Saturday, 3 August 2024

 🎓  *मा. सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनुसूचित जाति / जनजाति में उपकोटा - क्रिमी लेयर निर्णय सें उठा भारतीय जन - मन आक्रोश !*

      *डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य','* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल 

एक्स व्हिजिटिंग प्रोफेसर, डॉ बी आर आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ महु म प्र 

मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२


          दिनांक १ अगस्त २०२४. *मा. सर्वोच्च न्यायालय* द्वारा अनुसुचित जाति (SC) / अनु. जनजाति (ST) वर्ग के *"मागासवर्ग आरक्षण"* संदर्भ में, संबंधित जाति का *"उपकोटा / क्रिमी लेयर"* इस तरह का विवादपुर्ण  निर्णय आना, यह हमने कभी सोचा भी नहीं था. वही *संसद में राहुल गांधी की जाति...?"* संदर्भ में *मेरा एक लेख* १ अगस्त को ही मिडिया में आया है. उस लेख में मैने *"बिहार शासन के जातिगत जनगणना / मागासवर्गीय आरक्षण"* पर, मेरे स्पष्ट विचार रखे थे. और पटना उच्च न्यायालय ने *"जातिगत जनगणना / मागासवर्गीय जाति आरक्षण"* को, उसे असंवैधानिक करार देने का वहां जिक्र था. एवं सर्वोच्च न्यायालय ने उस विषय संदर्भ में *"स्थगिती"* देने सें इंकार करने का भी जिक्र था. और प्रधानमंत्री *नरेंद्र मोदी* इन्होने *"मागासवर्गीय जाति आरक्षण"* इस विषय को, *"शेड्युल ९"* में अंतर्भूत करने से  इंकार का भी जिक्र था. विरोधी कांग्रेस पक्ष नेता - *राहुल गांधी* यह संसद में केवल *"जातिगत जनगणना"* इस विषय को छेडकर, मागासवर्गीय आरक्षण को, *"शेड्युल ९"* में समाविष्ट करने संदर्भ में, कन्नी काटने की बात कही थी. और १ अगस्त को ही, *सर्वोच्च न्यायालय की सात न्यायाधीशों की खंडपीठ* जिसमे भारत के सरन्यायाधीश *डी. वाय. चंद्रचुड* इनकी अध्यक्षतावाली टीम में, *न्या. भुषण गवई / न्या. विक्रम नाथ / न्या. बेला एम. त्रिवेदी / न्या. पंकज मिथल / न्या. मनोज मिश्रा / न्या. सतिश चंद शर्मा* यह छ: न्यायाधीश भी समिल्लित थे. और उन्होंने *"पंजाब राज्य और इतर विरुद्ध दरविंदर सिंग और इतर"* इस केस में, *"६:१"* बहुमत मे यह निर्णय दिया. अब हम इस केस के अंतरांग में प्रवेश करते है.

       *"पंजाब राज्य विरूद्ध दरविंदर सिंग"* इस केस में, *"अनुसुचित जाती में से किसी एक जाति को, १०० % राखिव जागा नहीं दिया जा सकता. अनुसुचित जाति यह एकसंघ गट ना होकर, उसे वर्ग में अलग किया जा सकता है / संविधान के अनुच्छेद १४ अनुसार एक समान वर्ग ना हो तो, उस वर्ग का विभाजन किया जा सकता है / अनुसुचित जाती वर्ग के लिये क्रिमी लेयर"* इन प्रमुख विषय बिंदु का उल्लेख, सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय में दिखाई देता है. यह केस का निर्णय न्यायाधीशों ने *"६:१"*  ऐसे बहुमत आधार पर देते समय, एक न्यायाधीश *मां. बेला त्रिवेदी* इन्होने अपनी असहमती बताते हुये कहा कि, *"इस तरह का उप-वर्गिकरण करना ठिक नहीं है. पंजाब एवं आंध्र प्रदेश के राज्य निहाय आरक्षण कानुनों को, उच्च न्यायालय ने संविधान बाह्य कहा है. संविधान अनुच्छेद ३४१ अनुसार राष्ट्रपति की अतिसुचना को अंतिम कहा जाता है. यह भी सच्चाई है कि, संसद यह कानुन बनाकर किसी भी श्रेणी को, सलग्न भी कर सकती है या, वह निकाल भी सकती है. अनुसुचित जाती यह सामान्य जाति नही है. संविधान अनुच्छेद ३४१ अंतर्गत अस्तित्व में वह आयी है. अनुसुचित जाति यह वर्ग या जमाति का एकीकरण है. और राज्य का उपवर्गिकरण यह अनुच्छेद ३४१(१) अंतर्गत राष्ट्रपति के निर्णय में भी, हस्तक्षेप करने समान है. इंदिरा साहनी केस में मागासवर्गीय को, अनुसुचित जाति के दृष्टीकोन से नहीं देखा गया. चिन्नया केस में बताया गया निर्णय यह बहुत ठिक है. और उसी केस का आधार लेना ठिक रहेगा."* परंतु अन्य छ: न्यायाधीश महोदयों में, इस बात से सहमत दिखाई नहीं दिया. इसमे *न्यायाधीश भुषण गवई* भी थे...!

