Saturday, 25 May 2024

 👌 *HWPL (H.Q.: Korea) इस विश्व स्तरीय आंतरराष्ट्रिय संघटन की ओर से, २५ मई २०२४ को झुम पर आयोजित, "विश्व शांती शिखर सम्मेलन" इस विषय पर, "आंतरधर्मीय परिसंवाद" कार्यक्रम...!*

*डा. मिलिन्द जीवने,* अध्यक्ष - अश्वघोष बुध्दीस्ट फाऊंडेशन, नागपुर *(बुध्दीस्ट एक्सपर्ट / फालोवर)* इन्होंने वहां पुछें दो प्रश्नों पर, इस प्रकार उत्तर दिये...!


** प्रश्न - १ :

** *कृपया चर्चा करते कि, धार्मिक शिक्षा में क्या शामिल होना चाहिए और इसके मापदंड क्या है ?*

*उत्तर* : -  धार्मिक चर्चा का‌ विषय, जब भी हमारे सामने चर्चा को आता है. तब वह धार्मिक चर्चा करने की अधिकार, *"भारतीय संविधान"* की अनुच्छेद २५ अंतर्गत - *"Right to freedom of Religion"* (धर्म स्वातंत्र का अधिकार) हमें मिला है. और उस अनुच्छेद के अंतर्गत हमें *"धर्म को मुक्त रुप से प्रतिज्ञापित करना, आचरण, प्रसार - प्रचार करने का"* यह विषय निहित है.

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वही *"भारतीय संविधान"* का अनुच्छेद १९ - *"Rights to Freedom"* के अंतर्गत Right to freedom of speech & expression (भाषण एवं अभिव्यक्ती स्वातंत्र्य) / Right to assemble peaceably & without arm (शांती से एवं बिना शस्त्र इकठ्ठा होना) / Right to form association or union (अभिसंघ वा संघ बनाना) / Right to move freely through out the territory of India (मुक्ती से संचार करना) / Right to reside and settle in the part of territory of India (भारत में रहना या स्थायिक होना) / Right to practice any profession or to carry on only occupation, trade or business (किसी भी पेशा, व्यवसाय करना) यह अधिकार, भारत के सभी आवाम को मिले हैं.

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*"भारत के संविधान"* के निर्माता डॉ बाबासाहेब आंबेडकर इन्होने, हमें यह तो अधिकार दिये है, परंतु उसका दुरुपयोग करने पर, रोक भी लगायी है. कोई भी व्यक्ती यह *"स्वैराचारी ना बने."* यह उदात्त विचार, उसके पिछे रहा है. और शांती को कायम बनाये रखना / प्रेम - भाई चारा को बनाये रखना / व्यक्ती पर नियंत्रण रखने के लिये, *"Criminal Penal Code"* समान कानुन का भी निर्माण किया गया है.

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*"भारतीय संविधान"* यह कोई *"कानुनी किताब"* (Legal Book) नहीं है, बल्की वह एक *"कानुनी दस्तावेज"* (Legal Documents) है. और आवाम पर नियंत्रण लाने के लिये, Cr.P.C. Act समान अन्य कानुनों को बनाया गया है.‌ और कानुन का उल्लंघन करने पर, *"पोलिस"* समान व्यवस्था का निर्माण भी किया गया है. और पोलिस समान व्यवस्था की, मनमानी रोकने के लिये, *"न्यायालयों"* का निर्माण भी किया गया है. कानुन के सामने सभी समान (Equal) है.  इसलिए संविधान का अनुच्छेद १४ - *Right to equality* (समानता का अधिकार) की व्यवस्था की गयी है. यही *"भारत के प्रजातंत्र"* (Democracy) की विशेषता रही है.  भारत का संविधान *"पुंजीवाद / हुकुमशाही / राजेशाही"* को नकारता है.

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भारत का संविधान और भारत के कानुनों को समझने पर, *"धार्मिक शिक्षा"* यह कैसे होनी चाहिये ? धार्मिक शिक्षा के क्या मापदंड होने चाहिये ? यह विषय हमें सहजता से बोध कराता है. हमे *"प्रेम - मोहब्बत - शांती - अमन - भाई चारा"* को बनाये रखना है.  *"धर्मांधता"* से हमें दुर रहना है. हमारा संविधान *"धर्मनिरपेक्ष भाव"* (Secularism) की शिक्षा देता है. 

