🔥 *द्वितिय महायुध्द की धधगति ज्वाला में विश्व का बना बिखरेपण बनाम तिसरे महायुध्द की आगाज...?* (भारत आजादी का सच्चा इतिहास)
*डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर १७
राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल (सी. आर.पी. सी.)
अध्यक्ष एवं आयोजक, जागतिक बौध्द परिषद, नागपुर (इंडिया) २००६, २०१३, २०१४, २०१५
आयोजक, जागतिक बौध्द महिला परिषद, नागपुर (इंडिया) - २०१५
अध्यक्ष एवं आयोजक, अ. भा. आंबेडकरी परिषद, राळेगाव / नागपुर २०१८, २०२०
प्रमुख आयोजक, अ.भा. आंबेडकरी महिला परिषद, नागपुर (इंडिया) २०२०
मुख्य नेतृत्व, विश्व शांती रैली-भारत २००७, २०१८, २०२०
एक्स व्हिजीटींग प्रोफेसर, डॉ. आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ, महु (म. प्र.)
लेखक, कवि, विचारविद
सेल+९१ ९३७०९८४१३८,९२२५२२६९२२
द्वितिय महायुध्द का कालखंड १९३९ से लेकर १९४५ तक - अर्थात लगबग ६ वर्ष रहा है. जर्मनी का हुकुमशहा *एडोल्फ हिटलर* को ही, इस महायुध्द के प्रारंभ का (कु)नायक भी कहा जाता है. हिटलर १९३३ से लेकर १९४५ तक जर्मनी का शासक रहा. मुलत: हिटलर की जन्मस्थली यह आस्ट्रिया की थी. *"द्वितिय महायुध्द"* यह दो प्रमुख देशों मे ही बाटां गया. *"मित्र देश और धुरी देश."* मित्र देशो में - सोवियत संघ, उत्तरी और दक्षिण अमेरिका, युनायटेड किंगडम, चायना आदी देश और मित्र देशों के नेता थे - *जोसेफ स्टॅलिन, फ्रैंकलिन डेलिनो रूझवेल्ट, विंस्टन चर्चिल, चिआंग काई शेक* और अन्य नेता. धुरी देशों में - जर्मनी, जापान, इटली आदी देश और धुरी देशों के प्रमुख नेता थे - *एडोल्फ हिटलर, बेनितो मुसोलिनी, हिरोहितो* और अन्य नेता गण. बेनितो मुसोलिनी को, एडॉल्फ हिटलर का गुरु बताया जाता है.
*"द्वितिय महायुध्द"* इस गंभिर विषय पर, मैने बहुत से लेख मिडिया में लिखे हुये है. कोरोना काल में, *"तृतीय महायुध्द"* की आशंका पर भी, मैने कुछ लिखाण मिडिया में लिखा हुआ है. १८ सितंबर २०२३ से २१ सितंबर २०२३ तक, *दक्षिण कोरीया* देश में हुयें, HWPL इस आंतरराष्ट्रिय संघटन द्वारा आयोजित *"९ वी विश्व शांती शिखर सम्मेलन"* में, मुझे निमंत्रित किया गया. उस आंतरराष्ट्रिय संघटन के अध्यक्ष *मैन ही ली* उनकी प्रमुख उपस्थिती में, विश्व के कुछ मान्यवरों ने, अपने विचार प्रकट करते हुये, *"विश्व शांती पहल"* की बातें कही है. *मैन ही ली* इनका जन्म बौध्द परिवार में हुआ. द्वितिय महायुध्द तथा *कोरीया महायुध्द* ज्वाला की, उन्हे बहुत अनुभुती रही है. और उस महायुध्द से, उनका जिवीत निकलना ही, मैन ही ली को, *"विश्व शांती मिशन"* के लिए विशेष प्रेरीत किया है. उन्होने बाद में, ख्रिस्ती धर्म का स्वीकार भी किया. दक्षिण कोरीया के मेरे भ्रमण में, मुझे *"इंचिन तथा सेऊल"* शहर स्थित *"युध्द स्मारक"* को, भेट देने का अवसर भी मिला. उस महायुध्द में प्रयोग मे लाये गये, रणगाडे, मशिनगन, बंदुके, बंदगाडी, छोटे विमान आदी वस्तु को देखने का, मुझे अवसर मिला. और *"द्वितिय महायुध्द"* की बहुत सारी घटनाएं, *"मै स्वयं लेखक, कवि, चिंतक"* होने के कारण, मेरे सामने जिवंत रुप में, मुझे नज़र आने लगी. और मेरे शब्दों कों मंजिल मिल गयी...!!!
