.✊ *सरकारी नौकरी में मागासवर्गीय जाती आरक्षण यह संविधानिक अधिकार नहीं है : इति सर्वोच्च न्यायालय...!*
*डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर ४४००१७
राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
एक्स व्हिजिटिंग प्रोफेसर, डॉ बी आर आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ महु म. प्र.
मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२
तामिळनाडू राज्य के "दलित मेडिकल असोसिएशन" के अध्यक्ष - *डॉ. के. पुगझेंडी* जी (M.S. Orthro) Ex - Joint Director of Medical & Rural Health Services इन्होने, *"मागासवर्ग आरक्षण यह संविधानिक अधिकार नहीं है"* इस संदर्भ में मुझे ८ - १० दिन पहले, एक बहुत महत्वपूर्ण मेसेज भेजा था. वह मेसेज पढकर मुझे सन १९८९ - ९० का, *"एकल पद संवर्ग मागासवर्गीय आरक्षण"* (Isolated Post Reservation) के संदर्भ में, हमारे युवा समुह द्वारा किये गये आंदोलन की यादें, बहुत ही ताजा हो गयी. और मैं उस काल में, मां. सर्वोच्च न्यायालय का *"चक्रधर पासवान विरुध्द बिहार शासन"* तथा अन्य केस के विभिन्न जजमेंट धुंडने के काम में, मै लग गया. और पिछले ३ - ४ दिनों से, मैं सदर विषय संदर्भ में निहित विषयों पर, लिखने का मन बना चुका था. क्यौं कि, यह विषय *"संविधान"* संदर्भ का है. अत: इस पर लिखाण, यह बहुत सावधानी से होना जरुरी है. डॉ पुगझेंंडी के जुडे संघटन का नाम, *"दलित मेडिकल असोसिएशन"* होना, मुझे बडी ही वेदना कर गया. असोसिएशन का नाम, *"डॉ. बी. आर. आंबेडकर मेडिकल असोसिएशन"* होता तो, और भी अच्छा होता. हमे *"दलित मानसिकता"* से परे होना जरुरी है. परंतु उन्होंने उस महत्वपूर्ण विषय के पहल से, मुझे आनंद भी महसुस हुआ. *"मागासवर्गीय आरक्षण यह संविधानिक अधिकार नहीं है "* संदर्भ का, सर्वोच्च न्यायालय का वह जजमेंट, यह दो न्यायाधीश *न्या. एल. नागेश्वर राव / न्या. हेमंत गुप्ता* इनके खंडपीठ ने, ७ फरवरी २०२० को दिया था. परंतु हम चार साल अनभिज्ञ कैसे रहे ? यह भी प्रश्न मन में आ गया. हमारे विद्यार्थी जीवन काल में, *"स्कालरशीप / होस्टेल समस्या"* आदी विषयों पर, हम ने बहुत सें आंदोलन किये थे. हमने बहुत मोर्चे भी निकाले थे. वह याद ताजा हो गयी. सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल के *"महाराष्ट्र विद्यापीठ कायदा"* आंंदोलन के कारण ही, विद्यापीठ सिनेट में, मागासवर्गीय आरक्षण का कोटा यह बढा है. नागपुर का *"तिब्बत मुक्ति का आंदोलन"* भी बहुत याद कर गया. हम लोग मेरी कार से, *"तिब्बत मुक्ति रैली"* के लिये गोठणगाव भी गये थे. और मुझे उस *"रैली को झेंडा दिखाने"* का, अवसर भी मिला हुंआ था. तिब्बती लोगों की *"विधान सभा"* को दिखाने, वे हमें अंदर भी ले गये थे. यही कारण है कि, हमें *"बुध्द प्रजातंत्र"* समझने में मदत मिली है. खैर छोडो. अब हम आरक्षण विषय पर चर्चा करते है.