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भारत के संविधान ने सभी आवाम को आजादी दी है. व्यक्ती स्वातंत्र्य को दिया है.‌ और कुछ व्यक्ती विशेष इसका दुरुपयोग करते हुये भी, हमें दिखाई देते है. यह एक मानसिक विकृति है.‌ और इस कारणवश, भारत में कभी कभी अशांती भी दिखाई देती है. यही नहीं कुछ धर्मांधवादी संघटन और भारतीय राजनीति भी, राजकिय फायदा लेने के लिये, *"धर्मांधी जहर"* भी घोलते रहते है. अत: हमें इस मानसिकता का, दटकर विरोध करना बहुत जरुरी है.  या कि, हम अमन से रह सके.


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** प्रश्न - २ :

** *धार्मिक शिक्षा के लिये, जिम्मेदार एक धार्मिक नेता के रुप में, आप किन योग्यताओं को आवश्यक मानते है?*

*उत्तर* :- धार्मिक शिक्षा कैसी हो ? क्या योग्यताएं होनी चाहिये ? इस संदर्भ में, धार्मिक नेता के रुप में....! इसका उत्तर देने के लिये, मैं तथागत बुध्द के वचन को, कोट करना चाहुंगा. और तथागत बुद्ध तो *"महाकारुणीक"* है. विश्व शांती (World Peace) के, वे *"अग्रदुत"* है. 

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बुध्द कहते हैं... *"चरक भिक्खवे चारिकं, बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय, लोकानुकंपाय अत्थाय, हिताय, सुखाय, देवमनुस्सानं, देशत्थ भिक्खवे धम्मं आदि कल्याणं मज्झेकल्याणं परियोसान कल्याणं, सात्थं सव्यंजनं केवल परिपुण्णं परिसुध्दं ब्रम्हचरियं पकासेथ |"* (अर्थात - हे भिक्खुओ, बहुजन के हित के लिये, बहुजन के सुख के लिये, लोकों पर अनुकम्पा कर, देव और मनुष्यों के कल्याण के लिये, धर्मोपदेश का प्रसार करने भ्रमण करो. प्रारंभ में कल्याणप्रद, मध्य में कल्याणप्रद, और अंत में कल्याणप्रद ऐसे धम्म मार्ग का अर्थ और भावसहीत परिशुध्द ऐसे धर्म का, ब्रम्हचर्य रखकर प्रचार करो.)

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बुध्द ये अच्छे लोगों की संगत करने का उपदेश देते हुये कहते हैं कि, *"न भजे पापके मित्ते न भजे पुरिसाधमे | भजेय मित्ते कल्याणे भजेथ पुरिसुत्तमे ||"* (अर्थात - बुरे मित्रों को साथ न करे, न अधम पुरुषों का सेवन करे. अच्छे मित्रों की संगत करे, उत्तम पुरुषों की संगति करे.)

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बुध्द ने वैरता (शत्रुता) करने से मना करते हुये, वे कहते हैं कि, *"न हि वेरेन वेरानि, सम्मान्तीध कुदाचनं | अवेरेन च सम्मन्ति एस धम्मो सनन्तनो ||"* (अर्थात - वैर से वैर कभी शांत नहीं होता. अवैर से वैर शांत होता है. यही संसार का नियम है. यही सनातन धर्म है.) अर्थात बुध्द का धर्म ही *"सनातन धर्म"* है. जो हमें समझना है.

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बुध्द *"पाप कर्म"* करने से मना करते हुये कहते हैं कि, *"मधुआ मञ्ञति बालो याव पापं न पच्चति |*

*यदा च पच्चति पापं अथ बालो दुक्खं निगच्छति  ||"*

(अर्थात - जब तक पाप का फल नही मिलता, तब तक अज्ञ व्यक्ति पाप को, मधु के समान समझता है. किंतु उस का फल मिलता है, तब वो दु:ख को प्राप्त होता है.)

*"पापञ्चे पुरिसो कयिरा न तं कयिरा पुनप्पुनं |*

*न तम्ही छंद कयिराथ दुक्खो पापस्स उच्चयो ||"*

(अर्थात - मनुष्य यदी पाप हो जाए तो, उसे बार बार ना करे. उस मे रत ना हो जाए. क्यौ कि पाप का संचय यह दु:खदायक होता है.)