द्वितिय महायुध्द होने के पहले (१९३९ - १९४५), *जापान सन १९३७ में चायना* पर, आक्रमण करने की स्थिती में था. इसके पहले, जापान ने *सन १९१० में कोरीया* पर, अपना अधिपत्य जमा लिया था. और *"जापान में झार साम्राज्य"* का अधिपत्य था. *नेताजी सुभाषचन्द्र बोस* ने जापान को, अपने राजनीति का प्रमुख केंद्र बनाया था. अगर द्वितिय महायुध्द नही हुआ होता तो, क्या नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के माध्यम से, *"भारत मे जापान के झारशाही"* की, स्थापना हुयी होती ? और *भारत जापान (पहले अंग्रेजों का था) का गुलाम बना होता ?* (जैसे - कोरीया था) यह संशोधन का विषय है. यही नही, नेताजी सुभाषचंद्र बोस इनका, द्वितीय महायुध्द के दरम्यान जापान के *फोर्मोसा* शहर (वर्तमान में तायवान) में *विमान दुर्घटना में मृत्यु* (१८ अगस्त १९४५) होना / वही जापान की युध्द में हार भी होना, यह भी एक संशोधन का विषय है. नेताजी सुभाषचन्द्र बोस को, *मोहनदास गांधी* के बिन अकल राजनीति के कारण ही, *कांग्रेस दल* के अध्यक्ष पद से, राजीनामा देना पडा था. और *"फारवर्ड ब्लाक दल"* की स्थापना करनी पडी थी. मोहनदास गांधी के कारण कुछ क्रांतीकारी नेताओं को, फाशी पर कुर्बान होना पडा...! पंजाब *"जालियनवाला बाग कांड"* पर हो या, क्रांतीकारीयों की फासी, इस विषय पर चर्चा हम फिर कभी करेंगे.
अब हम *"द्वितिय महायुध्द"* के *"धुरी देशों"* के, प्रमुख सुत्रधार नेताओं पर चर्चा करेंगे. जर्मनी का नाझी शासक *एडॉल्फ हिटलर* (३० जनवरी १९३२ से ३० अप्रेल १९४५) - तानाशहा / इटली का शासक *बेनितो मुसोलिनी* (३१ अक्तुबर १९२२ से २८ अप्रेल १९४५) - इतालावी तानाशाह / और जापान का सम्राट *हिराहितो* उर्फ *शोओवा तेन्नोओ* (२९ अप्रेल १९०१ से ७ जनवरी १९८९) - झार साम्राज्य / विश्व के यह तिन शासक *अमेरिका, सोव्हियत संघ - रशिया, ब्रिटन, चायना* पर हावी बने हुये, दिखाई देते है. अमेरीकी कमोडोर *मैथु पेरी* ने सन १८५४ मे ही, *"अमेरिका - जापान व्यापारी संबंध"* खोले हुये थे. वही सन १९११ में, *"सोवियत संघ - जापान"* ने ही, *"वाणिज्य और नेव्हिनेशन संधी"* पर हस्ताक्षर किये थे. यही नही *"प्रथम महायुध्द"* मे जापान ने, *"अमेरिका, ग्रेट ब्रिटन, फ्रांस"* का पक्ष भी लिया था. उसी दौरान जापान ने, *"ब्रिटिश साम्राज्य के आक्रमण पर,"* एक साम्राज्य निर्माण की शुरुवात की थी. सन १९३१ मे अमेरिका - जापानी खरिद पर खटास हो गयी. जापान ने सन १९३१ में ही, *"चायना के मांचुरिया"* पर हमला कर, अधिपत्य भी जमा लिया था. उसके पहले सन १९१० में, जापान ने *"कोरीया"* पर अधिपत्य जमा लिया था.
