Tuesday, 6 August 2024

 👌 *नागपुर के दिक्षाभुमी स्तुप का वर्षामार पाणी लिकेज मे आंख पर पट्टी बांधे अंधी बनी स्मारक समिती सदस्य बनाम आवाम की चिल्लाहट !* सर्वोच्च न्यायालय के आरक्षण कानुन से लेकरं बांगला देश /: श्रीलंका के प्रमुख का देश छोड जाना ?

      *डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल 

एक्स व्हिजिटिंग प्रोफेसर, डॉ बी आर आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ महु म प्र 

मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२५२२६९२२


      भारत के प्रधानमंत्री *नरेंद्र मोदी* ये बहुत ही भाग्यशाली है, उन्हे देश छोडकर नहीं भागना पडा. क्यौं कि, भारत के संविधान ने हम सभी को *"समानता"* दी है. हम सभी को *"मौलिक अधिकार"* दिये है. *"निरंकुश सत्ता"* चलाने का अधिकार नहीं देता. *पाकिस्तान का प्रधानमंत्री* आर्थिक झोल में जेल में है. वही *श्रीलंका का राष्ट्रपति* ने देश को आर्थिक हानी पहुचांने के कारण, श्रीलंका देश को छोडकर भागना पडा था. अभी अभी तो, *बांगला देश की प्रधानमंत्री - शेख हसिना* इन्हे भी, देश के आर्थिक झोल के कारण, बांगला देश छोडना पडा. यह बात अलग है कि, इस पुरे कांड के पिछे, *"चीन की कुटिल राजनीति "* ही रही है. चायना ये पाकिस्तान के *"आय.एस.आय."* को अपने इशारों पर चला रहा है. भविष्य में बांगला देश को, इस आंदोलन की भारी किंमत चुकनी पडेगी. वही *श्रीलंका / बांगला देश* इन दोनो देशों के आंदोलन में, और एक साम्यता रही, *"दोनो के भवन"* पर ही हमला हुआ है. वही पडोसी देश *नेपाल* भी, भारत को आंख दिखा रहा है. यहां सवाल है, हमारे अपने *पडोसी दुश्मनों के साथ* जुड गये है, जो कभी *"हमारे दोस्त"* हुआ करते थे. वही बस एक हिंदी मुव्ही का गीत याद आ गया, *"दोस्त, दोस्त ना रहा !"* भारत के सर्वोच्च न्यायालय का आरक्षण संदर्भ में अहं निकाल १ अगस्त २०२४ को आया. उसी दिन *मेरा लिखा* गया, *"आरक्षण"* के संदर्भ का एक लेख मिडिया में आया था. वही दिनांक ५ अगस्त को *"दीक्षाभूमी स्तुप लिकेज / भुमिगत पार्किंग गड्डा भरणं"* अवलोकन हेतु, मैं स्वयं मेरी संंघटन *सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल* के वरिष्ठ पदाधिकारी *इंजी. गौतम हेंदरे / डॉ मनिषा वसंत घोष / नंदकिशोर पाटील* इनके साथ, दीक्षाभुमी में बडा ही व्यस्त था. अब हम मुख्य विषय पर चर्चा करते है.

