक गड्डे में चिखल दिखाई देता है

बुध्द के आते ही उस गड्डे में लेट जाता है

ता कि, बुध्द के पैर को चिखल ना लगे.

दिपांकर बुध्द उसके पास जाते है

और अपने संघ को कहते है

यह जो सोया हुआ तापस आप देख रहे है

वो लाखोंं वर्षो के बाद कपिलवस्तु में 

शुध्दोधन - महामाया के घर जन्म लेकर

बुध्द बनकर बहुजनों का कल्याण करेगा.

दिपांकर बुध्द की वह पहली भविष्य वाणी

वही ऋषी असित की राजा शुदोधन को

बतायी हुयी वह दुसरी भविष्य वाणी

समस्त संसार को एक नया मोड दे जाती है

बहुजन हिताय बहुजन सुखाय...!

वही सिध्दार्थ बुध्द के धम्म शासन में

समस्त संसार को दिशा मिलती है

निराधरों का मित्र - अनाथों का आश्रयदाता

अनाथपिंडिक भी बुध्द को शरण जाता है

बुध्द को जेतवन विहार दान देने के लिए

कोसल राजकुमार जेत को

वह समस्त जमीं पर सुवर्णमुद्रा बिछाकर

महादान का इतिहास लिख जाता है.

चक्रवर्ती सम्राट अशोक भी कलिंग युध्द से

अपनी तलवार को म्यान करते हुये

बुध्द के शरण में अपना शासन चलाता है

और समस्त संसार में नया इतिहास रचता है.

पर आज का संसार अपना अतित भुलकर

स्वार्थता भ्रष्टाचार युग का निर्माण कर

प्रेम - मैत्री - करुणा - बंधुभाव सें परें होकर

अपना नया कमिना रुप वो दिखाता है.

ना वफादार कोई पती रहा, ना पत्नी ही

बच्चे - भाई - बहन - मित्र - गोत्र सभी भी

हर कोई व्यक्ती हिस्सेदारी नही चाहता है

उसका एक ही‌ कहना है कि यह सब मेरा है

इस तुफानी विवादी जंग मे

मरने को - निकलने को भी बोला जाता है

वह निकल जाता है आखरी पडाव पर

बस केवल एक गज जमीं शेष है

अंत मे सात गज जमीं ही लगती है

वही बुध्द की आवाज आती है

हे वत्स, थोडा सा रूक जाओ

इतनी भी जल्दी क्या है ?

क्या तुम्हारा पुरा काम निपट चुका है ?

अगर नहीं, तो तुम पिछे लौट चलो

वही वो रातभर सुनसान अंधेरें मे सोचता है

फिर पिछे वो लौट जाता है

नये जीवन का अपना लक्ष आरंभ करने

बस हमे केवल सुखी जीवन चाहिये

वह कैसे ? यें तुम्हे ही ढुंडना है

पर इतना जरुर ख्याल रखना है

यहां कोई किस का कुछ नही है

सभी के सभी प्राणी अपने मतलब के है

इस धरती पर तुम अकेले आये हो

और जाना भी तुम्हे अकेले ही है

केवल तुम्हे अपना कर्त्तव्य पुर्ण करने पर

बाद में अपने स्वयं के लिए बचाना है

वहीं तुम्हारा अकेला खुद का जीवन भी है

वही तुम्हारी अपनी रक्षा है‌ और सुरक्षा भी

यह सुत्र मन में गाठ बांधकर तुम्हे चलना है

कल के नयी अपनी सुबह के लिए

एक नयी यादगार में....!!!!


* * * * * * * * * * * * * * * 

(यहीं आज के जीवन की सच्चाई है.)

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