इटली का शासक *बेनितो मुसोलिनी* ये बेहद खौफनाक क्रुर तानाशाह था. सभी तानाशाह में ये सबसे जादा क्रुर तानाशाह था. २१ साल के शासन काल में, उसने तो *सात लाख लोगों को मृत्यू के घाट* उतार दिया. जर्मनी का तानाशाह *एडॉल्फ हिटलर* उसे अपना गुरु मानता था. हिटलर *बर्लिन* मे जमिन से ५० फुट निचे, *बंकर* में रहता था. युध्द के छ: साल के दौरान, हिटलर ने करिबन ६० लाख यहुदीओं की हत्या कर दी. उसमे १५ लाख बच्चे भी थे. यहुदीओं को जड से मिटा देने का, हिटलर का मकसद रहा था. १ सितंबर १९३९ में, जर्मनी (हिटलर) ने *"सोव्हियत संघ"* के सैनिकों के साथ मिलकर, *पोलंड* पर आक्रमण किया. और दो दिन बाद ही *ब्रिटन और फ्रांस* ने, पोलंड के पक्ष में खडे होकर, जर्मनी के विरुध्द एक जंग छेड दी. २७ सितंबर १९३९ को, पोलंड ने जर्मनी के सामने हार मान ली. यही से *"द्वितिय महायुध्द"* शुरुवात हुयी. बाद में *"राष्ट्रमंडल देशों"* ने जर्मनी (हिटलर) के विरोध ने बिगुल फुक दिया. वही *बेनेतो मुसोलिनी* ने सन १९४० में, *इटली* की सेना *हिटलर"* के पक्ष में ही खडी हुयी. परंतु सन १९४३ के बाद ही, मुसोलिनी को सत्ता से दुर होना पडा. उधर *जापान* भी हिटलर के साथ ही खडा हुआ.
अब द्वितिय महायुध्द के *"मित्र देशों"* पर भी, हम अल्प चर्चा करेंगे. सोव्हियत संघ के प्रधानमन्त्री रहे *जोसेफ स्टेलिन* / अमेरिका के ४ बार राष्ट्राध्यक्ष रहे *फैंकलिन डेलानो रूझवेल्ट* / युनायटेड किंगडम के प्रधानमन्त्री रहे *विंस्टन चर्चिल* / रिपब्लिक चायना का राष्ट्राध्यक्ष रहे *चियांग काई शेक* आदी....! इन *"मित्र देशों"* का इतिहास भी बडा दिलचस्प रहा. *"धुरी देशों"* के समान ही, *"मित्र देशों"* की राजनीति (?) दिखाई देती है. समस्त विश्व पर अपना प्रभाव हो या साम्राज्य का विस्तार या *"महाशक्ति का बनना"*...! उसी कुटील तंत्र राजनीति का शिकार तो *"कोरीया, भारत, तैवान, तिब्बत"* समान कुछ देश रहे है.
*"पहिला महायुध्द"* का कालखंड २८ जुलै १९१४ से ११ नवंबर १९१८ रहा. इस युध्द पर चर्चा हम फिर कभी करेंगे. *"द्वितिय महायुध्द"* का कालखंड १ सितंबर १९३९ से २ सितंबर १९४५ का रहा है. इटली के शासक *बेनितो मुसोलिनी* का, सन १९४३ मे ही अस्त हो चुका था. जर्मनी का शासक *एडोल्फ हिटलर* का सन १९४५ तक, तग धरे रहना यह भी एक पहेली है. वही इन दो शासकों में, कुछ साम्यता भी रही है. दोनो भी शासक *"खौफनाक क्रुर तानाशाह"* थे. दोनो भी शासकों की *"प्रेमिका"* थी. बेनितो मुसोलिनी के प्रेमिका का नाम *क्लारा पेटिचा* था. और एडोल्फ हिटलर के प्रेमिका का नाम *एवा ब्राऊन* था. उन दोनो शासकों की प्रेमिका, उनकी *"सशक्त शक्ती"* भी रही. दोनो शासकों के मरते समय, उनकी प्रेमिका साथ साथ ही मरी. और उन दोनो ही शासकों *"मृत्यु बडा ही दर्दभरा"* रहा. दोनो शासकों का मृत्यु, *"अगस्त १९४५"* को, दो दिन के अंतर में ही हुआ. *मुसोलिनी* को उसकी प्रेमिका *क्लारा पेटीचा* समवेत गोली से उडा दिया गया और फिर फांसी पर (२८ अप्रेल १९४५) लटकाया गया. *हिटलर* ने अपनी हार को देखकर / मुसोलिनी की क्रुर मृत्यु की खबर सुनकर, प्रेमिका के संग ही आत्महत्या (३० अप्रेल १९४५) करने का कठोर निर्णय लिया. हिटलर की प्रेमिका *एवा ब्राऊन* ने सायनाइड खाकर बंकर में आत्महत्या की. और हिटलर ने *"बंदुक के गोली"* से बंकर में ही आत्महत्या की. और दोनो शासकों का दु:खद अंत हुआ. भारत के प्रधानमन्त्री *नरेंद्र मोदी* के लिए, यह एक सिख है. *"तानाशाह का अंत कभी अच्छा नही रहा."* क्यौं कि, *नरेंद्र दामोधर मोदी हो या संघवाद* (RSS) इनका आदर्श तो, हिटलर होने की चर्चा होती रही है. और उन नेताओं की प्रत्यक्ष कृति भी, हिटलर विचारों की दिखाई देती है.
