Wednesday 29 May 2024

 👌 *बुध्दीस्ट - आंबेडकरी मिशन मुव्हमेंट में नजदिकी आये जागतिक / राष्ट्रिय / राज्यीय मांन्यवरों के साथ का सुखद अनुभव....!*

       *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल 

एक्स व्हिजिटिंग प्रोफेसर, डॉ बी आर आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ महु म. प्र.

मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२


     आज मेरी नज़र, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल (सी.आर.पी.सी.) द्वारा आयोजित, फोटो अलबम पर गिर पडी. और सीआरपीसी द्वारा आयोजित *"जागतिक बौद्ध परिषद* २००६ - २०१३ - २०१४ - २०१५ / *जागतिक बौद्ध महिला परिषद* २०१५ / *अखिल भारतीय आंबेडकरी विचारविद परिषद* २०१७ - २०२० / *अखिल भारतीय आंबेडकरी विचारविद महिला परिषद* २०२० / मेरे नेतृत्व में सफल निकाली गयी *विश्व शांती रैली* २००७ - २०१८ - २०२० / कोविड काल में, कोरीया की आंतरराष्ट्रीय संघटन *"एच. डब्लु. पी.‌ एल."* तथा *सी.आर. पी. सी.* (इंडिया) इनके संयुक्त तत्वज्ञान में आँनलाईन हुयी *"जागतिक मिनी विश्व शांती परिषद २०२२"* और उस परिषद का उदघाटन कोरीया एच. डब्लु. पी. एल. के आंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष मां. *मैन‌ ही ली* इन्होने किया तथा अध्यक्षता मुझे *(डॉ. जीवने)* कराने का सु-अवसर भी मिला. सदर शांती परिषद में, आंतर्राष्ट्रीय ख्याती के *डॉ.‌ अरविंद आलोक, नयी दिल्ली / मा. खेनपो किनले ग्यालस्तन, भुतान / महु के कुलगुरू -प्रा.  डॉ. सी. डी.‌ नायक / कुलगुरू - आर.‌ एस.‌ कुरील, रायपुर / मिस प्रा. रजनी मलावी पाठीराना, श्रीलंका / श्याम तागडे, IAS / कुलगुरू - डॉ.‌ सुषमा यादव, हरियाना / प्रा. एक्स. पी. माओ, शिलांग* इन मान्यवरों का सहभाग था. संचालन एचडब्लुपीएल कोरिया की *मिस दीक्षा रंजन / मिस एलीन बारा* इन्होने किया था. और शब्द सुमनों से स्वागत सीआरपीसी की *वंदना जीवने* इन्होने तथा आभार *डॉ. किरण मेश्राम* इन्होने करने का, वह निमंत्रण पत्र मुझे दिखाई दिया. *"जागतिक बौद्ध महिला परिषद २०१५"* इसका उदघाटन जर्मनी की *उर्सुला गोईटिंगर*‌ इनके हाथो, तथा अध्यक्षता सीआरपीसी की *वंदना जीवने* इन्होने की थी. प्रमुख अतिथी के रुप में, श्रीलंका की *मिस रोशनी डी. शरण*/ आष्ट्रेलिया की *मिस है हॅन* यह भी उपस्थित थी. सदर जागतिक बौद्ध महिला परिषद की सफलता में, *पुष्पा बौध्द / प्रा.‌ डा.‌ वर्षा चहांदे / डॉ. नीना वानखेडे / वर्षा श्यामकुळे / सुषमा कळमकर* समान बहुत से आंबेडकरी स्त्री वर्ग का सहभाग रहा.‌ सदर परिषद में, थायलंड की राजकुमारी *डॉ. मॉम लुयांग* भी सहभाग लेनेवाली थी. वह नागपुर आयी भी थी.‌ परंतु हमारे साथ जुडे कुछ उपद्रवी घटकों द्वारा, जो बडी दगाबाजी की गयी, या जो कुछ गंदी राजनीति की थी, उस संदर्भ में तथा *"मेरे अपने जीवन कार्यो के कुछ खट्टे - मिठे - कटु अनुभवों‌ की दास्तान"* / बुद्ध - आंबेडकरी साहित्य आदी अनेक विषयों पर, *"एक अच्छी खासी बडी किताब"*, वह लिखी जा सकती है.  इसलिए शांतीमय वातावरण / कुछ जबाबदारी से मुक्त होने के बाद ही, वह लिखने का प्रयास करुंगा...!!!