      *"दीक्षाभूमी भुमिगत पार्किंग"* संदर्भ में, मुझे मेरे एक मित्र का फोन आया. और मैं मेरा राष्ट्रिय संंघटन - *सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल "* पदाधिकारी वर्ग के साथ २३ नवंबर २०२३ को वहां जाकर, *"भुमिगत पार्किंग विरोध"* में एक लेख लिखकर, आवाम को आगाह भी किया था. कुछ माह बाद *"जन सैलाब"* ने भी, अपनी *"आंबेडकरी शक्ति"* का अहसास दिलाया है. भुमिगत पार्किंग का काम वह रूक भी गया है. अक्तुबर २०२४ में *"धम्म चक्र प्रवर्तन दिन"* समारोह का आयोजन, बहुत ही पास है. और *"भुमिगत पार्किंग भराव"* का काम, बहुत ही *"संथ गती"* से चल रहा है. वही दुसरी ओर तो, *"दीक्षाभूमी स्तुप"* से उपरी घुमट के *"दुसरी मंज़िल"* सें, *"पहिली मंज़िल"* पर, और पहिली मंज़िल से *"ग्राउंड फ्लोअर"* के डॉ बाबासाहेब आंबेडकर *"अभिवादन कक्ष"* में, *"वर्षा का पाणी झिरप"* रहा है. कल उससे भी *"दिक्षाभुमी स्तुप "* को खतरा होने की, बडी ही संभावना है. और मुझे एक इंजिनिअर से जाणकारी मिली है कि, यह *"लिकेज ७ - ८ साल"* से वे देख रहे हैं. यहां बडा प्रश्न यह है कि, *"डॉ बाबासाहेब आंबेडकर स्मारक समिती"* के पदाधिकारी, *यह क्या कर रहे है ?* दीक्षाभूमी स्तुप की *"सही से मरम्मत"* करने के बदले, *"भुमिगत पार्किंग बनाने"* का उनका लक्ष, यह समज से परे है. आज ५ अगस्त को, मेरे संघटन सहपाठी *इंजी. गौतम हेंदरे / डॉ. मनिषा घोष / नंदकिशोर पाटील* इनको लेकरं, समस्त दिक्षाभुमी परिसर का मुवायजा किया. बाद में दीक्षाभूमी कैंटिग में बैठकर हमने चाय भी पी. दीक्षाभूमी परिसर के हमारे भ्रमण में, हमने जो देखा है, वह देखकर तो, *"दिक्षाभुमी ट्रस्टी वर्ग"* प्रति *"बडी ही शर्म महसुस"* हुयी. और लगा कि, वे *"आंबेडकरी समाज"* की *"असली ओलाद"* नहीं है. शायद वे किसी तो भी, *"जानी दुश्मन"* की ओलाद है. और *Vision* नाम की कोई *"दुरदृष्टी"* के साथ साथ, सामाजिक बांधिलकी भी नहीं है. शायद उन सभी पदाधिकारी वर्ग ने, नैतिकता  / शर्म इसे *"सत्ता के बाजार"* में बेंच दी है. फिर तो *"दिक्षाभुमी से आंतरराष्ट्रीय धम्म केंद्र"* चलाना, यह बहुत दुर की बात है. *"ना ही उन ट्रस्टीओं की, वह वैचारिक लायकी है."*