अब हम *"कोरीया युध्द"* पर यहां चर्चा करेंगे. *जापान ने कोरीया* पर, सन १९१० में अधिपत्य किया था. *मुसोलिनी - हिटलर* का अस्त, द्वितिय महायुध्द के समय *अप्रेल १९४५* में ही हो गया था. सोव्हियत संघ के प्रधानमन्त्री *विंस्टन चर्चिल* ने ८ मई १९४५ को, जर्मनी पर जीत की घोषणा कर दी थी. तभी जापान का शासक *हिरोहितो* उर्फ *शोओआ तेन्नेओ* (२९ अप्रेल १९०१ से ७ जनवरी १९८९) यह अकेला सा हो गया था. वही *अमेरिका* ने ६ अगस्त १९४५ को, जापान के *"हिरोशिमा - नागासाकी"* इन शहरों पर *परमाणु बमबारी* की. वे दोनो शहर पुर्णत: तबाह हो गये. *जापान ने भी अपनी हार पुर्णत: स्वीकार कर ली.* वही द्वितीय महायुध्द के खत्म होने के, तिन साल बाद *१५ अगस्त १९४८* में, *कोरीया* देश ये स्वतंत्र होकर, *"रिपब्लिक ऑफ कोरीया"* हो गया. उसके पहले तो, *उत्तरी कोरीया* पर, सोव्हियत संघ का कब्जा हो गया.. वही दुसरी ओर *दक्षिण कोरीया* पर, अमेरिका का कब्जा हो गया. *सोव्हियत संघ हो या अमेरिका* (विश्व शक्ति) के कुटील राजनीति द्वारा, *उत्तर कोरीया - दक्षिण कोरीया,* ये नफरत के कटु बीज भी गाढे गये. उसका दुष्परिणाम ही २५ जुन १९५० को, *उत्तरी कोरीया* प्रमुख *किम इल सुंग* ने, *दक्षिण कोरीया* पर आक्रमण कर दिया. और *"एक राष्ट्र में दो विचार संघर्षं"* की, वह भयावह युध्द शुरुवात थी. उत्तर कोरीया के साथ *सोव्हियत संघ और चायना* खडा था. वही दक्षिण कोरीया के साथ *अमेरिका* खडा था. वह युध्द तिन साल चला. इस युध्द में उत्तरी कोरीया की वो जीत हुयी. लेकिन अमेरिका ने *संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद"* में, एक प्रस्ताव पारीत कर दिया. और उत्तर कोरीया को पिछे हटना पडा. और जिती हुयी बाजी हार गया. सन १९५३ में कोरीया के, *"उत्तर कोरीया और दक्षिण कोरीया"* ये दो स्वतंत्र देश हो गये. *"विश्व शक्ती दो देश* के कुटील राजनीति की, यह दु:खद परिणती रही.
अब हम *"अखंड विशाल भारत - खंड खंड भारत - गुलाम भारत - स्वतंत्र भारत"* की चर्चा करते है. मौर्य वंश काल *(ल. ३२२ से १८५ इ.पु. - १३७ साल)* यह अखंड भारत का *"स्वर्ण युग"* था. *चक्रवर्ती सम्राट अशोक* काल में, भारत का विस्तार - *आज का भारत, पाकिस्तान (१९४७), बांगला देश (१९४७), अफगानिस्तान (१८७६), नेपाल (१९०४), भुतान (१९०६), तिब्बत (१९०७), श्रीलंका (१९३५), म्यानमार (१९३७)* तक फैला हुआ था. तब अखंड विशाल भारत - वह समृध्द और विकास भारत हुआ करता था. अखंड भारत यह व्यापार / शिक्षा का प्रमुख केन्द्र था. इस विषय पर चर्चा हम फिर कभी करेंगे. मौर्य साम्राज्य का *बामनी सेनापती - पुष्यमित्र शृंग* ने, मौर्य वंश का आखरी वंशज *ब्रहद्रथ* की हत्या कर, अखंड भारत का विघटन - गुलाम भारत की निव रखी. *"आज भी उनके वंशज,"* भारत का *विघटन - गुलामी लादने* की / नफरत की राजनीति कर रहे है. शायद उनके *"पुरखों के गद्दार लहु"* का, वह दोष परिपाक हो...!