मां. सर्वोच्च न्यायालय में दायर *"मुकेश कुमार एवं अन्य विरूध्द उत्तराखंड सरकार"* केस नंबर - सिविल अपिल न.१२२६/२०२० में, *न्या. एल.नागेश्वर राव / न्या. हेमंत गुप्ता* इनके खंडपीठ ने, *"उत्तराखंड उच्च न्यायालय"* का निर्णय रद्द किया है. और सर्वोच्च न्यायालय उसके निर्णय में कहता है कि, *"In view of the law laid down by this court, there is no doubt that the state Government is not bound to make reservations. There is no fundamental right which inheres in an individual to claim reservation in promotion."* हमारा मा. सर्वोच्च न्यायालय, *"भारत के संविधान"* का आर्टिकल १६ (४) / १६ (४अ) - *"Equality of opportunity in matters of public employment "* के बीच ही, घुमते हुये नज़र आता है. और संविधान का *आर्टिकल ३३५* - *Claims of Scheduled Castes and Scheduled Tribes to services and posts.* का उल्लेख केवल एक ही बार करते हुये, "Such reservation of Scheduled Castes and Scheduled Tribes in a particular class or classes of posts without affecting general efficiency of administration as mandated" कहता है. अत: हमें हमारे *"भारतीय संविधान का आर्टिकल ३३५"* में, सुधार करने के लिये (Amendment)/ और सरकारी नोकरी / पदोन्नती यह हमारा *"मुलभूत अधिकार"* (Fundamental Right) है, इसके लिये तिव्र आंदोलन करना होगा. भारत सरकार पर दबाव भी लांना होगा. *रामदास आठवले* समान राजकीय जोकर, हमारे किसी भी काम का नहीं है. यह भी हमें समझना बहुत जरुरी है. हमारे नोकरी के अधिकार को नकार ने लिये, सर्वोच्च न्यायालय में, बहुत से *सायटेशन* सादर किये गये है. और यह भी अहं प्रश्न है कि, *"क्या मा सर्वोच्च न्यायालय की पुर्ण खंडपीठ, स्वयं होकर इस दो न्यायाधीशों के निर्णय पर, कोई महत्वपूर्ण निर्णय लेंगा."* वही हमारे तथाकथित नेता लोग / विद्वान महाशयों द्वारा, उस दिशा में पहल क्यौं नहीं की गयी. यह अहं विषय *"चार वर्ष तक"* छुपा कैसे रहा ? *"रामजन्मभूमी प्रकरण"* पर, सर्वोच्च न्यायालय के सरन्यायाधीश *रंजन गोगोई* इनकी प्रमुख अध्यक्षतावाली पाच न्यायाधीशों की पीठ, - *"बगैर किसी भी प्रायमा फेसी"* के आधार पर, रामजन्मभूमी के फेवर में निर्णय दे सकती है तो, *"अनुसूचित जाती / जनजाति"* वर्ग के हित में, *"नोकरी आरक्षण का मुलभुत अधिकार"* क्यौं नहीं ???
अभी तक मै आप को, *"Promotion in Reservation"* (प्रनोत्ती में आरक्षण) इस विषय पर, चर्चा कर रहा था. अब हम *"Reservation in Isolated Post"* (एकल पद संवर्ग आरक्षण) इस विषय पर, मां. सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय को देखेंगे. सर्वोच्च न्यायालय में, सिविल अपिल क्र. २३४६/१९९१, विशेष अनुमती याचिका (सिविल) क्र. १३४८/१९९७, विशेष अनुमती याचिका क्र. २८९२/१९८३ तथा ९२५२/१९८१ और समिक्षा याचिका क्र. १७४९/१७४९ - *पोष्ट ग्रजुएट इन्स्टिट्युट बनाम फैकल्टी असोसिएशन* इस पर भी चर्चा करेंगे. सर्वोच्च न्यायालय की पांच न्यायाधीशो की पीठ - *न्या. एस. सी. ए. अग्रवाल, न्या. जी. एन. रे, न्या. एस. पी. भरुचा, न्या. एस. राजेंद्र बाबु, न्या. एस. आनंद* द्वारा निर्णय में, एक अहं प्रश्न उठता हैं कि, *"क्या पिछले वर्गो के लिये अर्थात अनुसूचित जाती, जमाती और अन्य पिछले वर्गों के लिये, कैडर पोष्ट आरक्षण सिधे / रोस्टर बिंदु के रोटेशन को लागु करके, किया जा सकता है ? एकल कैडर पद पर इस तरह के आरक्षण के सवाल पर, इस न्यायालय के क्या विरोधाभासी निर्णय है."* इस केस में कपिल सिब्बल एकल पद आरक्षण का विरोध करते हुये कहते हैं कि, *"एकल पद संवर्ग के संबंध में, प्रारंभिक नियुक्ती के लिये, सीधे / रोटेशन के माध्यम से, कोई आरक्षण नहीं दिया सकता."* इसका विरोध करते हुये कपिल सिब्बल कहते हैं कि, "आगे बढने की अवधारणा या रोस्टर का सिध्दांत एकल पद कैडर के लिये अलग है. आरक्षण को आगे बढाने का सिध्दांत, मल्टी पोष्ट कैडर के अस्तित्व को नहीं मानता." इस तरह की और एक केस *"चक्रधर पासवान विरुध्द बिहार शासन "* का जजमेंट, सर्वोच्च न्यायालय के दो न्यायाधीश पीठ - *न्या. ए. पी. सेन / न्या. बी. सी.राय* यह ८/०३/१९९८ को बरखास्त (डिसमिस) कर देती है. और उस निर्णय के विरोध में, नागपुर में *हमारी युवा टिम* द्वारा, तिव्र आंदोलन किया था. तत्कालीन प्रधानमंत्री *व्ही. पी. सिंग* सरकार में केंद्रीय मंत्री *रामविलास पासवान* को मिलकर, हमने दबाव बनाया था. यहां सवाल यह है कि, *"क्या एकल पद पर, मागासवर्गीय को बैठने का, कोई भी अधिकार नहीं है."*