      सन २०१५ की *"जागतिक बौद्ध परिषद / जागतिक बौद्ध महिला परिषद"* के आयोजन को, मुझे से, कभी भी नहीं भुलाया जा सकता है. इसके पहले *"सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल"* द्वारा तिन जागतिक बौद्ध परिषद का सफल आयोजन किया गया था.‌ और २०१५ की परिषद *"भारतीय बौद्ध महासभा"* तथा *"सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल / अश्वघोष बुध्दीस्ट फाऊंडेशन"* इनके संयुक्त तत्वज्ञान में आयोजन करने का, मेरा अपना मानस रहा था. और भारतीय बौध्द महासभा के पदाधिकारी *चंद्रबोधी पाटील / शंकरराव ढेंगरे* इनसे मेरी चर्चा भी हुयी. हमारे उस मिशन में एक *"महाठग"* को साथ जोडने में, मेरा कडा विरोध‌ रहा था. वो महाठग उस परिषद के आयोजन के पहले, मुझे मिलने मेरे ऑफिस आकर, मेरी मदत मांगा करता था. मैं उस महाठग को बहुत पहले से जानता था. *"और मेरे अपने स्वभावानुसार, मैं किसी भी अन्य व्यक्ती को, अच्छे से जाने बिना, सहजता से साथ नहीं लेता रहा हुं. अगर किसी को मैं अपने साथ लेता भी हुं तो, उस पर पुरा विश्वास रखकर, उसे अच्छे रूप से सन्मान भी देता रहा हुं. परंतु मुझे जीवन में, बहुत कुछ बडे खट्टे - मिठे ‌-कटु अनुभव भी मिले हैं. विश्वासघात भी हुआ है "*  चंद्रबोधी पाटील के जीद के आगे, उस *"महाठग"* को जोडने में, मुझे स्वीकृति देनी पडी. मैने *"जागतिक बौद्ध परिषद / जागतिक बौद्ध महिला परिषद २०१५"* का प्लान तयार किया. सदर परिषद के लिये, श्रीलंका के राष्ट्रपति *मैत्रीपाला सिरीसेना* जी की, स्वीकृति भी हमें आयी थी. तथा उनका नागपुर आने का पुरा प्लान भी, हमें मिल चुका था. परंतु *"दीक्षाभूमी के धम्म चक्र प्रवर्तन दिन"* की व्यस्ततावश (बहाना), पोलिस सुरक्षा देने की असमर्थता *"भारत सरकार"* ने देने के कारण, श्रीलंका के राष्ट्रपति का दौरा रद्द हुआ था. अगर वही कार्यक्रम हिंदु परिषद का होता तो, सहजता उसे स्वीकृति मिली होती. उस जागतिक परिषद के साथ ही, *"श्रीलंका से बुध्द अस्थी धातु"* भी, नागपुर आनेवाली थी. मेरा विचार उस बुध्द अस्थी धातु को, एक जगह ही रखने का था. परंतु उस *"महाठग"* ने इधर - उधर घुमाने का प्लान, चंद्रबोधी पाटील के स्वीकृति से बनाया. मैने बेझनबाग सोसायटी के *विनोद वालदे* इनको, मेरे ऑफिस बुलाकर, *"बेझनबाग मैदान"* में *"बुध्द अस्थी धातु"* को रखने की बातें कही. और विनोद वालदे द्वारा, अपने मित्रों की मिटिंग लेकर, उस कार्यक्रम को सफल बनाया. श्रीलंका में बनी *"भगवान बुध्द"* के फिल्म का भी प्रिमियर, जसवंत टॉकिज मे आयोजित किया गया. अभिनेता *गगन मलिक* ने, उस फिल्म में बुध्द का अभिनय अदा किया. उन सभी कार्यक्रम के लिये, फिल्म अभिनेता *गगन मलिक* नागपुर आया. और मेरे ही कार से, हम लोग रवी भवन चले गये. सन २०१५ के कार्यक्रमों में, थायलंड की राजकुमारी *डॉ. मॉम लुयांग* / श्रीलंका से फिल्म के निर्देशक *नविन गुणरत्ने / मिस रोशनी डी शरण* / श्रीलंका के उद्योगपती *बंडुला वीरा वर्धने* तथा श्रीलंका से बहुत से नामचिन  भिक्खु *बनागल उपतिस्स नायका महाथेरो , वास्काडुवे महिंदावंश थेरो, हेपुतुले पन्नारामा थेरो*/ आष्ट्रेलीया से *मिस हे हैन* / जर्मनी से *उर्सुला गोईटिंगर* / महु से कुलगुरू *डॉ.‌ आर.‌ एस.‌ कुरील / डॉ. सी. डी. नायक* आदी बहुत सारे विदेशी मान्यवरों का आगमन, नागपुर हो चुका था. हवाई अड्डे पर महाराष्ट्र के मंत्री *राजकुमार बडोले / सांसद रामदास आठवले / माजी मंत्री एड. सुलेखा कुंभारे / विधायक डॉ मिलिन्द माने* हम आयोजक टीम - *चंद्रबोधी पाटील / डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य' / शंकरराव ढेंगरे* तथा हमारी महिला टीम *पुष्पा बौध्द / वंदना जीवने / डॉ नीना वानखेडे* आदी व्हीआयपी लौंज में उपस्थित थे. भारत के केंद्रीय मंत्री *नितीन गडकरी* भी हवाई अड्डे पर आये हुये थे. सदर  *"बुध्द अस्थी धातु"* के लिये, रथ का प्रयोजन किया गया था. और मैने स्वयं वह रथ बनाने के लिये, रू ४०,०००/- उस महाठग को दिये थे. और *"चार लाख रुपये"* भी महाठग को, शंकरराव ढेंगरे इनके माध्यम से दिये गये थे. परंतु उस महाठग ने मुझे ही नहीं, *चंद्रबोधी पाटील* को भी टोपी पहनाई.‌ आगे जाकर फिल्म अभिनेता *गगन मलिक* को अपने साथ मिलाकर, *बुध्द मुर्ती की अवैध तस्करी"* शुरु की. मैने गगन मलिक को, उससे दुर रहने को चेताया था.‌ और ना सुनने के कारण, हमने उससे संबंध तोड दिये. *"एक वेदना जरूर हुयी की, मेरा वह चयन गलत कैसे रहा ...???"* जीवन की कुछ ऐसे भी यादें होती है, वह कभी भी भुलाया नहीं जा सकती. जो कभी कभी बहुत वेदना भी कर जाती है.

       सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल / अश्वघोष बुध्दीस्ट फाऊंडेशन / जीवक वेल्फेअर सोसायटी इनकी संयुक्त तत्वज्ञान में आयोजित *"जागतिक बौध्द परिषद २००६"* यह *मेरे (डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य')* ही अध्यक्षता में हुयी थी. और सदर परिषद में देश विदेश से कुछ मान्यवर / तिब्बत के धार्मिक मंत्री उपस्थित भी हुये थे. सदर परिषद की सफलता में *डी. बी.‌ वानकर / संजय जीवने /  शंकरराव ढेंगरे / वंदना संजय जीवने / वंदना मिलिन्द जीवने* इनका विशेष योगदान रहा. *विजय मानकर* इन्होने ठराव‌ का वाचन किया. लेकीन वह परिषद, मेरे पत्नी वंदना को आसु भी दे गयी‌. सदर परिषद के लिये, हम आयोजक टीम ने, बहुत से संघटन / मान्यवरों से आर्थिक मदत / दान की अपेक्षा की थी. परंतु किसी से भी, दान की राशी ना मिलने के कारण, *"मैने खेती खरीदने का सौदा रद्द कर,"* वह पुरी राशी धम्म परिषद के लिये खर्च की थी. मेरे पत्नी को जन्म दिन पर, वो खेती गिफ्ट देने की बात कही थी. वही *"२०१३ की जागतिक बौद्ध परिषद"* में भी, मेरे पत्नी को जन्म दिन पर, *"कामठी रोड स्थित फ्लैट"*  का सौदा नहीं कर पाया. कार्यक्रम खर्च के, वे सभी आर्थिक व्यवहार, मेरे पत्नी द्वारा ही हुये थे. हां, मुझे उस बात का आनंद था कि, मैने अपने धार्मिक प्रतिबद्धता को, पुरी तरह निभाया था. परंतु पत्नी को दिया गया वांदा, मैने तोडा हुआ था. *"जागतिक बौद्ध परिषद २०१४"* को तो, आकाशवाणी के अधिकारी / मेरे मित्र *अमर रामटेके* इन्हे अध्यक्षता दी थी. परंतु मित्र अमर रामटेके को मैने चेताया था कि, उम्हे सुट - बुट पहनकर कार्यक्रम में आना है.‌ अगर सुट बुट में नहीं आया तो, मैं उसे अध्यक्षता नहीं दुंगा. परिषद के एक दिन पहले ही, मैं और अमर रामटेके सिताबर्डी के बाजार गये. और हमने मित्र अमर रामटेके के लिये, सुट बुट खरीदी किया था. कवि *सुर्यभान शेंडे* तो, उन परिषदों के सफलता मे, मेरे साथ छाया के समान साथ खडा रहा.‌ इन तमाम बौध्द परिषद के लिये, देश - विदेशों से कुछ मान्यवर उपस्थित थे. मेरे आंतरराष्ट्रीय मित्र *डॉ अरविंद आलोक* ने, कभी भी मेरे से, फ्लाईट का तिकिट नहीं लिया. बर्मा के भंते *ग्यानेश्वर महाथेरो* / तिब्बत के धार्मिक मंत्री *मा. लोबसंग यीना* (कुछ कारणवश *परम पावन दलाई लामा* नहीं आ सके) उपस्थित थे. इस के अलावा *"अखिल भारतीय आंबेडकरी विचारविद परिषद २०१८ - २०२० / अखिल भारतीय आंबेडकरी विचारविद महिला परिषद २०२०"* इन परिषदो की सफलता के लिये, मेरे अच्छे मित्र /  रेल मंत्रालय (भारत सरकार) के सचिव *इंजी. विजय मेश्राम* इनका साथ, मेरे साथ हमेशा रहा. सीआरपीसी की *वंदना जीवने* इनकी अध्यक्षता में, सिव्हिल लाइन्स के रेल्वे क्लब में, *"जागतिक महिला दिन २०२१"* की सफलता में, इंजी. विजय मेश्राम साहाब का योगदान रहा. सदर कार्यक्रम का संचालन *डॉ किरण मेश्राम* इन्होने ही किया था. *"आंभोरा क्षेत्र में खडे बुध्द विहार"* के लिये भी, मेरे एक शब्द पर, *इंजी .‌विजय मेश्राम* इन्होने पचास हजार रुपये *भदंत नंदवर्धन बोधी* इनको दिये थे. आज भदंत नंदवर्धन बोधी, हमारे बीच नहीं है. मैं विजय मेश्राम इनके दिर्घायुष्य की कामना करता हुं. उस आंभोरा विहार के लिये, *मेरा भी* शुरु से ही, आर्थिक योगदान रहा. *"विदर्भ के बहुत से विहारों"* को, थायलंड की ६ फुट की बुद्ध मुर्ती, मेरे ही माध्यम से मिली. मैने किसी भी विहार से, बुद्ध मुर्ती के लिये कभी पैसे नहीं लिये. मेरे अन्य जागतिक बौद्ध परिषद के लिये - *परम पावन ड्रायकंग कैबगान चेटसंग* (तिब्बत) / *भदंत बनागल उपतिस्स नायका महाथेरो* (श्रीलंका) /  *भंते फ्रामाहा पोंगरीन थिटावंशो* (थायलंड) / *भंते सोमन दोरोजी* (भुतान) / *भंते फ्रा सांगकोम थानापान्यो* (थायलंड) / *परम पावन त्सोना गोंत्से रिंपोचे* (बोमडिला) आदी मान्यवरों की उपस्थिती रही है.

       *"विश्व शांती रैली"* - २००७ / २०१८ / २०२० इस साल की हो,  मेरे साथ कुछ जगह *सुर्यभान शेंडे / अधिर बागडे / इंजी.‌ गौतम हेंदरे / वंदना जीवने / डॉ. मनिषा घोष / डॉ. किरण मेश्राम / डॉ. भारती लांजेवार / इंजी. माधवी जांभुलकर / ममता वरठे / सुरेखा  खंडारे / डॉ . नीना वानखेडे / बबीता वासे / मिलिंद गाडेकर / मिलिंद धनवीज / मनिष खंडारे / प्राचार्य डॉ. टी.‌ जी. गेडाम / डॉ. राजेश नंदेश्वर / डॉ. प्रमोद चिंंचखेडे* आदी पदाधिकारी मेरे साथ खडे हुये थे. एक नाम तो, हमेशा विशेष याद रहेगा.‌ वह नाम है - *"दिपाली शंभरकर* इनका.‌ आज दिपाली हमारे बिच नहीं है. पर वो अपनी सीआरपीसी कुछ यादें, पिछे छोड गयी है. *आंभोरा* की रैली मे *सुर्यभान शेंडे* इन्होने / *बडेगाव* की रैली में *अधिर बागडे* इन्होने, मेरे एक शब्द पर ही, संपूर्ण ५० - ६० लोगों की खाने की व्यवस्था की थी. *डोंगरगाव* (छत्तीसगड) की शांती रैली का अनुभव तो, बहुत अनोखा था. हर गाव - हर जगह जगह हमारा स्वागत होता रहा. डोंगरगड के लोग तो, रात तक हमारा इंतजार करते रहे. सुबह में *भदंत आर्य नागार्जुन सुरेई ससाई* इनके साथ मेरी, खुली जीप में पहाडी तक रैली निकाली गयी. २०१८ में हमारी *"दो शांती रैली"* निकाली गयी.‌ एक रैली तो, *अमरावती* (आंध्र प्रदेश) तक निकाली गयी. आंध्र प्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री *चंद्रबाबा नायडु* इन्होने तो, हमारे लिये (साथ में ५० - ६० भंते थे) तिन बसेस की / खाने - पिने व्यवस्था की थी. और हम जब आंध्र प्रदेश पहुंचे तो, रास्तों पर *"अमरावती महोत्सव"* के बडे बडे होर्डिंग्ज लगे थे. जहां जागतिक ८ - १० मान्यवरों की बीच, *"मेरा भी फोटो होर्डिंग्ज पर"* दिखाई दिया था. कार्यक्रम स्थल पर तो, हर जगह जगह पर, अन्य होर्डिंग्ज लगायें गये थे. वह अनुभव मेरा अनोखा अनुभव रहा था.

