Sunday, 20 March 2022

 👌 *फिल्मी नायक - गगन मलिक से लेकर महाठग - नितिन गजभिये तक बुध्द मुर्ती का व्यापारीकरण एवं धम्म देसना (?) समारोह ...!*

    *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल

मो. न. ९३७०९८४१३८ / ९२२५२२६९२२


     कुछ दिन पहले इलेक्ट्रानिक मिडिया के माध्यम से, मुझे नागपुर स्थित *दीक्षाभूमी ऑडिटोरियम"* में, ७ अप्रेल २०२२ को फिल्मी नायक (?) कहे या नाचा - *गगन मलिक* द्वारा थायलंड में, बौध्द भिक्खुपन का अनुसरण करने के पश्चात, *भंते अशोक* यह नाम पाकर, *"धम्म देसना समारोह"* का आयोजन की वह पोष्ट थी. और मन में कई प्रश्न उपस्थित हो उठे. गगन मलिक ये मुलत: अबौध्द परिवार से ताल्लुकात रखते है. वैसे उन्होने *"भगवान राम / कृष्ण"* समान अन्य देवताओं के फिल्मी किरदार भी निभाये है. परंतु श्रीलंका में बनी *"भगवान बुध्द"* इस मुव्ही से, उनको बडा नाम एवं बडी शोहरत मिली. और कई देशों के मान्यवरों से मधुर संबंध भी बन गये. और वे संबंध ही आगे जाकर, भारत मे *"बुध्द मुर्ती व्यापारीकरण "* करने का सही कारण सिध्द हुआ. और *महाठग - नितिन गजभिये* उस बुध्द मुर्ती व्यापारीकरण का एकमेव बडा दलाल...!

       *महाठग - नितिन गजभिये* ने बुध्द मुर्ती बेचने का जो तरिका निकाला है, वह भी बडा काबिले - ए - तारिफ है.‌ सदर बुध्द विहार के पदाधिकारी वर्ग, जो बुध्द मुर्ती की मांग करते है, उनसे *"विहार से कागजात,"* बुध्द मुर्ती देने के पहले ही मांग लेते है. और फिर *"बुध्द मुर्ती के आकार के अनुसार दर"* बताये जातें है. जैसे की - *तिन फुट* की बुध्द मुर्ती - ३५ - ४० हजार रुपये. *षह फुट* की बुध्द मुर्ती - ६५ - ७० हजार रुपये. अगर वह सौदा मान्य ना हुआ तो भी, वह बुध्द विहार के कागजात नितिन के पास. *"उस विहार को मुर्ती ना देने पर भी, उस विहार के नाम मुर्ती देने का खुला हिशोब...!"* विदेशों से वह बुध्द मुर्ती *मुफ्त* में, भारत में भेजी जाती है. क्यौं कि, वे विदेशी श्रद्धावान मान्यवर भारत को, *"बुध्द का देश"* मानते है. और वे लोग "दान पारमिता"  भाव को भी, बहुत श्रध्दा से देखते है.‌ विदेशी दाताओं के उस श्रध्दाभाव को, हमारे कुछ नालायक लोकों ने व्यापार बना डाला. दस साल पहले *"मै (डॉ. मिलिन्द जीवने) और एक अन्य गजभिये"* नाम के व्यक्ती ने, *"५६ नग बुध्द की तिन फुट की मुर्तीयां"* / और तिन फुट का स्टैंड (कुल ६ फुट) दो ट्रकों में भरकर, नागपुर लाये थे.‌ और वह विषय बडा चर्चा का रहा था. *"क्यौ कि, पहली बार इतनी बडी संख्या में, बुध्द मुर्तीयां नागपुर को आयी थी."* और उन सभी बुध्द मुर्तीओं का वितरण, समस्त विदर्भ में किया गया. परंतु बुध्द मुर्ती वितरण में हुये विवाद के कारण, मै स्वयं वहा से हट गया.‌ *विवाद का कारण* था - जो विहार के लोगों ने, हमारे साथ आकर / सात दिन साथ रहकर / स्वयं पैसे खर्च करने पर भी, उन विहारों को बुध्द मुर्ती नही दी गयी. और गजभिये मुझे कहने लगा कि, *"इन मुर्तीओं के लिए, वे कुछ विहार लायक नही है."* सवाल मेरा यह था कि, *"हमारे इतनी लायकी है क्या कि, हम उन विहारों की लायकी तय करे ?"* तुम्हे विहार की लायकी देखना था तो, वह पहले ही तुम्हे देखना था.‌ बुध्द मुर्ती उस विहार के नाम आने के बाद क्यौं ? बाद में उस गजभिये ने, वो बुध्द मुर्तीयां कुछ पैसे लेकर, अन्य विहार तथा अ-विहार (विद्यापीठ / मिशन समान संस्था) को वितरीत करने का इतिहास रचा. यहां मुझे *"दोनों ही गजभिये लोग"* दलाल दिखाई दिये. या कहें कि, *"धम्म के नाम पर, समाज को कलंक...!"*