बामनी सेनापती - *पुष्यमित्र शुंग* के गद्दारी कहे या वो विद्रोह कहे, इसके बाद *"गुलाम भारत में जो भी शासक हुये थे"* उस पर चर्चा, हम फिर कभी करेंगे. अब तो हम केवल *"सन १७५७ से लेकर १९४७ के शासन काल"* पर चर्चा करेंगे. गुलाम भारत सन १७४७ से १८५७ तक, *"ब्रिटिश इस्ट इंडिया कंपनी"* के नियंत्रण मे था. तथा *"सन १८५७ का उठाव"* यह *"भारत आझादी की लढाई थी या राजसत्ता का संघर्ष,"* यह तो संशोधन का बडा विषय था. झाशी की *राणी लक्ष्मीबाई* ने झाशी से पलायन किया हुआ था और *झलकारी* ने झाशी की राणी के भेष में, अंग्रेजों का कडा सामना करने का इतिहास, क्यौ छिपाया जाता है. पलायन के बाद, राणी लक्ष्मीबाई ने ग्वालियर नरेश *शिंदिया* से मिलकर, युध्द की मदत मांगी थी. परंतु राजा शिंदिया ने, राणी लक्ष्मी ग्वाल्हेर आने की सुचना अंग्रेजों को देकर, बडी गद्दारी की थी. और आखिर *राणी लक्ष्मीबाई ने, ग्वाल्हेर मे ही खुद को जलाकर आत्महत्या की.* यह इतिहास क्यौ छिपाया जाता है ? *मेरे भारत भ्रमण* में, इन स्थलों पर मेरी प्रत्यक्ष भेट हुयी है.
अब हम *बाळ गंगाधर तिलक* (१९०० - १९०८) / *मोहनदास करमचंद गांधी* (१९१९ - १९४८) / *नेताजी सुभाषचन्द्र बोस* (१९२१ -१९४५) / *शहिद भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव, चंद्रशेखर आझाद* इन क्रांतीकारी नेताओं पर चर्चा करेंगे. भारत आझादी की मुव्हमेंट सबसे पहले *बंगाल* से शुरु हुयी. *"भारतीय कांग्रेस पार्टी"* का वह बैनर था. *तिलक कालखंड* में आझादी का आंदोलन *"चरम शिर्ष पर"* खडा दिखाई नही देता. *मोहनदास गांधी कालखंड"* में, आझादी की मुव्हमेंट ने *"जनव्यापकता"* हासिल की थी. वही *"क्रांतीकारी नेताओं"* की मोहनदास गांधी विचारों से, दुरीया भी दिखाई देती है. *"कांग्रेस दल"* में सुभाषचन्द्र बोस ने, मोहनदास गांधी समर्थित उमेदवार को हराकर, *"कांग्रेस अध्यक्ष"* (१८ जनवरी १९३८ - २९ अप्रेल १९३९) पद पर उनको अच्छी सी जीत मिली थी. वही आगे जाकर, मोहनदास गांधी से वैचारीक टकराव होने पर, *सुभाषचन्द्र बोस* ने कांग्रेस छोडकर, *"आल इंडिया फारवर्ड ब्लाक दल"* की बुनियाद (२२ जुन १९३९ - १६ जानेवारी १९४१) रखी. इस तरह के कांग्रेसी विवादों ने, भारत के आझादी को ग्रहण भी लगाया हुआ दिखाई देता है.