      डॉ बाबासाहेब आंबेडकर इनका *"धम्मदीक्षा समारोह १९५६"* के बाद, धम्म दीक्षा मिशन थमसा गया था. सन १९८१ में हमारी युवा टीम ने, *"धम्म दीक्षा समारोह"* का सफल आयोजन, "धम्म चक्र प्रवर्तन दिन" के उपलक्ष में, सिताबर्डी के *"धनवटे रंगमंदिर"* में आयोजित किया था. तब मेरे पास काले रंग की राजदुत हुआ करती थी. हम लोग ट्रिपल सीट, कुछ गावं गावं घुमकर, धम्म दीक्षा लेनेवालों की खोज करते थे. उस हमारे *"धम्म दीक्षा समारोह"* में, संस्कृत की पंडित *प्रा. डॉ. रुपा कुळकर्णी* / दिल्ली के नामांकित आंबेडकरी साहित्यिक *मोहनदास नेमिशराय* सहित ४०० लोगों ने, *"बौध्द धम्म"* की दीक्षा ली थी. दुसरे वर्ष हमने *"आंतरराष्ट्रीय बौध्द प्रतिनिधी परिषद"* का सफल आयोजन किया था. सदर परिषद में, भारत के विविध प्रांत से / लंडन से कुछ बौध्द भिक्खु उपस्थित थे. उस समय ओबीसी नेता *प्रा. प्रभाकर पावडे* इन्होने भी, बौध्द धर्म की दीक्षा ली थी. हमने ओबीसी नेता *नागेश चौधरी* इन्हे भी, बौध्द धर्म के दीक्षीत कराने का प्रयास किया. परंतु नागेश चौधरी का कहना था कि, वे बडे समुह के साथ, बौध्द धर्म की दीक्षा लेंगे. हमारे युवा टीम का, वह प्रभाव ही था कि, नामांकित कवि - *सुरेश भट* इन्होने, भदंत आर्य नागार्जुन सुरेई ससाई जी, इनके हाथों *"बौध्द धर्म"* की दीक्षा ली. दलित व्हाईस बंगलोर के संपादक / ओबीसी नेता *व्हि. टी. राजशेखर* इन्होने, मेरे प्रयास से, *"बौध्द धर्म"* की दीक्षा ली. बिहार के पोलिस महानिरीक्षक *मैकुराम* जी सहीत हजारो लोगों ने, पटना में *"बौध्द धर्म"* की दीक्षा ली. उस समय *भंदत आर्य नागार्जुन सुरेई ससाई* / उच्च न्यायालय के *न्या. भाऊ वाहाने* / मैं स्वयं (डॉ जीवने) सदर समारोह में, *"प्रमुख अतिथी"* थे. गुजरात के धम्म दीक्षा समारोह में भी, मैं उपस्थित था. उस समय में, मेरी *"बडोदा की महाराणी"* से मिटिंग भी हुयी थी. मुझे बडोदा के उस पावन क्षेत्र को भेट देने का अवसर भी आया, जों यांदें डॉ बाबासाहेब आंबेडकर इनसे संबंधित रही थी. उसके बाद *भदंत आर्य नागार्जुन सुरेई ससाई* इनकी ईच्छा से, सन १९८५ से, वह *"धम्म दीक्षा समारोह"* कार्यक्रम दीक्षाभूमी पर आयोजित होने लगा.

         युवा काल में ही, मै *"डॉ.‌ बाबासाहेब बी.‌आर. आंबेडकर आयुर्वेदिक मेडिकोज असोसिएशन"* नागपुर का अध्यक्ष बना.‌ बाद में हमने उस संघटन को, महाराष्ट्र तक पहुंचा दिया. और मुझे सदर संघटन का *"महाराष्ट्र अध्यक्ष"* बनने का अवसर भी मिला. उस समय मेडिकल की *"डॉ.‌ शालिनी जिंदे आत्महत्या"* प्रकरण हुआ. सदर केस को, मैने मिडिया में बहुत उठाया था. उस समय मिडिया में, लोकमत के *प्रा.‌ रणजीत मेश्राम / रमाकांत डोंगरे / सिध्दार्थ सोनटक्के / प्रभाकर दुपारे / जगन वंजारी / स.‌सो. खंडाळकर / भुपेंद्र गणवीर / मिलिंद फुलझेले* आदी मित्र पत्रकारों का, हमें साथ हुआ करता था. किसी एक कार्यक्रम में, नामचिन कवियित्री *प्रा. डॉ. ज्योती लांजेवार* इनकी मेरी भेट हुयी. मेरी उनसे अच्छे संबंध रहे थे. ज्योती लांजेवार इनकी सुपुत्री *प्रा.‌ डा. अपर्णा बोस* (हैदराबाद) इनका,कभी कभी मुझे फोन आता है. ज्योती लांजेवार इन्होने, मेरा परिचय *प्रदिप आगलावे* इनसे कराया था. तब प्रदिप आगलावे नागपुर विद्यापीठ में एम. ए. कर रहा था. उस समय *"डॉ बाबासाहेब आंबेडकर पोष्ट ग्रजुएट स्टुडंट असोसिएशन"* की स्थापना होने के बाद, प्रदिप आगलावे को अध्यक्ष पद दिया गया. हमारी अच्छी मित्रता बढती गयी. तब *प्रदीप आगलावे* ये *"खादी के कपडे"* पहनता था. और *प्रदिप आगलावे* का झोपडीवजा घर होने से, प्रदिप  *"गांधी आश्रम"*  में रहने के कारण, प्रदिप पर महात्मा गांधी का बहुत प्रभाव था. मुझे प्रदिप के साथ सेवाग्राम जाने का अवसर भी आया. हर हप्ते में चार पाच दिन, प्रदिप और मैं, मेरे घर एक ही थाली में खाना खाते थे. हम साथ साथ ही घुमते थे.‌ विद्यार्थी काल में, प्रदिप की पहचान *सरोज* के साथ हुयी. आगे जाकर प्रदिप - सरोज ने विवाह किया. मै दोनों के शादी का मध्यस्थ दुवा रहा और फोटोग्राफर भी बना. कुछ साल बाद, *"प्रदिप में कुछ बदलाव दिखने पर,"* हमारी घनिष्ठ मैत्री तुटसी गयी. परंतु हम दोनों ने , उस समय *"विद्यार्थी आंदोलन"* खडे किये थे.‌ होस्टेल की समस्या / शिष्यवृत्ती समस्या समान कुछ विषय रहे थे. उसके बाद सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल की माध्यम से, *"महाराष्ट्र विद्यापीठ कानुन"* का आंदोलन छेडा गया. पुराने विद्यापीठ कानुन में, सिनेट में अनुसूचित जाती के लिये २ सिट आरक्षित थी. मैनेजमेट में और अन्य जगह मागासवर्गीय को, आरक्षण नहीं था. उस समय *डॉ.‌नितिन राऊत"* विधायक चुनकर आया था. मैने डॉ. नितीन राउत को, सदर मांग का निवेदन देकरं, वह केस विधान सभा में, उठाने का आग्रह किया. सन २००५ के बाद सिनेट में मागासवर्गीय का कोटा, बढा हुआ दिखाई दिया. *प्रा डॉ प्रदिप आगलावे* का नागपुर विद्यापीठ से निवृत्ती होने के बाद, महाराष्ट्र शासन के *"डॉ बाबासाहेब आंबेडकर समिती"* पर नियुक्ती होना, यह बहुत दु:खद घटना रही. *वसंत मुन* इतकी जगह, कोई भी व्यक्ती नहीं ले सकता. वसंत मुन से मेरे अच्छे संबंध रहे है. वे मेरे एक कार्यक्रम भी आयें थे. और मेरे मुंबई प्रवास में, मैं उनके घर भी गया. वसंत मुन के बाद, उनके जगह जो भी मान्यवर नियुक्त हुये थे, उन्होंने ऐसे मनमानी काम नहीं किये, जो *प्रा. प्रदिप आगलावे* ने किये. प्रदीप के मेरीट से, मैं बहुत अच्छे से परिचीत हुं.