उपरोक्त संदर्भ विषय यह न्यायालय निहित है. *अभी तो महाराष्ट्र की "भाजपा - शिवसेना - राष्ट्रवादी सरकार" ने, मंत्रीमंडल में एक बडा ही विवादीत निर्णय लेकरं, अनुसुचित जाती) अनुसुचित जमाती वर्ग के लिये, आय मर्यादा (Income Limit) की अट लागू की है.* अर्थात भविष्य में, प्रशिक्षण योजना, फेलोशिप योजना, परदेशी शिष्यवृत्ती योजना तथा अन्य योजना का लाभ लेने से, इस समुह को रोका जाए. अब तक *"क्रिमी लेयर अट"* यह केवल ओबीसी वर्ग को, हुआ करती थी. अब वह अट अनुसूचित जाती/ अनुसूचित जमाती वर्ग को भी, बंधनकारक की गयी है. और इस निर्णय की सही जाणकारी, उन समुह को ना हो, इस का ख्याल रखने का प्रबंध भी किया गया है. यह षडयंत्र कौन रच रहा है / यह निर्णय के पिछे, भाजपा मिश्रीत सरकार की मनिषा क्या है ? यह भी हमे समझना होगा. कांग्रेस हो या भाजपा, दोनो भी दलों की सरकारों में, इस तरह की हरकते संदियों से होते आयी है. कांग्रेस यह *"नरम दल"* और भाजपा यह *"गरम दल"* है. मरना तो दोनो ही तरफ है. वही हमारे नेता लोग, केवल अपनी रोटी शेकणे में, लगे होते है. और रामदास आठवले तो, उसके नाम के पिछे का शब्द, *"दास"* ही दिखाई देता है. वंचित नेता (रिपब्लिकन नेता नहीं) प्रकाश आंबेडकर हो या बसपा नेता मायावती, उनकी डफली *"एकला चलो रे"* की बजती रहती है. परंतू हमारा अपना *"मतदान प्रतिशत"* कितना रहा है, इस से उन्हे क्या ???
हमारी अपनी *"धर्म शक्ति"* संघटीत नहीं है. अनुसूचित जाती/ जमाती वर्ग को, *"हिंदुत्व"* में सम्मिलीत करने का, बडा प्रयास होता रहा है. किंबहुना उन्हे *"हिंदु > हिंनदु > हिन + दु > हिन = निच, चोर, काले मुहंवाले..... दु = प्रजा, लोग > *हिंदु = निच लोग"* इस विदेशी गाली के अधिन रखा गया है. सन १९११ के पहले, *"अनुसूचित जाती/ जमाती के लोगों को, "हिंदु"* मानने से, इंकार किया जाता रहा. और *"गैर हिंदु"* समुह - अछुत / आदिवासी इनकी गणना हुयी. फिर *"जाती / जनजाती वर्ग"* इनकी दो अलग अलग, विशिष्ट वर्ग की *"अनुसूची"* (Schedule) बनायी गयी. जो अंग्रेजो ने, एक मार्ग निकाला था. और जाती की अनुसुची (Schedule Case) और जमाती की अनुसूची (Schedule Tribe) में, सामाजिक / शैक्षणिक रुप से पिछडे वर्ग के विभिन्न जाती को, वहां समाविष्ट किया गया. जो जाति *"गैर हिंदु"* थी. सन १९३१ में पहिली बार, जनगणना आयुक्त *जे. एस.हटन* ने, संपूर्ण भारत के अस्पृश्य जातीयों की, जनगणना की थी. और उन्होने बताया की, भारत में ११०८ अस्पृश्य जातीया है. और वे जातीयां *"हिंदु धर्म"* से बाहर थी. परंतु आज उन्हे *"हिंदु धर्म"* का,एक लेबल लग गया है, यह भी हमें समझना जरूरी है. वही हमारे बौध्द धर्म का, डॉ बाबासाहेब आंबेडकर द्वारा १९५४ में निर्मित संघटन - *".The Buddhist Society of India"* (भारतीय बौद्ध महासभा) इस की मान्यता खतरे मे है. वहां एक भी संविधानीक पदाधिकारी, अब जीवित नहीं है. और सभी के सभी स्वयंघोषित पदाधिकारी वर्ग ने, सन १९०९ से धर्मादाय आयुक्त में, कोई हिसाब ही नहीं दिया है. सभी स्वयंघोषित पदाधिकारी वर्ग की नज़र, *"शासन कोष"* (Treasury) में जमा, *"तेरा करोड"* राशी पर है. *"धर्म संघटन शक्ती"* से, उन्हे कोई लेना देना नहीं है. इस संदर्भ में, *"मैने स्वयं धर्मादाय आयुक्त मुंबई में, एक याचिका डाली है."* हमारे *"रिपब्लिकन राजनीति"* को, एकसंघ बांधे रखनेवाली शक्ति ही, शक्ति हिन हो तो, इनके बारे में क्या कहे ???