          अभी अन्य न्यायाधीशों के कुछ महत्वपूर्ण निर्णय बिंदुओं पर चर्चा करेंगे. *सरन्यायाधीश धनंजय चंद्रचूड* कहते हैं कि, *"संविधान के अनुच्छेद १४ अनुसार, उपवर्गिकरण इसे उल्लंघन करार नहीं कह सकते. क्यौं कि, उपश्रेणी यह सुची से अलग नहीं की गयी. अनुच्छेद १५ एवं १६ अनुसार, उपश्रेणी यह राज्यों की जाति को विभाजित करने से प्रतिबंधित करे, ऐसा यह दिखाई नहीं देता. अनुसुचित जाति के पहचान के लिये, बताये गये निकष और वर्ग में बहुत अंतर है."* सर्वोच्च न्यायालय के न्यायालय *मित्तल एवं शर्मा जी* कहते हैं कि, *"आरक्षण यह केवल एक पिढी के लिए ही सिमित हो. आरक्षण से एक पिढी उच्च पदों पर गयी हो तो, उसका फायदा यह दुसरे पिढी को ना मिले."* डा आंबेडकरी समाज से जुडे *न्यायाधीश भुषण गवई* अपने निर्णय में कहते हैं कि, *"उपश्रेणी का आधार यह सरकारी नोकरी के आकडेवारी पर हो. कुछ लोक अपनी ईच्छा से भी काम नहीं कर सकते. क्यौं कि आरक्षण मिलने के बाद भी, निम्न जातियों को काम छोडना कठिण होता है. अनुसुचित जाति में या उपश्रेणी में, शती से दडपशाही का सामना करना होता है."* सर्वोच्च न्यायालय के *न्यायाधीश शर्मा* कहते हैं कि, *"न्यायाधीश गवई के विचारों से, वे सहमत है. अनुसुचित जाति का क्रिमी लेयर पहचान के लिये, राज्यों को अत्यावश्यक संविधान मुद्दा जरूरी है."* और एक न्यायाधीश *विक्रम नाथ* कहते हैं कि, *"ओबीसी को लागु होने वाला क्रिमी लेयर यह अनुसुचित जाति को भी लागु हो, इस से मैं सहमत हुं."* सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के निर्णय के बाद, हम निर्णय के कुछ बिंदुओं पर चर्चा करेंगे.

        भारत सरकार द्वारा *"आर्थिक आधार पर, १०% आरक्षण"* का प्रयोजन किया है. क्या भारत के संविधान में *"आर्थिक आधार"* पर, *"आरक्षण की व्यवस्था"* की गयी है ? आर्थिक आधार पर आरक्षण देने से, *"UPSC समान"* परिक्षा में *"बडा भ्रष्टाचार"* चल रहा है, उस संदर्भ में क्या ? *मागासवर्गीय आरक्षण* यह *"बेकारी हटाव"* अंतर्गत, क्या भारत के *संविधान में व्यवस्था* की है ? इस प्रश्नों पर भी *"सर्वोच्च न्यायालय तथा भारत सरकार"*  ने, अपनी भुमिका स्पष्ट करना बहुत जरुरी है. इसी के साथ ही, भारत सरकार ने *"मागासवर्गीय आरक्षण को शेड्युल ९"* इस सुची में, *शामिल करने* के प्रति उदासिन क्यौं है ? अगर *"शेड्युल ९"* इस सुची में यह समावेश हुआ होता तो, *"न्यायालय में इसे आवाहन नहीं"* दिया जा सकता था. क्या यह कुटिल राजनीति *"सत्ता दल तथा विरोधी दल,"* यह दोनो भी खेल रहे है ? यह भी प्रश्न है. अब हम *"अनुसुचित जाती (Schedule Caste) / अनुसुचित जमाती (Schedule Tribes)"* इस सुची के (Schedule ) अंतर्गत, भारत संविधान से मिले *"आरक्षण आधार"* पर चर्चा करेंगे. *"अनुसुचित"* (Schedule) इस *शब्द की उत्पत्ती* कैसे हुयी या प्रयोग में आया ? यह समझना बहुत जरुरी है. *भारत आजादी* (१५ अगस्त १९४७) पहले / *अंग्रेज काल* में, *"अस्पृश्य वर्ग"* को *"हिंदु श्रेणी"* में नहीं रखा था. इस जमाति को *"गैर हिंदु"* कहते थे. *"वैदिक धर्म"* का रुपांतर यह *"ब्राह्मण धर्म"* हुआ और *"ब्राह्मण धर्म"* का रूपांतर यह *"हिंदु धर्म"* में हुआ है, यह *डॉ बाबासाहेब आंबेडकर* इनका कथन है. *"ब्राह्मण धर्म"* ने अन्य *"कुछ जातियों"* को अपने साथ *"हिंदु धर्म "* में जोडा है. क्यौं कि ब्राह्मण यह *"अल्पसंख्याक"* थे. इस संदर्भ में हम फिर कभी चर्चा करेंगे. अत: हमें यह भी समझना होगा कि, अस्पृश्य समाज यह *"गैर हिंदु"* था. बाद में अस्पृश्य और आदिवासी यह समुदाय *"हिंदु"* कैसे बना ? यह प्रश्न है.