जब हम सन १९०० से १५ अगस्त १९४७ के *"कांग्रेसी कालखंड"* में, *"ब्रिटिश राज"* को देखते है, तब हमे *"एकसंघ ऐसा आजादी का आंदोलन (?)"* बिलकुल ही नही दिखाई देता. *"कांग्रेस, क्रांतीकारी, आझाद हिंद सेना"* (कार्यकाल ४ जुलै १९४३ - १८अगस्त १९४५) इस तरह तिन अलग भागों में, वह आंदोलन विभाजित सा हुआ दिखाई देता है. फिर भारत आझादी के नायक - *मोहनदास गांधी* अकेले नायक कैसे हो सकते है ? वैचारीक तिव्र संघर्ष में मोहनदास गांधी, *"शांती के पुजारी"* कैसे हो सकते है ? यह अहं प्रश्न है. अब हम *"द्वितिय महायुध्द"* (१९३९ - १९४५) इस महत्वपुर्ण विषय की ओर आगे बढते है. *डॉ. भीमराव आंबेडकर* की राजनीति का कालखंड भी यही है. वे ब्रिटिश व्हाईसराय मंत्रीमंडल में *"श्रममंत्री"* (जुलै १९४२ - १९४६) होने के कारण / द्वितीय महायुध्द में *"मित्र पक्ष"* (ब्रिटिश के साथ) के साथ खडे होने के कारण, उन्हे कांग्रेसी नेता लोग देशद्रोही (?) कहते थे. द्वितीय महायुध्द के दौरान, तानाशाह - *"हिटलर / मुसोलीनी / जापान की झारशाही"* का विरोध ही, डॉ. आंबेडकर के राजनीति का मुख्य केंद्रबिंदु था. परंतु कांग्रेस दल ने, द्वितीय महायुध्द के नाजुक समय ८ अगस्त १९४२ में, *"करो या मरो आंदोलन"* छेडा था. जब की हमारा प्रमुख्य उद्देश, *"हिटलर / मुसोलिनी"* को महायुध्द में हराना था. डा आंबेडकर के यह विचार, *गांधी - कांग्रेस* को देर से समझमे आया. और कांग्रेस दल ने द्वितीय महायुध्द मे ब्रिटिश सेना का खुला समर्थन किया. वही *सुभाषचंद बोस* जापानी झारशाही के संग खडे थे. ऐसा भी कह सकते हैं. सुभाषचन्द्र बोस इनकी भारत आझादी की लगन सही थी, परंतु चुना मार्ग उचित सा दिखाई नही देता. वही उनके मृत्यु पर भी प्रश्न चिन्ह लगे है. जो आज भी पहेली है. जैसे कि - मित्र देश और कांग्रेस का षडयंत्र (?) / जापान साम्राज्य का विस्तारवाद (?).
*मोहनदास गांधी - जवाहरलाल नेहरु - कांग्रेस* की *"आंतरराष्ट्रिय नीति"* (विदेश नीति) भारत आजादी के पहले की हो या, भारत आझादी के बाद की हो, वह कभी भी *"दूरगामी"* नही रही. इसका परिचय द्वितिय महायुध्द में / चायना - तिब्बत संबंध में, हमे दिखाई देता है. *"चायना - तिब्बत संबंध"* के कांग्रेस राजनीति पर, हम फिर कभी चर्चा करेंगे. अभी तो *द्वितिय महायुध्द* ही विषय है. यह महायुध्द २ सितंबर १९४५ में खत्म हुआ. सभी देशों की *"आर्थिक हालात"* तो, बदतर हो चुकी थी. उन्ही बदतर हालातों में - *भारत, कोरीया, तिब्बत, तायवान* समान कुछ देश अपनी आझादी चाहते थे. परंतु *मित्र देश हो या धुरी देश,* वे अपनी कुटील राजनीति खेलते रहे. और भारत के संदर्भ में *"धर्मनीति / जातनीति"* ने, आझादी के लिए प्रश्नचिह्न खडे किये थे. *ब्रिटिश की आर्थिक हालात* भी बहुल पतली होने से, वे भी *"भारत को आझादी"* देने के लिए राजी थे. *परंतु सत्ता सौंपे किसे ?* भारत में धर्म विवाद - जातविवाद सामने खडा था. विश्वास का अभाव था. यही कारण रहा कि, *"भारत को आझादी ३ - ४ साल देरी से"* मिली. क्या हम वो दोष मोहनदास गांधी को दे या, कांग्रेस को दे या, भारत के ब्राम्हणी व्यवस्था को...??? *"भारत - पाकिस्तान विभाजन"* हो गया. और एक प्रश्न *"शोषित - पिडित - आंबेडकरी"* समुदायों का रहा. जो आज भी *" अधिकारों के आग"* में जल रहा है...!!!