भारत की धर्म स्थिती, सामाजिक स्थिती एवं राजकीय स्थिती देखकर, *"हमारी युवा टीम"* ने सन १९९१ में, *"धर्मांतर समारोह"* का आयोजन, धनवटे रंगमंदिर नागपुर में किया था. सन १९५६ के बाद, *"धर्मांतर मिशन"* यह थमसा गया था. तब नामांकित संस्कृत विचारविद *प्रा. डॉ. रुपा कुलकर्णी"* / दिल्ली के नामांकित आंबेडकर चिंतक *मोहनदास नेमिशराय* सहित ४०० हिंदु लोगों ने, *"बौद्ध धर्म"* की दीक्षा ली थी. उसके दुसरे साल ही *"हमारी युवा टीम"* ने, यशवंत स्टेडियम नागपुर में, *"आंतरराष्ट्रीय बौध्द परिषद"* का आयोजन किया था. उस अवसर पर, ओबीसी विचारविध *प्रा. प्रभाकर पावडे* इन्होने *"बुद्ध धर्म* की दीक्षा ली थी. मेरा पत्रव्यवहार भारत के नामांकित विद्वान लोगों से, होता रहा था. बंगलोर के नामचिन ओबीसी नेता, *"दलित व्हाईस"* के संपादक *व्ही. टी. राजशेखर* इन्हे *बुध्द धर्म* में दिक्षित करने का, मेरा प्रयास सफल रहा. धर्मांतर समारोह के लिये, मेरा भारत भ्रमण होता रहा. गुजरात के *"धर्मांतर समारोह"* तथा बिहार के *"धर्मांतर समारोह"* में, मैं व्यक्तिशः उपस्थित था. बिहार के धर्मांतर समारोह में, बिहार के पुलिस महानिरीक्षक (IG) *मैकुराम जी* सहीत ५०० लोगो़ ने, *बुध्द धर्म"* की दीक्षा ली थी. उस समय *भदंत आर्य नागार्जुन सुरेई ससाई* जी सहित उच्च न्यायालय के *न्या. भाऊ वाहाने* और मैं स्वयं (डॉ मिलिंद जीवने) मंच पर, प्रमुख अतिथी के रुप में उपस्थित थे. हमारी युवा टीम के *"धर्मांतर समारोह"* मिली सफलता देखकर, सन १९९४ के बाद *भदंत आर्य नागार्जुन सुरेई ससाई जी* ने, वह मिशन अपने हाथ लेकरं, वह समारोह फिर दीक्षाभूमी से होता रहा / हो रहा है. उसके बाद मेरी संंघटन *"सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल"* की माध्यम से, सन २००६ से, *"जागतिक बौद्ध परिषद"* का आयोजन शुरु किया. उसके बाद वह आंतरराष्ट्रीय बौध्द परिषद, सन २०१३ / २०१४ / २०१५ में ली गयी. साथ ही सन २०१५ में *"जागतिक बौद्ध महिला परिषद"* का भी सफल आयोजन, *वंदना जीवने* इतकी अध्यक्षता में, तथा मेरे मार्गदर्शन में संपन्न हुआ. उसके बाद सन २०१८ / २०२० में, *"अखिल भारतीय आंबेडकरी विचारविद परिषद"* का आयोजन तथा *"अखिल भारतीय आंबेडकरी विचारविद महिला परिषद"* का सफल आयोजन, नागपुर में किया गया. यही नहीं, सन २००७ / २०१८ / २०२० में, *"विश्व शांती रैली"* का भी आयोजन, मेरे नेतृत्व में किया गया. आज *"धम्म मिशन"* हो या *"आंबेडकर मिशन"* की गती, यह थमसी गयी है. हमारे समाज की दिशा - दशा - अवदशा को देखकर, मेरी कविता की चार पंंक्तीया लिखकर, मेरे शब्द को विराम देता हुं. *जय भीम ...!*
जिसे हम अपना कहे, वे भी दगा कर जाते है
हम किसे अपना कहे, वो सवाल भी बन जाते है
हम तो ढुंडने निकल पडे है, हमारे अपनों को ही
अब पता नहीं है हमें, वो मंज़ील मिलेगी या नहीं.
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💐 *डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*
मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२
नागपुर, दिनांक ६ मई २०२४
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