Sunday, 19 May 2024

 🇮🇳 *प्रजातंत्र धर्मनिरपेक्ष भारत में युनोस्को जागतिक रिकार्ड के लिये केवल तिन हिंदु धर्म ग्रंथ की शिफारस...!*

     *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल 

एक्स व्हिजिटिंग प्रोफेसर, डॉ बी आर आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ महु म प्र.

मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२


       *"गुलाम भारत"* (Slave India) देश‌ को १५ अगस्त १९४७ को, गोरे अंग्रेजो द्वारा *"पुर्णतः आजादी"* (Fully Independence) मिली या नही, वा *"गोरे अंग्रेजो द्वारा काले अंग्रेजो (Brahminiism) को किया गया वह सत्ता का हस्तांतरण"* (Transfer of Power) था,यह संशोधन का विषय है.‌ परंतु गोरे अंग्रेजो द्वारा *"संविधान सभा का गंठण, ६ दिसंबर १९४६"* (Constituent Assembly) को, भारत आझाद होने के पहले ही किया गया था. २५ नवंबर १९४९ को, हमारे *"भारत के संविधान"* (Constitution of India) को मान्यता मिली, और २६ जनवरी १९५० को *"भारत यह प्रजातंत्र देश"* बना. और हमारे *"संविधान प्रास्ताविका"* (Preamble) में स्पष्ट लिखा गया है कि, *"We the people of India having solemnly resolved to constitute India in to a "Sovereign Socialist Secular Democratic Republic....."* (भारत के लोक, भारत एक सार्वभौम समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकशाही गणराज्य बनाने का...) संकल्पपूर्वक हम निर्धार करते है. और हम यह शपथ भी लेते है. यहाँ प्रश्न  *"सार्वभौम समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकशाही गणराज्य"* इस संदर्भ से जुडा हुंआ है. और क्या हमारी न्यायव्यवस्था, *"भारत के संविधान का Watch Dog"* यह भुमिका, सही रुप से (इमानदारी से) निभा रही है ? यह भी अहं सवाल उठता है.

      अभी अभी *"युनोस्को यादी"*  (जागतिक आशिया - प्रशांत सागर विभागीय स्मृति नोंद वही) में, हिंदु धर्म ग्रंथ *"रामचरित मानस / पंचतंत्र / सहृदय लोक आलोचना"* इन तिन ग्रंथो का समावेश किया गया है. उन ग्रंथ को *"युनोस्को"* द्वारा, प्रमाणित मान्यता मिल गयी है. यहां सवाल उन तिन ही ग्रंथो के, *"मेरिट / मानवतावाद / धर्मनिरपेक्ष विचार"* का है. मेरे विद्यार्थी जीवन में, मुझे संस्कृत भाषा सिखने का और उन ग्रंथो का पढने का अवसर आया था. और *"रामचरित मानस"* इस तुलसीदास कृत ग्रंथ के बारे में क्या कहे ? *"शुद्र और स्त्री वर्ग के बारे में, जो कुछ लिखा गया है"* और उन तमाम हिंदू रुढी ग्रंथ की समिक्षा, हम फिर कभी करेंगे. आज कल तो, नरेंद्र मोदी - भाजपा सरकार की नीति, यह *"अल्पसंख्याक विरोधी"* दिख रही है. भारत के संविधान द्वारा अल्पसंख्याक वर्ग को भी, उनके अधिकारों की रक्षा बतायी गयी है.  अल्पसंख्याक वर्ग में *"बौध्द / मुस्लिम / सिख / पारशी"* ये समुदाय आते है.‌ वही हिंदु वर्ग में भी, *"अनुसूचित जाती/ जमाती / ओबीसी / इबीसी / एन‌ टी / व्ही जे"* का समावेश होता है. जो बहुसंख्यक वर्ग में आते है. परंतु वे‌ मागास समाज से जुडे है. परंतु *सवर्ण / उच्च जाती वर्ग* का प्रतिशत यह ५ - ७ % से जादा ना होकर भी, वे *"बहुसंख्याक / अल्पसंख्याक वर्ग"* पर, शासन करते रहे है. और वे सभी सवर्ण / उच्च जाती वर्ग, *"शोषक"* के श्रेणी में नज़र आते है.