अगर द्वितिय महायुध्द ना हुआ होता तो, *"क्या भारत को आझादी सहजता से मिल पाती...?"* सन १९४२ से बाद कहे या सन १९४५ से बाद भी कहे, *"मोहनदास गांधी और कांग्रेस ने, कितने आझादी के बडे आंदोलन, अंग्रेजों के विरोध मे छेडे है ?"* यह बहुत बडा प्रश्न है. अंग्रेजों ने *सत्ता हस्तांतर* करने के बाद, कांग्रेस ने अपना रुप दिखाना शुरु किया. *मोहनदास गांधी* के सिर पर, *"भारत आझादी नायक का बाशिंग"* बांध दिया. सत्ता मिलते ही आझादी की *"कांग्रेस वीर गाथा"* रची भी गयी. बाकी आझादी वीर रहे गये हांसिये पर...? *"१५ अगस्त १९४७ को सत्ता का हस्तांतरण हुआ."* कांग्रेस ने प्रधानमन्त्री पद के लिए, अंतर्गत मतदान लिया. सरदार वल्लभभाई पटेल को सर्वाधिक मत मिले. और उसके बाद आचार्य कृपलानी को ही ! परंतु *मोहनदास गांधी* के कहने पर, दोनो भी नेताओं ने अपनी उमेदवारी पिछे ली. और *जवाहरलाल नेहरु* भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री / सरदार पटेल उपप्रधानमन्त्री / और *डॉ. राजेंद्रप्रसाद* भारत के प्रथम राष्ट्रपति बन गये. *"भारतीय संविधान सभा"* (Constitution Assembly) का गठण हुआ. "भारतीय संविधान सभा" की *"मसौदा समिती"* के, *डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर* अध्यक्ष (२९ अगस्त १९४७ - २४ जनवरी १९५०) चुने गये. फिर "गुलाम भारत" २६ जनवरी १९५० को, *"गणतंत्र भारत"* बन गया. भारतीय लोगों को उनके मौलिक अधिकार मिले. प्रजासत्ताक भारत में, *"संविधानिक संस्कृति"* की बुनियाद रची गयी. सन २०१४ में भाजपा दल की, *नरेंद्र मोदी सरकार* सत्ता में आयी. देववाद, धर्मवाद, जातवाद की राजनीति को बढावा देकर, *"संस्कृति संविधान"* परोसा भी गया. *पुंजीवाद, तानाशाही* की ओर भारत बढने लगा. तिसरी *"गुलामी की ओर....!"*
सन २०२० का कालखंड *"कोरोना व्हायरस महामारी"* का रहा है. भारत में ३० जनवरी २०२० को, *चायना* से ही वह बिमारी फैलने की पुष्टी की गयी. कोरोना व्हायरस पर, कोरोना काल में *"मेरे बहुत से लेख"* मिडिया मे लिखे गये. और कोरोना व्हायरस पर प्रश्नचिह्न भी लगाये है. परंतु कोरोना व्हायरस को लेकर, *"अमेरिका - चायना विवाद ने शीत युध्द"* का कहे या, *"तृतिय महायुध्द"* का बडा ही माहोल खडा कर दिया था. वही *"रशिया - युक्रेन युध्द"* ने भी विश्व यह दो भागों में बंट गया है. अमेरिका - चायना द्वारा *"विश्व शक्ती केंद्र* पर विवाद होना, *"शीत युध्द"* का ही परिपाक है. "द्वितिय महायुध्द" की आंच सें, हमे *"युध्द नही बुध्द"* चाहिये, इस पर एकमत रहा है. और *'विश्व शांती"* पर बहुत से देश पक्षधर भी है. कोरीया १५ अगस्त १९४८ को आझाद हुआ. वही भारत १५ अगस्त १९४७ को आझाद हुआ है. दोनो भी देशों ने, गुलामी की अनुभूति भी ली है. परंतु *कोरीया की तुलना* में, *भारत विकास की दृष्टी* से कहां खडा है ? यह प्रश्न हम सभी के लिए ...!!!
* * * * * * * * * * * * * * * * * * * *
* *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*
(भारत राष्ट्रवाद समर्थक)
नागपुर, दिनांक ४ अक्तूबर २०२३
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