     थायलंड की वे ५६ बुध्द मुर्तीयां आने के पहले, *"एक बुध्द मुर्ती डायरेक्ट बँकाक, थायलंड"* से नागपुर फ्लाईट द्वारा आयी थी.‌ उस टाईम नागपुर - बँकाक डायरेक्ट फ्लाईट हुआ करती थी. परंतु हमे किसी भी प्रकार की कोई *"कस्टम ड्युटी,"* एयरपोर्ट पर नही भरनी पडी थी. कस्टम अधिकारोंओं ने, हमे कस्टम ड्युटी भरने को कहा था. हम लोगों ने उन्हे, कानुन का संदर्भ देकर, आधे घंटे मे वह बुध्द मुर्ती, नागपुर एयरपोर्ट से हम ने बाहर निकाली थी. वही *"तायवान"* इस देश से, कई लाखों की धम्म किताबें, मैने कई बार मंगायी है.‌ बस मुझे बंबई के एजंट को, वह *"छुडाने का एजंट चार्ज और ट्रांसपोर्ट का खर्च"* केवल इतना खर्च आया. अन्य कोई भी खर्च नहीं. केवल मुझे बंबई एक बार जाना पडा. फिर कभी भी जाना नही पडा. बसं, फोन से ही यह सभी व्यवहार हुआ करता था. अपना केवल *"ईमानदारी का व्यवहार"* चाहिये. *महाठग - नितिन गजभिये* ने कितने सारे लोगों को ठगा है. श्रीलंका से *"बुध्द अस्थिया"* हम ने लायी थी. उस समय मैने *"रथ बनाने के ५०,००० हजार रुपये"* नितिन को दिये थे.‌ वह रथ समाज कल्याण विभाग से बनाया गया. वे पैसे नितिन गजभिये ने, मुझे वापस नही किये.‌ मैने *"४ लाख रूपये शंकरराव ढेंगरे"*  इनके माध्यम से दिये थे. नितिन ने वह पैसे ना वापस किये, ना ही उसका हिसाब दिया है. ऐसे कितने सारे लोगों के पैसे, नितिन गजभिये ने कभी वापस ही नही किये. मुझे तायवान से धम्म पुस्तके लाने के लिए, *हर वक्त अंदाजे ४० - ५० हजार रुपये खर्च आया करता था. वह खर्च मैने स्वयं ही वहन किया."* और मैने किसी भी व्यक्ती से / विहारों से, एक पैसा भी नही लिया है. *"यह थी मेरी धम्म के प्रती प्रामाणिक एवं सही निष्ठा...!"* अगर *महाठग - नितिन गजभिये* / *गगन मलिक* ने, कस्टम ड्युटी भरी है तो, वह कितनी *"राशी हर बार भरी"* है ? यह एक संशोधन का विषय है. उन्होने वह खर्च जाहिर करना चाहिये. हमे जल्द ही *"अहिल्याबाई होळकर संस्था का"* कस्टम ड्युटी का वह रिपोर्ट, प्राप्त हो जाएगा. धम्म समान पवित्र कामों मे, यह *"दलालगिरी"* चिंता का बडा विषय है...!