      हिंदु धर्म - ब्राम्हण धर्म का भेद करते हुये, डॉ बाबासाहेब आंबेडकर कहते हैं कि, *"भारत का धर्म सदा से हिंदु धर्म रहा था, ये विचार मुझे कदापी मान्य नहीं है. हिंदु धर्म तो, सब के अंत में हुयी, विचारों की उत्क्रांती से होकर अस्तित्व में आया. वैदिक धर्म के प्रचार के बाद, तिन बार धार्मिक परिवर्तन होते आया है. वैदिक धर्म का रूपांतर ब्राह्मण धर्म में, और ब्राह्मण धर्म का रूपांतर हिंदु धर्म में हुआ है."* (कोलोंंबो, ६ जुनं १९५०)  हैदराबाद के *"निज़ाम काल"* में, हमें *"हिंदु और ब्राह्मण"* ये दोनो, अलग अलग जातीया दिखाई देती है. सन १९११ में इंग्रज काल में, शुद्र - अतिशुद्र वर्ग की ११०८ जातीयां, हिंदु मानी नहीं जाती थी. सन १९३१ की जनगणना में, जनगणना आयुक्त *जे. एस. हटन* इन्होने, *"जाती"* की एक अनुसुची (Schedule Caste), *"जमाती"* की एक अलग अनुसुची (Schedule Tribe) बनायी थी. जो हिंदु धर्म से अलग थे. परंतु आज उन्हे *"हिंदु धर्म"* से जोडा जाता है. इस कु-राजनीति को समझना, हमें बहुत जरुरी है. *"हिंदु - हिनदु"* यह कोई धर्म नहीं है. विदेशी द्वारा यह दी गयी गाली है. *"हिंदु> हिनदु > हिन + दु > हिन = निच, काला, चोर..... दु = प्रजा, लोग > "हिंदु = चोर, निच लोग."* इसलिए स्वामी दयानंद सरस्वती इन्होने, स्वयं को हिंदु नहीं माना. उन्होंने *"आर्य समाज"* की स्थापना की थी.

      नरेंद्र मोदी - भाजपा सत्ता काल में, स्वामी (?) रामदेव‌ के माध्यम से, *"जागतिक योगा दिन"* मनाने का प्रयास किया गया है. फिर तो, *"जागतिक विपश्यना दिन"* क्यौ नहीं ? यह भी अहं प्रश्न है. जब कि, विपश्यना यह विषय हमारे लिये, अहम विषय नहीं है.‌ *"बुद्ध मिशन"* यह अहं विषय है. वही *"रामचरित मानस / पंचतंत्र / सहृदय लोक आलोचना"* इन हिंदु धर्म ग्रंथ के *"युनोस्को"* नामकरण पर, भारत सरकार रुची लेता हो तो, अन्य सभी धर्म ग्रंथ के प्रति सदर रुची ना होना ! इसे हम क्या कहे ? धर्मनिरपेक्ष शासन व्यवस्था में, न्याय तो सभी धर्म के लिये, समान होना चाहिए.‌ *"क्या आप भारत को, हिंदु राष्ट्र बनाना चाहते हो !!!"* विश्व का एकमेव हिंदु राष्ट्र यह *"नेपाल"* था. परंतु नये संविधान ने, नेपाल को निधर्मी राष्ट्र घोषित किया है. विश्व में सबसे ज्यादा लोकसंख्या यह, ख्रिश्चन / मुस्लिम / बौध्द समुदाय की है.‌ अर्थात उन धर्म समुदाय के देश‌ है. विश्व में एक भी देश हिंदु नहीं है. और *"युनोस्को"* द्वारा उन हिंदु धर्म ग्रंथ से मान्यता मिलना, यह तो युनोस्को के बिन - अकलपणा का प्रमाण है.  *"क्या युनोस्को, धर्म - जाती - मानव के भेदाभेद का स्वीकार करता है ???"* इस प्रश्न के उत्तर में‌ ! अंत में, मेरे अपने कविता के, चार लाईन शब्दों के साथ...!!! जय भीम.

हम जिसे वो अपना कहे, वे पराये भी बने होते है 

कभी तो वो सुख पाते, मानसिक रोगी हो जाते है

चैन पाने की आक्रोश में, वे‌ धोका भी कर जाते है

जब जंज़ीर में जख़डे हो, तब वे सच को पाते है...


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काटोल - अमरावती प्रवास में... दिनांक १९ मई २०२४

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