      अंग्रेज काल में हम *"सन १९११"* की ओर बढते है. और उस समय *"गैर हिंदु"* समुदाय अर्थात *"अछुत और आदिवासी"* इनकी *"जाति गणना"* हुयी थी. और हिंदु कौन  / अछुत कौन / आदिवासी कौन ? वहां यह स्पष्ट किया गया था. उसके बाद अधिकारीक तौर पर *"प्रथम जाति गणना,""* जनगणना आयुक्त - *जे. एच. हटन* इनके अधिन *सन १९३१* में हुयी थी. और उस जनगणना में बताया गया कि, *"अस्पृश्य वर्ग की ११०८ जातिया"* है. और वे जातिया *"हिंदु धर्म से अलग"* है. इन्हे *"बहिष्कृत जातिया"* भी कहते हैं. तत्कालीन अंग्रेज प्रधानमंत्री *रैम्से मैक्डोनाल्ड* इन्होने देखा कि, *"हिंदु / मुस्लिम / सिख / इसाई / एंग्लो इंडियन"* इनके समान ही, *"बहिष्कृत जातिया"* यह तो एक स्वतंत्र वर्ग है. जो *"हिंदु"* नहीं है. इस लिये उनकी दो *"सुची (Schedule)"* बनायी गयी. एक *जाति* (Caste) की और एक *"जमाति* (Tribe) की. इसी आधार पर तत्कालीन *अंग्रेज सरकार* द्वारा *"अनुसुचित जाति अध्यादेश १९३५"* के अधिन *"राजनैतिक / प्रशासनिक / शैक्षणिक"* कुछ सुविधांएं दी गयी. उसी आधार पर *भारत सरकार* ने, *"अनुसुचित जाति सवैधानिक आदेश १९३६"* जारी कर, *"आरक्षण सुविधा"* प्रदान की थी. सन १९३१ में इस आधार पर ही, *"कॅम्युनल अवार्ड"* को लागु किया गया था. और आगे जाकर उसी अध्यादेश में कुछ फेरफार कर, *"अनुसुचित जाति संवैधानिक आदेश १९५०"* पारित कर, आरक्षण जारी करने का प्रावधान किया गया. लेकिन *"गैर हिंदु"* इनकी *"जनसंख्या"* मामले में, *"तत्कालीन ब्राम्हणो द्वारा नियंत्रित सरकार"* ने गद्दारी भी की थी. जनसंख्या प्रमाण जो *४०%* बताना था, उसे अनुसुचित जाती १२.५% और अनुसुचित जमाती ७.५% बतायी है. इस संदर्भ में *डॉ बाबासाहेब आंबेडकर* इन्होने, हमारे *"मानवीय अधिकार"* के लिये संघर्ष भी किया था. अत: इस इतिहास को हमें *"मागासवर्गीय आरक्षण"* संदर्भ में समझना होगा. साथ ही *अनुसुचित जाति* वर्ग का मागासवर्गीय आरक्षण यह *"सामाजिक दुरावस्था "* से, तो *अनुसुचित जमाती* वर्ग का मागासवर्गीय आरक्षण, यह *"भौगोलिक आधार - दुर्गम स्थल"* से जुडा हुआ भी दिखाई देता है. दुसरा अहं प्रश्न यह है कि, *"क्या शोषित वर्ग यह शोषक वर्ग समक्ष आया है ? क्या सामाजिक तथा आर्थिक समानता आयी है ?"* तो फिर *"क्रिमी लेयर"* यह अट लादना भी, प्रश्न खडा करता है. *"न्याय व्यवस्था"*  से तमाम व्यवस्था में, *"शोषित वर्ग की भागिदारी प्रतिशत"* की *"जनगणना"* करने की मांग जरुरी है. यही नहीं अनुसुचित जाती / जमाति का *"उपवर्गिकरण"* यह इस वर्ग में *"सामाजिक दुही"* भी निर्माण करेगा...! अत: *न्यायाधीश बेला त्रिवेदी* का कथन / निर्णय यह बिलकुल सही दिखाई देता है. अंत में, क्या अनुसुचित जाती / जमाती यह इतिहास को पढकर, *"क्या सर्वोच्च न्यायालय स्वयं होकर, जनहित में "पुनर्विचार याचिका" को स्वीकार करेगा ? क्या यह भारत सरकार न्यायालय के इस फैसले पर, मागासवर्गीय आरक्षण को पुर्ववत करेगा ? मागासवर्गीय समाज घटक इस संदर्भ में, कोई उचित कदम उठायेगा ?"* यह हमें आगे देखना होगा. 

       जय भीम...!!!


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▪️ *डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*

नागपुर, दिनांक ३ अगस्त २०२४

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