      आज से ३५ - ४० साल पहले, आंबेडकरी राजनीति में, *"खोरिप  / गारिप"* यह दो ही नाम चर्चा में हुआ करते थे. मेरा सामाजिक जीवन प्रवास *"रिपब्लिकन स्टुडंट फेडरेशन"* से शुरु हुआ. तब *वि. रा. वाशिमकर* ये राष्ट्रिय अध्यक्ष रहे थे.‌ उनके माध्यम से, बहुत कुछ लोगों ने सरकारी नोकरी पायी. परंतु वि रा वाशिमकर सायकल पर ही रहे. आगे जाकर उन्होंने जो कुछ झेला है, उस पर फिर कभी लिखुंगा. बाद में *"दलित पँथर"* का उदय होना, और आंबेडकरी युवा वर्ग का, वहां जुड जाना, उस नाम में एक बडा भय था. दलित पँथर से भी, कुछ नेताओं का उदय हुआ. इस पर चर्चा फिर कभी. फिर *प्रा. जोगेंद्र कवाडे* इनका नागपुर  - औरंगाबाद *"लॉंग मार्च"* निकला. इस काल में, *प्रकाश आंबेडकर* की कानुन की शिक्षा चल रही थी. हमारे बडे भाई *डॉ.‌ आनंद जीवने* ये, शासकीय मेडिकल कॉलेज में कार्यरत थे. उनकी ओपीडी लोगों से बहुत उमडी होती थी. उनकी अध्यक्षता में, *एड. प्रकाश आंबेडकर* इनका सत्कार कार्यक्रम, *"धनवटे रंगमंदिर"* में श्याम को रखा गया. और *मुझे* एड. प्रकाश आंबेडकर इनका सत्कार करने का अवसर मिला. सुबह में *"एड.‌ प्रकाश आंबेडकर* इनकी हाथी पर, मिरवणुक निकाली गयी.‌ और प्रकाश आंबेडकर ये पहिली बार, आंबेडकरी समाज में परिचीत हुये. आज से दस साल पहले, *एड.विमलसुर्य चिमणकर* / मोरे साऊंड सिस्टीम के *मोरे* जी, और मैं (डॉ जीवने) रवी भवन में, *एड. प्रकाश आंबेडकर* इनका मेसेज आने पर, मेरे ही कार से उनको मिलने पहुंचे. आधा घंटा तक चर्चा चली. मुझे उस चर्चा में कोई विशेष बात नहीं लगी.‌ तब मैने एड. प्रकाश आंबेडकर को जो कुछ कहां, प्रकाश आंबेडकर खामोश हो गये.  उस समय प्रकाश आंबेडकर इनके ३० - ४० लोग उपस्थित थे. *प्रा.‌ रणजीत मेश्राम / नत्थु नाईक / राजु लोखंडे / डॉ. मिलिंद माने* आदी आदी.‌ दो दिन बाद एड प्रकाश आंबेडकर इन्होने, मुझे याद करने का एक फोन आया. और वे मुझे कहने लगे की,  *"धम्म मित्र, आप ने बालासाहेब पर क्या जादु किया ? वे आप को याद कर रहे है."* कुछ बातें गोपनीय रखना ही उचित है. मेरे मुंबई प्रवास में, एक बहुत ही वयोवृध्द व्यक्ती, मुझे मिलने आया. उसने प्रकाश आंबेडकर के, बाबासाहेब डॉ आंबेडकर इनके संदर्भ में, *"उस खेड्डे ने, हमारे लिये क्या किया ? मेरे मां को बहु के रुप में स्वीकार नहीं किया ?"* इस शब्द के प्रयोग की बात कही.‌ और वह रोने लगा. मैने उस वृध्द आदमी से कहां कि, "बाबासाहेब ये प्रकाश आंबेडकर नाना है. और प्रकाश आंबेडकर अपने नाना को, खेड्डा कह सकता है. परंतु बाबासाहेब ने आंबेडकर परिवार को, क्या नहीं दिया है ? आज आंबेडकर यह नाम ही तो कापी है."  अब सवाल महान है कि, *"क्या प्रकाश आंबेडकर, बाबासाहेब के मिशन / संघटना को खत्म करना चाहता है ? रिपब्लिकन से बहुजन आघाडी - वंचित यह प्रवास, क्या दर्शाता है ? १४ अप्रैल को राजगृह पर काले झेंडे लगाना, किस बात का प्रतिक है ? राजगृह यह राष्ट्रिय स्मारक ना बनाना, क्या दर्शाता है ?  आंबेडकर भवन विवाद का भी प्रश्न है ? आनंद तेलतुंबडे (बहन दामाद) इनका बाबासाहेब लिखाण द्वेष, किस बात का प्रतिक है ?"*  बाबासाहेब डॉ आंबेडकर इनका, यशवंत - मीराताई इनके विवाह में ना जाना, इस के पिछे कुछ कारण रहे है. इस विषय पर चर्चा फिर कभी. परंतु यह सत्य है कि, *"रिपब्लिकन राजनीति में, प्रकाश आंबेडकर के बिना कोई पर्याय नहीं है."* पर क्या एड प्रकाश आंबेडकर, रिपब्लिकन आंदोलन की ओर अपने अगला मोर्चा खोलेगा ? एक अहं प्रश्न है.