*"पापोपि पस्सति भद्र याव पापं न पच्चति |*

*यदा च पच्चति पापं अथ पापो पापामि पस्सति ||"*

(अर्थात - जब तक पाप का परिणाम सामने नही आता, तब तक पाप अच्छा लगता है. जब पाप का परिणाम आना शुरु हो जाता है, तब पापी को समझ मे आ जाता है कि, मैने क्या कर दिया है.)

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बुध्द ने बडों का आदर करने के संदर्भ में कहा कि,*"अभिवादनसिलिस्स निच्चं वध्दापचायिनो |*

*चत्तारो धम्मा वड्ढन्ति आयु वण्णो सुखं बलं ||"*

(अर्थात - जो नित्य बडों का आदर करता है, अभिवादनशील है, उस की आयु, वर्ण, सुख और बल मे वृध्दी होती है.)

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      तथागत बुध्द ने सारनाथ मे अपने पांच भिक्खुओं को, जो प्रथम मार्गदर्शन किया था, उसे *"धम्म चक्र प्रवर्तन"* कहते है. तब बुध्द पाच मापदंड का पालन करने को कहा है. हमे देखना है कि, हम उस मापदण्ड में कितने खरे उतरते है.... ! *१. किसी भी प्राणी की हिंसा ना करना २. चोरी ना करना ३. व्यभिचार ना करना ४. झुट ना बोलना ५. मादक वस्तुओं का सेवन ना करना....!*

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तथागत बुध्द के ऐसे बहुत सारे सु-वचन है. अंत में बुध्द के धम्म का सारं को समझना होगा. बुध्द कहते हैं कि, *"सब्बपापस्स अकरणं कुसलस्स उपसम्पदा | सचित्तोपरियोदपनं, एतं बुध्दान सासनं ||"* (अर्थात - सभी तरह के पापों को ना करना, पुण्यों का संचय करना, अपने चित्तो को परिशुध्द एवं नियंत्रित करना, यही बुद्ध की शिक्षा है. यही बुध्द का शासन का अभिप्राय है.)



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* परिचय : -

* *डाॅ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*

    (बौध्द - आंबेडकरी लेखक /विचारवंत / चिंतक)

* मो.न.‌ ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२

* राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल

* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी वुमन विंग

* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी एम्प्लाई विंग

* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी ट्रायबल विंग

* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी वुमन क्लब

* अध्यक्ष, जागतिक बौध्द परिषद २००६ (नागपूर)

* स्वागताध्यक्ष, विश्व बौध्दमय आंतरराष्ट्रिय परिषद २०१३, २०१४, २०१५

* आयोजक, जागतिक बौध्द महिला परिषद २०१५ (नागपूर)

* अध्यक्ष, अश्वघोष बुध्दीस्ट फाऊंडेशन नागपुर

* अध्यक्ष, जीवक वेलफेयर सोसायटी

* माजी अध्यक्ष, अमृतवन लेप्रोसी रिहबिलिटेशन सेंटर, नागपूर

* अध्यक्ष, अखिल भारतीय आंबेडकरी विचार परिषद २०१७, २०२०

* आयोजक, अखिल भारतीय आंबेडकरी महिला विचार परिषद २०२०

* अध्यक्ष, डाॅ. आंबेडकर आंतरराष्ट्रिय बुध्दीस्ट मिशन

* माजी मानद प्राध्यापक, डाॅ. बाबासाहेब आंबेडकर सामाजिक संस्थान, महु (म.प्र.)

* आगामी पुस्तक प्रकाशन :

* *संविधान संस्कृती* (मराठी कविता संग्रह)

* *बुध्द पंख* (मराठी कविता संग्रह)

* *निर्वाण* (मराठी कविता संग्रह)

* *संविधान संस्कृती की ओर* (हिंदी कविता संग्रह)

* *पद मुद्रा* (हिंदी कविता संग्रह)

* *इंडियाइझम आणि डाॅ. आंबेडकर*

* *तिसरे महायुद्ध आणि डॉ. आंबेडकर*

* पत्ता : ४९४, जीवक विहार परिसर, नया नकाशा, स्वास्तिक स्कुल के पास, लष्करीबाग, नागपुर ४४००१७

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