      दीक्षाभूमी परिसर में, जहां वहां *"सिमेंट के जंगल"* दिखाई दिया है. अर्थात *"६५ - ७० प्रतिशत"*  हिस्सा में, *"शैक्षणिक संस्थानों"* की बिल्डिंगे खडी है. अगर उन्हे *"शैक्षणिक संस्थानों"* को खडा ही करना था तो, *"८ - १० मंजिल"* की वास्तु बनाकर, वे संस्थान चालाया जाना था. क्यौं कि, डॉ बाबासाहेब आंबेडकर का उद्देश भी *"शिक्षण"* पाना था. परंतु *"धम्म केंद्र"* (Seminary) बनाना भी, यह बाबासाहेब आंबेडकर चाहते थे. इस लिये बाबासाहेब जी ने *"बंगलोर"* में जम़िन भी खरीदी की थी. परंतु बाबासाहेब के सपनों का केंद्र नहीं बना. मेरा विद्यार्थी जीवन *"डॉ आंबेडकर कॉलेज"* में ही रहा. उस जमाने में, मैं स्वयं *"विद्यार्थी नेता"* भी रहा. मेरे एक मित्र नामांकित गायक - *प्रकाश पाटणकर* हमारी क्लास छुटने की, एक - दो घंटे तक *बोधि्वृक्ष"* के पास बैठकर, राह देखा करते थे. फिर हम लोग सायकल पर बैठकर, ट्रिपल सिट जाया करते थे. वह पुरानी घटना भी, तब याद आ गयी. *"क्यौं कि सच्ची यादें भुलायें भी, वों भुलीं नहीं जातीं."* दीक्षाभूमी तब खुले मैदान में, खुली आसमान दिखा करती थी. आज सब कुछ बदल गया था. *"धम्म चक्र प्रवर्तन दिन"* समारोह के जगह, *"पहले ही कम"* हुआ करती थी. आज केवल *"३० - ३५ प्रतिशत"* ही खुली जगह दिखाई दी. हमारी शासन व्यवस्था इस नामचिन ऐतिहासिक केंद्र की प्रति, *"बहुत उदासिन ही नहीं तो जातिभेद"*  भी कर रही है. बाजु की ही *"कृषी विभाग / माता कचेरी आरोग्य विभाग की जमिन"* दीक्षाभूमी को, वह हस्तांतरीत की जा सकती थी. वहां आंतरराष्ट्रीय स्तर की व्यवस्था की जा सकती थी. परंतु ??? *"भुमिगत पार्किंग"* में, वह सब कुछ जमीन भी छिनी जा रही थी. खैर छोडो, मुझे दुसरी ही बात करनी थी. *"दीक्षाभूमी स्तुप"* में *"वर्षा का पानी लिकेज"* के शिवाय, स्तुप के गोल भ्रमण परिसर की *"टाईल्स"* उखडी पडी है. स्तुप के अंदर *"हवा आनेवाले पाईप"* का हाल, बहुत ही अस्वच्छ तथा दयनीय दिखाई दिया. वही हाल *"दीक्षाभूमी स्तुप"* का भी था. *"अच्छी सी देखभाल"* का नामोनिशाण नहीं है. अगर *"भुमिगत पार्किंग "* बनी होती तो, उसका *"रख रखाव"* ??? स्तुप के *"दुसरी मंजिल रैली पर चढने"* के लिये, किसी *"शिडी का प्रबंध ही नहीं"* किया गया. स्तुप के *"पहिले मंजिल"* जाने के *रास्ता बंद* रहता है. पहिले मंजिल के *"गोल सभागृह वापर,"* वह तो ना के बराबर है. *"विपश्यना धारक वर्ग"* को, *"विपश्यना अभ्यास"* करने को, वह दिया जाना जरुरी है. नियमित वापर करने से, उसकी *"देखभाल"* भी हो सकती है. समिती कार्यालय के ऊपर भी, *"छोटासा सभागृह"* है. वहां भी *"धम्म सेमिनारों"* का, नियमित आयोजन किया जा सकता है. सामाजिक न्याय विभाग द्वारा बनाया गया *"वातानुकूलित सभागृह"* में भी, नियमित *"आंतरराष्ट्रीय"* स्तर की एक्टिविटीज, चलायी जा सकती है. दिक्षाभुमी परिसर में ही, *"निवास गृह"* होने की चर्चा है. उसका भी प्रयोग किया जा सकता है. *"बोधिवृक्ष"* के पास जाने का रास्ता बंद है. यह कृत्य बोधिवृक्ष के *"छाया की अनुभुती"* से वंचित करना जैसे ही कृति है. *"भिक्खु निवास"* है. वहां सें *"भिक्खु प्रशिक्षण केंद्र "* चलाया जा सकता है. और बहुत कुछ है. अगर स्मारक समिती के पास *"दुर दृष्टी"* ना हो तो, *"हमारे समान कुछ लोगों"* से विचार विमर्श करने. हमारी साथ मिटिंग भी करे. हमारी सेवाएं ले. *"दीक्षाभूमी स्मारक समिती"* के सदस्यों (?) को, यह समझना जरुरी है कि, *"वे समिती के केवल विश्वस्त है. समिती के मालक नहीं है."* विश्वस्त का अर्थ होता है, *"विश्वास करने योग्य व्यक्ती."* आंबेडकरी आवाम तो, आप लोगो को उस लायक भी नहीं समझती. अत: समिती के पदाधिकारी वर्ग ने, *"दीक्षाभूमी को अपनी या, उनके पिता की जागिर ना समझे."* दीक्षाभूमी यह आंबेडकरी समाज की धरोहर है.

     जय भीम...! नमो बुध्दाय...!!!


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▪️ *डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*

नागपुर, दिनांक ६ अगस्त २०२४

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