      बाबासाहेब डॉ आंबेडकर द्वारा निर्मित धार्मिक संस्था *"The Buddhist Society of India"* (भारतीय बौद्ध महासभा) के तमाम ७ ट्रस्टी, मृत्यु को प्राप्त हुये है. अब सवाल उन तमाम पुराने *"चेंज रिपोर्ट"* को, उनके नाम पर,सत्यापन कैसे होगा ? यह बडा प्रश्न है. वही सन २००९ से, स्वयंघोषित अध्यक्ष *मिराताई आंबेडकर / चंद्रबोधी पाटील / राजरत्न आंबेडकर / व्ही. एम.‌ मोखले /  भीमराव आंबेडकर "* इन्होने धर्मादाय आयुक्त कार्यालय में, कोई ऑफ लाईन / ऑनलाईन ऑडिट सादर नहीं किया है. उन तमाम अलग अलग ऑडिट का एकत्रीकरण सादर करना, क्या कानुनी सही रहेगा ? आज TBSI का कोई भी संविधानिक ट्रस्टी नहीं है. तो फिर शासन कोष में जमा हुये १२ करोड राशी के, उपयोग कर्ता, हम किसको कहे ? यह बहुत सारे प्रश्न है. बाबासाहेब डॉ आंबेडकर इन्होने *"सोसायटी एक्ट"* के अंतर्गत, संस्था पंजीकृत कर, हर तिन साल में चुनाव का प्रावधान था. स्मृतिशेष ट्रस्टीयों ने,  सोसायटी एक्ट पंजीकरण रद्द कर, *"पब्लिक ट्रस्ट एक्ट"* अंतर्गत पंजीकरण कर, *"चुनाव प्रक्रिया"* को रद्द कर, वे मरते दम तक ट्रस्टी बन बैठे थे. चाहे वे काम करने के योग्य ना हो. सन २००९ से किसी ने भी, ऑडिट ना सादर करने से, कल अगर TBSI का पंजीकरण रद्द हुआ तो, उसका दोषी कौन ? यह भी प्रश्न है. इस संदर्भ में, *"मैने धर्मादाय कार्यालय मे एक याचिका"* डाली है. *"चंद्रबोधी पाटील हो या, राजरत्न आंबेडकर हो या, भीमराव आंबेडकर, ये TBSI के, कोई संविधानिक पदाधिकारी नहीं है."* फिर भी स्वयंघोषित पदाधिकारी बने है. जब TBSI के दो ट्रस्टी - *डॉ. पी. जी. ज्योतिकर / अशोक आंबेडकर* जिवीत थे, तब बुलडाणा के एक कार्यक्रम में, अशोक आंबेडकर / राजरत्न आंबेडकर / और मैं स्वयं गेस्ट हाऊस ठहरे थे. तब मैने राजरत्न आंबेडकर को पुछा था कि, *"क्या तुम्हे TBSI का पदाधिकारी बनना है ?"* राजरत्न के हां कहने पर, मैने उसे कुछ बांते कही. जो अशोक आंबेडकर को बहुत अच्छी लगी. और मैने राजरत्न आंबेडकर को, नागपुर मुझे मिलने को कहा. उसने तब हां तो कहा. परंतु मिलने कभी नहीं आया. अगर राजरत्न आंबेडकर मुझे मिलने आया होता तो, *डॉ. पी. जी. ज्योतिकर* इनसे फोन पर चर्चा कर / चंद्रबोधी पाटील इतके साथ, मैने समझौता किया होता. तमाम सादर *"चेंज रिपोर्ट"* वापस लेकरं, सभी मिलकर  *"एक चेंज रिपोर्ट "* को मान्यता के लिये, धर्मादाय आयुक्त को, सादर कर दिया होता.‌ परंतु राजरत्न आंबेडकर ये सबसे बडा महाठग दिखाई दिया. *"भारतीय बौद्ध महासभा"* इस धार्मिक संस्था से, मेरा पुराना संबंध रहा है. बाबासाहेब डॉ आंबेडकर इनके महापरिनिर्वाण के कुछ साल बाद, जो ११ ट्रस्टी बने थे, उसमे *एच. एम. मजगौरी"* यह भी एक ट्रस्टी थे. आग्रा अधिवेशन में, TBSI की नयी स्कीम लिखने की जबाबदारी *डॉ. स. वि. रामटेके / एच. एम. मजगौरी* इन्हे दी गयी थी. मजगौरी साहाब अग्रेंज काल से आझाद भारत में, रेल्वे में अधिकारी रहे. निवृत होने के बाद, वे भारत सरकार के *"आयोग"* में भी रहे. और वे मेरे मम्मी के आत्या भाई होने से, वे हमारे घर आया करते थे.‌ मेरे स्टडी रुम में बैठकर, TBSI पर चर्चा होती थी.‌ स वी रामटेके भी मजगौरी साहाब के साथ, मेरे घर आना नया नहीं था. और TBSI की नयी स्कीम, मेरे स्टडी रुम में बनायी गयी. उन्होंने तब मुझे TBSI का सदस्य बनाया था. *चंद्रबोधी पाटील* इन्हे मैने ही, *एच. एम. मजगौरी* साहाब से मिलाया था. आज TBSI यह संघटन, बहुत बुरे दौर से गुजर रही है. TBSI के *डॉ. ज्योतीकर* तथा समता सैनिक दल के *एड. भगवानदास* ये दोनो एकसाथ, मेरे घर आये भी थे. और मैं कभी दिल्ली जाने पर, कभी कभी भगवान दास जी, इन्हे मिलने जाता था. अत: TBSI का विवाद रोकना, उतना कठिण विषय नहीं था.

