🌹 *ये हाट में तुम खडी थी....!*
*डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*, नागपुर
मो.न. ९३७०९८४१३८
ये हाट में तुम खडी थी, फूलों के साज पर
युं ही रे तुम झुकी थी, हे बुध्द के राहों पर...
वैशाली की तु अप्सरा थी, मन के सावन पर
तितली की भी उडान थी, गुंजन के राहों पर
देश प्रेम की वो आग थी, जीगर के घावों पर
तेरी ही यें यादें बनी, आम्रवन के सुगंध पर...
तुम वो कुर्बानी थी, देश भक्ती के वादों पर
प्रेम का तुम संगीत थी, शांती के नादों पर
शक्ती की मिसाल थी, वैशाली के राज पर
प्यार का तु तराना थी, जीवन के साज पर...
आसमान की ऊंचाई थी, तुम्हारे वो भावों पर
पंछीओं की उड्डाण थी, देश रक्षा के नावं पर
तुम ही वो राष्ट्रवाद थी, भारत के यें जमीं पर
वों वफां की कि बातें थी, देश प्रेम राहों पर...
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( *भारत राष्ट्रवाद की याद में...!*)
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