      *महाठग - नितिन गजभिये*, ये भंडारा रोड स्थित पेट्रोल पंप पर, ग्राहकों को केवल *"पेट्रोल बेचनेवाला,"* साधारण कर्मचारी था. नागपुर कन्हान के पास *"सिहोरा"* इस छोटे से गाव में, वडिलोपार्जीत थोडीसी खेती थी. और सिहोंरा गाव के लोगों को, बहला - फुसलाकर, उनके *"खेती को अकृषक कर प्लॉट डालकर,"* वह प्लॉट बेचकर बडी कमाई करने का, गाव के लोगों को सपना दिखाया गया. वह जमिन नितिन गजभिये ने, अपने नाम से *"पावर ऑफ एटर्नी "* की. नागपुर - चंद्रपुर - गडचिरोली - भंडारा - गोंदिया इन जिलों में, अपने कमिशन‌ एजंट को नियुक्ती कर, *"हजारों प्लॉटों की बिक्री"* की है. मुल जमिन मालकों को, पैसों के लिए घुमा रहा है. प्लॉट धारकों को भी *"प्लॉट की कोई रजिस्ट्री"* नही करके दी. वह अवैध प्लॉट यह *"५ - ७ लाख रुपये"* में नितिन ने बेचने के पश्चात, उस प्लॉट की रजिस्ट्री ही नही हो सकती.‌ यह परिस्थिति है. *"रजिस्ट्री विभाग (स्टैंप जिलाधिकारी) से १४ लाख ९० हजार"* की धोकादारी की है. अत: वह विभाग भी अब सावधान हो गया है.‌ उस का प्रकरण रजिस्ट्री विभाग के पुणे मुख्यालय में, सुनवाई / निर्णय के रखा है.‌ उस जगह *"बुध्दा इंटरनेशनल स्कुल"* खोलने के नाम, *"नितिन गजभिये / गगन मलिक"* ने वो बडी धोकादारी की है. उधर *उसी जगह* पर, सामाजिक न्याय विभाग से भी, *"प.पु. डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर विपश्यना केंद्र"* खोलने के लिए, *"दो करोड रुपये"* की चपत भी *महाराष्ट्र सरकार* को दी है. वह भी प्रकरण सामाजिक न्याय विभाग पुणे मुख्यालय में, अंतिम निर्णय के रखा गया है. और सामाजिक न्याय विभाग के, प्रादेशिक उपायुक्त *डॉ. सिध्दार्थ गायकवाड* इन्होने, *नितिन गजभिये / गगन मलिक* को बचाने का प्रयास करने के कारण, पुणे मुख्यालय ने, सिध्दार्थ गायकवाड को सविस्तर रिपोर्ट मांगा है. *नितिन गजभिये / गगन मलिक,* जब सरकार से इतनी बडी धोकादारी कर सकते है तो, उनके सामने *"समाज के लोग क्या चीज है ?"*

    *महाठग - नितिन गजभिये* के और पैसे आने के तमाम मार्ग बंद होने पर, सिने नाचा - *गगन मलिक* इनके माध्यम से, *"बुध्द मुर्ती बेचने"* का दुसरा अलग मार्ग निकाला गया. वही गगन मलिक को खुद की इमेज बनाने के लिए, क्या गगन मलिक ने थायलंड में, *"बौध्द भिक्खु बनने का कोई खेल‌ तो नही खेला है ?"* यह भी प्रश्न है. और बौध्द भिक्खु बनने के उपरांत, यह सारा प्रकरण दबाने का कोई षडयंत्र तो नहीं ? यह भी प्रश्न है‌. सिने नायक गगन मलिक को कितने सारे मान्यवरों ने बताया था कि, *"नितिन गजभिये यह चरित्रहीन है.‌ वो महाठग है."* फिर भी गगन मलिक, महाठग - नितिन गजभिये को चिपके हुये क्यौ है ? यह भी प्रश्न खडा होता है. *"बुध्द मुर्ती विक्री संदर्भ का विवरण"* उपर के पैरा में आया ही है.‌ अब सवाल यह है कि, नागपुर के *"पावन दीक्षाभूमी सभागृह"* में, दिनांक ७ अप्रेल २०२२ को उस चौकडी के *"धम्म देसना समारोह"* का आयोजन को, हम किस नजरों से देखें ? वही बौध्द धर्मगुरू *"आर्य नागार्जुन भदंत सुरेई ससाई जी / भंते ज्ञानज्योती जी"* इन महानुभावों को, यह निश्चित करना होगा कि, क्या इन अनैतिक व्यवहार करनेवालों का साथ दे या उन से कोसों दुर रहे ? यह भी प्रश्न है. वही हमारे *"दीक्षाभूमी समिती"* को भी, इस संदर्भ में निर्णय लेना होगा ? क्या दीक्षाभूमी अनैतिक लोगों के अनैतिक / व्यावसायिक कामों केंद्र बने या *"बोधिसत्व प. पु. डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर"* इनके विचारों के, प्रचार - प्रसार का केंद्र बने...!!! सवाल यह भी है कि, क्या दीक्षाभूमी समिती *"अंगलावे - भोगलावे"* इन मानसिक प्रवृति के सिरकाव से कोसों दुर रहती है ? आंबेडकरी समाज की अपेक्षा रही है, *"दीक्षाभूमी यह डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जी के सामाजिक - धार्मिक - सांस्कृतिक विचारों के प्रचार / प्रसार का आंतरराष्ट्रिय केंद्र बने !"* हम केवल अपेक्षा कर सकते है.‌ निर्णय तो आप बुध्दीवादी ही ले सकते है. जय भीम...!!!


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(नागपुर, दिनांक २०मार्च २०२२)

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