       विश्व हिंदु परिषद द्वारा *"सर्व धर्म सभा २००७"* का आयोजन, *मेरे (डॉ जीवने)* ही अध्यक्षता में, रेशीम बाग में हुआ था. उदघाटन संघ प्रमुख *डॉ.‌ मोहन भागवत* इन्होने किया था. विश्व हिंदु परिषद के राष्ट्रिय अध्यक्ष *प्रविण तोगडिया* इनका फ्लाईट मिस होने से, वे नहीं आ पाये. सदर परिषद की अध्यक्षीय भाषण में, मैने कहा था कि, *"मोहन भागवत ती, आप लोग की कट्टरता ने, हमारे आप के बीच, बहुत दुरीया बनायी है. आप लोगों ने, मागासवर्गीय आरक्षण (मंडल कमीशन) का विरोध किया है. भारत जलाया है. बुद्धगया मंदिर ट्रस्ट में, आप लोगों को बहुमत है. वह मंदिर बौध्दों के हाथ में, क्या नहीं देना चाहिए. आप हिंदु - हम बौध्दों के बीच "धर्म संघर्ष" चल रहा है.‌ वो धर्म संघर्ष रोकने के लिये, बाबासाहेब डॉ आंबेडकर इन्होने "बुध्दमय भारत" विचार दिया है. समता मुलक समाज निर्माण होना जरुरी है. क्या मोहन भागवत जी, आप हिंदु लोग बौध्द धर्म की दीक्षा लेंगे ? अगर आप लोग बौध्द हुये तो, भारत का धर्म संघर्ष यह रोका जा सकता है."* और बहुत कुछ मैने भाषण में कहा था. परंतु हमारे कुछ महामहिम मुझे संघवादी कहते हैं. अगर हमारी यही कद्रु मानसिकता रही तो, हम *"बौद्धमय भारत"* कैसे बनायेंगे ? यह प्रश्न है. मेरा बौध्द विद्वान / संविधान तज्ञ *डॉ. मुंसीलाल गौतम* (IAS) इनसे पारिवारिक संबंध है. उन्हे कुछ मान्यवरों ने, मै संघवादी होने की बात कही. तब डॉ मुंसीलाल गौतम जी ने, उन महामहिम को डाटा. और कहां किसी की इस तरह बदनामी करना ठिक नहीं. गौतम साहाब ने, उनके पी. एन. राजभोज प्रशिक्षण संस्थान में, आंबेडकर जयंती पर प्रमुख अतिथी के तौर पर बुलाया था. *इ.‌ झेड. खोब्रागडे* (IAS) जी उपस्थित थे. संचालन कर्ती ने मेरा परिचय देकर, मुझे भाषण देने को कहा. तब डॉ मुंसीलाल गौतम साहाब उठ खडे हुये. और कहा कि, डॉ. जीवने का इतना परिचय कम है. और उन्होंने IAS कोचिंग छात्रों को, मेरा अलग परिचय कराया. गौतम साहाब ने मुझे उनके *धनसारी* (उ.‌प्र.) के संस्थान परिसर में आयोजित *"धम्म परिषद"* में बुलाकर, सदर परिषद की अध्यक्षता दी थी. डा गौतम साहाब उनके लिखित पुस्तक के विमोचन में, प्रमुख वक्ता के तौर पर बुलाया था. मुंसीलाल गौतम साहाब ने दिया हुआ वह सन्मान, मेरे जीवन का अनमोल ठेवा है. *आंबेडकर संस्थान महु* (मे. प्र) में भी, मुझे जाने का बहुत बार अवसर आया.  आंबेडकरी लेखक / समता सैनिक दल के *डॉ. एल. आर. बाली* जी / भारत सरकार के योजना आयोग सदस्य *डॉ. नरेंद्र जाधव* इनसे वहां कुछ चर्चा भी हुयी. यह सभी यादें / बातें, मेरे जीवन की बहुत बडी पुंजी है.

       *श्रीलंका सरकार* द्वारा, अनुराधापुर शहर के *"बुध्दीस्ट मांक युनिव्हर्सिटी"* में, *"बौध्द धम्म परिषद"* के लिये, मुझे निमंत्रण दिया था. जब मेरे फ्लाईट ने श्रीलंका हवाई अड्डे पर लैंड किया, और विमान का दरवाजा खुलने पश्चात मैं बाहर निकला तो,  दरवाजे थोडे सामने मेरे नाम की पाटी लेकरं *एक हवाई सुंदरी और एक सिक्युरिटी ऑफिसर* खडे थे. मेरा परिचय देने के पश्चात, वे मुझे व्हीव्हीआयपी कक्ष ले गये. जहां श्रीलंका सेना के लेफ्टनंट/ कर्नल और हवाई अड्डे की अधिकारी ने, मेरा स्वागत किया.‌ वहां कुछ नास्ता पाणी होने के पश्चात, मेरी बोर्डिंग पास हवाई अड्डे के कर्मचारी को देने पर, वे मेरा लगेज ले आया. हवाई अड्डे से, श्रीलंका सेना के कार से, हम कोलंबो से अनुराधापुर चल निकले.‌ दो दिन की परिषद होने के बाद, श्रीलंका सेना ने हमें अनुराधापुर स्थित बोधिवृक्ष /  तमाम बौध्द स्थलों का भ्रमण कराया. महिंदालय / डुम्बाला / कैंडी /  कोलोंबो आदी. कैंडी में बुध्द के धरोहर को देखा. कैंडी के परिचीत *भंते सुमंगल* जी मुझे उनके विहार ले गये. उनकी धरोहर अष्टकोनी आकार की है. मेरा मुक्काम उनके कक्ष में ही रहा. सुबह उठकर स्नान होने के पश्चात, वे मुझे उनके कक्ष के उपर, पहिली मंजील ले गये. और मुझे कहां कि, यह *"बुध्द की अस्थी धातु"* है. वह सुनकर मुझे बडा आश्चर्य हुआ. मेरी संपुर्ण रात बुध्द अस्थी धातु के छाया में रही.‌ दुसरे दिन मैं वहां से भारत आने, कोलोंबो को निकल पडा.  *HWPL H.Q. Korea* की ओर से, इंचीन शहर में आयोजित *"विश्व शांती परिषद २०२३"* का निमंत्रण मिला. मैं व्हाया व्हिएतनाम होते हुये, कोरीया पहुंचा. इंचीन हवाई अड्डे से बाहर निकलने पर, मेरे नाम की पाटी लेकरं ८ - १० कोरीयन लडकीया खडी थी. उन्होंने मेरा स्वागत करने के पश्चात, वे मुझे पंचतारांकित *हॉटेल ग्रंट ह्यात"* ले गयी. वहा भी स्वागत होने पर, मुझे परिषद की किट दी गयी. और मेरे रुम तक वे मुझे छोडने आयी. जागतिक शांती परिषद में बडासा इंतजाम था. परिषद के समाप्ति के बाद, वे हमें प्राचिन संग्रहालय दिखाने ले गये. उस संग्रहालय ने *"द्वितीय महायुध्द"* और कोरीया युध्द की यादें, मेरे सामने चित्र के समान खडी हुयी. प्रवास जीवन की कुछ यादें, कभी भुलायी नहीं जाती. मेरे इस मिशन में, मुझे *सिंगापुर / मलेशिया / थायलंड / नेपाल* आदी देशों की संस्कृती समझने का, मुझे अवसर मिला है. जो कभी भी भुलाया नहीं जा सकता.

       *"संप्रदायवाद"* संदर्भ के परिषद के लिये, *"मुझे गोहाटी - आसाम"* का निमंत्रण था.‌ दिल्ली से *एड.‌ भगवानदास* और  बामसेफ के *डी.‌के. खापर्डे* जी भी आये थे.‌ हम तिनो एक ही जगह ठहरे थे. कार्यक्रम खत्म होने के बाद, हम खाना खाने को निकल पडे. परंतु खापर्डे जी वहां नहीं दिखे. श्याम होने पर, वे होटेल आये. एक घंटा रुकने के बाद, खापर्डे जी मुझे कहने लगे, चलो हम गोहाटी घुमकर आते है. और रास्ते से चलते चलते ही, खापर्डे जी ने, अपने शबनम बैग से ब्रेड निकाला और मुझे भी देने लगे. मैने कहां अभी मुझे भुख नहीं है. और खापर्डे जी, रास्ते से चलते चलते ब्रेड खाते रहे. तब मैने सही मिशनरी का अनुभुती की. *अलंकार थिएटर* के मालिका *म्हैसकर* जी, मेरे घर बहुत बार आये. उन्होंने मुझे रामटेक के उनके *"बुध्द विहार"* उदघाटन को बुलाया था. बामसेफ के *वामन मेश्राम* जी भी गेस्ट थे. वे भाषण देकरं म़च से चले गये. अत: उनके मिशन अनुभव पर, कुछ नहीं कह सकता. सीआरपीसी के इस मिशन में, मुझे बहुत से मान्यवरों के साथ रहने का अवसर मिला. उनका सानिध्य भी मिला. वे मान्यवर है - *परम पावन दलाई लामा / परम पावन बुध्द मैत्रेय (अमेरिका) / परम पावन कर्माप्पा लामा - त्रिनले थाये दोरजे / परम पावन ड्रायकंग कैबगन चेटसंग / परम पावन त्सोना गोंत्से रिंपोचे (बोमडिला) / भदंत डॉ. आनंद कौशल्यायन / भदंत बनागल उपतिस्स नायका महाथेरो (महाबोधी सोसायटी श्रीलंका) / आर्य नागार्जुन सुरेई ससाई / भदंत संघसेन (महाबोधी सोसायटी लद्दाख) / भंते फ्रा सांगकोम थानापान्यो (थायलंड) / भंते सोमन दोरजी (भुतान) / भदंत सोमरतन महाथेरो (महाबोधी सोसायटी श्रीलंका)* आदी बहुत सारे नाम है. परंतु व्हिएतनाम के *थिंक नैट हैंन* इनका अलग अनुभव रहा. जब वे नागपुर आ रहे थे और तत्कालीन प्रधानमंत्री *डॉ मनमोहन सिंग* उनसे मिलना चाहते थे, उन्होंने समय अभाव के कारण प्रधानमंत्री को समय नहीं दिया. हम लोग नागपुर ने, नागपुर हवाई अड्डे पर उनका स्वागत किया. दुसरे दिन धम्मप्रेमी *श्याम तागडे* (IAS) जी, इनका मुझे फोन आया. वे भी थिक नैट हैन जी से मिलना चाहते थे. श्याम तागडे जी मेरे घर आये और हम उनसे मिलने चले गये. तागडे जी ने उनकी लिखी किताब, उन्हे भेट दी. मेरे जीवन में, ऐसे बहुत सारे सुखद अनुभव रहे हैं. *परंतु मेरी पत्नी के परिवार से, मेरे मधुर संबंध कभी भी नहीं रहे.* मुझे किसी प्रकार की चापुलुसी, जी हुजुरी, पैर लोटांगण, झुट बोलना, धोकादारी आदी कभी भी पसंद नहीं आयी. मैं स्वाभिमानी से जीता रहा हुं. और मेरे स्वभाव ने, किसी प्रकार का सम्झौता कभी नहीं किया. झुट का सहारा कभी नहीं लिया. और *इस कारणवश, मुझे बहुत ही बडी, किंमत चुकानी भी पडी है.* शायद उसकी पुर्तता होना संभव भी ना हो.,.! भविष्य में मुझे, कुछ जिम्मेदारी से परे होकर, मेरे लक्ष को पाना है. सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल के *सुर्यभान शेंडे / इंजी. विजय बागडे / पर्यटन तज्ञ - डॉ उमाजी बिसेन / इंजी. शील कुमार गोस्वामी / इंजी. गौतम हेंदरे / प्रा. नितिन तागडे / अभिनेता - रवी पाटील / विजय भैसारे / डॉ. राजेश नंदेश्वर / मिलिंद गाडेकर / डॉ. मनिषा घोष / डॉ. भारती लांजेवार / इंजी. माधवी जांभुलकर / करुणा रामटेके / सुरेखा खंडारे / साधना सोनारे* समान बहुत सारे पदाधिकारी मेरे हाथ है. जय भीम !!!


*************************************

* *डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर 

         दिनांक २९ मई २०२४

No comments:

Post a Comment